डॉ. आंबेडकर ने किया मिस्‍टर गांधी का विरोध

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डॉ.आंबेडकर के आंदोलन की कहानी, अख़बारों की ज़़ुबानी – 39

पिछले दिनों एक ऑनलाइन सर्वेक्षण में डॉ.आंबेडकर को महात्मा गाँधी के बाद सबसे महान भारतीय चुना गया। भारत के लोकतंत्र को एक आधुनिक सांविधानिक स्वरूप देने में डॉ.आंबेडकर का योगदान अब एक स्थापित तथ्य है जिसे शायद ही कोई चुनौती दे सकता है। डॉ.आंबेडकर को मिले इस मुकाम के पीछे एक लंबी जद्दोजहद है। ऐसे मेंयह देखना दिलचस्प होगा कि डॉ.आंबेडकर के आंदोलन की शुरुआत में उन्हें लेकर कैसी बातें हो रही थीं। हम इस सिलसिले में हम महत्वपूर्ण  स्रोतग्रंथ  ‘डॉ.अांबेडकर और अछूत आंदोलन  का हिंदी अनुवाद पेश कर रहे हैं। इसमें डॉ.अंबेडकर को लेकर ख़ुफ़िया और अख़बारों की रपटों को सम्मलित किया गया है। मीडिया विजिल के लिए यह महत्वपूर्ण अनुवाद प्रख्यात लेखक और  समाजशास्त्री कँवल भारती कर रहे हैं जो इस वेबसाइट के सलाहकार मंडल के सम्मानित सदस्य भी हैं। प्रस्तुत है इस साप्ताहिक शृंखला की 39वीं कड़ी – सम्पादक


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डा. आंबेडकर का जन्मदिन

(दि टाइम्स आॅफ इंडिया, 13 अप्रैल 1940)

इंडिपेंडेंट लेबर पार्टी ने रविवार को बम्बई प्रान्त, मध्य प्रान्त और बरार में डा. आंबेडकर का जन्मदिन मनाने का कार्यक्रम बनाया है। रविवार को सायं 4 बजे कल्यान में जनसभा होगी, जिसकी अध्यक्षता डी. जी. जाधव, एमएलए करेंगे और ‘डा. आंबेडकर एवं दलित वर्गों की राजनीतिक मुक्ति’ विषय पर भाषण देंगे।
पार्टी के महासचिव डी. वी. प्रधान अहमदाबाद के आयोजन की अध्यक्षता करेंगे।
निम्नलिखित उस लेख का सम्पूर्ण अनुवाद है, जो 13 अप्रैल 1940 को ‘जनता’ (बम्बई) में ‘हिन्दूधर्म की भयानक प्रकृति पर एक नजर’ शीर्षक से छपा है-

हिन्दूधर्म की भयानक प्रकृति पर एक नजर

क्या निम्नलिखित लेख डा. बाबासाहेब आंबेडकर के इस विचार का समर्थन नहीं करता है कि हिन्दूधर्म कोढ़ जैसी लाइलाज बीमारी से पीड़ित है और इसने हिन्दूधर्म के सम्पूर्ण रक्त को संक्रमित कर दिया है?

जनता, 13 अप्रैल 1940

‘हरिद्वार की धार्मिक नगरी में शंकर का एक मन्दिर है। उस स्थान पर संगमरमर की पिण्डी है, और शंकर का लिंग ऊॅंचाई में पुरुष के अंग के बराबर है, और उसकी सवा इंच मोटाई है। वहाॅं मन्दिर के भीतर भद्र महिलाएॅं सवा रुपए दक्षिणा के रूप में पुजारी को देती हैं और शंकर के लिंग के साथ यौन खेल खेलती हैं, जैसा वे अपने पतियों के साथ खेलती हैं। इस क्रिया को ‘भोग’ कहा जाता है। शिक्षित हिन्दू इतने बुद्धिहीन हैं कि वे इस तरह की निन्दनीय चीजों का खण्डन करने का भी उनमें कोई साहस नहीं है। इसी तरह की और भी बहुत सारे चित्र मन्दिरों में हैं, जैसे नग्न अवस्था में पुरुषों और स़्ित्रयों के बीच सम्भोग की क्रियाएॅं दर्शाई गई हैं।

