उलटबांसी: बसपा के लिए पवन ने उंगली काट ली, सत्‍ता के लिए मायावती ने कसम तोड़ दी!

Mediavigil Desk
काॅलम Published On :


इस देश का मतदाता ज्‍यादा ईमानदार है या नेता? इसे इस तरह भी पूछ सकते हैं कि दोनों में से ज्‍यादा बेईमान कौन है? अगर नेता बेईमान है तो इसका दोष मतदाता पर आना चाहिए कि उसने बेईमान जनप्रतिनिधि को क्‍यों चुना? ऐसे कई सवाल बनाए जा सकते हैं। ये सवाल इसलिए क्‍योंकि बुलंदशहर में कल एक असाधारण घटना हुई जिसने एक साथ मतदाता और नेता को ईमानदारी व वफादारी की कसौटी पर कस के रख दिया है।

बुलंदशहर के गांव अब्‍दुल्‍लापुर हुलासन गांव का रहने वाला पवन कुमार कल वोट देने गया था। वह बसपा का वोटर है लेकिन गलती से उसने भाजपा का बटन दबा दिया। उसके भीतर इस गलती को लेकर इतनी ग्‍लानि भर गई कि उसने अपनी उंगली काट दी। यह घटना मामूली नहीं है। बाद में चाहे जो हुआ हो और उसने जो खेद प्रकट किया हो, लेकिन जिस वक्‍त वह उंगली काट रहा था उस वक्‍त उसके शरीर में दर्द ज्‍यादा रहा होगा या मन में, इसका अंदाजा किसी और के लिए लगाना मुश्किल है।

संयोग से देखिए कि आज दो अप्रत्‍याशित घटनाएं हुईं। एक ओर बसपा सुप्रीमो मायावती, जिनके लिए पवन ने अपनी उंगली काटी थी और जिन्‍होंने गेस्‍ट हाउस कांड के बाद कसम खायी थी कि वे कभी भी समाजवादी पार्टी के प्रमुख मुलायम सिंह यादव का चेहरा नहीं देखेंगी, उन्‍होंने इस कसम को तोड़ते हुए मुलायम के साथ ऐतिहासिक मंच साझा किया। इतना ही नहीं, उन्‍होंने मुलायम को सच्‍चा ओबीसी नेता घोषित कर दिया और साथ ही नरेंद्र मोदी को फर्जी ओबीसी नेता घोषित कर डाला।

मुलायम-मायावती का एक मंच पर आना राजनीतिक रूप से ऐतिहासिक घटना हो सकती है और बहुत संभव है कि चुनाव के बाद समीकरणों को देखते हुए अनैतिहासिक भी बन जाए, लेकिन उस पवन का क्‍या जिसने ईवीएम में भाजपा का बटन दबने पर बसपा की वफादारी और आस्‍था में अपनी उंगली ही काट ली? मुलायम के साथ मंच साझा करने से पहले क्‍या मायावती पवन जैसे आस्‍थावान काडर से पूछने गई थीं कि अपनी कसम उन्‍हें तोड़नी चाहिए या नहीं?

दूसरी घटना और दिलचस्‍प है। नैतिकता, आस्‍था, विचारधारा और राजनीतिक प्रतिबद्धता को कूड़ेदान में फेंके जाने सरीखी है। कांग्रेस की प्रवक्‍ता प्रियंका चतुर्वेदी ने आज शिव सेना का दामन थाम लिया। उनका आरोप था कि कांग्रेस पार्टी के भीतर कुछ कार्यकर्ताओं ने उनके साथ बदतमीज़ी की है। इसकी शिकायत पर पहले कुछ कार्यकर्ताओं को सज़ा दी गई, फिर उन्‍हें पार्टी में वापस ले लिया गया। प्रियंका इससे आहत हो गईं और उन्‍होंने पार्टी के प्रवक्‍ता पद सहित प्राथमिक सदस्‍यता से इस्‍तीफा दे दिया। इस्‍तीफा देकर कुछ दिन रुका भी तो जा सकता था लेकिन चुनावी मौसम में इतना वक्‍त किसी के पास नहीं होता। उन्‍होंने सीधे एक लंबी चिट्ठी कांग्रेस के बारे में लिखी और बदले में शिव सेना का दामन थाम लिया। ऐसा लगा कि सारी पटकथा सुनियोजित थी। तमाम लोग जो कांग्रेस में उनके साथ हुए बरताव की निंदा कर रहे थे, वे उनकी पलटी हुई आस्‍था देखकर खुद पलट गए। ठगे गए।

आइए एक सवाल करते हैं। इन तीनों घटनाओं में मौजूद तीन किरदारों के बीच हम क्‍या कोई रिश्‍ता खोज सकते हैं? जिन्‍हें उत्‍तर प्रदेश के सपा-बसपा गठबंधन में भाजपा की हार दिख रही है, वे मायावती के इस कदम को राजनीतिक रूप से सही बताएंगे। जो शिव सेना को कांग्रेस की ही तरह भाजपा का विरोधी मान रहे हैं, वे प्रियंका के कदम को ठीक बताएंगे। जिन्‍हें पवन से सहानुभू‍ति है, वे उसे भी सही ठहराएंगे। क्‍या ये तीनों बातें एक साथ सही हो सकती हैं? पवन की कटी हुई उंगली मायावती और प्रियंका से क्‍या कुछ कह रही है? प्रियंका और मायावती की आस्‍थाओं में आया बदलाव क्‍या पवन की कटी हुई उंगली को देख पा रहा है?

एक सामान्‍य दलील ये हो सकती है कि मतदाता के जो मन आया उसने किया। नेता ने तो उससे कहा नहीं था उंगली काटने को। इसी तरह नेता के जो मन आया उसने किया। मतदाता ने तो उससे कहा नहीं था पाला फांदने के लिए। इसमें हालांकि एक पेंच है। नेता या जनप्रतिनिधि लोकतंत्र में अपने मतदाता के प्रति जवाबदेह होता है। मतदाता अगर पार्टी और नेता के प्रति प्रतिबद्ध है तो नेता को अपने कहे के प्रति टिके रहना चाहिए ताकि मतदाता की आस्‍था उसमें बनी रह सके। कहने की बात नहीं और यह जगजाहिर है कि मायावती व बसपा का राजनीतिक पतन इधर के वर्षों में क्‍यों हुआ है। उंगली पवन कुमार काट रहा है और पार्टी का उत्‍तराधिकारी मायावती का भतीजा बन रहा है। दलित क्‍यों बना रहे बसपा के साथ? कोई एक वजह है?

आज पवन कुमार की कटी हुई उंगली खबर नहीं है। माया-मुलायम का मंच साझा करना खबर है। साझे मंच से राजनीतिक अस्तित्‍व तो बच सकता है, क्‍या आस्‍था और प्रतिबद्धता भी बच सकती है? मायावती बनाम पवन के विमर्श में एक तरफ पॉलिटिकल करेक्‍टनेस है, दूसरी तरफ पॉलिटिकल कमिटमेंट। करेक्‍टनेस के नाम पर कमिटमेंट को दांव पर लगा देना क्‍या अपने हाथ काटने जैसा नहीं है? उंगली बेशक पवन ने काटी है, हाथ मायावती का कटा है।


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