अफ़वाहों से सावधान ! डॉ. प्रणय रॉय के ‘अपराध’ की लिस्ट यहाँ पढे़ं !

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NDTV के मालिकाने, शेयर, बीच की ख़रीदफरोख़्त सबसे वाकिफ़ हूं। ये जो मामला चल रहा है, इसे कम से कम पांच-छह साल से मैं आदतन फॉलो कर रहा हूं। मामला वित्तीय है, लेकिन सरकार की कार्रवाई कंटेंट से उपजी नाराजगी की वजह से है।

उस दौर में जब विपक्ष सर्वाधिक कमज़ोर हो, इस सरकार ने ख़ुद ही NDTV को विपक्ष का दर्ज़ा दे दिया है। इसके फ़ायदे हैं। सरकार (बीजेपी) हमलावर होकर अपने खेमे में और मज़बूत हो जाती है और कार्रवाई को रोककर या वाया कोर्ट रोके जाने पर विपक्ष इसमें ‘जीत’ जैसा कुछ देखने लग जाता है।

अब ज़रा इस मामले को देखिए और तय कीजिए कि गड़बड़ियों पर ये सेलेक्टिव हमला है कि नहीं और इसमें अंतत: NDTV के बच जाने पर ‘विपक्ष’ को ‘जीत’ टाइप एहसास होगा कि नहीं?

▶NDTV में राधिका रॉय एंड प्रणॉय रॉय (RRPR) होल्डिंग्स का सबसे ज़्यादा शेयर है। क़रीब 30%. अभय ओसवाल का तो मात्र 15% है।

▶एक आदमी है संजय दत्त। ये क्वांटम सर्विसेज़ प्राइवेट लिमिटेड का निदेशक है। इनका 1% शेयर है NDTV में। दो साल तक इस आदमी ने अपनी कंपनी का कामकाज छोड़कर NDTV में कंसल्टेंसी टाइप की कोई नौकरी बजाई। दो-ढाई करोड़ रुपए मिले। फिर किसी दिन बात बिगड़ी तो संजय दत्त बाग़ी हो गए।

▶संजय दत्त की शिकायत पर ही CBI ने ताज़ा कार्रवाई की है।

▶ आरोप ये है कि NDTV ने क़र्ज़ के ज़रिए ICICI बैंक को क़रीब 48 करोड़ का नुकसान पहुंचाया।

▶अब कहानी सुनिए। 2008-09 में NDTV और RRPR ने स्टॉक मार्केट से कई लाख शेयर वापस ख़रीदे। जोकि वोट शेयर का क़रीब 20% था। वोट शेयर का मतलब शेयर पर कब्ज़ेदारी के अनुपात में कंपनी में वोटिंग से होता है।

▶शेयर ख़रीदने के बाद RRPR ने पब्लिक ऑफ़र किया। प्रति शेयर क़रीब 439 रुपए की दर पर। उस वक़्त NDTV का शेयर 100 रुपए के बराबर भी नहीं था।

▶इसी के चलते NDTV को क़र्ज़ की ज़रूरत हुई। NDTV ने इंडिया बुल्स से 500 करोड़ रुपए का क़र्ज़ लिया।

▶फिर, अक्टूबर 2008 में इंडिया बुल्स का क़र्ज़ चुकाने के लिए NDTV ने ICICI से 375 करोड़ का क़र्ज़ लिया।

▶शुरू में ये क़र्ज़ 19% सालाना की दर पर दिया गया था। बाद में इसे 10% कर दिया गया।

▶बैंक पर भी संजय दत्त ने FIR किया। संजय दत्त बहुत दिलचस्प कैरेक्टर हैं। इनका NDTV और ICICI, दोनों में शेयर है।

▶अगस्त 2009 में एक ही बार में NDTV ने वो क़र्ज़ चुका दिया। ICICI 350 करोड़ पर मान गया। यानी ब्याज़ का पैसा ICICI ने छोड़ा और कुछ क़र्ज़ का भी।

▶ क़र्ज़ के भुगतान के लिए NDTV की कई लोगों ने मदद की, जिनमें रिलायंस भी एक है। कहा जा रहा है कि विश्वप्रधान कमर्शियल भी रिलायंस का ही है, जिसने उस वक़्त NDTV की मदद की।

अब, सवाल ये है कि Shell companies वाला जो मामला है, वो हर (बिना अपवाद के) प्राइवेट टीवी कंपनी के साथ लागू होता है। कार्रवाई NDTV पर ही क्यों?

ICICI और NDTV दो निजी संस्थाएं हैं, लेकिन CBI प्रिवेंशन ऑफ़ करप्शन के लिए सुप्रीम कोर्ट की एक गाइडलाइन का हवाला देकर फुर्ती में आ गई। सरकारी बैंकों से हज़ारों करोड़ लूटने वालों का केंद्रीय क़ानून के तहत भी CBI कुछ नहीं बिगाड़ पा रही।

ICICI का दावा है कि 2008-09 में वैश्विक आर्थिक मंदी के चलते उसने 350 करोड़ में डील फाइनल की। अरुण जेटली अगर धीमी विकास दर के लिए वैश्विक मंदी को 2017 में कोस सकते हैं तो ICICI तो 2009 के चरम दौर में इसका हवाला दे ही सकता है।

NDTV पर इससे पहले एक IRS एस के श्रीवास्तव ने कार्रवाई जैसा कुछ करने की कोशिश की थी। कोर्ट में वो उल्टे फंस गए थे। इसलिए होमवर्क ठीक रखना चाहिए, नहीं तो विपक्ष-विपक्ष खेलकर डराने का नाटक बंद करना चाहिए।

इससे पहले केबल नेटवर्क्स रेगुलेशन एक्ट के तहत NDTV को एक दिन के लिए ऑफ़ एयर करने की बात हुई थी। इस क़ानून के प्रावधानों के तहत कोई भी टीवी चार घंटे भी नहीं चल सकता। हर घंटे इसका उल्लंघन होता है। कार्रवाई तब NDTV पर ही क्यों?

संबित पात्रा को आराम करना चाहिए। सरकार और CBI ने बेकार में फिर से प्रणॉय रॉय को विपक्ष से हमदर्दी दिलवा दी।



 

दिलीप ख़ान
लेखक टीवी पत्रकार हैं।