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बम्बई में डा. आंबेडकर का जन्मदिन
नेताओं ने भेजे बधाई सन्देश
(दि बाम्बे क्राॅनिकल, 15 अप्रैल 1940)

बम्बई, रविवार।

अनेक प्रमुख सवर्ण हिन्दू और हरिजन नेताओं ने डा. आंबेडकर से भेंट की और उनके 48वें जन्मदिन की शुभ कामनाएॅं दीं।
देश भर के प्रमुख नेताओं ने उन्हें सन्देश भेजे हैं, जिनमें अछूतों के प्रयोजन के लिए उनके कार्यों की सराहना करते हुए उनके उज्जवल भविष्य की कामना की गई है।
इंडिपेंडेंट लेबर पार्टी के मुखपत्र साप्ताहिक ‘जनता’ ने इस अवसर पर अपना विशेषाॅंक निकाला है और इसी तरह का विशेषाॅंक ‘देश बन्धु’ ने भी निकाला है। ‘देश बन्धु’ का सम्पादन पी. एन. राजभोज करते हैं, जिन्होंने दलित समुदाय के लिए डा. आंबेडकर की सेवाओं की प्रशंसा करने वाले सन्देश प्रकाशित किए हैं। इसमें एक महत्वपूर्ण सन्देश लिबरल नेता डा. आर. पी. प्रान्जपई का है, जिसमें वह कहते हैं कि अगर ‘स्वराज’ आया, तो वह हरिजनों और दलित वर्गों के वास्तविक उत्थान के बिना लम्बे समय तक देश का भला करने के लिए जीवित नहीं रहेगा। दलित वर्ग सौभाग्यशाली है कि उसे डा. आंबेडकर के रूप में एक सुशिक्षित और प्रबुद्ध नेता मिला है।
आज शहर में डा. आंबेडकर के जन्मदिन के सम्बन्ध में अनेक जनसभाएॅं हुईं, जिनमें सर्वश्री आर. के. टटनिस, राजभोज, एम. वी. डाॅंडे, के. वी. सावड़कर और अनेक अन्य वक्ताओं ने सम्बोधित किया।

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डा. आंबेडकर बिस्तर पर
(दि बाम्बे क्राॅनिकल, 22 मई1940)

बम्बई, रविवार।

डा. बी. आर. आंबेडकर, जिनका पिछले सप्ताह टोंसिल्स का आपरेशन हुआ था, मारिन सनाटोरियम में स्वास्थ्य लाभ कर रहे हैं। आज उनका बुखार 104 डिग्री था और उनकी हालत चिन्ताजनक है।

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बम्बई सीक्रेट अबस्ट्रेक्ट, दिनाॅंक 8 जून 1940

614। ए. डी. रणखम्बे की अध्यक्षता में 31 मई को पूना में 100 लोगों की सभा हुई थी। इस सभा का आयोजन काॅंग्रेसी हरिजनों ने किया था, और जब अध्यक्ष को जुलूस के साथ लाया गया, तो उसी दौरान डा. आंबेडकर के अनुयायी भी 50 लोगों के जुलूस के साथ विरोध में नारे लगा रहे थे। वहाॅं पुलिस मौजूद थी, जिसने कोई गड़बड़ी नहीं होने दी।
सभा में अघ्यक्ष और एस. एन. शिवतारकर ने डा. आंबेडकर की पृथकतावादी नीति के विरुद्ध और काॅंग्रेस के तत्वावधान में संयुक्त हरिजन मंच के पक्ष में भाषण दिए। 11 प्रस्ताव पास किए गए, जिनमें निम्नलिखित अत्यन्त महत्वपूर्ण हैं-
1. इंडिपेंडेंट नेशनल हरिजन पार्टी की स्थापना का प्रस्ताव, जिसमें डी. रणखम्भे को अध्यक्ष, एस. एन. शिवतारकर, डा. पी. जी. सोलंकी और 4 अन्य को उपाध्यक्ष एवं एल. बी. भिंगारदिवे और जी. एन. कांबले को महासचिव नियुक्त किया गया।
2. व्यस्क मताधिकार के आधार पर संविधान सभा के निर्माण का अनुमोदन करने के सम्बन्ध में प्रस्ताव, और
3. यह प्रस्ताव कि हरिजन तब तक युद्ध में भाग नहीं लेंगे, जब तक कि भारत के लिए स्वराज स्वीकार नहीं किया जायेगा।

