NAPM के राष्ट्रीय सम्मेलन से उठी आवाज: जल-जंगल-ज़मीन हमारा, नहीं चलेगा राज तुम्हारा

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जन आंदोलनों का राष्ट्रीय समन्वय के बैनर तले चल रहे तीन दिवसीय जनसंघर्षों के राष्ट्रीय सम्मेलन के दूसरे दिन 24 नवम्बर 2019 को फासीवादी राज्य की राजनीतिक अर्थव्यवस्था: हमारे संसाधन, हमारा संविधान, हमारे संघर्ष; विभिन्न राज्यों द्वारा प्रमुख संघर्षों, मुद्दों और सांगठनिक प्रक्रिया पर प्रस्तुति और जन-आंदोलनकारी राजनीती द्वारा फासीवादी सत्ता को लगाम पर चर्चा की गई। दूसरे दिन की विस्तृत रिपोर्ट पढ़िए :


पुरी, 24 नवंबर 2019: जन आंदोलनों का राष्ट्रीय समन्वय के 25 साल पूरे होने के उपलक्ष् में एनएपीएम का 12वां राष्ट्रीय सम्मेलन उड़ीसा के पुरी जिले में चल रहा है। इस सम्मेलन में देश भर के संघर्ष समूहों से लगभग 1000 साथी भागीदारी कर रहे हैं। सम्मेलन के दूसरे दिन 24 नवंबर 2019 की शुरुआत पुरी के समुद्री किनारे पर सूर्योदय के समय एक मानव श्रृंखला बनाकर की गई। सम्मेलन के पहले सत्र “फासीवादी राज्य की राजनीतिक अर्थव्यवस्था: हमारे संसाधन, हमारा संविधान, हमारे संघर्ष” में सत्या महार, आलोका कुजूर, प्रदीप चटर्जी, मानसी अशर, कैलाश मीणा, चेन्नय्या, लखन मुसाफिर और पार्था सारथी राय ने अपनी बात रखी। सत्र का संचालन मधुरेश ने किया।

पर्यावरण सुरक्षा समिति से लखन मुसाफिर ने कहा कि आज हमारी पहचान बदल गई है। दुनिया की सबसे ऊंची मूर्ति आज हमारी पहचान बन चुकी है। हमारी पूरी ज़मीन डुबोई जा चुकी है। हमारे पास रहने के लिए जगह नहीं है। हमारी गायों के पास चरने के लिए जगह नहीं बची है। हम बंधुआ मज़दूर की स्थिति में पहुंच चुके हैं। हम गांव से बाहर नहीं निकल सकते हैं। अब वह हमसे कह रहे हैं कि नर्मदा किनारा छोड़ दो क्योंकि उनको वहां कोई कॉलोनी बनानी है। हमारा इलाक़ा जो बेहद शांत और सुंदर था अब हमारा लगता नहीं है। सरदार सरोवर बांध में आमदनी और व्यय का कोई ब्यौरा नहीं है। पूरी परियोजना में बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार चल रहा है। इस पर जब लोग विरोध करते हैं तो उन पर तमाम फ़र्ज़ी केस लगाकर उन्हें जेल में डाला जा रहा है।

कैलाश मीणा ने कहा कि राजस्थान के अरावली इलाके में हवा, पानी और हमारे प्राकृतिक संसाधनों की रक्षा की लड़ाई चल रही है। ऐसी ही लड़ाईयां देश के हर कोने में चल रही है। हमारे पुरखों की लड़ाई के बाद जिस संविधान का निर्माण हुआ था आज पूरे देश में उसी संविधान का उल्लंघन किया जा रहा है। लेकिन इसके खिलाफ लड़ाई चल रही है। इसमें महिलाओं की एक बहुत बड़ी भूमिका है। हम पिछले सात सालों से सिर्फ महिलाओं के दम पर दो गाँवों की ज़मीन को अधिग्रहण बचा रखा है। आज पूरे भारत की स्थिति कश्मीर से बहुत बेहतर नहीं है। कश्मीर की जनता भी अपनी आबो हवा में सांस लेने की लड़ाई लड़ रही है और वही लड़ाई हम भी लड़ रहे हैं। हमें सभी संघर्षों में भागीदारी निभानी होगी। चाहे वह कश्मीर की समस्या हो या पूर्वोत्तर की या सरदार सरोवर की, हमें हर लड़ाई में अपनी भूमिका निभानी होगी।

