एक साल 44 सवाल: मुठभेड़ की राजनीति का जातिगत पक्ष और हत्याओं का पैटर्न



मसीहुद्दीन संजरी 

उत्तर प्रदेश में योगी सरकार के पदभार संभालने के बाद 20 मार्च 2017 से फरवरी 2018 करीब 11 महीने में लगभग साढ़े ग्यारह सौ इनकाउंटर हो चुके हैं जिनमें 44 कथित अपराधी मारे गए और डेढ़ हज़ार के करीब घायल हुए हैं। कानून व्यवस्था ठीक करने के नाम पर होने वाले इन इनकाउंटरों पर अब सवाल उठने लगे हैं। इनकाउंटरों के तौर तरीके, पुलिस की कहानी, इनकाउंटर पीड़ितों के ज़ख्मों आदि की पड़ताल करने पर सवालों का उठना लाज़मी भी है। सबसे बड़ा सवाल तो यह है कि ‘मुठभेड़ की जाती है या हो जाती है’? मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के बयानों को देखें तो इस नतीजे पर पहुंचना मुश्किल नहीं है कि मुठभेड़ की जाती है और ऐसा कथित अपराधियों को चिन्हित कर के होता है। इसका मतलब यह कि आमतौर पर मुठभेड़ पूर्व नियोजित (निश्चित रूप से सभी मुठभेड़ नहीं) होती है। ऐसे में इन घटनाओं को मुठभेड़ माना भी जाए या नहीं?

कानून की नज़र में इस तरह की मुठभेड़ में होने वाली मौत, मौत नहीं हत्या है? उस कानून की नज़र में जिसके पास अपनी आंख नहीं होती। वह आरोपपत्रों और गवाहों की आंख से देखता है। बेगुनाहों की रिहाई के लिए संघर्ष करने वाले संगठन रिहाई मंच के एक प्रतिनिधि मंडल ने आज़मगढ़ जनपद में इसी तरह की मुठभेड़ों में मारे जाने वाले चार कथित अपराधियों के परिजनों और आसपास के लोगों से मिलकर जुटाए गए तथ्यों के आधार पर सवाल उठाते हुए इन्हें हत्या बताया है।

रिहाई मंच महासचिव राजीव यादव के नेतृत्व में आज़मगढ़ में मुठभेड़ में मारे गए छन्नू सोनकर, रामजी पासी, जयहिंद यादव और मुकेश राजभर के परिजनों और ग्रामवासियों से मिलने के बाद जो अंतरिम रिपोर्ट जारी की है वह चिंता उत्पन्न करने वाली है। छन्नू सोनकर को अमरूद के बाग़ से पुलिस वाले ले गए और जब वह देर रात तक घर नहीं वापस आया तो परिजनों ने उसके मोबाइल पर फोन किया। पता चला कि वह जहानागंज थाने में है। पिता झब्बू सोनकर और उसकी बहनों ने बताया कि अगली सुबह दो पुलिस वाले उनके घर पहुंचे और बताया कि छन्नू का जिला अस्पताल में इलाज चल रहा है। वहां पहुंचने के बाद परिजन को मुठभेड़ में उसके मारे जाने के बारे में पता चला।

मुकेश राजभर की मां ने बताया कि उनका बेटा कानपुर मज़दूरी करता था। 15 दिन पहले पुलिस वाले उसके घर गए थे और गाली गलोज और मारपीट की थी और मुकेश का कानपुर का पता मांगा था। उसकी मां का आरोप है कि पुलिस वाले उससे रिश्वत में बड़ी रक़म मांग रहे थे। उसने बताया कि 26 जनवरी को 9 बजे पुलिस ने उसे कानपुर से उठाया था। दिन में बारह बजे रामजन्म सिपाही ने फोन कर के उसकी मां से पूछा था कि उसके पास कितना खेत है तो उसने उससे कहा था कि मुकेश को ले गए हो लेकिन मारना पीटना मत, लेकिन पुलिस ने उसको इनकाउंटर में मार डाला। मुकेश को सीने में एक गोली मारी गई थी। उस पर बंदी रक्षक को गोली मारने का आरोप पुलिस ने लगाया है।

जयहिंद यादव के पिता शिवपूजन यादव ने बताया कि जयहिंद उनको साथ लेकर दवा लाने जा रहा था। सादे कपड़ों में कुछ लोगों ने उसे उठा कर बोलेरो में भर लिया और चले गए। उसके बाद सूचना मिली कि उसकी मुठभेड़ में मौत हो गई। उसे 21 गोलियां लगी थीं। क्षेत्र पंचायत सदस्य रहे रामजी पासी के पिता दिनेश सरोज का कहना था कि पुलिस ने पहले उस पर फर्जी मुकदमे लगाए और फिर फर्जी मुठभेड़ में उसकी हत्या कर दी। उनका कहना था कि रामजी ने 600 मतों से क्षे़त्र पंचायत चुनाव जीता था जिसके कारण कुछ सवर्ण लोग उससे जलते थे और मुठभेड़ में उन लोगों का भी हाथ है।