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डा. आंबेडकर वायसराय से मिले
(दि फ्री प्रेस जर्नल, 7 अगस्त 1940)

बम्बई, मंगलवार।

यूनाईटेड प्रेस बताता है कि डा. आंबेडकर, एमएलए को 13 अगस्त को महामहिम वायसराय ने बम्बई में वार्ता के लिए बुलाया है। बताया जाता है कि छा. आंबेडकर ने निमन्त्रण स्वीकार कर लिया है।

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डा. आंबेडकर ने किया मि. गाॅंधी का विरोध
(दि टाइम्स आॅफ इंडिया, 24 सितम्बर 1940)

सम्पादक के नाम डा. आंबेडकर का पत्र

महोदय,
बम्बई में अखिल भारतीय काॅंग्रेस कमेटी की बैठक में मि. गाॅंधी के प्रदर्शन के बारे में दो विचार प्रचलित हैं।
एक यह है कि मि. गाॅंधी का प्रदर्शन चतुराई भरा था, कुछ-कुछ सामान्य प्राणियों की समझ से परे, और मि. गाॅंधी ने अपने प्रदर्शन से नागरिक अवज्ञा की उथल-पुथलको टाल दिया है। मुझे ये दोनों विचार अदभुत प्रतीत होते हैं। जनता को इस तरह के महत्वपूर्ण मामलों पर अपना मत समझदार तरीके से बनाना चाहिए, विशेष रूप से हिन्दू जनता को, जो सोचने की क्षमता में एक दुखद समुदाय है। मैं यह नहीं जान सकता कि मि. गाॅंधी ने अपनी योजना से नागरिक अवज्ञा को कैसे टाल दिया है। यह सच है, मि. गाॅंधी लोगों को यह बताने के लिए कि वे युद्ध में भाग नहीं लेंगे अथवा जन या धन की आपूर्ति करके उसकी सहायता नहीं करेंगे, युद्ध के विरोध की स्वतन्त्रता माॅंग रहे हैं। किन्तु इसका मतलब क्या है? मेरे दिमाग में इसका मतलब भारत रक्षा अधिनियम की नागरिक अवज्ञा के सिवा कुछ नहीं है। हिन्दू जनता मि. गाॅंधी की योजना को कैसे समझ सकती है, जबकि उनकी नागरिक अवज्ञा मेरी ही समझ से परे है।

