MP : छतरपुर में व्‍यापारी और छात्र सरकार से नाखुश, लेकिन कांग्रेस की अंदरूनी कलह सतह पर



आज छत्‍तीगढ़ के विधानसभा चुनाव के लिए मतदान हो रहे हैं। इसके बाद बारी है मध्‍यप्रदेश, तेलंगाना और राजस्‍थान जैसे बड़े राज्‍यों की। छत्‍तीसगढ़ से पिछले दिनों हमने कुछ रिपोर्टें प्रकाशित की थीं। मध्‍यप्रदेश में बुंदेलखंड एक ऐसा हिस्‍सा है जहां से आम तौर पर रिपोर्टें नहीं आती हैं। दुर्भाग्‍य है कि यहां मीडिया की दिलचस्‍पी रियासत से निकलने वाली सियासत में आज भी है। कुछ यही हाल राजस्‍थान का भी है। मीडियाविजिल के साथी अमन कुमार इस बीच बुंदेलखंड की यात्रा पर हैं। उन्‍होंने छतरपुर जिले से पहली चुनावी रिपोर्ट भेजी है, जिसे हम छाप रहे हैं। बुंदेलखंड सहित राजस्‍थान और तेलंगाना के घटनाक्रम पर हमारी नज़र बनी रहेगी – संपादक

अमन कुमार / छतरपुर

मध्य प्रदेश में चुनावी रंग अपने शबाब पर है। पिछले पंद्रह साल से मध्य प्रदेश में सरकार चला रही भाजपा और शिवराज सिंह चौहान अपने कैरियर केसबसे कठिन चुनाव में उतर रहे हैं। भाजपा जहां शिवराज के 15 सालों के कामकाज के सहारे अपनी नैया पार लगाने की कवायद में लगी है वहीं कांग्रेस दो राजपरिवारों की अन्दरूनी लड़ाई से परेशान है। पार्टियों की आपसी लड़ाई ने मतदाता के मन में असमंजस की स्थिति कायम कर दी है।

मतदान की दौड़ में सियासी लड़ाइयों को कवर कर रहा मीडिया हालांकि बुंदेलखंड के इलाके से बिलकुल मुंह फेरे हुए है जहां न तो राजपरिवारों की चमकदार जंग है, न ही सेलिब्रिटी प्रत्‍याशी। यहां के लोगों की जिंदगी आज भी रोटी, कपड़ा और पानी की बाट जोह रही है। बीते कुछ वर्षों के दौरान सूखे के चलते यहां से भारी पलायन हुआ है जिसके चलते मतदाताओं का टर्नआउट आम तौर से चुनाव में कम ही रहता है।

शुरुआत बुंदेलखंड के सबसे पिछड़े जिलों में एक छतरपुर से करते हैं जहां के लोगों से बात करने पर भोपाल से चल रही सियासत की एक अलहदा तस्‍वीर दिखाई दे जाती है। छतरपुर जिले की चंदला विधानसभा के मतदाताओं का कहना है कि शिवराज ने कई विकास योजनाएं चलाईं, जिनका सीधा फायदा लोगों को मिला है। चंदला निवासी भीकम बताते हैं कि सरकार की ‘लाड़ली लक्ष्मी योजना’ के तहत किसी भी परिवार में पैदा होने वाली लड़की को उसके 18 साल पूरे होने पर डेढ़ लाख रुपए दिए जाते हैं। चंदला के ही राजेश कहते हैं कि सरकार की इस योजना से हमारा बोझ हल्का हो जाता है। इस सहायता राशि से हम अपनी बिटिया का ब्याह या उसकी पढ़ाई करा सकते हैं।

चुनाव से पहले शिवराज ने कुछ लोक-लुभावन वादे किए है, जिनकी मांग पिछ्ले कई सालों से अलग समूहों द्वारा उठती रही है। ये कुछ प्रमुख घोषणाएं हैं-

1- राज्य के अध्यापकों का शिक्षा विभाग में संविलियन,
2- छतरपुर में मेडिकल कॉलेज खोलने का ऐलान,
3- अतिथि शिक्षकों का मानदेय दोगुना करने,
4- अविवाहित युवतियों को पेंशन,
5- आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं का मानदेय दोगुना,
6- संबल योजना,
7- गायों की रक्षा के लिए गौ मंत्रालय बनाने का ऐलान,
8- रामगमन पथ के लिए 100 करोड़ रुपये की मंजूरी

यहां के मतदाताओं का कहना है कि यहां जो भी कार्य हुए हैं, वे सब सरकार द्वारा कराए गए हैं जबकि स्‍थानीय विधायक ने इलाके के लिए कुछ खास नहीं किया है। चंदला विधायक के प्रति लोगों में काफी नाराजगी है। उनका कहना है कि चंदला विधानसभा में होने वाला कोई भी काम विधायक के कमीशन के बिना शुरू नहीं होता और भाजपा ने उसी विधायक के लड़के को टिकट दिया है।

मध्‍यप्रदेश में आम तौर से मतदाताओं से बात कर के यह भाव समझा जा सकता है कि लोगों के मन में शिवराज सिंह चौहान के प्रति कोई दुराग्रह नहीं है। बुंदेलखंड में ऐसा विशेष रूप से इसलिए मुमकिन है क्‍योंकि जहां बुनियादी सेवाओं का अभाव हो, वहां बेटी होने पर डेढ़ लाख रुपया मिलना अपने आप में एक वरदान से कम नहीं है। आम आदमी से हटकर हालांकि शहर के व्‍यापारियों के बीच चलते हैं तो सरकार के प्रति अलग ही रुख दिखाई देता है।

