दिल्लीः लाश चाहिए तो 4000 रुपये वीडियोग्राफी के चुकाओ! ज़ख्म पर नमक यानी जीटीबी…

अमन कुमार
ग्राउंड रिपोर्ट Published On :

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बीती रात एक बजे के लगभग मेरे फोन पर एक कॉल आयी। बात न करने की इच्छा के बाद भी मैंने फोन उठाया, तो उधर से आवाज़ आयी, “भाई साहब, मौत देख ली…।” जैसे-तैसे उसको शांत कराया। पूछा कि हुआ क्या, तो उसने पूरा मामला बताया।

यह भजनपुरा में रहने वाला मनीष था। किसी जानने वाले के माध्यम से उसे कुछ पत्रकारों का फोन नंबर मिला था, इत्तेफ़ाक से उनमें मैं भी था। बलवाइयों ने उसके घर में आग लगा दी थी। वह बहुत घबराया हुआ था और आपबीती सुनाते वक्त दोनों ओर हालत यह थी कि न मैंने उससे नाम पूछा और न ही उसने बताने की ज़रूरत समझी।

उसका पूरा घर फूंक दिया गया था। उसने बताया, “खाने पीने का सामान तक नहीं बचा है।” कुछ कहने सुनने को बच नहीं रहा था, तब आखिर में उसने कहा, “भाई साहब, आपसे गुजारिश है कि इधर की तरफ मत आइए। बहुत बुरा हाल है।”

इतना कह कर उसने फोन काट दिया। तमाम कोशिशों के बाद भी उससे उस वक्त दोबारा बात नहीं हो पायी। आज दिन में महज दस सेकंड के लिए फोन लगा, तो रोते हुए उसने अपना परिचय दिया।

भजनपुरा के आशु खुशकिस्मत हैं कि उनका सब कुछ खत्म हो गया है, लेकिन घर पूरी तरह नहीं जला है। बलवाइयों ने उनके घर में भी आग लगाने की कोशिश की थी।

आशु ने बताया, “मैं बस जिंदा बच गया हूं। किस्मत अच्छी थी कि हिंसा शुरू होने के दो दिन पहले ही पत्नी और दो साल के बच्चे को घर भेजा था। वे सुरक्षित हैं, मैं भी अब दिल्ली छोड़कर चला जाऊँगा।”

बुधवार शाम करीब तीन बजे जब हम गुरु तेग बहादुर अस्पताल पहुंचे, तो अस्पताल के गेट नम्बर 7 से इमरजेन्सी वार्ड तक सन्नाटा पसरा हुआ था। गेट के बाहर लगने वाली कई किस्म की दुकानों में से कुछ खुली हुई थीं तो कुछ बंद। करीब 10-15 लोग यहां-वहां टहल रहे थे। कुछ हॉस्पिटल के कर्मचारी थे, कुछ तीमारदार, जो अपने सगे-संबंधियों के साथ अस्पताल इलाज के लिये आए हुए थे।

जीटीबी वही हॉस्पिटल है जहां पर हिंसाग्रस्त लोगों को उपचार के लिये भर्ती कराया गया है। घायल और मृत लोगों के परिवार वालों के साथ यहां पुलिस और मीडिया का भी अच्छा खासा जमावाड़ा लगा हुआ था। इमरजेन्सी वार्ड के पास एक कौने में सुमित बैठे हुए मिले। मीडियाकर्मियों से घिरे हुए सुमित बारी;बारी से सबसे बात कर रहे हैं। उनसे मैने जब वीडियो रिकॉर्डिंग की बाबत अनुमति मांगी, तो वे बोले, “अपने रिस्क पर कीजिए। मैं तो भुगत ही रहा हूं, आपको न भुगतना पड़ जाए।”

उनके ऐसा कहने के पीछे ठोस कारण है- दिल्ली पुलिस और कुछ संदिग्ध लोगों द्वारा यहां की जा रही निगरानी। बाहर बैठे किसी से भी बात करने की कोशिश की जाती है तो कुछ लोग आकर तुरंत घेरा बना लेते हैं और उनके पीछे पुलिस के एक-दो जवान खड़े दिखते हैं। अस्पताल में घूमते हुए किसी से बात करते हुए हर समय एक डर बना रहता है कि कहीं कुछ हो न जाए।

सुमित बताते हैं कि सोमवार को जब उनके इलाके में हिंसा शुरू हुई तब वे घर के भीतर थे। शोर सुनकर बाहर गेट पर आकर अंदाजा लगाने की कोशिश कर रहे थे कि हुआ क्या है। जब तक कुछ समझ पाते तब तक पथराव शुरू हो गया। इस पत्थररबाज़ी में दोनों तरफ के लोग शामिल थे।

सुमित बताते हैं कि पत्थरबाजी में उनके भाई का सिर फट गया। वो घर पर ही है। घर वाले उसका इलाज घर में ही कर रहे हैं। घर वालों ने उसको यहां इसलियए भी नहीं आने दिया कि ऐसे माहौल में किसी का घर पर होना ज़रूरी है।

इमरजेन्सी वार्ड के पास ही एक लड़का शब्बीर (बदला हुआ नाम) कपड़े से अपनी आंख दबाए यहां-वहां घूमता दिखा। नज़दीक जाकर जब उससे बात करने की कोशिश तो उसने कहा, “हम बहुत परेशान हैं, आंख में बहुत दर्द है। बात नहीं कर सकता हूं।” शब्बीर के कुर्ते की बांह में और जहां-तहां खून के धब्बे लगे हुए थे। अस्पताल ने उसे भर्ती नहीं किया। इसका कारण भी नहीं बताया।

