चुनाव चर्चा: पांँच राज्यों के चुनाव परिणामों के ‘गठबन्धनी’ मायने


चुनाव परिणाम भाजपा के खिलाफ निकलने पर उसके गठबंधन की ताकत और भी बिखर सकती है।




चंद्र प्रकाश झा 

भारत के पांच राज्यों में विधान सभा चुनाव केपरिणामों  की आज आधिकारिक घोषणा के पहले सेभारतीय जनता पार्टी और उसके सहयोगी दलों में अफरातफरी मची है। यह अफरातफरी इनराज्यों – छत्तीसगढ़, मध्यप्रदेश,  मिजोरम,  तेलंगाना और राजस्थान में ही नहींअन्यत्र भी है। चुनाव परिणाम निकलने के एक दिन पहले केंद्रीय मानव संसाधन राज्यमंत्री उपेंद्र कुशवाहा ने मंत्री और संसद की सदस्यता से भी इस्तीफा दे दिया जोअफरातफरी का माहौल और बढ़ा सकती है। इन चुनावों के बीच ही तीन केंद्रीय मंत्रियोंऔर भाजपा नेता- सुषमा स्वराज, उमा भारती औरअरुण जेटली ने अगला आम चुनाव नहीं लड़ने की घोषणा कर दी। 2014 के लोकसभा चुनाव मेंनिर्वाचित भाजपा के कुछेक सांसदोंने भी इस्तीफे दे दिए हैं।

उपेंद्र कुशवाहा की राष्ट्रीय लोक समता पार्टी  केंद्र में भाजपा के नेत्रित्व वाले नेशनल डेमोक्रेटिक अलायंस (एनडीए) गठबंधन में शामिल थी, जिससे वह बाहर आ गई है। इसके बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव के राष्ट्रीय जनता दल और कांग्रेस के बनाये महागठबंधन में शामिल हो जाने की प्रबल संभावना है। एनडीए से आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री नारा चंद्राबाबू नायडू की तेलुगु देशम पार्टी (टीडीपी) और जम्मू -कश्मीर की पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ़्ती की पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी) पहले ही बाहर निकल चुकी है। केंद्र और महाराष्ट्र की गठबंधन सरकारों में शामिल शिव सेना कब तक एनडीए का साथ देगी इसका कोई भरोसा नहीं है क्योंकि वह अगला चुनाव अपने दम पर लड़ने की घोषणा कर चुकी है। चुनाव चर्चा के पिछले अंकों में यह रेखांकित किया जा चुका है कि इन पांच राज्यों की विधान सभा चुनावों में से किसी में भी भाजपा का गठबंधन नहीं था। ये चुनाव  परिणाम  भाजपा के खिलाफ निकलने पर उसके  गठबंधन की ताकत और भी बिखर सकती है।

उपेंद्र कुशवाहा ने  लोकसभा के शीतकालीन सत्र के एक दिन पहले और इन विधानसभा चुनाव के परिणाम का इंतज़ार किए बिना इस्तीफ़ा देकर कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी से भेंट की और प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी को एक पत्र भी लिखा। कुशवाहा पहले जॉर्ज फर्नांडीस और नितीश कुमार की बनाई समता पार्टी में थे जिससे निकल कर उन्होंने राष्ट्रीय समता पार्टी बनाई। इस पार्टी ने  2009 के लोकसभा चुनाव में  बिहार की सभी सीटों पर अपने उम्मीदवार खड़े किये थे। बाद में जब उनकी नीतीश कुमार से सुलह हो गई तो वह राज्यसभा के लिए निर्वाचित हो गए। उन्होंने 2013 में राज्यसभा से इस्तीफ़ा देकर नाम से अपनी नई पार्टी बना ली। इस  पार्टी ने 2014 के लोकसभा चुनाव में एनडीए के साथ रह कर तीन सीटें जीती और वह खुद केंद्र में मंत्री  बने। वह जिस कुशवाहा समुदाय के हैं उसका बिहार की आबादी में हिस्सा 6 % माना जाता है। बिहार की 243 विधानसभा सीटों में करीब 60 ऐसी हैं जहां कुशवाहा समुदाय के मतों की जोर 25 -30 हज़ार से ज़्यादा है.  राष्ट्रीय जनता दल के नेता तेजस्वी यादव पिछले कई माह से उपेंद्र कुशवाहा को अपने पाले में लाने में लगे थे.