बहुत आश्चर्यजनक

हालाॅंकि सम्पूर्ण स्थिति में सबसे अधिक परेशानी की बातयह है कि मि. गाॅंधी वायसराय से मिलने वाले हैं और वायसराय से उनकी वार्ता होने की पूरी सम्भावना है। वह व्यक्ति भी, जो मि. गाॅंधी से कम समझदार है, यह मानता है कि वायसराय के पास जाकर रक्षा अधिनियम को तोड़ने के लिए अनुमति माॅंगने से ज्यादा हास्यास्पद कुछ नहीं हो सकता। यह मि. गाॅंधी के ज्ञान से बाहर नहीं हो सकता कि उनकी इस माॅंग पर इंग्लैण्ड या अमेरिका में आपŸिा करने वाले बहुत लोग हंै।उनकी सारी आपŸिा यह है कि उन्हें लड़ाकू सेवा में शामिल होने के लिए मजबूर नहीं किया जायेगा। उन्हें गैर लड़ाकू सेवा से छूट नहीं दी गई है और न ही उन्हें युद्ध के बीच युद्ध के खिलाफ बोलने की आजादी दी गई है। यह मि. गाॅंधी की प्रशंसा के लिए नहीं कहा जा सकता कि सभी समझदार लोगों को बल प्रयोग से नफरत करनी चाहिए, किन्तु बल को कम करने के लिए बल का प्रयोग और बल से प्राप्त जीत का उपयोग करने के बीच एक अन्तर होना चाहिए ताकि पराजय पर अनजान तथा अनुचित शब्दों को लागू करने से बचा जाए।
मुझे ऐसा प्रतीत होता हैं कि बुराई की जड़ बल प्रयोग में नहीं है, बल्कि जीत के दुरुपयोग में है। मि. गाॅंधी, एवं सभी शान्तिवादी और अहिंसा में विश्वास करने वाले लोग मानवता की स्थायी सेवा करेंगे, यदि पराजित करने के लिए पेश की गईं शान्ति की शर्तें अनजान और अनुचित हैं। मुझे लगता है कि शान्तिवादी ने अपने मिशन को ठीक से नहीं समझा है। उसकी लड़ाई मूल शान्ति के खिलाफ होनी चाहिए, बल के खिलाफ नहीं। बल प्रयोग का खण्डन करने के लिए लोगों का आह्वान करके शान्तिवादी उन लोगों की सहायता कर रहे हैं, जो जीतने के लिए बल प्रयोग करने पर जोर देंगे। यह सब मि. गाॅंधी को समझना होगा।
इसलिए मुझे पक्का यकीन है कि मि. गाॅंधी वायसराय से मिलने की भूल नहीं करेंगे। मि. गाॅंधी पूरी तरह से एक अलग ही उद्देश्य से जा रहे हैं। वह वायसराय को यह बताने जा रहे हैं कि अगर काॅंग्रेस को सŸाा नहीं दी जाती है, तो उसे कोई फर्क नहीं पड़ेगा और यदि वायसराय तथा नौकरशाही द्वारा सŸाा को बरकरार रखा जाता है, तो भी काॅंग्रेस स्थिति को सहन करेगी। किन्तु यदि ब्रिटिश सरकार देश में अल्पसंख्यकों और गैर काॅंग्रेसी दलों को सŸाा में भागीदारी देती है, तो काॅंग्रेस नागरिक अवज्ञा आन्दोलन आरम्भ करेगी और ब्रिटिश सरकार के खिलाफ संघर्ष का रास्ता अपनायेगी। यह है वह बल, जिससे काॅंग्रेस चलती है और यह 9 सितम्बर को मद्रास में दि गए मि. सी. राजगोपालावारी के भाषण से स्पष्ट हो जाता है। ‘हिन्दू’ के अनुसार उस भाषण में राजगोपसलाचारी ने कहा है कि ‘यदि दुर्भाग्य से वह वायसराय होते, तो वह वर्तमान परिस्थितियों में पुराने तरीके से प्रशासन चलाने को प्राथमिकता देते, न कि बहुमत पर अल्पसंख्यकों के शासन को बलपूर्वक थोपने की नई परेशानियाॅं पैदा करते।’
काॅंग्रेस का उद्देश्य
