माल्या को भगाने में साबित हुआ हाथ! जेटली से हुई मुलाकात! बताने में शरमाएँ मीडिया के बुक़रात !



 

गिरीश मालवीय 

 

विजय माल्या ने जो लंदन जाने से पहले अरुण जेटली से हुई मुलाकात के बारे में कहा है वह अब एक ‘ओपन ट्रूथ’ है। बहुत से लोगो को लगता है कि माल्या के मुद्दे पर राहुल गाँधी, जेटली के इस्तीफे की मांग सिर्फ राजनीतिक फायदा उठाने के लिए कर रहे हैं लेकिन सच्चाई तो यह है कि माल्या ने  वही बात बोली है जो कांग्रेस प्रवक्ताओ ने 2016 में माल्या के लंदन भागने के ठीक बाद में बोली थी।

उस वक्त कांग्रेस के प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला ने मोदी सरकार पर गंभीर प्रश्न उठाते हुए कहा था कि 2 मार्च 2016 को माल्या के लंदन जाने से ठीक एक दिन पहले 1 मार्च 2016 को माल्या ने वित्त मंत्री अरुण जेटली और वित्त मंत्रालय के कुछ अफसरों से मुलाकात की थी, उसके बाद वे विदेश भाग गए , क्या जेटली ने इस मुलाकात के बारे में प्रधानमंत्री मोदी को बताया?  मुलाकात में क्या बातें हुईं? क्या जेटली मुलाकात का ब्यौरा संसद को देंगे ?

अब सबसे महत्वपूर्ण बात समझिए जिसे इस देश का गोदी मीडिया दबा कर बैठा है और मोदी सरकार से यह पूछने की हिम्मत नहीं कर पा रहा है कि  आखिर माल्या के खिलाफ जो मूल लुकआउट नोटिस जारी किया गया था उसे वापस क्यो लिया गया ?

लुकआउट नोटिस के संदर्भ को ध्यान में रखते हुए आप खुद सोचिए कि माल्या अगर कहता है कि मैंने लंदन जाने से पहले जेटली को यह बताया था कि ‘मैं लंदन जा रहूं हूँ’ तो इस बात का क्या मतलब है ?

दरअसल विजय माल्या के खिलाफ सीबीआई ने जुलाई 2015 में खुद ही आईडीबीआई बैंक लोन मामले में भ्रष्टाचार और आपराधिक षडयंत्र की धाराओं में मुकदमा दर्ज किया था।

2 मार्च 2016 की तारीख में सीबीआई को पता था कि विजय माल्या लंदन जा रहे हैं। यहाँ तक कि एयरपोर्ट से इमिग्रेशन ने सीबीआई को बताया भी था कि माल्या जा रहे हैं लेकिन सीबीआई ने माल्या के जाने पर कोई आपत्ति नही की। आप अंदाजा लगाइये कि ऐसा किसके आदेश पर कहा गया होगा ?

सच्चाई यह है कि सीबीआई ने अक्टूबर 2015 में माल्या के नाम लुकआउट नोटिस यानी देश छोड़ते वक्त  पकड़ लेने का नोटिस जारी किया था। लेकिन एक महीने बाद नंवंबर में वो नोटिस वापस ले लिया गया।  लुक आउट नोटिस में बदलाव कर कहा गया कि अगर विजय माल्या देश से बाहर जाने की कोशिश करें तो सीबीआई को जानकारी दी जाए, और ये भी बताया जाए कि वो कहां गए हैं।  इसी आधार पर सीबीआई को 2 मार्च को ये पता चला था, लेकिन सीबीआई ने कहा- ‘जाने दो’

लुकआउट नोटिस में ऐसा चेंज किसके इशारे पर किया गया समझना मुश्किल नही है। ख़ुद बीजेपी सांसद सुब्रह्मण्य स्वामी ने इसे अकाट्य तथ्य बताते हुए ट्वीट किया है कि लुकआउट नोटिस में बदलाव किया गया। उन्होंने लंदन जाने से पहले संसद के केंद्रीय हॉल में जेतली से माल्या की मुलाकात को भी अकाट्य तथ्य बताया है।

 