गौरतलब है कि भाजपा के मोर्चा का नाम बिहार के सिवा हर राज्य में अलग -अलग हैं। बिहार के बाहर एनडीए का अस्तित्व सिर्फ संसद में है। देश के पूर्वोत्तर राज्यों की सत्ता में विभिन्न दलों के साथ भाजपा के दाखिल मोर्चा में किसी का नाम एनडीए नहीं है। हाल में कोई भी नया दल एनडीए में शामिल नहीं हुआ है। भाजपा के सत्तारूढ़ साझा मोर्चा का नाम महाराष्ट्र , नगालैंड, मेघालय, अरुणाचल प्रदेश, असम, झारखंड  और जम्मू -कश्मीर में अलग-अलग है।

एनडीए में भाजपा के साथ रही सारी पार्टियां मिजोरम और तेलंगाना में छिटक गयीं। इनमें आंध्र प्रदेश में सत्तारूढ़ तेलुगु देशम पार्टी (टीडीपी) प्रमुख है। टीडीपी ने तेलंगाना में 2014 में हुए प्रथम विधान सभा चुनाव में भाजपा से गठबंधन किया था। लेकिन इस बार उसने अपनी धुर प्रतिद्वंद्वी कांग्रेस से पहली बार हाथ मिला लिया। आंध्रप्रदेश के मुख्य मंत्री एवं टीडीपी अध्यक्ष नारा चंद्राबाबू नायडू के अनुसार उनका कांग्रेस से कोई वैचारिक मतभेद नहीं बल्कि राजनीतिक विरोध रहा है और उससे हाथ मिलाना भाजपा की चुनावी हार सुनिश्चित करने के लिए ‘लोकतांत्रिक विवशता’ है। तेलंगाना में सत्तारूढ़ तेलंगाना राष्ट्र समिति (टीआरएस) और भाजपा को भी अलग -अलग चुनाव लड़ना पड़ा। इन चुनाव की एक ख़ास बात यह रही कि मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) ने राजस्थान और तेलांगाना  में भाजपा और कांग्रेस के खिलाफ वामपंथी मोर्चा खड़ा कर दिया। यह भी गौतलब है कि इन पाँचों राज्यों में खुद भाजपा के कुछेक सांसद, विधायक रहे निर्वाचित प्रतिनिधियों समेत कई नेताओं ने उसका साथ छोड़ दिया है। इनमें राजस्थान में मुख्यमंत्री पद के दावेदार रहे छह बार के पूर्व विधायक घनश्याम तिवाड़ी, राज्य के दौसा से मौजूदा लोकसभा में भाजपा के सदस्य रहे एवं  पूर्व पुलिस महानिदेशक हरीश मीणा, मध्य प्रदेश के पूर्व लोक निर्माण कार्य मंत्री सरताज सिंह, मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के साले संजय सिंह मसानी भी शामिल हैं। मिजोरम के चुनाव में भाजपा को उन दलों का भी चुनावी साथ नहीं मिला जिनके साथ वह पूर्वोत्तर के राज्यों में गठबंधन सरकार में शामिल है। मिजोरम की सभी सीटों पर खुद के दम पर चुनाव लड़ने वाला दल, मिज़ो नेशनल फ्रंट (एमएनएफ) भाजपा के नेतृत्व में गठित ‘ नॉर्थ ईस्ट डेमोक्रेटिक अलायंस’ (नेडा) की घटक है। मेघालय राज्य में नेशनल पीपुल्स पार्टी (एनपीपी) के नेतृत्व वाली ‘मेघालय डेमोक्रेटिक अलायंस‘ (एमडीए) गठबंधन सरकार में भाजपा शामिल है। मेघालय के मुख्यमंत्री कोनराड सांगमा की अध्यक्षता वाली एनपीपी ने भी मिजोरम चुनाव में भाजपा से गठबंधन किये बगैर अपने प्रत्याशी खड़े किये। एनपीपी, केंद्र की नेशनल डेमोक्रेटिक अलायंस और पूर्वोत्तर क्षेत्रीय ‘ नेडा’ के अलावा नगालैंड और मणिपुर की गठबंधन सरकार में भी भाजपा के साथ शामिल है। एनपीपी का गठन पूर्व लोकसभा अध्यक्ष पी ए संगमा ने 2013 में राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी से निष्कासित होने के बाद किया था।