झारखंड से आलोका कुजूर ने कहा कि झारखंड पांचवी अनुसूची का इलाक़ा है। यहां पिछले कई वर्षों से जल जंगल ज़मीन की कॉर्पोरेट लूट के खिलाफ संघर्ष चल रहा है। इन संघर्षों पर भीषण दमन किया जाता रहा है। लेकिन अब दमन की रणनीति भी बदल रही है। अब सरकार लाठी गोली की नहीं रह गई है। अब यह सरकार सीधे संविधान का दुरुपयोग करते हुए संघर्षों को दबाने का प्रयास कर रही है। झारखंड में चल रहे पत्थलगढ़ी के आंदोलन में लगभग 3000 लोगों पर फ़र्ज़ी मुकदमे लगाए जा रहे हैं। सरकार सभी पर देशद्रोह का आरोप लगा रही है। यह सब एक पांचवी अनुसूची के संवैधानिक अधिकार की मांग के बदले हो रहा है। आज झारखंड मॉब लिंचिग का गढ़ बन चुका है। लगभग 21 मामले अब तक लिंचिग के सामने आ चुके हैं। यह फासीवादी सरकार झारखंड में पूरी तरह से फैल चुकी है। आज सरकार न्यायलयों का इस्तेमाल कर रही है। हमारी सड़क से संसद तक कि लड़ाई अब सड़क से न्यायालय तक हो चुकी है।

नियामगिरी संघर्ष समिति से सत्या महार ने कहा कि नियामगिरी का आंदोलन शुरु से ही शांतिपूर्वक व अंहिसा के साथ चल रहा है। सर्वोच्च न्यायालय ने भी नियामगिरी में खनन को रोक रखा है। लेकिन 2014 में मोदी सरकार के सत्ता में आने के बाद से ही हर रोज नियामगिरी आंदोलन के साथियों पर झूठे केस लगा कर जेलों में डाले जा रहे हैं। सड़क चलते लोग उठाकर जेल में डाल दिए जाते हैं और बहुत दिनों तक उनके परिजनों को उनकी कोई खबर नहीं लगती। आंदोलन को जब भी कोई कार्यक्रम होता है तो प्रशासन कार्यक्रम नहीं करने देता बल्कि कार्यक्रम के आयोजकों पर माओवादी होने का आरोप लगाकर उन्हें जेल में डाल देता है। इस आंदोलन को देश के हर हिस्से से सहयोग मिला है। आज हमारे सामने सबसे बड़ी चुनौती अदालतों में चल रहे मुकदमे बन चुके हैं। हमारे पास न्यायलय में लड़ने के लिए पैसे नहीं है। भले ही सर्वोच्च न्यायलय ने वेंदाता को वहां जाने से रोक दिया है लेकिन अभी भी खतरा टला नहीं है। हमें इस आंदोलन को तब तक चलाना है जब तक कि हम पूर्ण जीत हासिल न कर लें। हमारा आप सबसे आग्रह है कि आप हमें केसों में हमारी मदद करें।

हिमाचल से मानसी अशर ने कहा कि हिमालय क्षेत्र में रह रहे समुदाय ज़मीन दरकने से लेकर भूस्खलन की समस्या से जूझ रहे हैं। इन इलाकों में जंगल बहुत बड़े पैमाने पर फैला हुआ है और लोगों का जीवन इन जंगलों पर निर्भर करता है। इसके साथ ही नदियां भी यहां का एक महत्वपूर्ण संसाधन है। लेकिन आज इन सभी संसाधनों की लूट चल रही है। अंग्रेजों ने यह कह कर हमसे जंगल छीन लिया कि आपको वन प्रबंधन नहीं आता। आज लगभग 30 प्रतिशत जंगली क्षेत्र में चीड़ के जंगल हैं जिनमें आग लगती है। और हमें चारा पंजाब से खरीदना पड़ता है। अंग्रेजों की यही व्यवस्था आज भी इस देश में लागू है। आज सरकार जंगलों में रह रहे लोगों को जिनका उन जंगलों पर अधिकार है अतिक्रमणकारी बोल कर खदेड़ रही है। हम अपने क़ानूनों के लिए लड़ रहे हैं। हम वनाधिकार कानून के लिए लड़ रहे हैं। हम एक परियोजना के खिलाफ नहीं लड़ेंगे। हम जंगल पर अपने अधिकार के लिए लड़ेंगे।

