एल आई सी का विनिवेश- एक व्याख्या

कपिल शर्मा कपिल शर्मा
अर्थव्यवस्था Published On :


बीमा क्या होता है?
बीमा एक तरह की आपसी सहमति है जिसमें कंपनी (यहां-एलआईसी यानी जीवन बीमा निगम) किसी नुक्सान/बीमारी/मृत्यु की घटना पर किसी व्यक्ति या उसके परिवार को एक निश्चित रकम अदायगी का वचन देती है, जो इसे प्रीमियम देता है. किसी ऐसे देश में जहां मजबूत सामाजिक सुरक्षा का ढांचा ना हो वहां यह बहुत महत्वपूर्ण हो जाता है, क्योंकि अगर यह ना हो तो ऐसी किसी दुर्घटना की स्थिति में परिवार कर्जदारों के चंगुल में फंस सकते हैं. बीमा किसी अप्रत्याशित नुक्सान के मामले में उन परिवारों को सुरक्षा प्रदान करता है, और इस तरह वह खासकर गरीब और कमजोर स्थिति वाले परिवारों के लिए एक महत्वपूर्ण सामाजिक कल्याण कार्य करता है.

एल आई सी क्या है?
लाइफ इन्श्योरेंस काॅरपोरेशन ऑफ़ इंडिया (भारतीय जीवन बीमा निगम – एलआईसी), को लाइफ इन्श्योरेंस काॅरपोरेशन ऐक्ट, 1956 के तहत स्थापित किया गया था. 1956 से पहले बहुत सारी बीमा कंपनियां थीं जो समुचित देखभाल उपलब्ध नहीं करा रही थीं. भारत सरकार ने भारत में जीवन बीमा के राष्ट्रीयकरण का फैसला किया और 200 से ज्यादा कंपनियों को अपने हाथों में लेकर (टेकओवर करके ) एलआईसी की स्थापना की.


राष्ट्रीयकरण का उद्देश्य क्या था?
राष्ट्रीयकरण के समय, सरकार का तर्क था कि:
1. बीमा अर्थव्यवस्था का बुनियादी तत्व है और यह एक तरह की सामाजिक सेवा है जिसे सरकार द्वारा संचालित किया जाना चाहिए,
2. सरकार को इस क्षेत्र में पूंजीगत स्रोतों की वृद्धि के लिए प्रवेश करना चाहिए, और इसके लिए, इस उद्यम को ‘‘सक्रिय’’ करने के लिए इसे, खासतौर पर ग्रामीण क्षेत्रों में, उच्च प्राथमिकता देनी होगी, और,
3. सिर्फ कुछ हाथों में आर्थिक और सामाजिक शक्ति केन्द्रीकृत हो जाती है; शक्ति का इस तरह का केन्द्रीकरण समाज के समाजवादी ढांचे के अनुरूप नहीं है.
तत्कालिक वित्त मंत्री, सी डी देशमुख ने कहा था कि:
”जीवन बीमा उद्योग का राष्ट्रीकरण जनता की बचत के अधिक प्रभावी संग्रहण की तरफ एक और कदम है…. बीमा एक आवश्यक सेवा है जिसे कल्याणकारी राज्य को अपनी जनता को उपलब्ध करवाना चाहिए… अगर लाभ कमाने का उद्देश्य निकाल दिया जाए, और राष्ट्रीयकरण के अंतर्गत सेवा की दक्षता को एकमात्र कसौटी बना दिया जाए, तो बीमा के संदेश को ज्यादा से ज्यादा दूर तक प्रसारित किया जाना संभव होगा.”

एल आई सी कैसे कार्य करता है?
बीमाधारक जीवन बीमा निगम को प्रीमियम का भुगतान करता है, जिसमें मध्यावधि या दीर्धकालिक अनुबंध होता है, और जीवन बीमा निगम इस राशि का निवेश करता है. कुछ बीमाधारक ”भागीदार” बीमाधारक के विकल्प का चुनाव करते हैं, जिसका मतलब होता है कि वे जोखिम पूंजी उपलब्ध करवाकर जोखिम में भागीदारी भी करते हैं. 2021 में कानून में संशोधन से पहले, इन भागीदार बीमाधारकों को हर साल के अधिशेष का 95 प्रतिशत बोनस के रूप में भुगतान किया जाता था, और सिर्फ 5 प्रतिशत सरकार के पास जाता था.

