एक था ब्रूनो, जिसे धर्माधिकारियों ने ज़िंदा जलाया ताकि पृथ्वी ‘स्थिर’ रहे !

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ठीक 418 वर्ष पहले, 17 फ़रवरी, सन् 1600 को, अपने विश्‍वासों के लिए क़ुर्बान होने वाले महान वैज्ञानिक, साहसी क्रान्तिकारी, ‍गियोर्दानो ब्रूनो को रोम में प्राणदण्ड दिया गया था।

प्राणदण्ड देने का ‘न्यायालय’ का निर्णय सुनकर, गियोर्दानो ब्रूनो ने ‘इन्क्विज़ितरों’ से शान्तिपूर्वक कहा था – ”आप दण्ड देने वाले हैं और मैं अपराधी हूँ, मगर अजीब बात है कि कृपासिन्धु भगवान के नाम पर अपना फै़सला सुनाते हुए आपका हृदय मुझसे कहीं अधिक डर रहा है।”

‘इन्क्विज़िशन’ की यह प्रथा थी कि वह अपना निर्णय इन पाखण्ड भरे शब्दों में सुनाता था – ”पवित्र धर्म इस अपराधी को बिना ख़ून बहाये मृत्युदण्ड देने की प्रार्थना करता है।” किन्तु वास्तव में इसका अर्थ होता था भयानक मृत्युदण्ड – यानी जीवित ही जला देना।

ब्रूनो जीवन भर कॉपरनिकस के सिद्धान्तों का प्रचार करने के लिए संघर्ष करता रहा। ब्रूनो ने कॉपरनिकस के सिद्धान्तों को, एक परिश्रमी तथा भीरु शिष्य की भाँति दुहराया ही नहीं, बल्कि उन्हें और भी अधिक विस्तृत किया। स्वयं कॉपरनिकस की तुलना में उसने संसार को कहीं अधिक अच्छी तरह समझा।

गियोर्दानो ब्रूनो ने बताया कि न केवल पृथ्वी ही, बल्कि सूर्य भी अपनी धुरी पर घूमता है। ब्रूनो की मृत्यु के बहुत वर्षों बाद ही यह तथ्य प्रमाणित हुआ।

ब्रूनो ने बताया कि बहुत-से ग्रह सूर्य के चारों ओर घूमते हैं और यह कि मनुष्य नये तथा अभी तक अनजाने कई अन्य ग्रहों का भी पता लगा सकता है। उसकी यह बात सच भी निकली। ब्रूनो की मृत्यु के लगभग दो सौ वर्ष बाद ऐसे अनजाने ग्रहों में सबसे पहले यूरेनस का, और कुछ समय बाद, नेप्चून और प्लूटो ग्रहों का तथा दूसरे सैकड़ों छोटे-छोटे ग्रहों का पता लगा। इन्हें एस्टेरॉयड कहते हैं। इस प्रकार इस प्रतिभाशाली इतालवी की भविष्यवाणी सोलह आने सच साबित हुई।

कॉपरनिकस दूर के तारों की ओर कम ध्यान देता था। परन्तु ब्रूनो ने निश्चय के साथ कहा कि हर तारा हमारे सूर्य जैसा ही विशाल सूर्य है। उसने यह भी कहा कि ग्रह हर तारे के चारों ओर घूमते हैं। हम केवल उन्हें देख नहीं पाते हैं, क्योंकि वे हमसे बहुत ही दूर हैं। ब्रूनो ने यह भी कहा कि हर एक तारा अपने ग्रहों के साथ एक वैसा ही विश्व है, जैसा कि हमारा सौर जगत, और ब्रह्माण्ड में ऐसे विश्वों की संख्या अनन्त है।

गियोर्दानो ब्रूनो ने बताया कि ब्रह्माण्ड के सभी संसारों की अपनी स्वयं की उत्पत्ति और अपना स्वयं का अन्त है और वे बराबर बदलते रहते हैं। यह विचार बहुत ही साहसपूर्ण था, क्योंकि ईसाई धर्म के अनुसार तो संसार अपरिवर्तनशील है और वह सदा वैसा ही बना रहता है जैसा कि ईश्वर ने इसे बनाया है।