छोटे मछुआरों की लड़ाई लड़ रहे पश्चिम बंगाल से प्रदीप चटर्जी ने कहा कि इस देश में लगभग 60 लाख छोटे मछुआरे हैं जो करीब 11 मिलियन मछली पकड़ते हैं। लेकिन यह बहुत दुर्भाग्यपूर्ण है कि हमारे देश के पास अभी तक मछुआरों के लिए कोई नीति नहीं है। मछुआरे पानी बर्बाद नहीं करते हैं वह पानी के संरक्षक हैं और इसका बहुत साधारण सा कारण है कि अच्छी मछली के लिए अच्छा पानी चाहिए। इसीलिए मछुआरे पानी के संरक्षण का प्रयास कर रहे हैं। लेकिन इन मछुआरों का पानी पर कोई अधिकार नहीं हैं। किसान के पास अपनी ज़मीन होती है लेकिन मछुआरों का अपना पानी नहीं होता है। आज जो पूंजी की मार हर तरफ है वह मार पानी के संसाधनों पर भी पड़ रही है। बड़ी पर्यटन, रिवर लिंकिग जैसी-जैसी बड़ी-बड़ी परियोजनाओं में पानी का इस्तेमाल हो रहा है। इन परियोजनाओं में जल संसाधन नष्ट हो रहे हैं लेकिन मछुआरों को कोई सुविधा नहीं मिल रही है जो दरअसल पानी के संरक्षक हैं। लेकिन हम इसके खिलाफ लड़ रहे हैं। हम छोटे-छोटे मछुआरों के हर परिवार को इस संघर्ष से जोड़ने का प्रयास कर रहे हैं।

रायथु स्वराज वेदिके से आए किरण विस्सा ने कहा कि हम सभी जानते हैं कि हमारे देश में खेती-किसानी बहुत बड़ी संकट में है। अगर हम इस संकट से जुड़ने और उसको बचाने के लिए आवश्यकता है। हमको यदि खेती को बचाना है तो उसके विभिन्न पहलुओं पर ध्यान देना होगा। सबसे बड़ी चुनौती है खेती की ज़मीन को बचाना। इसके लिए हमें विस्थापन के खिलाफ सशक्त लड़ाई खड़ी करनी पड़ेगी। खेती के संसाधनों में ज़मीन के साथ-साथ बीज का भी एक अहम हिस्सा है। हमारे देश में खेती के कॉर्पोरेटीकरण में जो सबसे ज्यादा संसाधन प्रभावित हो रहा है वह बीज का है। हमारे देश में निजी बीज कंपनियों का व्यापार 10 हजार करोड़ का है और यह पैसा किसानों की जेब से जा रहा है। इन बीज की कंपनियों को रोकना बहुत महत्वपूर्ण है। इसके अलावा हमें आर्थिक संसाधनों के लिए भी लड़ाई लड़नी पड़ेगी। कर्ज में डूबे किसानों की बढ़ती आत्महत्या को रोकने के लिए हम रणनीति बनानी होगी। मोदी सरकार ने सत्ता मे आने से पहले स्वामीनाथन कमीशन को लागू करने और न्यूनतम सहयोग राशि दिलाने का वायदा किया था लेकिन सरकार में आते ही वह बदल गए बल्कि उन्होंने सर्वोच्च न्यायलय में कह दिया कि हम नहीं कर सकते । यह धोखा किसानों के साथ सरकार हमेशा से करती आ रही है। एनएपीएम के संगठनों से यह अपील है कि वह खेती-किसानी पर भी काम करें।

एपीवीवीयू से आए चेंनैया गारू ने कहा कि पूर्व के वक्ताओं ने बहुत स्पष्ट तरीके से बताया कि कैसे एक फासीवादी रुझान की सरकार किस तरह से जनता के जीवन के संकट में डाल रही है। इन फासिस्टों के लिए संसद एक खेल का मैदान हो चुका है जहां वह लुटेरे पूँजीपतियों के खेलने की जगह बना रहे हैं। हमें आज यह निर्णय लेना होगा कि हम इन फासीवादियों को देश में खेलने नहीं देंगे। हम यहां पर बैठे लोग इस देश के श्रमिक हैं हम लाभार्थी नहीं है। हम इस देश की अर्थव्यवस्था में अपना योगदान दे रहे हैं। जो असल में लाभार्थी हैं वह वे हैं जिनका अर्थव्यवस्था में कोई योगदान नहीं है। खुद को श्रमिक के रूप में न पहचानना ही इस देश के पूँजीपतियों को फायदा पहुंचा रहा है। इसी के दम पर वह देश के श्रम कानून बदल पा रहें हैं ताकि वह मेहनत को और लूट सके। हमें इस लूट के खिलाफ एकजुटता के साथ संघर्ष खड़ा करना होगा।