चंदला के बरक्स छतरपुर जिले की सदर सीट पर हाल जुदा है। यह जिला मूलतः लकड़ी के कारोबार के लिए प्रसिद्ध है और यहां का कारोबारी वर्ग इस सरकार को बदलने की फिराक में है। व्यापारी वर्ग का गुस्सा शिवराज सिंह पर नहीं, लेकिन केंद्र की मोदी सरकार पर ज्यादा है। लकड़ी का कारोबार करने वाले भार्गव टिम्बर के नीरज का कहना है कि पहले नोटबंदी और उसके बाद जीएसटी ने पूरे कारोबार को चौपट कर दिया है। नोटबंदी को दो साल हो गए और कारोबार अब तक पटरी पर नहीं लौट सका है।

छतरपुर में भाजपा ने जातीय समीकरणों को ध्यान में रखते हुए सवर्ण अर्चना सिंह को प्रत्याशी बनाया है। अर्चना सिंह के पति छतरपुर नगरपालिका अध्यक्ष भी हैं, इससे पार्टी कार्यकर्ताओं में गुस्सा है। विधायक का सपना पाले एक कार्यकर्ता का कहना है कि उन्होंने पूरे मन से पार्टी की सेवा की, लेकिन पार्टी ने उन्हें क्या दिया? अब सोचने का वक्त है। पार्टी में रहने और छोड़ने के सवाल पर वे कहते हैं कि राजनीति तो करनी ही है, देखिये आगे क्या होता है।

व्यापारी वर्ग के अलावा छतरपुर छोटा-सा स्टूडेंट हब भी है। आसपास के जिलों और कस्बों के लोग कॉलेज की पढ़ाई और प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए यहां आकर रहते हैं। इसी जिले के हरपालपुर कस्बे से यहां पढ़ाई करने आये रमेन्द्र नामदेव कहते हैं कि पूरे बुंदेलखंड में उच्च शिक्षा के संसाधन कम हैं। पूरे क्षेत्र में केवल एक ‘हरी सिंह गौर विश्वविद्यालय’ है, जहां सीमित संसाधन हैं और छात्र ज्यादा। छात्र इसके लिए सीधे तौर पर शिवराज सरकार को दोषी मानते हैं, जिन्होंने पिछ्ले 15 साल में ढंग का एक विश्वविद्यालय नहीं बनाया।

शिक्षा और रोजगार के सवाल पर यहां का युवा शिवराज और मोदी से नाराज है। उसका कहना है कि पिछ्ले 10 साल से यहां शिक्षक भर्ती आयोजित नहीं की गई है। केवल अस्थाई शिक्षकों के सहारे प्राइमरी स्कूलों को चलाया जा रहा है। इसकी पुष्टि नौगांव, हरपालपुर, लवकुश नगर के युवा करते हैं, जिन्होंने उत्तर प्रदेश की शिक्षक भर्ती परीक्षा में भाग लिया था जिनमें से बहुत-सी नियुक्ति हो गई हैं, जबकि बहुतों की होनी बाकी है। जिन युवाओं की वजह से भाजपा सरकार में आई, जिनकी वजह से शिवराज 15 साल तक सत्ता में रहे, वे अब शिवराज को सबक सिखाने की बात कर रहे हैं।

मध्य प्रदेश में बदलाव के सुर तो सुनाई दे रहे हैं लेकिन ये होगा कि नहीं, इस पर असमंजस है क्योंकि विपक्षी पार्टी कांग्रेस अपनी अंतर्कलह से जूझ रही है। कांग्रेस की ये नाकामी बड़ी सीटों पर तो है लेकिन छोटी सीटों पर भी साफ नजर आ रही है। इस गुटबंदी ने कई बड़े नेताओं को किनारे कर दिया है। छतरपुर में सत्यव्रत चतुर्वेदी कांग्रेस के बड़े नेता हैं जिनका काफी जनाधार है लेकिन पार्टी ने उनको या उनके परिवार को टिकट नहीं दिया है जिसके कारण उनके बेटे ने समाजवादी पार्टी से परचा दाखिल किया है, जो केवल कांग्रेस के वोटकटवा के रूप में ही काम करेगा।

पिछ्ले साल मंदसौर में किसानों पर गोलीबारी और उनकी मौत के मामले में शिवराज को लगातार कटघरे में खड़ा किया जा रहा है लेकिन बुंदेलखंड के किसानों की राय पर इस घटना का कोई असर नहीं है। महाराजपुर विधानसभा के गंगाइच, बछोन, बरा जैसे गांवों के हाल इससे जुदा है। बरा गांव के कपिल का कहना है कि सरकार की भावान्तर योजना सरकार का सराहनीय कदम है, जिससे किसानों को फायदा हो रहा है।

यहां कुल मिलाकर ज्‍यादा असंतोष शहरी व्‍यापारी वर्ग और छात्रों के बीच ही दिखता है। बड़े पैमाने पर पलायन के कारण बुंदेलखंड में मजदूर आबादी का मतदाता बहुत कम है। किसानों की स्थिति मिश्रित है। भाजपा के भीतर टिकटों के बंटवारे को लेकर कुछ सीटों पर असंतोष भले है लेकिन कांग्रेस की अंदरूनी कलह भी कम नहीं है।

अगले अंक में छत्‍रपुर से आगे बुंदेलखंड के एक और जिले की रिपोर्ट के लिए नज़र बनाए रखिए.