ब्रूनो बहुत प्रतिभाशाली व्यक्ति था। उसने अपने बुद्धिबल द्वारा ही वह बात समझी जिसे खगोलविज्ञानी बाद में दूरबीनों और टेलीस्कोपों की सहायता से जान पाये। आज हमारे लिए यह अनुमान लगाना भी कठिन है कि ब्रूनो ने खगोलविज्ञान में कितनी बड़ी क्रान्ति कर दी थी। ऐसा प्रतीत होता है कि उसने किसी बन्दी को कारावास से बाहर निकालकर उसे तंग व अँधेरी कोठरी की जगह एक विचित्र व अनन्त संसार का सुन्दर दृश्य दिखाया था।

ब्रूनो के कुछ समय बाद एक अन्य खगोलविज्ञानी केपलर ने यह स्वीकार किया कि इस महान व प्रसिद्ध इतालवी वैज्ञानिक की कृतियाँ पढ़कर उसका सिर चकराने लगता था। इस कल्पना से कि शायद वह इस अन्तरिक्ष में निराधार घूमता रहता है, कि इसका न कोई केन्द्र और न कोई आरम्भ और अन्त ही है, वह एक गुप्त आतंक से आतंकित हो उठता था।

पादरी गियोर्दानो ब्रूनो को अपना जानी दुश्मन मानने लगे। ब्रूनो के ये सिद्धान्त कि बसे हुए संसारों की संख्या अनन्त है, और ब्रह्माण्ड का कोई आरम्भ और कोई अन्त नहीं है, विश्व की सृष्टि के विषय में तथा पृथ्वी पर ईसा मसीह के आने के विषय में ‘बाइबल’ के कथनों को मटियामेट करने के लिए काफ़ी थे। ‘बाइबल’ के यही कथन तो ईसाई धर्म के आधार-स्तम्भ थे। पादरियों ने गियोर्दानो ब्रूनो के विरुद्ध जो अभियोग-पत्र तैयार किये उनमें पूरे एक सौ तीस पैराग्राफ़ थे।

पादरियों ने इस महान वैज्ञानिक को ”ईश्वर को गाली देने वाला” कहा और वे बराबर प्रयत्न करते रहे कि सभी जगहों के शासक ब्रूनो को अपने देशों से निकाल दें। किन्तु ब्रूनो जितना ही अधिक मारा-मारा फिरता रहा, उतना ही अधिक वह अपने साहसपूर्ण सिद्धान्तों का प्रचार भी करता रहा।

स्वदेश से अलग किया हुआ ब्रूनो अपने खिली धूप के देश इटली के लिए बराबर आतुर रहता था। उसे मार डालने के लिए उसके दुश्मनों ने ब्रूनो की इस देश प्रेम की भावना से लाभ उठाया।

कुलीन तथा नवयुवक इतालवी जियोवानी मोचेनीगो ने यह ढोंग रचा कि उसे ब्रूनो की उन अनगिनत कृतियों में विशेष रुचि है जो यूरोप के भिन्न-भिन्न नगरों में छप चुकी हैं। उसने ब्रूनो को लिखा कि वह उसका शिष्य बनना चाहता है और यह भी कहा कि बदले में वह उसे उदारतापूर्वक पुरस्कृत करेगा।

निर्वासित ब्रूनो के लिए स्वदेश लौटना बहुत ख़तरनाक था, किन्तु मोचेनीगो ने कपटपूर्वक उसे आश्वासन दिलाया कि वह अपने शिक्षक को बैरियों से बचा लेगा। ब्रूनो विदेशों में भटक-भटककर ऊब चुका था। उसने कपटी मोचेनीगो पर विश्वास कर लिया।