बहुत धीमी आवाज में शब्बीर ने बस इतना कहा, “आंख में बहुत दर्द हो रहा है, आंख को खुला छोड़ने पर खून रिस रहा है।”

वहीं एक लड़की भाग दौड कर रही थी। उससे मैंने बात करने की कोशिश की। रोते हुए उसने बताया, “मेरा दोस्त तीन दिन से गायब है। कहीं पता नहीं चल रहा है।”

उसको जब बताया कि एक बार जेपी अस्पताल में पता करिए, तो उसने बताया कि वहां भी पता नहीं चल रहा। डॉक्टर घायलों का नाम पता बताने से मना कर रहे हैं।

वे कहती हैं, “हम जहां खोज सकते थे खोज लिया। निजी और सरकारी अस्पताल में होकर आए हैं। अब कहां जाएं।” उसकी बदहवासी का आलम इतना है कि वो अन्दर भर्ती घायलों तक से पूछ रही है, “आपने तो नहीं देखा उस लड़के को?”

मुस्तफाबाद में मारे गये शाहिद के परिवार से बात हुई। अस्पताल वाले बॉडी की वीडियोग्राफी के चार हजार रुपये मांग रहे थे। शाम तक शाहिद का शव उसके परिवार को नहीं सौंपा गया था। वे शव लेने के लिये यहां-वहां भटक रहे थे।

पुलिस और अस्पताल प्रशासन ऐसी किसी जानकारी से इंकार कर रहे हैं। जीटीबी की मोर्चुरी का एक कर्मचारी नाम न छापने की शर्त पर कहता है, “शाहिद के परिवार से किस बात के चार हजार रुपए मांगे जा रहे हैं? पहली बात तो पोस्टमार्टम की वीडियोग्राफी नहीं होती, लेकिन अगर हो ही रही है तो प्रशासन की जिम्मेदारी है कि वो हर तरह का खर्चा वहन करे।”

अस्पताल के गलियारे में एक दो परिवार ऐसे भी हैं जिनको अस्पताल वालों ने संदेह के आधार पर बॉडी की पहचान करने के लिए बुलाया है। ऐसे ही एक परिवार से बात करने पर पता चला कि उनका बेटा दो दिन से गायब है। हर जगह तलाश करने के बाद भी उसका कोई पता नहीं चल पा रहा है।

जीटीबी अस्पताल में के परिसर में होने वाली हर गतिविधि पर दिल्ली पुलिस की निगरानी है। मीडियाकर्मियों को पीड़ित परिवारों से बात करने से रोका जा रहा है। इमर्जेंसी वार्ड के बाहर पांच-छह पुलिसकर्मी हर वक्त पहरा दे रहे हैं, ताकि पत्रकार भीतर न जा सकें।

हिंसा में मरने वालों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है। ताज़ा जानकारी के अनुसार 34 लोगों की मौत हो चुकी है। मंगलवार की शाम जीटीबी के ही एक स्रोत ने नाम न छापने की शर्त पर एक वकील को बताया था कि कुल 35 लोग मारे गए हैं, उस वक्त तक यह आंकड़ा 4 के करीब था। दो दिन बाद यह बात सही निकल रही है।

अस्पताल के एक कर्मचारी नाम न छापने की शर्त पर कहते हैं कि वास्तविक संख्या इससे कहीं ज्यादा हो सकती है। वे कहते हैं कि जीटीबी अस्पताल के अलावा और कहीं से मरने वालों की खबर को दबाया जा रहा है।

लगातार तीन दिन तक चली हिंसा गुरुवार को थम गई, लेकिन डर और आशंका के बादल आभी मडरा रहे हैं कि न जाने कब क्या हो जाए। बीती दोपहर आईबी अधिकारी अंकित शर्मा के मारे जाने की खबर से माहौल उत्तेजित हुआ और लगा कि दिल्ली एक बार फिर से जलेगी। माहौल में आई उत्तेजना का कारण था हिंदू संगठनों द्वारा किया जा रहा प्रचार कि अंकित को मुसलमानों ने घेर कर तेजाब से जला दिया और शव को नाले में फेंक दिया।

इस मामले में एक वीडियो भी वायरल हुआ है जिसमें एक छत पर कुछ लोगों को दिखाया गया है और मकान आम आदमी पार्टी के एक नेता का बताया गया है। ज़ी न्यूज़ के सुधीर चौधरी ने इस मामले में विशेष दिलचस्पी लेते हुए जिस तरीके से खबर चलायी है, उसने मामले को संगीन राजनीतिक मोड़ देने का काम किया है।

दिल्ली में तीन से हो रही हिंसा में अधिकांश लोग दिल्ली पुलिस की भूमिका पर सवाल उठा रहे हैं। सबका मानना है कि पुलिस वक्त रहते कोई एक्शन लेती या कार्रवाई करती तो इतनी ज्यादा हिंसा नहीं फैलती, और न ही इतने लोग मरते। बुधवार को हाइकोर्ट के जज मुरलीधरन ने पुलिस के सामने अदालत में कपिल मिश्रा के भाषण की सीडी चला दी और दिल्ली पुलिस को फटकारते हुए भाजपा के तीन नेताओं मिश्रा, अनुराग ठाकुर और परवेश वर्मा के खिलाफ एफआइआर दर्ज करने के आदेश दिए थे।

दुर्भाग्य कहें या षडयंत्र, कि आधी रात 11 बजे केंद्र सरकार ने एक गजट अधिसूचना के माध्यम से जस्टिस मुरलीधरन का पंजाब और हरियाणा हाइकोर्ट में ट्रांसफर कर दिया और उनकी जगह गुजरात में काम कर चुके एक जज को हिंसा के मामले सौंप दिए।