दिल्ली पुलिस ने दंगों का दोषी बताकर उमर खालिद पर ठोंका यूएपीए

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दिल्ली पुलिस ने उमर ख़ालिद पर UAPA लगाया


दिल्ली पुलिस ने नागरिकता संशोधन कानून के विरोध प्रदर्शनों में अगुआ रहे जेएनयू के पूर्व छात्र नेता उमर ख़ालिद पर यूएपीए लगा दिया है। उमर के साथ, जामिया छात्रों मीरान हैदर और सफूरा ज़रगर पर भी यूएपीए लगाया गया है। दिल्ली पुलिस का कहना है कि फरवरी महीने में हुए दिल्ली दंगों के पीछे इन तीनों का हाथ था, और इन्होंने ने ही दिल्ली दंगों की रूपरेखा तैयार की थी। पुलिस का कहना है कि डोनाल्ड ट्रंप के भारत भ्रमण के दौरान उमर ख़ालिद ने उकसाऊ भाषण दिये थे और नागरिकों से चक्का जाम करने की अपील की थी।

पुलिस द्वारा दर्ज़ की गयी एफआईआर में दिल्ली पुलिस का दावा है कि दिल्ली में हुई सांप्रदायिक हिंसा एक प्रयोजित साजिश थी, जिसकी योजना मीरान, सफूरा और उमर ने तैयार की थी। इन तीनों पर गैरकानूनी गतिविधि निरोधक अधिनियम (यूएपीए) के अतिरिक्त राजद्रोह, हत्या, हत्या का प्रयास, धार्मिक आधार पर दो समूहों के बीच शत्रुता फैलाने और दंगे कराने का मामला भी दर्ज़ किया गया है।

एफआईआर में पुलिस का कहना है कि कई घरों से बरामद हुए तमंचे, पेट्रोल बम, एसिड की बोतलें और पत्थर इस साजिश का हिस्सा हैं। पुलिस का कहना है कि 23 फरवरी को औरतों और बच्चों को जाफराबाद मेट्रो स्टेशन के नीचे इकट्ठा करके रास्ता बंद कराया गया, जिससे आस-पास लोगों में तनाव पैदा किया जा सके।

जामिया कोऑर्डिनेशन कमिटी (जेसीसी) ने इससे पहले गिरफ्तारियों के लिए दिल्ली पुलिस की निंदा की थी और तुरंत रिहाई की मांग की थी। जेसीसी के अनुसार, ‘देश इस वक़्त भयावह स्वास्थ्य संकट से जूझ रहा है, लेकिन स्टेट मशीनरी छात्र एक्टिविस्टों का उत्पीड़न करने और उन्हें गलत मामलों में फंसाने में व्यस्त है, जिससे असहमति की आवाज़ों को दबाया जा सके’।

नागरिकता संशोधन कानून को लेकर विरोध प्रदर्शनों में जामिया छात्रों की जामिया कोऑर्डिनेशन कमिटी सक्रिय थी, जिसमें सफूरा ज़रगर मीडिया कोऑर्डिनेटर थीं, वहीं मीरान हैदर सदस्य थे। इसके अलावा, सफूरा जामिया मिल्लिया इस्लामिया यूनिवर्सिटी से एमफिल की पढ़ाई कर रही हैं, वहीं मीरान हैदर भी जामिया से ही पीएचडी कर रहे हैं और राष्ट्रीय जनता दल (राजद) की यूथ विंग के दिल्ली इकाई के अध्यक्ष भी हैं।