एल आई सी पर किसका स्वामित्व है?
आधिकारिक तौर पर, विनिवेश से पहले जीवन बीमा निगम का 100 प्रतिशत स्वामित्व सरकार का था. लेकिन यह उचित चित्रण नहीं है. ऐसा इसलिए क्योंकि जीवन बीमा निगम की ज्यादातर पूंजी आर्थिक रूप से गरीब और मध्यमवर्ग की बचत के जरिए बनी थी. सरकार ने 1956 में डाले गए 5 करोड़ रुपये के अतिरिक्त इसमें और कोई पूंजी नहीं डाली थी, और बाकी सारा पैसा बीमाधारकों से आया था (जो कि आधिकारिक तौर पर 5.4 लाख करोड़ और इससे भी ज्यादा होने की संभावना है). यहां तक कि 2011 में, जब पूंजी निवेश को 100 करोड़ रूपये तक बढ़ाने की जरूरत थी, सरकार ने इसमें कोई पैसा नहीं डाला, बल्कि इस राशि को बीमाधारकों के पैसे से कमाए गए लाभ में से लिया गया था.

इसलिए सरकार सिर्फ बीमाधारकों के पैसे की संरक्षक के तौर पर कार्य कर रही थी. इसी तर्क को आधार बनाकर सर्वोच्च न्यायालय में विनिवेश के खिलाफ केस दायर किया गया है, जिसमें कहा गया है कि कानून में संशोधित प्रावधान भारत के संविधान के अनुच्छेद 300ए के विपरीत है, जो संपत्ति के अधिकार की रक्षा करता है.

विनिवेश से पहले एल आई सी की क्या स्थिति थी?
बीमाधारकों और निपटाए गए दावों की संख्या को देखा जाए तो भारतीय जीवन बीमा निगम दुनिया का सबसे बड़ा जीवन बीमा काॅरपोरेशन है. 30 सितम्बर 2021 को, इसके पास 28 करोड़ 20 लाख से ज्यादा पाॅलिसियां थीं. हालांकि अब 20 से ज्यादा बीमा कंपनियां मौजूद हैं, तो भी बाजार में जीवन बीमा निगम की सबसे बड़ी हिस्सेदारी है और 2021 में इसकी कुल आमदनी 6.82 लाख करोड़ रूपये थी.

हालांकि इस स्थिति में गिरावट हो रही है. 2019 में भारत में कुल प्रिमियमों में 66.4 प्रतिशत की हिस्सेदारी से 2021 में जीवन बीमा निगम की हिस्सेदारी घटकर 63.6 प्रतिशत हो गई है.

इसके अलावा राज्य की विनिवेश नीति के तौर पर जीवन बीमा निगम को खराब संपत्तियां (बैड एसेट) बन गईं कई अन्य सरकारी कंपनियों को खरीदने के लिए मजबूर किया गया. समय के साथ इन कंपनियों को और कमजोर किया गया, और इन पर भारी कर्ज और नाॅन परफाॅर्मिंग एसेट (एनपीए) का बोझ भी था. इस सबकी शुरुआत 2014 के सत्ता परिवर्तन से पहले ही हो चुकी थी, लेकिन बाद के सालों में इसमें बहुत ज्यादा वृद्धि हुई. मिसाल के तौर पर 2015 में कोल इंडिया के 7000 करोड़ रूपये के विनिवेश को खरीदा गया, 2015 में ही इंडियन आॅयल कंपनी के विनिवेश में 8000 करोड़ रूपये (86 प्रतिशत शेयर) खरीदे गए, साल 2017 में जनरल इनश्योरेंस काॅरपोरेशन ऑफ़ इंडिया के विनिवेश को 8000 करोड़ रूपये में खरीदा गया और न्यू इंडिया एश्योरेंस कंपनी के 6500 करोड़ रूपये के आईपीओ को खरीदा गया, 2018 में हिंदुस्तान एयरोनाॅटिक्स लिमिटेड के विनिवेश में 2900 करोड़ रूपये (70 प्रतिशत शेयरों) को खरीदा गया, और आईडीबीआई बैंक को 12000-13000 करोड़ रूपये में खरीदा गया. इसकी वजह से 2014-15 के मुकाबले 2017-18 में जीवन बीमा निगम के एनपीए बढ़कर दोगुने हो गये.