मोदी सरकार के खिलाफ इसी वर्ष लोक सभा के मानसून सत्र में पेश अविश्वास प्रस्ताव  पर बहस के बाद मत-विभाजन में कुल 547 सदस्यों में से 451 ने ही भाग लिया था। उनमें से 325 ने मोदी सरकार का साथ दिया जिनमें भाजपा के 274 बताये गये। सिर्फ 126 सदस्यों ने सरकार के खिलाफ वोट डाले। मोदी सरकार को अविश्वास प्रस्ताव परास्त करने के लिए 226 सदस्यों के समर्थन की दरकार थी, जो उस वक़्त सदन में स्पष्ट बहुमत की संख्या थी। लेकिन उसे दो -तिहाई बहुमत सदस्यों के समर्थन के रूप में 325 का साथ मिल गया। मोदी सरकार का साथ देने वाली पार्टियों में  भाजपा ही नहीं एनडीए गठबंधन के विभिन्न दल भी शामिल थे। तमिलनाड़ु में सत्तारूढ़ आल इंडिया अन्ना द्रविड़ मुनेत्र कषगम (एआईएडीएमके) ने मोदी सरकार का समर्थन किया। ओडिसा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक के बीजू जनता दल (बीजेडी), तेलंगाना के मुख्यमंत्री के चंद्रशेखर राव की तेलंगाना राष्ट्र समिति (टीआरएस) और शिव सेना के लोक सभा सदस्यों ने मतदान में भाग नही लिया। इसे विखंडित विपक्षी एकता कहा गया। भाजपा के दिवंगत हो चुके तत्कालीन संसदीय मामलों के केंद्रीय मंत्री अनंत कुमार ने यह कहा भी कि बीजेडी और शिव सेना ने मत-विभाजन में भाग नहीं लेकर मोदी सरकार का एक तरह से समर्थन ही किया है। अविश्वास प्रस्ताव अपार मतों के अंतर से गिर गया ।

अविश्वास प्रस्ताव की नोटिस देने वाले तेलुगुदेशम पार्टी और उसका समर्थन करने वाली कांग्रेस समेत किसी भी दल को शायद ही इसके पारित होने की कोई आशा थी। अविश्वास प्रस्ताव गिर जाने के बाद मई 2019 से पहले निर्धारित आम चुनाव की तैयारियां बढ़ने लगी। चुनावी तैयारियां अविश्वास प्रस्ताव के पहले से ही विभिन्न स्तर पर शुरू थी। निर्वाचन आयोग के निर्देश पर मतदाता सूची के नवीनीकरण के लिए एक जून 2018 से विशेष देशव्यापी अभियान चलाया गया। संकेत मिले कि 17 वीं लोक सभा का चुनाव निर्धारित समय पर होंगे। यह संकेत खुद प्रधानमंत्री मोदी ने भी अविश्वास प्रस्ताव पर बहस के जवाब में दिए। उन्होंने तंज में कहा कि विपक्ष को अब अविश्वास प्रस्ताव पेश करने का अगला मौक़ा 2023 में मिल सकता है।

वर्ष 2014 के पिछले लोक सभा चुनाव के बाद केंद्र में भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व के ‘नेशनल डेमोक्रेटिक अलायंस‘ ( एनडीए ) की सरकार बनी तो उसमें एक-एक करके 43 दल शामिल हो गए। इन 43 दलों में से कुछ पहले से एनडीए में थे। वे दल थे : शिव सेना, शिरोमणि अकाली दल, लोक जनशक्ति पार्टी, अपना दल , तेलगुदेशम पार्टी, जनता दल यूनाइटेड,  भारतीय समाज पार्टी, जम्मू एंड कश्मीर पीपुल डेमोक्रेटिक फ्रंट, राष्ट्रीय लोक समता पार्टी, स्वाभिमानी पक्ष, महान दल, नागालैंड पीपुल्स पार्टी , पट्टाली मक्कलकाची, ऑल इंडिया एन आर कांग्रेस, सिक्किम डेमोक्रेटिक फ्रंट, रिपब्लिक पार्टी ऑफ इंडिया, बोडोलैंड पीपुल्स फ्रंट, मिजो नेशनल फ्रंट, राष्ट्रीय समाज पक्ष, कोनगुनडाउ मक्कलदेसिया काची, शिव संग्राम , इंडिया जनानयगा काची,  पुथिया निधि काची, जना सेना पार्टी, गोरखा मुक्ति मोर्चा, महाराष्ट्र वादी गोमांतक पार्टी, गोवा विकास पार्टी, ऑल झारखंड स्टूडेंट यूनियन, इंडिजन्यस पीपुल्स फ्रंट ऑफ त्रिपुरा, मणिपुर पीपुल्स पार्टी, कमतपुर पीपुल्स पार्टी, जम्मू कश्मीर पीपुल्स कांफ्रेंस, हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा, केरला कांग्रेस (थॉमस),  भारत धर्म जन सेना, असम गण परिषद, मणिपुर डेमोक्रेटिक पीपुल्स फ्रंट, प्रवासी निवासी पार्टी, प्रजा सोशलिस्ट पार्टी, केरला विकास कांग्रेस, जनाधीयपठाया राष्ट्रीय सभा, हिल स्टेट पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी , यूनाइटेड डेमोक्रेटिक पार्टी ( मेघालय), पीपुल्स पार्टी ऑफ अरुणांचल, जनाठीपथिया संरक्षण समित और देसियामुरपोक्क द्रविड़ कड़गम। इनमें से आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री  चंद्रा बाबू नायडू की तेलुगु देशम पार्टी और पश्चिम बंगाल की मुख्य मंत्री ममता बनर्जी की तृणमूलकांग्रेस समेत कुछ दल एनडीए से अलग हो चुके है। महाराष्ट्र में शिवसेना अगला आम चुनाव अपने दम पर लड़ने की घोषणा कर चुकी हैं। शिवसेना-भाजपा की ‘ भगवा युति ‘ एनडीए के गठन के बहुत पहले बनी थी जो 2014 के पिछले विधान सभा चुनाव में टूट गई। दोनों पार्टियों ने अपने-अपने दम पर चुनाव लड़ा। तब भाजपा सबसे बड़े दल के रूप में उभरी थी। विधानसभा चुनाव के बाद नई सरकार बनाने के लिए शिवसेना ने भाजपा का समर्थन कर दिया। शिवसेना भी नई गठबंधन सरकार में शामिल हो गई, जिसके मुख्यमंत्री भाजपा के देवेंद्र फड़णवीस हैं। विधान सभा के नए चुनाव 2019 में निर्धारित है।

