दहशतज़दा बेगुनाहों की आवाज़ : शहादत की आठवीं बरसी पर शाहिद आज़मी की याद में…

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बेगुनाह मुसलमानों के मुकदमे लड़ने वाले अपने किस्‍म के इकलौते युवा शाहिद आज़मी की मौत को देखते-देखते आज आठ बरस हो गए। 11 फरवरी, 2010 को कानून और साम्प्रदयिक सद्भाव का खून करने वालों ने शाहिद आज़मी को शहीद कर दिया। शाहिद आतंकवाद के नाम पर फंसाए जा रहे बेकसूर मुस्लिम युवकों के मुकदमे देखते थे और कई बार उन ताकतों के मंसूबों को उन्‍होंने ख़ाक में मिला दिया था जिनकी साज़िश की वजह से सैकड़ों मुस्लिम नौजवानों को बीते वर्षों सलाखों के पीछे डाल दिया गया है। शाहिद ने बेकसूर युवकों की कानूनी लड़ाई को अपनी ज़िन्दगी का मकसद बनाया था।

आज शाहिद हमारे बीच नहीं हैं लेकिन उनकी जरूरत देश भर में बहुत शिद्दत से महसूस की जा रही है। तभी उनकी याद में दिल्‍ली से लेकर लखनऊ तक आज प्रतिरोध और स्‍मृति सभाएं आयोजित की गई हैं। लखनऊ में शाहिद आज़मी की शहादत की आठवीं बरसी पर सामाजिक न्याय के लिए संघर्षरत दोस्तों की मुलाकात रखी गई है जिसमें भीम आर्मी, अम्बेडकरवादी छात्र सभा, न्याय मंच बिहार, बुंदेलखंड दलित अधिकार मंच, अम्बेडकर भगत सिंह विचार मंच, दलित–आदिवासी पिछड़ा अल्पसंख्यक न्याय मंच, भारतीय किसान यूनियन, जन मंच, भगत सिंह छात्र नौजवान सभा और कई विश्वविद्यालयों के छात्र नेता शामिल होंगे।]

जातिगत हिंसा, साम्प्रदायिकता और फर्जी मुठभेड़ों के खिलाफ लखनऊ के कैफ़ी आज़मी एकेडमी, निशातगंज में आज हो रहा यह सम्‍मेलन रिहाई मंच आयोजित कर रहा है। रिहाई मंच के प्रवक्ता शाहनवाज़ आलम ने बताया कि सम्मेलन के मुख्य वक्ता दिल्‍ली के पत्रकार अनिल चमडिया होंगे। सम्मेलन में भीम आर्मी के नेता महक सिंह, गोरखपुर के अम्बेडकरवादी छात्र सभा की महिला मोर्चा की अध्यक्ष अन्नू प्रसाद, इलाहाबाद हाईकोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता फरमान नकवी, बलिया से दलित आदिवासी पिछड़ा अल्पसंख्यक न्याय मंच के बलवंत यादव और राघवेन्द्र राम, न्याय मंच के संयोजक प्रशांत निहाल, बुन्देलखण्ड दलित अधिकार मंच के कुलदीप कुमार, आज़मगढ़ से मसीहुद्दीन संजरी, दिल्ली से अधिवक्ता एचआर खान और जुल्फिकार, डुमरियागंज से डॉ मज़हर, गोंडा से शबरोज़ मुहम्मदी, मुज़फ्फरनगर से उस्मान, मुरादाबाद से सामाजिक कार्यकर्ता सलीम बेग, चित्रकूट से लक्ष्मण प्रसाद, फैजाबाद से गुफरान सिद्दीकी, वाराणसी से राहुल कुमार, प्रतापगढ़ पट्टी में हो रहे जातीय उत्पीड़न झेल रहे पीड़ितों के प्रतिनिधि शैलेन्द्र यादव, सोशल मीडिया पर लिखने की वजह से दमन झेल रहे जाकिर अली त्यागी और बृजेश बागी, जेएनयू से छात्रनेता दिलीप कुमार, इलाहाबाद हाईकोर्ट अधिवक्ता दीप यादव, इलाहाबाद विवि से सुनील यादव और दिनेश चौधरी, अलीगढ़ विवि से आमिर मंटोई समेत बाबा साहेब भीमराव अम्बेडकर विवि, फैजाबाद विवि और लखनऊ विवि के छात्रनेता शामिल होंगे।

उधर देश की राजधानी दिल्‍ली में भी आज अनहद की ओर से शाहिद आज़मी की याद में एक आयोजन रखा गया है। इस आयोजन में मोहम्‍मद आमिर खान का वक्‍तव्‍य होगा, जो शाहिद के साथ तिहाड़ जेल में दो साथ बिता चुके हैं। आमिर को आतंकवाद के एक फर्जी केस में फंसा दिया गया था जिसके चलते उन्‍हें 14 साल कैद में बिताने पड़े थे। इसी सज़ा के दौरान वे दो साल दिल्‍ली की तिहाड़ जेल में शाहिद के साथ बंदी थे।

आज जब दलितों-पिछड़ों पर हमले बढ़े रहे हैं, मुसलमानों को राजनीति से प्रेरित हिंसक भीड़ उनकी पहचान के आधार पर पीट-पीटकर मार रही है, सरकारें दलित उत्पीड़न और साम्प्रदायिकता के खिलाफ बोलने वालों को देशद्रोही करार देकर जेलों में ठूसने पर उतारूं हैं, विश्वविद्यालय में पढ़ने वाले छात्रों को अपना हक मांगने पर मुक़दमे लादे जा रहे हैं, किसान आत्महत्या को मजबूर हैं- ऐसे में शाहिद आज़मी की जि़ंदगी के संघर्ष को जानना-समझना औश्र उन्‍हें याद करना युवाओं को बल देता है।