विनिवेश क्या होता है?
विनिवेश वो होता है जब सरकार अपने स्वामित्व वाले काॅरपोरेशनों या कंपनियों में से अपने स्वामित्व को घटाती है. विनिवेश वर्तमान सरकार की सुस्पष्ट नीति है, और हर साल विशाल विनिवेश लक्ष्य निर्धारित किए जाते हैं. विनिवेश को निजीकरण के ही पहले कदम के तौर पर देखा जाना चाहिए, जोकि सरकार का प्राथमिक उद्देश्य भी है. विनिवेश को अक्सर एक आईपीओ (इनिशियल पब्लिक ऑफरिंग ) के द्वारा शुरु किया जाता है, जहां लोग कंपनी का छोटा सा हिस्सा या कंपनी में कुछ शेयर खरीद सकते हैं. हर शेयर की छोटी कीमत निश्चित होती है और यह कंपनी में स्वामित्व को दिखाती है, जिसका मतलब है कि शेयरहोल्डर के पास कंपनी द्वारा लिए गए फैसलों में अपनी बात रखने का कुछ हक होता है.

सरकार ने एल आई सी का विनिवेश कैसे किया?
सरकार पिछले कुछ सालों से जीवन बीमा निगम के विनिवेश के बारे में बातें कर रही थी. सरकार ने 4 मई 2022 से 9 मई 2022 के बीच आईपीओ संचालित किया. तब सरकार ने जीवन बीमा निगम का 3.5 प्रतिशत बेचा. महत्वपूर्ण यह है कि आईपीओ से पहले, सरकार ने जीवन बीमा निगम कानून को 2021 में संशोधित किया था ताकि वो विनिवेश कर सके. इस संशोधन द्वारा दो महत्वपूर्ण बदलाव किए गए थेः

पहला, जैसा कि ऊपर कहा गया है, भागीदार बीमाधारकों को जीवन बीमा निगम के अधिशेष का 95 प्रतिशत नहीं दिया जाएगा. इस संशोधन के जरिए जीवन बीमा निगम के मुनाफे को दो हिस्सों में बांटा गया – भागीदार बीमाधारकों द्वारा उत्पन्न मुनाफा और गैर-भागीदार बीमाधारकों द्वारा उत्पन्न मुनाफा. संशोधन के अनुसार, भागीदार बीमाधारकों को अब सिर्फ उनके द्वारा उत्पन्न मुनाफे का 90 प्रतिशत हिस्सा मिलेगा, और शेयरधारकों को गैर-भागीदार बीमाधारकों द्वारा उत्पन्न अधिशेष का 100 प्रतिशत दिया गया है. यह बहुत ही समस्या-भरा मामला है, क्योंकि बीमाधारकों द्वारा उत्पन्न मुनाफे को शेयरधारकों को दे दिया जा रहा है. इससे भी महत्वपूर्ण बात यह कि, इस संशोधन के बाद, जीवन बीमा निगम की एम्बेडेड वैल्यू-ईवी (एक स्वीकृत सामान्य मूल्यांकन उपाय) 1.04 लाख करोड़ से बढ़कर 5.4 लाख करोड़ हो गयी, क्योंकि जो फंड इससे पहले भागीदार बीमाधारकों के नियंत्रण में था उसे विभाजित कर दिया गया और नियंत्रण शेयरधारकों को दे दिया गया.

दूसरे संशोधन में कहा गया कि आईपीओ के बाद, पहले पांच सालों तक, सरकार को इश्यूड शेयर कैपिटल (जारी की गई शेयर पूंजी) का कम से कम 75 प्रतिशत का स्वामित्व लेना होगा, और इसके बाद, यह 51 प्रतिशत से कम नहीं होगा. यह निजीकरण का सीधा-साफ रास्ता है, और इसमें भी आगे संशोधन किया जा सकता है.


कई यूनियनें और वाम दल कह रहे हैं कि विनिवेश के दौरान एल आई सी का कमतर मूल्यांकन किया गया है. इसका क्या मतलब है? 
पिछले कुछ बीस सालों में, पूरी दुनिया में बीमा कंपनियों का मूल्यांकन ईवी द्वारा हुआ है. जीवन बीमा निगम के आईपीओ से पहले, सरकार ने मिल्लिमन कंपनी को जीवन बीमा निगम के ईवी का मूल्यांकन करने का काम दिया था, जिसने इसका ईवी मूल्यांकन 5.39 लाख करोड़ किया था.