काॅंग्रेस द्वारा अचानक हथियारउठाने का आधार वायसराय को इस बात के लिए मजबूर करना है कि वायसराय काॅंग्रेस के दबाव में आकर एक्जीटिव कौंसिल के विस्तार में अल्पसंख्यकों और गैर-काॅंग्रेसी दलों को शामिल करने की अपनी योजना को त्याग दें। उसकी नागरिक अवज्ञा की धमकी का इसके सिवा कोई दूसरा मकसद नहीं है। यह कहना कि काॅंग्रेस देश के हित के लिए लड़ रही है, एक पाखण्ड है। सच यह है कि काॅंग्रेस सŸाा का चाभी अपने हाथों में लेने के लिए लड़ रही है। यह कहना भी सरासर पाखण्ड है कि काॅंग्रेस अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता के लिए लड़ रही है। भारत सुरक्षा अधिनियम पूरे एक साल से अस्तित्व में है। उसका विस्तार नागरिक स्वतन्त्रता संघ (सिविल लिबर्टीज यूनियन) की हाल की रिपोर्ट के द्वारा किया गया है। यदि मि. गाॅंधी को यह लगता था कि भारत सुरक्षा अधिनियम ने उनकी अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता से देश को वंचित कर दिया है, तो उन्होंने उसी समय अपना नागरिक अवज्ञा आन्दोलन आरम्भ क्यों नहीं किया था, जब यह अधिनियम पास किया गया था? उन्होंने एक वर्ष तक इन्तजार क्यों किया? यह विद्रोह इसी वक्त क्यों किया, जब वायसराय ने यह वक्तव्य दिया कि देश में अब अल्पसंख्यकों और अन्य दलों की सहायता से सरकार को चलाया जायेगा? कोई जवाब नहीं है। भारत सुरक्षा अधिनियम के कारण कठिनाई केवल यह है कि काॅंग्रेस इसके बहाने वायसराय की योजना को खत्म करना और अल्पसंख्यकों तथा अन्य दलों को राजनीतिक शक्ति मिलने से रोकना चाहती है।
ब्रिटिश उदाहरण
यह है काॅंग्रेस की लड़ाई काढंग। यह अच्छी रणनीति हो सकती है और, यदि काॅंग्रेस सफल हो जाती है, तो, यह इस बात का प्रमाण होगा कि ब्रिटिश,सरकार की संसदीय प्रणाली स्थापित करने के बाद लोकप्रिय पार्टी की निगाह में, जो लोकप्रिय है, बुरा होने का जोखिम नहीं उठायेंगे? लेकिन क्या यही राजनीति है? इस सम्बन्ध में किसी को 1923 में मि. एक्वीथ के निर्णय की याद है। 1923 में किसी पार्टी के पास बहुमत नहीं था। कंजरवेटिव के पास 255, लेबर पार्टी के पास 191 और लिबरलस के पास 158 सीटें थीं। लिबरलस के नेता के रूप में मि. एक्वीथ के पास तीन मार्ग थे- (1) कंजरवेटिव पार्टी को समर्थन देना, (2) लेबर पार्टी को समर्थन देना, अथवा (3) कंजरवेटिव के समर्थन पर स्वयं सŸाा संभालना। मि. एक्वीथ से टोरीज के साथ समझौता करके लेबर पार्टी को सŸाा में आने से रोकने की अपीलें की गईं।किन्तु मि. एक्वीथ इन सुझावों और अपीलों से दूर ऐसे किसी भी षड़यन्त्र के विपरीत थे। उनके पास इसका पहला कारण यह था कि ऐसा करना पूरी तरह से राष्ट्रीय हित के लिए हानिकारक होगा और दूसरा यह था कि यह दोनों मध्यम वर्ग दलों के लिए संगठित होकर वर्ग विरोधी भावना से लेबर पार्टी को शासन करने के एक अवसर से वंचित करना होगा। अतः यदि काॅंग्रेसी अल्पसंख्यकों को उनके अवसर से वंचित करते हैं, तो मुझे विश्वास है, वे इस बात को अनुभव करेंगे कि वे एक बड़ी कीमत पर अपनी जीत को खरीद रहे हैं। यदि वे इस बात को अभी अनुभव नहीं करते हैं, तो वे इसे तब अनुभव करेंगे, जब पार्टियाॅं संविधान में संशोधन के लिए संगठित होंगी। काॅंग्रेस के इस कृत्य से दो बातें काफी अच्छे ढंग से साफ हो गई हैं। एक, यह कि ब्रिटिश संसदीय सरकार इस देश के लिए अनुपयुक्त है। और, दो, यह कि कोई व्यक्ति, जो भद्र पुरुषों के समझौते के लिए महत्वपूर्ण संरक्षण छोड़ देता है, वह अपने जोखिम पर ही ऐसा करेगा।
-डा. बी. आर. आंबेडकर