दरअसल, जेतली ने यह बात छिपाई कि उनकी माल्या से मुलाकात हुई थी। अब सफ़ाई दे रहे हैं कि उन्होंने मिलने का समय नहीं दिया था। कांग्रेस सांसद पी.एल.पुनिया ने दावा किया है कि उन्होंने माल्या और जेतली को संसद के सेंट्रल हॉल में बातचीत करते देखा था। इसकी तस्दीक सीसीटीवी फुटेज से की जा सकती है।

इस बात के भी बहुत से सुबूत मिल जाएंगे कि माल्या के संबंध जेटली से कितने घनिष्ठ थे। जब माल्या लंदन में थे तो उन्होंने एक पत्र मोदी और जेटली को लिखा था। वह पत्र ट्विटर पर साझा भी किया था। माल्या लिखते हैं- ‘मैंने 15 अप्रैल 2016 को पीएम मोदी और वित्त मंत्री जेटली को पत्र लिखा था। इस चिट्ठी को सार्वजनिक कर रहा हूँ. ताकि चीजें सही परिपेक्ष्य में आ सकें।’ माल्या ने ट्विट पर बताया कि मोदी और जेटली, दोनों में से किसी का भी इस पत्र का जवाब नहीं आया।

ये तो हुई अरूण जेटली के साफ- साफ दिख रहे इन्वॉल्वमेंट की बात। अब आप यह समझिए कि माल्या के केस में मोदी सरकार कितनी गंभीर है और कितनी तत्परता से कार्यवाही कर रही है…….!

भगोड़े माल्या को लंदन में रहते ढाई साल होने वाले हैं, लेकिन वित्‍त मंत्रालय को अब तक इस बात की कोई जानकारी नहीं है कि किंगफिशर के मालिक विजय माल्‍या ने कितना लोन लिया है ?

सेंट्रल इंफॉरेमेंशन कमिशन यानी सीआईसी को दिए एक जवाब में मंत्रालय ने कहा है कि उसके पास माल्‍या का कोई लोन रिकॉर्ड नहीं है। वित्त मंत्रालय की यह दलील मोदी सरकार के पारदर्शिता के दावों पर बड़ा सवाल खड़ा कर रही है।

यह भी जानना भी आपके लिए ‘आह्लादकारी’ अनुभव होगा कि वास्तविक रूप में माल्या की संपत्ति की नीलामी से कितनी रकम सरकार को प्राप्त हुई है। 21 मार्च को केंद्रीय वित्‍त राज्‍य मंत्री संतोष गंगवार ने संसद को बताया था कि सार्वजनिक क्षेत्रों के बैंक की जानकारी के मुताबिक माल्‍या की संपत्ति की ऑनलाइन नीलामी से अभी तक सिर्फ 155 करोड़ रुपये ही हासिल हो पाए हैं।

ऐसा इसलिए भी है क्योंकि मोदी सरकार बेनामी संपत्तियों के मामलों के निपटान के लिए नया कानून बनाने के डेढ़ साल बाद अभी इन मामलों की सुनवाई के लिए जरूरी ‘जुडिशल अथॉरिटी’ का गठन ही नहीं कर पाई, जबकि संबित पात्रा सरीखे प्रवक्ता टीवी पर ताल ठोकते हुए पाए जाते हैं कि नए कानून के तहत माल्या सरीखे डिफाल्टर की बेनामी संपत्ति मोदी सरकार तेजी से जब्त कर रही है। हकीकत यह हैं कि इंसॉल्वेंसी एंड बैंकरप्सी कोड के लागू होने के बाद कुर्क हुईं 860 संपत्तियों में 780 के मामले अभी तक लंबित हैं।

सच तो यह है कि मोदी जी ओर जेटली के खाने के दांत कुछ ओर हैं और दिखाने के कुछ और। इसलिए जब माल्या के बयान से सच्चाई सामने आ गयी हैं तो कम से कम जेटली को तो तुरंत वित्तमंत्री पद से इस्तीफा दे देना चाहिए……..।

 

लेखक आर्थिक मामलों के जानकार और स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।

कार्टूनिस्ट आनंद का कार्टून सोशल मीडिया से साभार।