लेकिन यह जीवन बीमा निगम का सही मूल्यांकन नहीं था. पहली बात तो यह कि मिल्लिमन ने जीवन बीमा निगम के स्वामित्व वाली संपत्तियों को इसमें जोड़ने पर विचार ही नहीं किया. भारत में रियल एस्टेट मालिकाने के मामले में जीवन बीमा निगम रेलवे के बाद सबसे बड़ा है, जिसका अनुमानित मूल्य 10-15 लाख करोड़ रूपये है. दूसरे, इवी के मूल्यांकन में जीवन बीमा निगम की पूरे भारत में मौजूद विशाल साख पर विचार नहीं किया गया. जीवन बीमा निगम और इसकी सहायक कंपनियों का भारत में अनूठा मूल्य है. मिल्लिनम द्वारा किए गए मूल्यांकन पर गंभीर संदेह व्यक्त किए गए हैं.

ना सिर्फ यह, बल्कि जिस तरह से ईवी को शेयर्स का मूल्यांकन करने के लिए इस्तेमाल किया गया वो भी बहुत चैंकानेवाला था. आमतौर पर, शेयरों की कीमत पता करने के लिए बीमा कंपनियों द्वारा ईवी के एक मल्टीप्लीकेशन फैक्टर (गुणन कारक) को इस्तेमाल किया जाता है. एचडीएफसी लाइफ, एसबीआई लाइफ और आईसीआईसीआई प्रूडेंशल – इन सब ने अपने शेयरों की इश्यू प्राइज (जारी कीमत) निर्धारित करने के लिए 2.5 से 4 के बीच के मल्टीप्लीकेशन फैक्टर का इस्तेमाल किया था. लेकिन जीवन बीमा निगम के लिए सरकार ने सिर्फ 1.1 के मल्टीप्लीकेशन फैक्टर का इस्तेमाल किया! अधिकारियों ने दावा किया कि यूक्रेन युद्ध, और बाजार की हालत को देखते हुए सरकार को यह फैसला करना पड़ा. अगर हम एचडीएफसी लाइफ द्वारा इस्तेमाल किए गए 3.96 के मल्टीप्लीकेशन फैक्टर को इस्तेमाल करके मूल्य की गणना करें तो सरकार को 54,950 करोड़ रूपये का घाटा हुआ है! जैसा कि वरिष्ठ पत्रकार और सार्वजनिक क्षेत्र और सार्वजनिक सेवाओं के जन आयोग के सदस्य, श्री वी श्रीधर, जिन्होंने जीवन बीमा निगम के विनिवेश के बारे में बहुत विस्तार से लिखा है, तर्क करते हैं कि, ”आईपीओ के लिये जल्दबाजी का मोदी सरकार के विनिवेश के लक्ष्य को हासिल करने से कोई लेना देना नहीं है. अगर सच में उन लक्ष्यों को हासिल करने का ही उद्देश्य होता तो आखिर अपनी इच्छा से इतना बड़ा घाटा उठाने की जरूरत ही क्या थी?’’

इस विनिवेश में क्या समस्या है?
पहले तो, इस विनिवेश को निजीकरण की तरफ पहला कदम माना जाना चाहिये. विनिवेश के साथ, वित्तीय माॅडल में भी बदलाव आएगा, क्योंकि बड़ी निजी कंपनियों का स्वामित्व शुरु होगा. कल्याणकारी माॅडल की जगह, चरम मुनाफा कमाना लक्ष्य हो जाएगा. अब क्योंकि शेयरधारकों के पास संस्थान के मुनाफे पर नियंत्रण होगा, इस फैसले में उनकी बात भी माननी होगी कि निवेश कहां किया जाएगा, और किन क्षेत्रों पर ध्यान दिया जाएगा.

इसका नतीजा यह होगा कि, बीमा के, ”कम मुनाफे वाले क्षेत्रों” में कमी आएगी, जिसका मतलब होगा कि आर्थिक रूप से कमजोर तबकों और ग्रामीण इलाकों के लिए बीमा कम होंगे. अभी, जीवन बीमा निगम ग्रामीण भारत में बीमा करने की जिम्मेदारी का वहन करता है – जीवन बीमा निगम के 1000 से ज्यादा कार्यालयों के मुकाबले निजी बीमा कंपनियों के सिर्फ 107 कार्यालय हैं. 2021 में जीवन बीमा निगम के नये ग्राहकों का 15 प्रतिशत ग्रामीण भारत से आया था. वर्तमान में, आॅल इंडिया इन्श्योरेंस इम्प्लाॅयज एसोसिएशन के अनुसार, ”जीवन बीमा निगम का औसत प्रीमियम साइज 11000 रुपये है, जबकि निजी क्षेत्र में यह 50000 रुपये है, जिसका लक्ष्य क्रीमी लेयर है.” हालांकि, विनिवेश के बाद, ऊंचे प्रीमियम पर ध्यान दिया जाएगा ना कि गरीब परिवारों की सुरक्षा कवरेज में विस्तार करने पर.

