देशव्यापी NRC-CAB की घाेषणा पर भाजपा के पूर्वी साम्राज्य में पड़ने लगी हैं दरारें



इस वक्त जब असम की बीजेपी सरकार के मंत्री हिमंत बिस्वा सरमा ने हालिया जारी नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटिजन (एनआरसी) की सूची को “दोषपूर्ण” करार देते हुए पूरी सूची को ख़ारिज करने की मांग की है; और अब जब असम समेत पूर्वोत्तर राज्यों में नागरिकता विधेयक के खिलाफ लामबंदी तेज हो रही है; और असम और बंगाल में नागरिकता खोने के आतंक से आत्महत्या का सिलसिला जारी है; ठीक उसी वक्त केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह संसद में खड़े होकर पूरे देश में एनआरसी लागू करने की घोषणा करते हैं।

गृहमंत्री ने कहा, एनआरसी में धर्म विशेष के आधार पर भेदभाव नहीं होगा। उन्होंने कहा, ‘एनआरसी में इस तरह का कोई प्रावधान नहीं है जिसके आधार पर कहा जाए कि और धर्म के लोगों को इसमें शामिल नहीं किया जाएगा।

सभी नागरिक भले ही उनका धर्म कुछ भी हो, एनआरसी लिस्ट में शामिल हो सकते हैं। एनआरसी अलग प्रक्रिया है और नागरिकता संशोधन विधेयक अलग प्रक्रिया है। इसे एक साथ नहीं रखा जा सकता।’ इसके साथ ही उन्होंने कहा कि एनआरसी को पूरे देश में लागू किया जाएगा ताकि भारत के सभी नागरिक एनआरसी लिस्ट में शामिल हो सकें।


किन्तु राज्यसभा में एक सवाल के जवाब में गृहमंत्री ने कहा-“हिंदू, बुद्ध, सिख, जैन, ईसाई, पारसी शरणार्थियों को नागरिकता मिलेगी। इसके लिए सिटिजनशिप अमेंडमेंट बिल अलग से है ताकि इन शरणार्थियों को नागरिकता मिल सके। इन्हें पाकिस्तान, बांग्लादे और अफगानिस्तान में धर्म के आधार पर भेदभाव का शिकार होना पड़ा था।”

ध्यान देने वाली बात यह है कि अपने जवाब में अमित शाह ने फिर से मुस्लिम शरणार्थियों का जिक्र नहीं किया।

शाह ने राज्यसभा में कहा कि एनआरसी में ऐसा कोई प्रावधान नहीं है, जिसके तहत किसी धर्म विशेष को इससे बाहर रखा जाए। देश के सभी नागरिक, भले ही उनका धर्म कोई भी हो, इसमें शामिल किए जाएंगे। शाह ने कहा कि एनआरसी नागरिकता संशोधन बिल से अलग है।

दूसरी तरफ असम सरकार ने केंद्र सरकार से हाल में जारी किए गए नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटिजन्स (NRC) को रद्द करने का आग्रह किया है। इस बात की जानकारी असम के वित्त मंत्री हेमंत विश्वा सरमा ने बुधवार को दी है।

बीजेपी नेता ने कहा कि पार्टी ने केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह से वर्तमान स्वरूप में एनआरसी को खारिज करने का आग्रह किया है। असम सरकार ने एनआरसी को स्वीकार नहीं किया है। असम सरकार और बीजेपी ने गृह मंत्री से एनआरसी को अस्वीकार करने का अनुरोध किया है।

एनआरसी का विरोध करने वाली बंगाल की मुख्यमंत्री ने कहा है कि उनकी सरकार किसी भी हाल में राज्य में एनआरसी को लागू होने नहीं देगी।

ममता बनर्जी ने कहा कि कुछ बाहरी लोग आपको एनआरसी के नाम पर डरा रहे हैं। बाहर से किसी भी नेता पर विश्वास न करें, इस भूमि से लड़ने वाले और आप के पास खड़े होने वाले हम पर भरोसा करें। एनआरसी लागू नहीं किया जाएगा, इसे ध्यान में रखें। चिंता की कोई बात नहीं है।

ममता बनर्जी ने कहा कि हम एनआरसी को बंगाल में नहीं लागू होने देंगे। उन्होंने कहा कि कोई भी बंगाल में रहने वाले किसी भी शख्स की नागरिकता नहीं छीन सकता है। हम हिंदू और मुस्लिमों के आधार पर नहीं बांटते हैं।

सीपीएम नेता सीताराम येचुरी ने कहा – भारत हम सभी का है। यह आरएसएस की फासीवादी विचारधारा है जो भारतीय नागरिकों की एकता को तोड़ती है।

सीपीएम ने एनआरसी का विरोध किया है।

वहीं असम सहित पूरे पूर्वोत्तर में तमाम राजनीतिक व सामाजिक संगठन नागरिकता (संशोधन) विधेयक, 2019 के खिलाफ आंदोलन के लिए एक बार फिर लामबंद हो रहे हैं। प्रस्तावित विधेयक में बांग्लादेश, पाकिस्तान और अफगानिस्तान से आने वाले गैर-मुस्लिम शरणार्थियों को बिना किसी वैध कागजात के भारतीय नागरिकता देने का प्रावधान है। नार्थ ईस्ट स्टूडेंट्स आर्गनाइजेशन (नेसो) ने इस विधेयक के खिलाफ 15 नवंबर को तमाम पूर्वोत्तर राज्यों की राजधानियों में प्रदर्शन किया।

सोमवार से शुरू हुए संसद के शीतकालीन अधिवेशन में नागरिकता (संशोधन) विधेयक के पेश होने की चर्चा के बाद अब असम समेत पूर्वोत्तर राज्यों के तमाम राजनीतिक व सामाजिक संगठन इसके खिलाफ आंदोलन के लिए एकजुट हो रहे हैं।

प्रस्तावित विधेयक में बांग्लादेश, पाकिस्तान और अफगानिस्तान से आने वाले गैर-मुस्लिम शरणार्थियों को बिना किसी वैध कागजात के भारतीय नागरिकता देने का प्रावधान है।

नागरिकता (संशोधन) विधेयक का मुद्दा इस साल लोकसभा चुनावों के समय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की एक टिप्पणी के बाद उभरा था। तब मोदी को पूर्वोत्तर में कई जगह काले झंडे दिखाए गए और उनके खिलाफ नारेबाजी हुई थी। चुनावों के बाद नेशनल रजिस्टर आफ सिटीजंस (एनआरसी) की अंतिम सूची जारी होने के शोर और विवाद में यह मुद्दा थोड़ा दब गया था।

अब संसद के शीतकालीन अधिवेशन के दौरान इस विधेयक को संसद में पेश और पारित कराने के सरकार के फैसले के बाद इलाके में विरोध के स्वर एक बार फिर तेज हो रहे हैं। पूर्वोत्तर के कई संगठनों ने इसके विरोध में बड़े पैमाने पर आंदोलन की धमकी दी है। नौ राजनीतिक दलों के गठजोड़ लेफ्ट डेमोक्रेटिक फोरम ने भी इस विधेयक के विरोध में आज असम में प्रदर्शन किया।

नागरिकता संशोधन बिल 2016 इसी साल 8 जनवरी को लोकसभा से पास किया गया था। इसका मकसद 31 दिसंबर 2014 से पहले भारत में आए गैर-मुस्लिम लोगों को भारतीय नागरिकता देना है।