आरोप भाई पर, सज़ा रवीश को ! कौन सा हिसाब चुकता करना है ?

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ओम थानवी

आलोचक उनके लिए दुश्मन होता है; ‘दुश्मनी’ निकालने का उनके पास एक ही ज़रिया है कि आलोचक को बदनाम करो, उसका चरित्र हनन करो। भले वे विफल रहें, पर जब-तब अपनी गंदी आदत को आज़माते रहते हैं। उनकी आका भाजपा की वैसे ही रवीश से बौखलाहट भरी खुन्नस है।

रवीश कुमार फिर उनके निशाने पर हैं। रवीश के भाई ब्रजेश बिहार में चालीस साल से कांग्रेस की राजनीति करते हैं। एक नाबालिग़ लड़की ने एक ऑटोमोबाइल व्यापारी निखिल और उसके दोस्त संजीत के ख़िलाफ़ यौन शोषण का आरोप लगाया। लड़की के पिता भी कांग्रेसी नेता हैं और बिहार सरकार में मंत्री रहे हैं। एक महीने बाद उसने, सीआइडी की जाँच में, ब्रजेश पांडेय का भी नाम “छेड़छाड़” बताकर लिया और एसआइटी को बताया कि जब उसने अपने दोस्तों से बात की तो उन्होंने कहा कि “लगता है” ये सब लोग एक सैक्स रैकेट चलाते हैं। ग़ौर करने की बात यह भी है कि केस दर्ज़ होने के बाद वहाँ के अख़बारों में अनेक ख़बरें छपीं (भाजपाई जागरण में चार बार), लेकिन ब्रजेश पांडे किसी ख़बर में नहीं थे क्योंकि मूल शिकायत में उनका नाम नहीं था।

भले ही ब्रजेश का नाम शिकायतकर्ता ने एफ़आइआर दर्ज़ करवाते वक़्त नहीं लिया गया, न वीडियो रेकार्डिंग में उनका नाम लिया, न ही मजिस्ट्रेट के सामने नाम लिया; फिर भी अगर आगे जाकर एसआइटी के समक्ष छेड़छाड़ और दोस्तों के हवाले से सैक्स-रैकेट चलाने जैसा संगीन आरोप लगाया है तो उसकी जाँच होनी चाहिए, पीड़िता को न्याय मिलना चाहिए और असली गुनहगारों को कड़ी से कड़ी सज़ा होनी चाहिए।

लेकिन महज़ आरोपों के बीच सोशल मीडिया पर रवीश कुमार पर कीचड़ उछालना क्या ज़ाहिर करता है? निश्चय ही अपने आप में यह निहायत अन्याय भरा काम है। आरोप उछले रिश्तेदार पर और निशाने पर हों रवीश कुमार? इसलिए कि उनकी काली स्क्रीन कुछ लोगों के काले कारनामों को सामने लाती रहती है?

ज़ाहिर है, यह हमला रवीश पर नहीं, इस दौर में भी आलोचना का साहस रखने वाली पत्रकारिता पर है। पहले एनडीटीवी पर “बैन” का सीधा सरकारी हमला हो चुका है। अब चेले-चौंपटे फिर सक्रिय हैं। इन ओछी हरकतों में उन्हें सफलता नहीं मिलती, पर लगता है अपनी कोशिशों में ख़ुश ज़रूर हो लेते हैं। अजीब लोग हैं।

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इस प्रसंग में अभी मैंने बिहार के एक पत्रकार Santosh Singh की लिखी पोस्ट फ़ेसबुक पर देखी है। दाद देनी चाहिए कि उन्होंने तहक़ीक़ात की, थाने तक जाकर आरोपों के ब्योरे जानने की कोशिश की। उन्होंने जो लिखा, उसका अंश इस तरह है:

“मैंने सोचा पहले सच्चाई जान लिया जाये (इसलिए) पूरा कागजात कोर्ट ने निकलवाया …
22-12-2016 को एसीएसटी थाने में एफआईआर दर्ज होता है जिसमें निखिल प्रियदर्शी उनके पिता और भाई पर छेड़छाड़ करने और पिता और भाई से शिकायत करने पर हरिजन कह कर गाली देने से सम्बन्धित एफआईएर दर्ज करायी गयी। इस एफआईआर में कही भी रेप करने की बात नही कही गयी है …इसमें ब्रजेश पांडेय के नाम का जिक्र भी नही है …
24-12-2016 को पीड़िता का बयान कोर्ट में होता है धारा 164 के तहत। इसमें पीड़िता शादी का झाँसा देकर रेप करने का आरोप निखिल प्रियदर्शी पर लगाती है। ये बयान जज साहब को बंद कमरे में दी है। इस बयान में भी ब्रजेश पांडेय का कही भी जिक्र नही है …
30–12–2016 को यह केस सीआईडी ने अपने जिम्मे ले लिया। इससे पहले पीड़िता ने पुलिस के सामने घटना क्रम को लेकर कई बार बयान दिया लेकिन उसमें भी ब्रजेश पांडेय का नाम नही बतायी।।
31-12-2016 से सीआईडी अपने तरीके से अनुसंधान करना शुरु किया और इसके जांच के लिए एक एसआईटी का गठन किया गया। इस जांच के क्रम में पीड़िता ने एक माह बाद कहा कि एक पार्टी में ब्रजेश पांडेय मिले थे, उन्होने मेरे साथ छेड़छाड़ किया। फेसबुक पर देखा ये निखिल के फ्रेंड लिस्ट में हैं। इनको लेकर मैं अपने दोस्तों से चर्चा किया तो कहा कि ये सब लगता है सैक्स रकैट चलाता है इन सबों से सावधान रहो।
पुलिस डायरी में एक गवाह सामने आता है मृणाल जिसकी दो बार गवाही हुई है। पहली बार उन्होनें ब्रजेश पांडेय के बारे में कुछ नही बताया, निखिल का अवारागर्दी की चर्चा खुब किया है। उसके एक सप्ताह बाद फिर उसकी गवाही हुई। और इस बार उसकी गवाही का वीडियोग्राफी भी हुआ, जिसमें उन्होने कहा कि एक दिन निखिल और पीड़िता आयी थी, निखिल ने पीड़िता को कोल्डड्रिंक पिलाया और उसके बाद वह बेहोश होने लगी उस दिन निखिल के साथ ब्रजेश पांडेय भी मौंजूद थे …
मृणाल उसी पार्टी वाले दिन का स्वतंत्र गवाह है। लेकिन उसने ब्रजेश पांडेय छेड़छाड़ किये है, ऐसा बयान नही दिया है।

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मामला जो हो, जाँच जिधर चले मैं फिर कहूँगा कि रवीश जैसे ज़िम्मेदार और संजीदा पत्रकार को इसमें बदनाम करने की कोशिश न सिर्फ़ दूर की कौड़ी (वहाँ कौड़ी भी नहीं) है, बल्कि सिरफिरे लोगों का सुनियोजित कीचड़-उछाल षड्यंत्र मात्र है। ऐसे बेपेंदे के अभियान चार दिन में अपनी मौत ख़ुद मर जाते हैं।

(ओम थानवी जनसत्ता के पूर्व संपादक और मशहूर पत्रकार हैं। यह टिप्पणी उनकी फ़ेसबुक वॉल से साभार ली गई है।)