मौत के तीन साल बाद सोहराबुद्दीन मामले की सुनवाई कर रहे जज के परिवार ने तोड़ी चुप्‍पी

मीडिया विजिल मीडिया विजिल
वीडियो Published On :

सीबीआइ ने जुलाई 2010 में अमित शाह को 2005 में सोहराबुद्दीन शेख की कथित मुठभेड़ में हुई हत्‍या के सिलसिले में गिरफ्तार किया था। सितंबर 2012 में सुप्रीम कोरर्ट ने मुकदमे की सुनवाई को यह कहते हुए गुजरात से बाहर महाराष्‍ट्र भेज दिया कि उसे ''भरोसा है कि सुनवाई की शुचिता को कायम रखने के लिए इसे राज्‍य से बाहर चलाया जाना ज़रूरी है।'' शाह को दिसंबर 2014 में सीबीआइ की विशेष अदालत ने मामले से बरी कर दिया था। (फोटो: अजित सोलंकी /AP PHOTO)


निरंजन टाकले / The Caravan / 21 नवंबर, 2017 

मुंबई में केंद्रीय अन्‍वेषण ब्‍यूरो (सीबीआइ) की विशेष अदालत के जज बृजगोपाल हरकिशन लोया (48) के परिवार को 1 दिसंबर 2014 की सुबह सूचना दी गई कि नागपुर में उनकी मौत हो गई है, जहां वे एक सहयोगी की बेटी की शादी में हिस्‍सा लेने गए हुए थे। लोया इस देश के सबसे अहम मुकदमों में एक 2005 के सोहराबुद्दीन मुठभेड़ हत्‍याकांड की सुनवाई कर रहे थे। इस मामले में मुख्‍य आरोपी अमित शाह थे, जो सोहराबुद्दीन के मारे जाने के वक्‍त गुजरात के गृहमंत्री थे और लोया की मौत के वक्‍त भारतीय जनता पार्टी के राष्‍ट्रीय अध्‍यक्ष थे। मीडिया में ख़बर आई थी कि लोया की मौत दिल का दौरा पड़ने से हुई है।

उनकी मौत के बाद लोया के परिवार ने मीडिया से बात नहीं की थी, लेकिन नवंबर 2016 में लोया की भतीजी नूपुर बालाप्रसाद बियाणी ने मुझसे संपर्क किया जब मैं पुणे गया हुआ था। उनहें अपने अंकल की मौत की परिस्थितियों को लेकर मन में संदेह था। इसके बाद नवंबर 2016 से नवंबर 2017 के बीच मेरी उनसे कई मुलाकातें हुईं। इस दौरान मैंने उनकी मां अनुराधा बियाणी से बात की जो लोया की बहन हैं और सरकारी डॉक्‍टर हैं। इसके अलावा लोया की एक और बहन सरिता मांधाने व पिता हरकिशन से मेरी बात हुई। मैंने नागपुर के उन सरकारी कर्मचारियों से भी बात की जो लोया की मौत के बाद उनकी लाश से जुडी प्रक्रियाओं समेत पंचनामे का गवाह रहे थे।

इस आधार पर लोया की मौत से जुड़े कुछ बेहद परेशान करने वाले सवाल खड़े हुए- मौत के कथित विवरण में विसंगतियों से जुड़े सवाल, उनकी मौत के बाद अपनाई गई प्रक्रियाओं के बारे में सवाल, और लाश परिवार को सौंपे जाने के वक्‍त उसकी हालत से जुड़े सवाल। इस परिवार ने लोया की मौत की जांच के लिए एक जांच आयोग गठित करने की मांग की थी, जो कभी नहीं हो सका।


(निरंजन टाकले की लिखी यह कहानी और वीडियो अंग्रेज़ी पत्रिका दि कारवां से साभार प्रकाशित है, आवरण तस्‍वीर भी वहीं से साभार – संपादक)