रिहाई मंच प्रतिनिधि मंडल ने बाराबंकी में पुलिस इनकाउंटर में घायल रईस अहमद के परिजनों से भी मुलाकात की। रईस की पत्नी ने बताया कि 30 दिसम्बर को अंधेरा होते ही मुखबिर आबिद के साथ सादे कपड़ों गाड़ी में आए जवान उसे गांव से ही उठा कर ले गए। जिला पंचायत चुनाव लड़ चुके रईस की पत्नी ने बताया कि उसके पति की गांव के कुछ लोगों से प्रधानी के चुनाव को लेकर रंजिश थी। उसको इससे पहले नहर काटने के आरोप में फंसाया गया था। उसने यह भी आरोप लगाया कि अंबारी बाज़ार के पास उसकी मुठभेड़ में हत्या करने की योजना थी लेकिन बात के फैल जाने के कारण करीब एक सप्ताह बाद बाराबंकी में उसे फर्जी मुठभेड़ में घायल कर दिया गया।

पुलिस ने मारे गए सभी कथित अपराधियों पर कई अपराधों में लिप्त होने का आरोप लगाया है और उन्हें इनामी भी बताया है। इसके अतिरिक्त इन मुठभेड़ों के बाद पुलिस की कहानी में कई चीज़ें ऐसी है जो सभी मामलों में एक जैसी हैं। जैसे सभी अभियुक्त बाइक से जा रहे थे और उनमें से हर एक के साथ उनका एक साथी भी था। पुलिस ने जब उन्हें रोकने की कोशिश की तो बाइक सवारों ने उन पर गोलियां चलाना शुरू कर दिया। पुलिस ने जवाबी फायर किया तो अभियुक्तों को गोली लगी जिसमें वे घायल हो गए लेकिन उनके साथी फरार होने में सफल रहे। मुठभेड़ के बाद मौके से बाइक के अलावा हर घटना में एक हथियार भी बरामद हुआ। रिहाई मंच महासचिव राजीव यादव ने सवाल किया कि बाइक सवार से मुठभेड़ में किसी को 21 गोलियां कैसे लग सकती हैं और 21 गोलियां लगने के बाद पुलिस का यह कहना कि अस्पताल ले जाते समय जयहिंद की मौत हुई ऐसा स्वभाविक नहीं लगता। इसी तरह मुकेश राजभर के सीने में जिस स्थान पर गोली लगी और जिससे उसकी मौत भी हो गई उस स्थान पर गोली लगने के बाद कुछ मिनटों तक ही जीवित रहने की सम्भावना रह जाती है ऐसे में पुलिस जिला अस्पताल में उपचार के दौरान उसकी मौत की बात कह कर संदेह ही उत्पन्न कर रही है।

उठ रहे सारे सवालों के मद्देनज़र उत्तर प्रदेश राज्य मानवाधिकार आयोग ने आजमगढ़ के मुकेश राजभर, जयहिन्द यादव, रामजी पासी और इटावा के अमन यादव के फर्जी मुठभेड़ पर जाँच बैठा दिया. उत्तर प्रदेश की विधानसभा में भी विपक्षी दलों ने फर्जी मुठभेड़ के नाम पर की जा रही हत्या का सवाल उठाया. दरअसल मुठभेड़ों का यह अभियान कानून व्यवस्था का मामला कम और इनकाउंटर पॉलिटिक्स का ज़्यादा लगता है। भाजपा सरकार अपराधियों के प्रति कठोर दिखने के साथ ही राजनीतिक हिसाब किताब भी चुकता कर रही है। इनकाउंटर में मारे जाने वालों में मुसलमान, दलित और पिछड़ों की संख्या सबसे ज़्यादा है जबकि कई नामी सवर्ण अपराधी या भाजपा की शरण में चले जाने वाले निश्चिंत घूम रहे हैं। दूसरी तरफ मुठभेड़ों के बढ़ते हुए आंकड़े ही यह बताने के लिए काफी हैं कि सब कुछ ठीक नहीं है।

20 मार्च 2017 से शुरू इस अभियान के पहले 6 महीने में कुल 420 इनकाउंटर हुए थे जिनमें 15 लोग मारे गए थे जबकि यह आंकड़ा 3 फरवरी 2018 को क्रमशः 1142 और 38 था। टाइम्स आफ इंडिया के मुताबिक़ फरवरी की शुरूआत में ही 48 घंटों में प्रदेश में कुल 15 इनकाउंटर हुए। सरकार की तरफ से पुलिस को मिलने वाली वाहवाही और पदोन्नति की होड़ में इसके और बढ़ने की आशंका है।


लेखक रिहाई मंच के सक्रिय सदस्य हैं और प्रतिष्ठित अनुवादक हैं