 

 

पिछली कड़ियाँ–

38.अस्पृश्यता बौद्धों पर थोपा गया एक दण्ड था-डॉ.आंबेडकर

37.ब्राह्मणों की आबादी तीन फ़ीसदी पर 60 फ़ीसदी उच्च राजपत्रिता पदों पर काबिज़

35. दलितों में मतभेद पर डॉ.आंबेडकर ने जताया दु:ख

34. इंडिपेंडेंट लेबर पार्टी ने मनाया डॉ.आंबेडकर का 47वाँ जन्मदिन..

33. कचरापट्टी मज़दूरों ने डॉ.आंबेडकर को 1001 रुपये की थैली भेंट की

32.औरंगाबाद अछूत सम्मेलन में पारित हुआ था 14 अप्रैल को ‘अांबेडकर दिवस’ मनाने का प्रस्ताव

31. डॉ.आम्बेडकर ने बंबई में किया स्वामी सहजानंद का सम्मान

30. मैं अखबारों से पूछता हूॅं, तुम्हारे सत्य और सामान्य शिष्टाचार को क्या हो गया -डॉ.आंबेडकर

29. सिद्धांतों पर अडिग रहूँँगा, हम पद नहीं अधिकारों के लिए लड़ रहे हैं-डॉ.आंबेडकर

28.डॉ.आंबेडकर का ग्रंथ रूढ़िवादी हिंदुओं में सनसनी फैलाएगा- सीआईडी रिपोर्ट

27ब्राह्मणों तक सीमित नहीं है ब्राह्मणवाद, हालाॅंकि वह इसका जनक है-डॉ.आंबेडकर

26. धर्मांतरण का आंदोलन ख़त्म नहीं होगा- डॉ.आंबेडकर

25. संविधान का पालन न करने पर ही गवर्नर दोषी- डॉ.आंबेडकर

24. ‘500 हरिजनों ने सिख धर्म अपनाया’

23. धर्म बदलने से दलितों को मिली सुविधाएँ ख़त्म नहीं होतीं-डॉ.आंबेडकर

22. डॉ.आंबेडकर ने स्त्रियों से कहा- पहले शर्मनाक पेशा छोड़ो, फिर हमारे साथ आओ !

21. मेरी शिकायत है कि गाँधी तानाशाह क्यों नहीं हैं, भारत को चाहिए कमाल पाशा-डॉ.आंबेडकर

20. डॉ.आंबेडकर ने राजनीति और हिंदू धर्म छोड़ने का मन बनाया !

19. सवर्ण हिंदुओं से चुनाव जीत सकते दलित, तो पूना पैक्ट की ज़रूरत न पड़ती-डॉ.आंबेडकर

18.जोतदार को ज़मीन से बेदख़ल करना अन्याय है- डॉ.आंबेडकर

17. मंदिर प्रवेश छोड़, राजनीति में ऊर्जा लगाएँ दलित -डॉ.आंबेडकर

16अछूतों से घृणा करने वाले सवर्ण नेताओं पर भरोसा न करें- डॉ.आंबेडकर

15न्यायपालिका को ‘ब्राह्मण न्यायपालिक’ कहने पर डॉ.आंबेडकर की निंदा !

14. मन्दिर प्रवेश पर्याप्त नहीं, जाति का उन्मूलन ज़रूरी-डॉ.आंबेडकर

13. गाँधी जी से मिलकर आश्चर्य हुआ कि हममें बहुत ज़्यादा समानता है- डॉ.आंबेडकर

 12.‘पृथक निर्वाचन मंडल’ पर गाँधीजी का अनशन और डॉ.आंबेडकर के तर्क

11. हम अंतरजातीय भोज नहीं, सरकारी नौकरियाँ चाहते हैं-डॉ.आंबेडकर

10.पृथक निर्वाचन मंडल की माँग पर डॉक्टर अांबेडकर का स्वागत और विरोध!

9. डॉ.आंबेडकर ने मुसलमानों से हाथ मिलाया!

8. जब अछूतों ने कहा- हमें आंबेडकर नहीं, गाँधी पर भरोसा!

7. दलित वर्ग का प्रतिनिधि कौन- गाँधी या अांबेडकर?

6. दलित वर्गों के लिए सांविधानिक संरक्षण ज़रूरी-डॉ.अांबेडकर

5. अंधविश्वासों के ख़िलाफ़ प्रभावी क़ानून ज़रूरी- डॉ.आंबेडकर

4. ईश्वर सवर्ण हिन्दुओं को मेरे दुख को समझने की शक्ति और सद्बुद्धि दे !

3 .डॉ.आंबेडकर ने मनुस्मृति जलाई तो भड़का रूढ़िवादी प्रेस !

2. डॉ.आंबेडकर के आंदोलन की कहानी, अख़बारों की ज़़ुबानी

1. डॉ.आंबेडकर के आंदोलन की कहानी, अख़बारों की ज़़ुबानी

 



कँवल भारती : महत्‍वपूर्ण राजनीतिक-सामाजिक चिंतक, पत्रकारिता से लेखन की शुरुआत। दलित विषयों पर तीखी टिप्‍पणियों के लिए विख्‍यात। कई पुस्‍तकें प्रकाशित। चर्चित स्तंभकार। मीडिया विजिल के सलाहकार मंडल के सदस्य।