कहानी उम्मीद की – ज़मीन बेच, भूखों का पेट भर रहे हैं कर्नाटक के दो मुस्लिम भाई

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ये कोरोना काल की उन कहानियों में से एक कहानी है, जो आने वाले भविष्य में हम सबके लिए बेहतर इंसान बने रहने का सबक बनी रहेंगी। कर्नाटक के दो मुस्लिम भाई, अपने समुदाय के ख़िलाफ़ नफ़रतों की ख़ेती के बीच, मोहब्बत के पौधे को सींचने में लगे हैं। लॉकडाउन के विषम हालात में अपने आसपास के न जाने कितने वंचित परिवारों के लिए ये वो फ़रिश्ता बन गए हैं, जिनकी लोगों ने कहानियां सुनी थी पर अब सामने देख लिया है।

बचपन में लोगों ने हमारी मदद की, अब हमारी बारी है 

इंटरनेट से साभार

सोशल मीडिया और टीवी चैनलों पर मुस्लिमों के ख़िलाफ़ फैलायी जा रही नफ़रत को तमाचा जड़ती एक ख़बर कर्नाटक के कोलार से आई है। यहाँ दो मुस्लिम भाइयों मुज़म्मिल और तज़म्मुल पाशा ने अपनी ज़मीन 25 लाख रुपये में बेच दी ताकि वो कोरोना वायरस के चलते हुए लॉकडाउन में भुखमरी से जूझ रहे लोगों को खाना खिला सकें। छोटी सी उम्र में अपने माता-पिता को खो चुके दोनों भाईयों का कहना है कि “जब तक हम कमाने के काबिल नहीं हुए तब तक हमारे आस-पास के लोगों ने हमसे धर्म के नाम पर भेदभाव किये बिना हमें सहारा दिया। हमारे साथ बस हमारी बुजुर्ग दादी थीं। हमने 40 दिन के अंदर ही अपने पिता और उसके बाद माँ को खो दिया था।” दोनों भाईयों का कहना है कि “ऐसा समय भी था जब हम खुद बहुत गरीब थे, हमारे पास कुछ नहीं था, उस समय हमारे आस-पास के लोगों ने हमारी मदद की। आज जब हम लॉकडाउन में फंसे गरीब लोगों को देखते हैं तो हमें अपने दिन याद आते हैं। इसलिए हमने तय किया कि हम लोगों को खाना मुहैया कराने के साथ ही उनकी अन्य ज़रूरतें भी पूरी करने की कोशिश करेंगे।”

राशन, भोजन, मास्क के साथ सैनिटाईज़र भी लोगों को दिया जा रहा है

ये दोनों भाई केले का और रियल स्टेट का व्यापार करते हैं। मुज्ज़म्मिल बताते हैं कि “हमारे पास आरटी नगर में एक ज़मीन थी, उसे हमने अपने एक दोस्त को 25 लाख रुपए में बेच दी ताकि हम ज़रुरतमंदों की मदद कर सकें। इस बीच हमारे और भी दोस्त हैं जिन्होंने मदद की है। हमारे एक दोस्त ने तो लाख रुपये तक भी दिए हैं ताकि इस नेक काम में रुकावट न आए। जिसकी जितनी क्षमता है उस हिसाब से सब ने हमारी मदद की है। हमारे पड़ोस के बहुत से बच्चे और अन्य लोग सामान और खाना पैक कराने में मदद करते हैं। हर कोई अपने हिस्से की मदद करना चाहता है।” मुज़म्मिल पाशा और तज़म्मुल पाशा का घर इस समय गोदाम जैसा हो गया है। अपने घर से ये दोनों भाई लोगों तक ज़रूरत की चीज़ें पंहुचा रहे हैं। जिन गरीब लोगों के पास मास्क और सैनिटाईज़र नहीं है, ये दोनों भाई उन लोगों को मास्क और सैनिटाईज़र भी उपलब्ध करा रहे हैं।

बिना धर्म देखे मदद कर रहे हैं दोनों भाई

मुज़म्मिल का कहना है कि “हमें जैसे ही पता चलता है कि “कोई भूखा है या उसके पास राशन नहीं है तो हम उस तक भोजन और राशन का सामान पहुंचाते हैं। सामान में 2 किलो आटा, एक किलो चीनी, एक किलो दाल,10 किलो चावल और अन्य मसालों के साथ नमक और साबुन भी दिया जाता है।” इन दोनों को कोलार प्रशासन से पास दिया गया है ताकि ये बिना किसी रुकावट के लोगों तक भोजन और राशन पहुंचा सकें। अपने घर के नज़दीक ही इन्होने टेंट लगाकर एक सामुदायिक रसोईघर भी बनाया है जहाँ भूखे लोगों के लिए खाना बनाया जाता है। दोनों भाई बिना धर्म देखे मदद किये जा रहे हैं। मुज़म्मिल का कहना है कि “ईश्वर के पास कोई धर्म नहीं है, वो बस हमारे नेक काम देखता है।”

 

कोरोना से जूझ रही दुनिया, इस समय महज ख़ौफ़ में नहीं है, वो अपने अंदर के डर से लड़ भी रही है। इस दौर में हमारे पास तमाम ऐसी कहानियां निकल कर आ रही हैं, जहां कई ऐसे लोग हैं – जो असली हीरो के तौर पर सामने आए हैं। लोग एक-दूसरे की मदद कर रहे हैं, अपनी जान की परवाह न कर के भी किसी और की जान बचा रहे हैं। दरअसल मुश्किल वक़्त ही हमारे असल किरदार को सामने लाता है। हम ऐसी ही कहानियां, आप तक नियमित लाएंगे, जो हैं ‘कहानियां उम्मीद की’…

अगर आपके पास भी ऐसी कोई कहानी है, तो हमें mediavigilindia@gmail.com पर..हमें आपके हीरो से मुलाक़ात का इंतज़ार रहेगा।


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