भोजपुरी में फूहड़ता के प्रतिनिधियों को चुनाव में लाने वाली BJP ने क्‍या पंजवार का नाम सुना है?

संजीत भारती
उत्तर प्रदेश Published On :


जब हम सीवान में चुनाव कवर कर रहे थे, तब एक मित्र ने हमें रघुनाथपुर प्रखंड के पंजवार गांव जाने का सुझाव दिया. मित्र ने बताया था कि अगर भोजपुरी भाषा और साहित्य-संस्कृति के उत्थान को समझना है तो पंजवार जरूर जाइए. गांव पहुंचे तो हमारी मुलाकात 70 साल के एक बुजुर्ग से हुई, जिनका नाम घनश्याम शुक्ल है. उनसे मिलकर हमें इस बात का अहसास हुआ कि भोजपुरी को पसंद करने वाली नई पीढ़ी आखिर पंजवार गांव को लेकर इतनी भावुक क्यों है.

उन्होंने बताया कि इस गांव में खेलकूद, संगीत और दूसरे कई आयोजन तो होते ही हैं, हर साल देशरत्न डॉ. राजेंद्र प्रसाद की जयंती पर 3 दिसम्बर को आखर की ओर से भोजपुरिया स्वाभिमान सम्मेलन का भी आयोजन होता है, इस साल आखर की यात्रा दशक वर्ष में प्रवेश करेगी. इस आयोजन में देश और दुनिया के कई भोजपुरी प्रेमी जुटते हैं और भोजपुरी गीत संगीत को अश्लीलता और फूहड़पन से मुक्त कराने के अपने अभियान को आगे बढ़ाते हैं. इस आयोजन में पंकज त्रिपाठी जैसे मशहूर फिल्म अभिनेता भी आम दर्शक की तरह शामिल होते हैं.

इस अभियान के बारे में सुनकर मेरा ध्यान अनायास ही उन भोजपुरी सितारों की तरफ चला गया जो इन दिनों चुनावी मैदान में किस्मत आजमा रहे हैं. इनमें मनोज तिवारी से लेकर रवि किशन और दिनेश यादव ‘निरहुआ’ तक हैं. भोजपुरी गीतकार विनय बिहारी भी पहले से राजनीति में हैं. इन तमाम भोजपुरी सितारों ने अश्लीलता और फूहड़ता को बेच कर न सिर्फ ऊंचाई और अकूत पैसा कूटा है, बल्कि भोजपुरी भाषा की छवि भी मटियामेट कर दी है. इनका बाजार भाव फिर भी कायम है, इसी वजह से राजनीति भी इन्हें खूब भाव दे रही है. चौबीस से अधिक सांसद चुनने वाली भोजपुरी भाषियों की नौ करोड़ आबादी के प्रतिनिधित्व के लिए राजनीतिक दलों को उम्मीदवार भी ऐसे ही मिलते हैं.

दूसरी तरफ है सीवान का यह छोटा सा गांव पंजवार, जो कुछ जुनूनी युवकों के दम पर भोजपुरी की छवि को बदलने में जुटा है. आखिर भोजपुरी की असली पहचान क्या है? निरहुआ या पंजवार? हमारी राजनीति को भोजपुरी में से जब कुछ चुनना होता है तो वह पंजवार के बदले निरहुआ को क्यों चुन लेती है? यह सवाल बीच चुनावी मौसम में जितना मौजूं है, जन प्रतिनिधित्‍व आधारित लोकतंत्र के लिए उतना ही अहम।

पंजवार गांव में घूमते-घूमते हम 1940 में बने एक पुस्तकालय के पास पहुंचे, जिसकी स्थापना गांव के एक पूर्व आइएएस सत्य नारायण मिश्र ने एक छोटी से आलमारी से की थी. बाद में इनके सहयोगी मधुसूदन पाण्डेय, केदारनाथ सिंह और कई सहयोगियों ने मिल इसे आगे बढाया. वह पुस्तकालय बाद में गांव के राजनीतिक-सामाजिक आदोलन का केन्द्र बना.

यहां से रात्रि पाठशाला, श्रमदान के जरिये गांव की सफाई, पोखर की खुदाई जैसे काम हुए. यह सीवान जिले का पहला पुस्तकालय था. पुस्तकालय के भवन में एक संगीत महाविद्यालय भी चलता है, जिसकी स्थापना 1994 में 11 सितम्बर को विनोबा भावे की जयंती के दिन हुई और नाम रखा गया बिस्मिल्‍ला खां संगीत महाविद्यालय. यहां आज प्रभाकर (स्नातक) तक की शिक्षा दी जाती है, यह प्रयाग संगीत समिति से पिछले 21 वर्ष से संबद्ध है. यहां पढ़ने वाले 16 छात्र-छात्राओं को हाईस्कूल और इंटर कॉलेज में नौकरी भी मिली है.

