मुझे इंतज़ार है जब भारत के पत्रकार अपने नए-नवेले स्‍टारडम से मुक्‍त होंगे-शाहरुख़ ख़ान

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पिछले हफ्ते फिल्‍म स्‍टार शाहरुख़ खान ने द इंडियन एक्‍सप्रेस की अलका साहनी को एक साक्षात्‍कार दिया। साहनी ने उनसे सवाल पूछा था कि गोल्‍डेन ग्‍लोब पुरस्‍कार में मेरिल स्‍ट्रीप के संबोधन के बाद भारतीय सेलिब्रिटी, खासकर बॉलीवुड की शख्सियतों पर काफी सवाल उठे हैं कि वे ऐसा कुछ नहीं बोलते। इसका जवाब शाहरुख ने काफी विस्‍तार से दिया है जो रविवार, 29 जनवरी को संडे एक्‍सप्रेस पत्रिका में प्रकाशित होगा। उससे पहले हालांकि अख़बार ने साक्षात्‍कार के कुछ अंश एक लेख के रूप में छापे हैं जिसमें भारतीय मीडिया पर कुछ बेहद गंभीर सवाल शाहरुख़ ने उठाए हैं। हम यहां उस लेख के कुछ अंशों का तर्जुमा पेश कर रहे हैं- संपादक

मुझे यह बात बहुत अटपटी लगी जब सारे पत्रकार कहने लगे “भारत के अभिनेता आखिर कब इस तरह से बोलना शुरू करेंगे?” सवाल है कि भारतीय अभिनेता एक ऐसी स्थिति के बारे में क्‍यों बोलें जो यहां मौजूद ही नहीं है। अगर आप किसी एजेंडे या परिस्थिति पर हमसे बोलवाना चाहते हैं तो आपको हमसे उस बारे में पूछना चाहिए और बेशक, हम बोलेंगे।

मैं पलटकर पूछना चाहता हूं: ‘यहां के पत्रकार उस तरह से व्‍यवहार क्‍यों नहीं करते जैसा पश्चिम के पत्रकार करते हैं। आप देखिए कि वहां के पत्रकार राष्‍ट्रपति पद के उम्‍मीदवार से बिना डरे तथ्‍यात्‍मक सवाल पूछते हैं। अगर कोई बीच में टोकता है तो वे उसे रोक कर कहते हैं, “यह समय इनका है।”

मैं यहां के पत्रकारों से कहना चाहता हूं कि अभी आपका समय नहीं आया है, इसलिए आप  कृपया शांत रहें। क्‍या मैं उन दो लोगों को सुन सकता हूं जिनसे आपने सवाल पूछा है। अजीब बात है कि टीवी के परदे पर दो पत्रकार आपस में ही बात करते रहते हैं और पैनल पर बैठे लोग चुपचाप बैठे रहते हैं। अद्भुत स्‍पेस है ये…।

आप जबरन कोई राय कायम मत करिए। मेरी ये फिल्‍में दो साल से लटकी हुई थीं। मैं आज  भी इस बात पर भरोसा करता हूं कि एक कलाकार का काम अपने तरीके से सर्वश्रेष्‍ठ मनोरंजन करना होता है। हम तो दर्शकों को जिम्‍मेदार नहीं ठहराते या उन पर बंदूक नहीं तानते जब वे हमारी फिल्‍में नापसंद कर देते हैं या हमारे विचार से सहमत नहीं होते?

फिर आखिर क्‍या वजह है कि सबसे पहले खबर देने या सबसे पहले कोई विचार सामने रखने के चक्‍कर में मीडिया दूसरे लोगों का इस्‍तेमाल करता है? कम से कम इतनी प्रतिष्‍ठा बचाकर  रखें कि पूछ सकें- “क्‍या आप मेरे साथ हैं? ”फिर हम दोनों उस पर बात कर सकते हैं… या फिर ऐसे ही चलता रहेगा कि आप हमारे स्निपेट, बाइट, लेख और शब्‍दों को कुल मिलाकर किसी न किसी रूप में अपनी राय पुष्‍ट करने के काम में लाते रहेंगे?

मेरिल स्‍ट्रीप की स्‍पीच के बाद मुझसे यह पूछना कि भारतीय अभिनेता वैसा ही क्‍यों नहीं कर रहे हैं, अजीब बात है। ये तो ऐसे ही हुआ कि अचानक आप मुझसे पूछें कि मैं टाइगर वुड्स जैसा गोल्‍फ क्‍यों नहीं खेल रहा।

बुनियादी बात यह है कि आपको ऐसे लोगों से बात करनी है जिन्‍हें आपकी बात समझ में आये। स्‍ट्रीप ने अपनी बात कहने के लिए जिस जगह का इस्‍तेमाल किया, उसमें मंच से ज्‍यादा अहम वे लोग थे जो उनका कहा समझते थे… ।

मैं मीडियाकर्मियों का इंतज़ार कर रहा हूं कि वे अपने नए-नए अर्जित स्‍टारडम से मुक्‍त हो सकें। अधिकतर मेरे दोस्‍त हैं। मैं उनसे पूछना चाहता हूं: आखिर आप लोग क्‍यों सोशल मीडिया पर मौजूद बेचेहरा हुल्‍लड़बाजों में शामिल होना चाहते हैं जो कुछ भी कह के अचानक मशहूर हो जा रहे हैं? आपको ऐसा करने की जरूरत नहीं है। आप ऐसे लोग हैं जिन्‍हें जनता की राय को सामने रखना था ताकि मैं आपकी और दूसरों की राय से मिलाकर दुनिया के बारे में अपनी राय बना सकूं। जो कुछ हो रहा है, आप उसके बारे में जानकारी का पहला स्रोत हैं…।

आप क्‍यों चाहते हैं कि भारतीय कलाकार स्‍ट्रीप की तरह बोलें? क्‍या मैं यह कह सकता हूं कि मेरी इच्‍छा है कि भारतीय पत्रकार भी मुझे वैसे ही पेश करें? क्‍या यह सही होगा? मुझे ऐसा मंच दीजिए जहां मैं अपनी राय रख सकूं, जो आपकी स्‍टोरीलाइन के एजेंडे की मोहताज न हो। तब मैं बोलूंगा, और मैंने हमेशा अपनी बात कही है।

अनुवाद-अभिषेक श्रीवास्तव