शाहिद आज़मी मूल रूप से उत्‍तर प्रदेश के जिला आज़मगढ़ के इब्राहीमपुर गांव के रहने वाले थे। उनके पिता अनीस अहमद पत्नी रेहाना अनीस के साथ मुम्बई के देवनार क्षेत्र में रहकर अपनी आजीविका कमाते थे। बचपन में ही पिता अनीस अहमद का देहान्त हो गया। शाहिद आज़मी ने पंद्रह साल की आयु में दसवीं की परीक्षा दी। अभी नतीजे भी नहीं आए थे कि कुछ राजनितिज्ञों को कत्ल करने की साजिश के आरोप में उन्हें टाडा के तहत गिरफतार कर लिया गया। उन्‍होंने जेल में अपनी पढ़ाई जारी रखी और वहीं से कानून की डिग्री हासिल की। उन्हें पांच साल की सजा भी हुई परन्तु बाद में सुप्रीम कोर्ट से वे बरी हो गए।

जेल से रिहा होने के बाद उन्‍होंने एक साल का पत्रकारिता का कोर्स करने साथ ही एलएलएम भी किया। कुछ समय एडवोकेट माजिद मेमन के साथ रहने के बाद वे स्‍वतंत्र प्रैक्टिस करने लगे। शाहिद आज़मी का नाम उस वक्त उभर कर सामने आया जब उन्होंने 2002 के घाटकोपर बस धमाका, मुम्बई के 18 आरोपियों में से 9 को डिस्चार्ज करवा लिया। बाद में बाकी आठ आरोपियों को भी अपर्याप्त साक्ष्यों के कारण टाडा अदालत ने बरी कर दिया। इस घटना के एक आरोपी ख्वाजा यूनुस की पुलिस हिरासत में ही हत्या कर दी गई थी।

शाहिद आज़मी 11 जुलाई 2006, मुम्बई लोकल ट्रेन धमाका, मालेगांव कब्रिस्‍तान विस्फोट और औरंगाबाद असलहा केस के आरोपियों के वकील थे। इस दौर में देश में एक सघन साम्प्रदायिक-फासीवादी अभियान चलाया जा रहा था कि कोई भी अधिवक्ता आतंकवादियों के मुकदमे नहीं देखेगा। इस समय तक आतंकवादी होने का अर्थ होता था मुसलमान होना। देश के कई भागों में ऐसे अधिवक्ताओं पर हिंसक हमले भी हुए थे। बेंगलुरू में सैयद कासिम को शहीद भी कर दिया गया था।

ऐसे वातावरण में यह साहसी नौजवान महाराष्ट्र के बाहर बंगाल समेत देश के कई भागों में जाकर अपनी कानूनी मदद देता रहा। अपनी शहादत से कुछ दिनों पहले ही बहुत गम्भीर मुद्रा में अपने परिजनों और मित्रों से शाहिद ने कहा था कि वह एक ऐसी योजना पर काम शुरू करने जा रहा है जिसके नतीजे में बेकसूरों पर हाथ डालने से पहले एजेंसियों को सौ बार सोचना पड़ेगा।

2006 और 2007 के बीच एडवोकेट शाहिद आज़मी को अज्ञात लोगों की तरफ से धमकी के फोन मिले थे। उन्होंने स्थानीय पुलिस में इसकी शिकायत दर्ज करवाई थी। उन्हें सिक्योरिटी भी दी गई थी लेकिन कुछ ही दिनों बाद वापस ले ली गई। 26 नवम्बर 2008 के मुम्बई पर हुए आतंकी हमले में जब पहले से ही जेल में बन्द फहीम अंसारी और सबीहुद्दीन अंसारी को घसीटा गया तो शाहिद आजमी उनके वकील हुए। इस हमले के पाकिस्तानी अभियुक्त अजमल कसाब के वकील केपी पवार को ज़ेड श्रेणी की सुरक्षा दी गई परन्तु इसी मुकदमें से जुडे़ दूसरे अधिवक्ताओं की सुरक्षा की कोई व्यवस्था नहीं की गई।

शाहिद आज़मी कमेटी फार प्रोटेक्‍शन आफ डेमोक्रेटिक राइट्स (सीडीपीआर) का सदस्य होने के साथ ही इंडियन असोसिएशन आफ पीपुल्स लायर से भी जुड़े हुए थे। शाहिद आज़मी खुशमिज़ाज स्वभाव के थे। यही कारण था कि उनके विरोधी भी उनका सम्मान करते थे। शाहिद को मार दिया गया, पर देश में वो युवाओं का एक आइकन है। अक्सरहां युवा मिलते हैं जो कहते हैं कि हम शाहिद बनना चाहते हैं।

शायद यही प्रेरणा रही होगी कि आज से पांच साल पहले 2013 में अनुराग कश्‍यप ने शाहिद पर एक फिल्‍म बनाई जिसका निर्देशन हंसल मेहता ने किया था। दुनिया भर में इस फिल्‍म की बहुत सराहना हुई थी।


रिहाई मंच द्वारा जारी प्रेस नोट, अनहद के आमंत्रण और मसीहुद्दीन संजरी के लेख ”तुम कितने शाहिद मारोगे” के आधार पर


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