तो इस तरह मुन्नी के प्राण और घर को बचाया चुम्बक ने!

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डॉ.स्कन्द शुक्ल

 

मुन्नी की नन्हीं हथेली में एक काला चुम्बक-कम्पस है। मैं उसे अपने हाथों से भींचते हुए कहता हूँ , “यह रही धरती जिसके भीतर है एक बड़ा सा चुम्बक।”

मुन्नी को गहराई से खगोल नहीं आता , यह मैं जानता हूँ। लेकिन वह अपने चुम्बकों से ख़ूब खेलती है। खेलने के लिए जानने की ज़रूरत नहीं होती। बहुधा जब हम जान लेते हैं , तो खेलना बन्द कर देते हैं। और यही बुरा चुनाव हमें विज्ञान से दूर ले जाता है।

विज्ञान में खेलते हुए जानना होता है। जो खेलते हुए जान सकते हैं , वे ही विज्ञान में संसार को आगे ले जा सकते हैं। केवल खेलना बाल-वृत्ति है। केवल जानना वयस्क-वृत्ति। लेकिन खेलते हुए जानने के लिए बाल-वयस्क होना पड़ता है। वे विरले लोग जो संसार में नये शोध को गति देते , दे पाते हैं।
“मुन्नी ! जानती हो मुट्ठी में बन्द चुम्बक क्या कर सकता है ?”

मुन्नी अपना सिर भोलेपन में हिला देती है।

“मुट्ठी में बन्द चुम्बक बाणों से हमारी रक्षा कर सकता है।”
“अच्छा ! कैसे ?”
“क्योंकि चुम्बक भीतर रखने से एक कवच बाहर बनता है। यह कवच बाणों से बचाता है कवच पहनने वाले को।”

मुन्नी को लगता है कि मैं पहेलियाँ बुझा रहा हूँ। आप भी शायद यही सोच रहे हैं। इसलिए अब बात सीधी-सपाट करनी पड़ेगी। तो सुनिए।

धरती हमारा ग्रह है और इसके भीतर एक विशाल चुम्बक है। इस चुम्बक के कारण हमारी धरती के चारों और चुम्बकीय रेखाओं का एक क्षेत्र बन गया है। ये रेखाएँ सूर्य , तारों और बाहरी गैलेक्सियों से से आ रही कॉस्मिक किरणों से ( जो कि किरण कही तो जाती हैं , लेकिन वस्तुतः कण हैं ! ) हमारी रक्षा कर रही हैं।

जानते हैं कि सूर्य , तारे और बाहरी गैलेक्सियाँ हमें मारने पर तुले हैं ? कॉस्मिक किरणें अगर हम तक सीधी आ जाएँ , तो हममें से कोई नहीं बचेगा। न जीव , न जन्तु , न पेड़ , न पौधे। लेकिन दो प्राकृतिक कवच हमें बचा रहे हैं। पहला हमारा वायुमण्डल है। इसमें तमाम गैसें हैं। लेकिन वायुमण्डल बहुत देर तक कॉस्मिक किरणों से लोहा नहीं ले सकता। ये किरणें इन गैसों को आयन बना डालेंगी। फिर ये आवेशित आयन इतने हानिकारक होंगे कि यही हमारा काल बन जाएँगे। या फिर ये आयन अन्तरिक्ष में उड़ जाएँगे। फिर क्या होगा हमारा !

लेकिन फिर वायुमण्डल से भी बाहर एक चुम्बकीय क्षेत्र दीवार बन कर खड़ा है। चुम्बक कॉस्मिक किरणों को किसी ढाल सा परावर्तित कर रहा है। किरणें उससे टकरा रही हैं और अपनी दिशा बदल कर दूसरी ओर चली जा रही हैं। इस तरह धरती बच जा रही है। इस तरह हम बच जा रहे हैं।
पृथ्वी के भीतर जो चुम्बक है , वह एक लम्बे अक्ष की तरह है। लेकिन यह अक्ष वह अक्ष नहीं जिसपर पृथ्वी घूमती है। घूर्णन-अक्ष और चुम्बकीय अक्ष में थोड़ा कोण है। क़रीब ग्यारह डिग्री का। यह कोण बड़े महत्त्व का है।

मुन्नी के पास जो चुम्बक-कम्पस है , वह उत्तर की ओर इशारा करता है। घूर्णन वाले उत्तर की तरफ नहीं , चुम्बकीय उत्तर के तरफ। चुम्बक चुम्बक को पहचानता है। वह उसकी सीध में लग गया है। जहाँ बड़े भैया का सिर , वहाँ छोटे भैया का भी। सारे चुम्बक-कम्पस के उत्तर पृथ्वी के चुम्बकीय उत्तर की ओर।

“मुन्नी , सारे ग्रहों में चुम्बक नहीं। हमारे पड़ोस में मंगल है और शुक्र भी। लेकिन वहाँ चुम्बकीय क्षेत्र नहीं।”
“हॉ ! तब तो वहाँ कोई रह नहीं पाता होगा न अंकल !”
“हाँ , कोई नहीं। और एक बात बताऊँ ?”
“दो ऐसे ग्रह भी हैं हमसे दूर जहाँ चुम्बकीय अक्ष और घूर्णन अक्ष में कोण बहुत ज़्यादा है। यूरेनस में 59 के आसपास और नेप्ट्यून में 47 के आसपास। न जाने कैसे जहाँ होंगे वे। न जाने वहाँ चुम्बक कैसे रहस्य बनाता होगा।”

मुन्नी शुक्र-मंगल-यूरेनस-नेप्ट्यून-गैलेक्सी के बारे में पहली बार सुन रही है। वह गोलों के भीतर चुम्बकों से मिल रही है। वह चुम्बकीय क्षेत्रों को समझ रही है। वह पृथ्वी के कवच को आज पहली बार जान पा रही है।

मुन्नी एक दिन बड़ी होगी। वह यूरेनस-नेप्ट्यून के अजीब चुम्बकों के रहस्य ढूँढेगी। वह अपनी अगली पीढ़ियों को बताएगी कि पृथ्वी का चुम्बक यूरेनस-नेप्ट्यून के चुम्बक से किस-किस मायने में अलग है। फिर हज़ार साद बाद मुन्नी का नाम ग्रन्थों में आदर के साथ दर्ज़ हो जाएगा।

लेकिन मुन्नी को इसके लिए पढ़ने देना होगा। उनकी मेधा को खुलने देना होगा। उन्हें सोचने देना होगा। उनके सिर से अतीत का बोझ हटाना होगा। यह सब इसलिए कि मुन्नी एक बाल-वयस्क में बदल सके। यह सब इसलिए कि मुन्नी खेलना और जानना साथ जान सके।

आप इसमें मुन्नी का सहयोग करेंगे ?

 

 



पेशे से चिकित्सक (एम.डी.मेडिसिन) डॉ.स्कन्द शुक्ल संवेदनशील कवि और उपन्यासकार भी हैं। इन दिनों वे शरीर से लेकर ब्रह्माण्ड तक की तमाम जटिलताओं के वैज्ञानिक कारणों को सरल हिंदी में समझाने का अभियान चला रहे हैं।