पार्था सारथी राय ने कहा कि आज सरकार हमारे बीच जो आपसी भाईचारा था उसे नकली मुद्दे खड़े कर कमजोर कर रही है ताकी असली मुद्दों की तरफ लोगों का ध्यान न जाए। आज देश की आर्थिक स्थिति बदतर स्थिति में पहुंची हुई है। पिछले सालों में बेरोज़गारी अपने चरम पर पहुंची हुई है। 2000 से 2010 तक चले जल-जंगल-ज़मीन के संघर्षों की वजह से कुछ जनपक्षीय कानून बने लेकिन वह कानून आज भी लागू नहीं हो पाए हैं। हमें उन क़ानूनों को लागू करवाने के लिए अपने संघर्ष खड़े करने होंगे।

सम्मेलन के दूसरे सत्रः “विभिन्न राज्यों द्वारा प्रमुख संघर्षों, मुद्दों और सांगठनिक प्रक्रिया पर प्रस्तुति” में एनएपीएम के विभिन्न घटकों से आए प्रतिनिधियों ने अपनी बात रखी। इस सत्र का संचालन कुसुमम जोसेफ, महेन्द्र यादव तथा विमलभाई ने किया।

भोजन के उपरांत चले सत्र में 12 समानांनतर सत्रों का आयोजन किया गया। जलवायु संकट के दौर में हम पर चले सत्र का संचालन सौम्या दत्ता तथा कृष्णकांत ने किया। नए श्रम कानून और श्रमिकों का हक पर चले सत्र का संचालन सिस्टर लिस्सी और सुनीता रानी ने किया। दमनकारी राज्य में लोकतंत्र पर चले सत्र का संचालन कविता श्रीवास्तव तथा राजीव यादव ने किया। कल्याणकारी राज्य कहां है? पर चले सत्र का संचालन मुक्ता श्रीवास्तव तथा रघु गोदावर ने किया। संस्थागत लोकतंत्र को बचाना पर चले सत्र का संचालन अंजलि भारद्वाज था रामकृष्ण राजू ने किया। भू-अर्जन, विस्थापन और पुनर्वास का बदलता नक्शा पर चले सत्र का संचालन संदीप पटनायक और प्रिया पिल्लई ने किया। शहरों का भविष्य पर चले सत्र का संचालन राजेंद्र रवि और बिलाल खान ने किया। फेक न्यूज के जमाने में जनवादी मीडिया पर चले सत्र का संचालन नसीरुद्दीन और आर्यन ने किया। नदियां, बड़े बांध और रेत खनन पर चले सत्र का संचालन विमल भाई और कैलाश मीणा ने किया। कॉर्पोरेट शक्ति का प्रतिरोध और आर्थिक जवाबदेही का संचालन बेन्नी कुरुविल्ला, अयन्तिका दास और निशंक ने किया।

सम्मेलन के दौरान पुरी शहर में एक रिक्शा रैली भी निकाली गई। रैली सिंह द्वार से गुंडेचा मंदिर तक निकाली गई। रिक्शा रैली में रिक्शा चालकों की मांगों जैसे आई.डी.कार्ड बनवाना, साइकिल स्टैंड बनवाना, रिक्शा चालकों के लिए बीमा, पुलिस दमन की समाप्ति इत्यादि को उठाया गया।

सम्मेलन के आखिरी सत्रः “जन-आंदोलनकारी राजनीती द्वारा फासीवादी सत्ता को लगाम” सत्र में थिरुमुरुगन गांधी, कविता श्रीवास्तव, कन्नन गोपीनाथन, डॉ. सुनीलम, विद्या भूषण रावत, गाब्रिएल डीट्रिच, सुधीर पटनायक, प्रो. बीरेंद्र नायक, गौतम मोदी, ओवैस सुल्तान और मेधा पाटकर ने अपनी बात रखी। सत्र का संचालन संजय एम.जी. ने किया।

सम्मेलन के दूसरे दिन का समापन सांस्कृतिक कार्यक्रमों तथा फिल्म प्रस्तुतियों के साथ हुआ।


विज्ञप्ति : NAPM द्वारा जारी


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