गैर-भाजपा और गैर-कांग्रेस दलों के संभावित तीसरा मोर्चा की सुगबुगाहट बंद है। इस तीसरा मोर्चा में दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल की आम आदमी पार्टी , आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री एन चंद्राबाबूनायडू की तेलुगु देशम पार्टी और पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की आल इंडिया तृणमूल कांग्रेस ( एआईटीसी ) की भागीदारी की अटकलें थीं। लेकिन इसकी कोई ठोस पहल सामने नहीं आई है। टीसीआर कहते हैं कि वह भाजपा और कांग्रेस दोनों के ही खिलाफ क्षेत्रीय दलों का एक ‘ फेडरल फ्रंट’ बनाने के अपने इरादे को लेकर अटल हैं। उनका कहना है कि वह हड़बड़ी में नहीं हैं, फेडरलफ्रंट बनने में समय लग सकता है, लेकिन उसकी वास्तविक जरूरत है।

ये कोई अंतिम चुनाव नहीं हो सकते। चुनावलोकतंत्र  का अविभाज्य हिस्सा और उसके कायमरहने की गारंटी भी है। भारत के मौजूदा संविधान के तहत राज्यो और केंद्र की भीविधायिका के सावधिक चुनाव की अनिवार्यता है, जिसेज्यादा समय तक रोका नहीं जा सक्ता है। कुछ प्रावधान के तहत चुनाव स्थगित किए जासकते हैं। लेकिन मौजूदा संविधान को पलटे बगैर चुनाव की निरंतरता को खारिज़ करना,गलत ही नहीं गैर संवैधानिक भी है। क्रिकेटिया बचकानापन है यह कहनाकि  2019 के निर्धारित चुनाव फाइनल है औरइन पाँच राज्यो के चुनाव सेमीफायनल हैं। इसमें कोई शक नहीं कि ये चुनाव , 17वीं लोक सभाके मई 2019 से पहले निर्धारित आम चुनाव के पूर्व आखरी बड़े जनादेश होंगे। अगले बरसही जम्मू -कश्मीर, आंध्र प्रदेश, महाराष्ट्र,ओडीसा, अरुणांचल प्रदेश,हरियाणा, सिक्किम और झारखंड समेत कई राज्यों कीविधान सभा के भी नए चुनाव निर्धारित हैं। देखना है कि अगले आम चुनाव के लिए मौजूदागठबंधन कितने बिखरते या फिर सुदृढ़ होते हैं।

(मीडियाविजिल के लिए यह विशेष श्रृंखला वरिष्ठ पत्रकार चंद्र प्रकाश झा लिख रहे हैं, जिन्हें मीडिया हल्कों में सिर्फ ‘सी.पी’ कहते हैं। सीपी को 12 राज्यों से चुनावी खबरें, रिपोर्ट, विश्लेषण, फोटो आदि देने का 40 बरस का लम्बा अनुभव है।)