जिस ज़हर ने अज़ीम जैसे मासूम की जान ली, उसने पहले ‘बड़ों’ को मुर्दा बनाया है!



दिल्ली के मालवीय नगर में जो हुआ, वह दिल दहलाने वाला है। मदरसे में पढ़ने वाले आठ साल के अज़ीम को उसी के हमउम्र बच्चों ने मार डाला। अज़ीम और उसके साथी मदरसे से लगी वक़्फ़ की ज़मीन पर खेल रहे थो जब स्थानीय लड़कों के एक झुंड से मारपीट हुई जिसमें उसकी जान चली गई। बच्चे की हत्या बच्चों ने ही की। पर क्या दोषी सिर्फ़ बच्चे हैं…या वह दुष्प्रचार जिम्मेदार है जिसने बच्चों के अंदर भी साम्प्रदायिक ज़हर भर दिया है।हद तो ये कि जिन बड़े लोगों को इस लड़ाई को रोकना था, वे आग में घी डाल रहे थे। बच्चे की मौत बतौर इंसान इन बड़ों की मौत की मुनादी है।

यह हाल देश की राजधानी दिल्ली का है जहाँ बच्चों को हत्यारा बनाया जा रहा है। सांप्रदायिक राजनीति का शैतान ऐसी हर घटना के बाद अट्टहास करता है। वोट और चुनाव की संभावना की खुशी से झूमता हुआ।

कवि-लेखक अशोक कुमार पाण्डेय ने लिखा है–

जो दिल्ली में हुआ उसे भयानक कह कर निकल जाना भयानक होगा। ठीक है बच्चों की लड़ाई थी। लेकिन बच्चे साम्प्रदायिक आधार पर बंटे थे। ठीक है कोई दंगा नहीं हुआ था लेकिन बच्चों की लड़ाई में एक बच्चे को पीट पीट कर मार डाला गया।

बच्चों की लड़ाई आपने नहीं देखी या की है? दो चार थप्पड़ चले, कपड़े फटे, शोर शराबा, रोना गाना बात ख़त्म। लेकिन दस बारह साल के बच्चे इस क़दर लड़े कि एक लड़के को मार डाला! यह सामान्य लगता है आपको! सोचिये किस क़दर नफ़रत और हिंसा भरी है हमने बच्चों में।

और यह भी कि अगर मरने वला लड़का हिन्दू होता तो! आज व्हाट्सएप फेसबुक ही नहीं टीवी चैनल्स पर भी बयान जारी हो रहे होते। एम पी राजस्थान में भी मुद्दा बन गया होता। किस पागलपन और उन्माद के हालात बना दिये गए हैं।

और बच्चों के दिमाग मे भरा यह ज़हर भविष्य की बेलों में दीमक सा जा लगेगा…देश को कई दशक लग जाएंगे इस पागलपन से बाहर आने में।

तो रोकिए अपने बच्चों को हिन्दू मुसलमान बनते जाने से। अज़ीम किसी के घर का चिराग़ हो सकता है तो उसके हत्यारे भी किसी भी घर मे हो सकते हैं। मत भरिये उनमें इतनी नफ़रत कि कल क़लम छोड़ हथियार उठा लें…सवाल एक अँधेरे घर का तो है ही उससे बढ़कर देश मे अँधेरे के फैलते चले जाने का है।

रोक बस आप ही सकते हैं।