फैसला करने की शक्तियों में बदलाव के साथ ही निवेशक उच्च-जोखिम निवेश पर ध्यान देना चाहेंगे, जबकि बीमाधारकों को स्थिर और कम जोखिम वाले निवेश की जरूरत है. इसके अलावा, छोटे और मध्यम परिवारों की बचत पर सरकार का नियंत्रण, जो कि एक महत्वपूर्ण आर्थिक आवश्यकता है, वो कम होने वाला है.
जहिर है कि निगम के कर्मचारियों पर इसके प्रभाव पर भी विचार किया जाना चाहिए. विनिवेश और निजीकरण के साथ कर्मचारियों का ठेकाकरण बढ़ेगा और स्थाई नौकरियां कम होती जाएंगी.

निष्कर्ष 
संवैधानिक तौर पर, भारत अब भी एक ‘समाजवादी’ राज्य है. संविधान के अनुच्छेद 38 और 39, जो राज्य नीति के लिये निर्देशित सिद्धांत हैं, कहते हैं कि, ”राज्य आय में असमानता को कम करने का प्रयास करेगा, और दर्जे, सुविधाओं और अवसरों की उपलब्धता में असमानता को खत्म करने की कोशिश करेगा”, और अधिक, वो अपनी नीतियों को इस तरह निर्देशित करे ताकि, ”समुदाय के भौतिक संसाधनों का स्वामित्व व नियंत्रण और उनका वितरण आम जनकल्याण के लिए हो”. असल में, यह एक वजह थी जीवन बीमा निगम का राष्ट्रीयकरण करने की. जीवन बीमा निगम को जानबूझकर नष्ट करना इस आदेश के खिलाफ है.

हाल में लोकसभा में वित्त मंत्री से जीवन बीमा निगम के सामाजिक उद्देश्यों पर विनिवेश के प्रभावों के बारे में पूछा गया. हालांकि, मंत्री ने सवाल का जवाब नहीं दिया, लेकिन यह कहा कि, ”प्रस्तावित लिस्टिंग, अन्य बातों के साथ-साथ, सरकार को जीवन बीमा निगम में अपने निवेश के मूल्य को अनलाॅक करने (खोलने) में सक्षम बनाएगी, जीवन बीमा निगम को भविष्य में विकास के लिए बाजार से पूंजी जुटाने में सक्षम बनाएगी और लिस्टिंग की जरूरतों के चलते बाजार द्वारा ज्यादा अनुशासन और पारदर्शिता के माध्यम से इसके प्रशासन में सुधार होगा. बदले में, जो मुनाफा होगा उससे सरकार और जीवन बीमा निगम को अर्थव्यवस्था और बीमा क्षेत्र में विस्तार तेज करने में मदद मिलेगी, जो आगे विकास और सामाजिक सुरक्षा को बढ़ावा देगा.’’

जबरदस्त कमतर मूल्यांकन के ज़रिए जीवन बीमा निगम के विनिवेश के चलते पहले ही बहुत घाटा हो चुका है. आईपीओ के बाद जीवन बीमा निगम ने पांचवें न0 की सबसे बहुमूल्य कंपनी का अपना स्थान खो दिया है, और बाजार पूंजी में इसका घाटा 77,600 करोड़ रूपये हो चुका है. सरकार के कदमों को जनता के अधिकारों पर हमला और जन-विरोधी कदमों के अलावा और क्या कहा जा सकता है. इसका फायदा सिर्फ और सिर्फ बड़े काॅरपोरेशनों को होगा, और इससे देश में सामाजिक असमानता की खाई बढ़ेगी. राष्ट्रीय संपत्ति को यूं लुटा देने की मुहिम को चुनौती देने और सरकार की जवाबदेही की मांग करने के लिये एक संयुक्त संघर्ष की जरूरत है.

साभार एक्टू