अर्णब ने बनाया ‘सुपारी पत्रकारिता’ का रिपब्लिक !

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लालू यादव, केजरीवाल, शशि थरूर, अखिलेश यादव…6 मई को शुरू हुए अर्णब गोस्वामी के रिपब्लिक चैनल के ये पहले चार शिकार हैं। साथ में बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से सवाल है कि क्या  लालू के साथ रिश्ता ना तोड़कर वे देश की सुरक्षा के साथ खिलावाड़ नहीं कर रहे हैं ? चुभते रंगों वाले इस चैनल को देखना आँख ख़राब करना है, लेकिन यह सोचकर दिमाग़ भी ख़राब हो सकता है कि  इस मीडिया हाउस के निशाने पर सत्ता नहीं केवल विपक्ष है ?

ऐसा लगता है कि अर्णब गोस्वामी ‘टाइम्स नाऊ’ से बाहर किए जाने के दौर की फटाफट भरपाई कर लेना चाहते हैं। टाइम्स, तमाम कारोबारी छवि के बावजूद राजनीतिक रूप से किसी एक पार्टी का भोंपू बनने के लिए मजबूर नहीं था, लेकिन रिपबल्कि के जन्म के साथ ही यह साफ़ हो गया कि यह चैनल सत्ताधारी दल के ख़ास ‘मिशन’ का नतीजा है। यही वजह है कि प्रतिद्वंद्वी चैनल इंडिया टुडे के मैनेजिंग एडिटर राहुल कँवल ने खुलेआम कह दिया कि रिपब्लिक ‘सुपारी पत्रकारिता’ के लिए है। बीजेपी का प्रचार करना ही इसका मक़सद है। सबूत के रूप में उन्होंने बीजेपी समर्थकों द्वारा चैनल के प्रचार की तस्वीर ट्वीट की।

राहुल कँवल का यह ट्वीट बताता है कि अर्णब की नई पारी में उन्हें कितनी मुश्किल आने वाली है। मुंबई में बैठने वाले अर्णब दिल्ली के पत्रकारों को ‘लुटियन जर्नलिस्ट’ कहकर सत्ता प्रतिष्ठान का क़रीबी साबित करते थे, लेकिन इस बार उन्हें सीधे मोदी के साथ ‘नत्थी पत्रकार’ की तोमहत झेलनी होगी जिसे विपक्ष के ख़ात्मे की सुपारी दी गई है।

लालू और शहाबुद्दीन टेप में एसपी को ‘खतमे’ कहे जाने को मारने की साज़िश बताकर अर्णब पहले ही कदम पर ग़च्चा खा चुके हैं, क्योंकि कोई भी बिहारी बता देगा कि इसका अर्थ ‘बेकार’ होता है। युवा पत्रकार दिलीप ख़ान ने फ़ेसबुक पर इसे लेकर दिलचस्प टिप्पणी की है-

Dilip Khan

May 7 at 1:15pm ·

जब नरेन्द्र मोदी ने एक लड़की का पीछा करने के लिए पूरे राज्य की पुलिस को लगा दिया था, तो अर्णब ने क्या किया था टेप का? उस वक़्त तो मोदी PM भी नहीं थे।

जब तहलका ने सीरीज में CM मोदी और पुलिस अधिकारियों, पुलिस अधिकारियों और सचिवों के बीच दंगों से जुड़ी बातचीत का टेप पब्लिक किया था तो अर्णब क्या कर रहे थे?

अर्णब को टेप चाहिए क्या? राजीव चंद्रशेखर के चैनल में चला पाएंगे? कुछ टेप्स मैं मुहैया करा दूंगा।

लालू यादव और शहाबुद्दीन की बातचीत का ग़लत ट्रांसलेशन चलाकर सनसनी फैला दी! उस पूरी बातचीत में दंगा रोकने की बात हुई है।

शहाबुद्दीन को फोन जेल में कैसे मिला, इसके लिए जेलर को तलब कीजिए।

यही नहीं, दिलीप ने चैनल के मालिक़ाने को लेकर जो लिखा है, वह साबित करता है कि अर्णब का चैनल रक्षा उत्पाद से जुड़े कारोबारियों के नियंत्रण में है। एनडीए के केरल उपाध्यक्ष और राज्यसभा सांसद राजीव चंद्रशेखर का इस चैनल में पैसा लगा है। यह सीधे-सीधे हितों के टकराव का मामला है।

 Dilip Khan

May 6 at 2:16pm ·

The Wire ने राजीव चंद्रशेखर, अर्नब और रिपब्लिक पर दो लेख छापे। चंद्रशेखर ने सिद्धार्थ वरदराजन पर मानहानि का मुक़दमा कर दिया।

एक लेख Sandeep Bhushan का था और एक सचिन राव का।

कहा क्या गया था लेख में कि चंद्रशेखर बिलबिला गए? किन बातों से बिलबिलाए? फैक्ट लिखा गया था। मैं उसी तरह का फैक्ट फिर से लिख रहा हूं।

▶चंद्रशेखर की कंपनी जुपिटर कैपिटल का Axiscades Engineering Technology Limited में निवेश है, जोकि रक्षा उत्पाद से जुड़ी कंपनी है।

▶जुपिटर को रक्षा मंत्रालय ने सेना और एयरफोर्स के लिए 18 महीने तक Aircraft Recognition Training Systems सप्लाई करने का ठेका दिया। दशक भर से ऊपर के मेनटेंनेंस का भी ठेका इसी कंपनी को मिली।

▶मार्च 2016 में रक्षा मंत्रालय और जुपिटर की ये डील हुई।

▶चंद्रशेखर फ़िलहाल संसद की रक्षा संबंधी स्थाई समिति के सदस्य हैं। वे रक्षा पर परामर्श समिति के भी सदस्य हैं। वे NCC के भी केंद्रीय परामर्श समिति के सदस्य हैं।

मुझे कोई समझाएं कि ये कैसे हितों का टकराव (conflict of interest) नहीं है?

➡जुपिटर के CEO ने चैनल लॉन्च होने से पहले अर्नब समेत एडिटोरियल के टॉप लोगों को मेल लिखकर साफ़ कहा कि कंटेंट “प्रो-मिलिट्री” होना चाहिए। ये मिलिट्री को बचाने के लिए है या फिर अपना धंधा बचाने के लिए?

➡चंद्रशेखर “Flags of honour” नाम से एक NGO भी चलाते हैं। इसमें वो मिलिट्री से जुड़े लोगों की हौसला-आफजाई करते हैं।

चंद्रशेखर का पूर धंधा MMMM यानी मीडिया, मिलिट्री, मोबाइल और मोदी है।

▶Asianet News, कन्नड़ प्रभा, सुवर्ण न्यूज़, बेस्ट FM और रेडियो इंडिगो इन्हीं की कंपनी है।

▶बीपीएल मोबाइल इन्होंने ने ही खोला था।

▶राज्यसभा में हैं निर्दलीय सांसद, लेकिन केरल में NDA के उपाध्यक्ष हैं।

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