महान वैज्ञानिक यह न जानता था कि उसे धोखा देकर इटली में वापस बुलाने की यह नीच योजना कैथोलिक चर्च के ‘न्यायालय’ द्वारा बनायी गयी है। स्पेन और इटली में ‘इन्क्विज़िशन’ नामक भयानक न्यायालय था। यह धर्म का विरोध करने वालों पर अत्याचार करता था। ‘इन्क्विज़ितरों’ ने, अर्थात् उपरोक्त संस्था के न्यायाधीशों ने, इस संस्था के अस्तित्व काल में लाखों बेगुनाहों की जान ली थी। ब्रूनो भी इसका एक ऐसा ही बेगुनाह शिकार हुआ।

गियोर्दानो ब्रूनो इटली के वेनिस नगर में पहुँचा और मोचेनीगो को पढ़ाने लगा। मोचेनीगो ने वैज्ञानिक से यह प्रतिज्ञा करवा ली थी कि जाने का विचार बना लेने पर वह मोचेनीगो से विदा अवश्य लेगा। यह भी एक चाल थी। मोचेनीगो को यह भय था कि यदि कहीं ब्रूनो को ‘इन्क्विज़िशन’ की योजना का पता चल गया तो फिर वह अपनी युवावस्था की भाँति, अवश्य ही चुपके से भाग खड़ा होगा। परन्तु यदि खगोलविज्ञानी उससे विदा लेने आया तो फिर उसे रोकना मुश्किल न होगा।

कुछ महीनों की शिक्षा के बाद मोचेनीगो ने कहा कि ब्रूनो उसे ठीक ढंग से नहीं पढ़ाता है और यह कि वह उससे अपने भेद छिपाता है।

इस आरोप के उत्तर में ब्रूनो ने वेनिस छोड़ देने का निश्चय किया, और मोचेनीगो ने इसकी सूचना ‘इन्क्विज़िशन’ को दे दी। 23 मई सन् 1592 को इस विख्यात वैज्ञानिक को जेल में डाल दिया गया। उसने जेल में यातनापूर्ण आठ वर्ष बिताये।

वह कोठरी, जिसमें ब्रूनो को रखा गया था, जेल की सीसे की छत के नीचे थी। ऐसी छत के नीचे गर्मियों में असह्य गर्मी और उमस तथा जाड़ों में नमी और ठण्ड रहती। ऐसी कोठरी में बन्दी का जीवन भयानक तथा यातनापूर्ण था – यह तो जैसे तड़पा-तड़पाकर मारने वाली बात थी।

हत्यारों ने गियोर्दानो ब्रूनो को आठ वर्षों तक जेल में क्यों बन्द रखा? इसलिए कि उन्हें आशा थी कि वे इस खगोलविज्ञानी को अपने सिद्धान्त त्याग देने के लिए बाध्य कर सकेंगे। यदि ऐसा हो जाता, तो यह उन सबके लिए एक बड़ी विजय होती। पूरा यूरोप इस विख्यात वैज्ञानिक को जानता था और उसका आदर करता था। यदि ब्रूनो यह घोषणा कर देता कि वह ग़लती पर था और पादरी लोग ठीक थे, तो बहुत-से लोग फिर से विश्व की सृष्टि के विषय में धर्म के कथनों पर विश्वास करने लगते।

किन्तु गियोर्दानो ब्रूनो चट्टान की तरह दृढ़ और साहसी व्यक्ति था। पादरी न तो धमकियों और न ही यन्त्रणाओं द्वारा ब्रूनो को विचलित कर पाये। वह दृढ़ता से अपने विचारों की सत्यता को सिद्ध करता रहा।

अन्त में हत्यारों ने उसे प्राणदण्ड देने का निर्णय सुनाया। ‘न्यायालय’ का निर्णय सुनकर, गियोर्दानो ब्रूनो ने ‘इन्क्विज़ितरों’ से शान्तिपूर्वक कहा – ”आप दण्ड देने वाले हैं और मैं अपराधी हूँ, मगर अजीब बात है कि कृपासिन्धु भगवान के नाम पर अपना फै़सला सुनाते हुए आपका हृदय मुझसे कहीं अधिक डर रहा है।”

(‘अनुराग ट्रस्‍ट’ से प्रकाशित पुस्‍तक ‘धरती और आकाश’ से)