इस गांव की असली पहचान आखर समूह को लेकर है. यह देश दुनिया के कोने-कोने में फैले भाषा, साहित्य, संस्कृति प्रेमी भोजपुरी भाषियों का स्वैच्छिक समूह है. इसने लगातार भोजपुरी में फैली अपसंस्कृति के खिलाफ अभियान छेड़ा हुआ है. इसके मुख्य संचालनकर्ता गांव के संजय सिंह हैं.

भोजपुरी देश के कई महानगरों में और विश्व के 14 राष्ट्रों में बोली, लिखी और पढ़ी जाने वाली एक ऐसी भाषा है जिसकी पहचान उसकी गौरवशाली संस्कृति से नहीं बल्कि अश्लीलता से होने लगी है. फूहड़ता की आंधी में आज इस भाषा के मूल तत्‍व गुम होते जा रहे हैं.

इस अश्लीलता को बढ़ावा देने वाले भोजपुरी के पांच स्टार मनोज तिवारी, रवि किशन, पवन सिंह, दिनेश लाल यादव उर्फ निरहुआ और खेसारी लाल यादव सक्रिय राजनीति में उतर चुके हैं. इनमें से चार बाजेपी में हैं और तीन इस बार बाजेपी के टिकट पर चुनावी मैदान में ताल ठोक रहे हैं, खेसारी लाल यादव टिकट के लिए प्रयासरत थे, पर सफल नहीं हो पाए. राजनीतिक पार्टियां भी इन्हें बढ़ावा दे रही हैं.

भोजपुरी भाषा और फिल्मों पर काम करने वाले नितिन चंद्रा कहते हैं कि यह बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है कि उततर प्रदेश की योगी सरकार, जो लड़कियों की सुरक्षा के लिए रोमियो स्क्वाड का गठन करती है, उन्हीं की पार्टी अश्लीलता परोसने वाले निरहुआ जैसे भोजपुरी सितारों को टिकट देती है.

वरिष्ठ पत्रकार निराला बिदेसिया कहते हैं कि भोजपुरी समाज और फिल्मों ने नायक और गायक तैयार किये मगर वे नायिका और गायिका को तैयार नहीं कर पाये. इस समाज ने महिलाओं को अब तक प्रवेश नहीं करने दिया, जो भी महिलाएं आई हैं वे सब बाहरी हैं. जब भोजपुरी समाज और फिल्म अपनी महिलाओं को जगह देगा, तभी अश्लीलता दूर होगी.

आखर संस्था के संरक्षक घनश्याम शुक्ल का कहना है कि भोजपुरी समाज में अश्लीलता फैली हुई है, भोजपुरी का नाम सुनते ही लोग नाक-भौं सिकोड़ने लगते हैं. इसी वजह से सास्कृतिक पुनर्जागरण के उद्देश्‍य से आखर की स्थापना की गई. इसका उद्देश्‍य अश्लीलता को हटाना और भोजपुरी के गौरव-गरिमामय सांस्कृतिक इतिहास को दोबारा स्थापित करना है, ताकि भाषा और संस्कृति बची रहें.

भोजपुरी को आठवीं अनुसूची की भाषाओं में शामिल करने की मांग नब्बे के दशक से होती आ रही है. 1991-96 में सबसे पहले महाराजगंज की तत्कालीन सांसद गिरजा देवी ने इस संबंध में एक विधेयक लाने की मांग की थी. उसके बाद पूर्व सांसद प्रभुनाथ सिंह ने 2004- 09 के कार्यकाल में, छपरा सांसद राजीव प्रताप रूडी में 2014 में और पूर्व सांसद अली अनवर ने 2017 में भोजपुरी को लेकर आवाज बुलंद की.

हुआ इसका उलटा। अपने अंतिम चरण की ओर बढ़ चुके इस लोकसभा चुनाव में भोजपुरी की अस्मिता कोई सवाल नहीं है. तीन अश्लील गायकों को टिकट देकर भोजपुरी की जनता को फुसलाने की कोशिश की जा रही है.


संजीत भारती और पुष्‍य मित्र बिहार स्थि‍त वरिष्‍ठ पत्रकार हैं


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