नागरिकता संशोधन कानून की मुख़ालिफ़त करने वाले थे मोदी सरकार व पुलिस के निशाने पर

नागरिकता संशोधन कानून को लेकर लंबे समय से देश में विरोध प्रदर्शन होते रहे। प्रदर्शनों के दौरान सरकार का कभी भी यह रुख नहीं रहा कि प्रदर्शनकारियों से बातचीत की जाये। विरोध प्रदर्शनों में शामिल लोगों को लगातार देशद्रोही बताया जाता रहा। जामिया में लाइब्रेरी में घुस कर भी पुलिस ने छात्रों को अंधाधुंध पीटा, अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी में छात्रों को पीटा गया, देशभर में एक्टिविस्टों पर मुकदमे दर्ज़ हुए, उन्हें मारा-पीटा गया। सरकार समर्थित समूहों ने शांतिपूर्ण विरोध प्रदर्शनों में खलल पैदा की और हिंसा भड़की। गांधी शहादत दिवस के दिन जामिया की प्रोटेस्ट रैली में प्रदर्शनकारियों पर गोली चलाकर हमले की कोशिश हुई। देश के प्रधानमंत्री तक ने यह सांप्रदायिक भाषा इस्तेमाल की थी कि पोशाक से दंगाईयों को पहचाना जा सकता है। विरोध प्रदर्शनों के दौरान पुलिस की भाषा भी बेहद सांप्रदायिक और हिंसक बनी हुई थी।

फरवरी में जब दंगे भड़के, तो देश की राजधानी में हुए इन दंगों में खुद दिल्ली पुलिस की भूमिका सवालों के घेरे में थी। भाजपा नेता कपिल मिश्रा ने दंगे शुरू होने से ठीक पहले कानून हाथ में लेने की धमकी दी थी। दंगों के दौरान सामने आये कई वीडियो में जगह-जगह पुलिस को दंगाईयों का साथ देते, मुस्लिमों के प्रति उकसाते देखा गया। दंगे के तीन दिन बाद 27 फरवरी को जब काफ़ी तबाही मच चुकी थी और इसे रोकने को लेकर दुनिया भर से काफ़ी शोर मचा, तब जाकर प्रभावित इलाकों में सख्ती से फोर्स और पुलिस की तैनाती हुई और हालात पर काबू पाया गया। गृह मंत्रालय ने संसद में एक सवाल के जवाब में 18 मार्च को संसद में बताया था कि इन दंगों में 52 मारे गये थे और 545 घायल हुए थे। उससे पहले 8 मार्च को दिल्ली पुलिस ने कहा था कि 53 मौतें हुई हैं। हाल में आरटीआई में जब आंकड़ों को लेकर जवाब मांगा गया तो दिल्ली पुलिस ने जवाब दिया कि 23 मौतें ही हुई हैं, यानी, दिल्ली पुलिस आंकड़े भी छिपाने की कोशिश कर रही है। अब इससे दिल्ली पुलिस की गंभीरता का अंदाज़ा लगाया जा सकता है। 

एक अहम बात और है कि नागरिकता संशोधन कानून जिसे दुनिया भर के कई देशों ने काला कानून बताया था, उसे लेकर देशभर में चल रहे प्रदर्शनों और प्रदर्शनकारियों को ही निशाने पर लिया जाता रहा और इसे मुसलमानों का प्रोटेस्ट कहा जाता रहा। दंगे में इसी धर्म-विशेष के लोगों की सबसे अधिक जान गयी, सबसे अधिक नुकसान हुआ। और अब इन्हीं के पक्षकारों को दंगों का भी दोषी बताया जा रहा। यहां साफ कर दें कि यूं तो दंगों में सबसे पहले इंसानियत मरती है, और जान की कीमत सबकी अहम और बराबर होती है। लेकिन, जब एक पहचान पर लगातार हमले हो रहे हों तो ऐसे भी चीज़ों को देखना और समझना ज़रूरी हो जाता है।

वैसे पीड़ित पक्ष को ही दोषी बताने के इस पैटर्न का जवाब एक नाम से मिलता है, जॉय टिर्की। दिल्ली दंगों के लिए गठित की गयी दो एसआईटी टीमों में से एक की अगुवाई जॉय टिर्की कर रहे हैं। जॉय टिर्की ने 5 जनवरी को जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में नकाबपोशों के हुए हमले में घायल हुई छात्रसंघ अध्यक्ष को ही मामले का आरोपी बना दिया था। टिर्की साहब की इन्हीं क्षमताओं को देखते हुए शायद उन्हें दिल्ली दंगों की जांच टीम भी सौंपी गयी है।