अख़बारनामा: पिता NSA और ‘इंग्लिश’ बेटे का सउदी कनेक्शन से ‘टैक्स हैवन’ में धंधा, पर ख़बर ग़ायब!


अजीत डोभाल और उनके बेटों की ‘डी कंपनी’ का करनामा किसी अखबार में दिखा?


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काॅलम Published On :


संजय कुमार सिंह

अजीत डोभाल और उनके बेटों की ‘डी कंपनी’ का करनामा किसी अखबार में दिखा?

खोजी पत्रकार कौशल श्रॉफ ने अमेरिका, इंग्लैंड, सिंगापुर और केमैन आइलैंड से दस्तावेज़ जुटा कर राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल और उनके दो बेटों के कारोबार का खुलासा किया है। वैसे तो कंपनी के डायरेक्टर के रूप में एक ही बेटे का नाम है पर कारवां पत्रिका के अनुसार दोनों का कारोबार पूरी तरह जुड़ा हुआ है। कंपनियां हेज फंड और ऑफशोर के दायरे में आती हैं। टैक्स हैवेन कही जाने वाली जगहों में कंपनी वैसे ही संदिग्ध हो जाती है। इसमें कुछ गड़बड़ न भी हो तो भी मुद्दा नैतिकता से जुड़ ही जाता है। खासकर तब जब अजीत डोभाल ऐसी कंपनियों के खिलाफ रहे हों। अंग्रेजी पत्रिका कारवां ने इस मामले का खुलासा किया है।

मशहूर पत्रकार रवीश कुमार ने भी इसपर फेसबुक पोस्ट लिखी है। और कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने कल इस पर प्रेस कांफ्रेंस भी की। हिन्दी अखबारों में तो मुझे यह खबर पहले पन्ने पर नहीं दिखी लेकिन टेलीग्राफ में यह खबर अंदर है। आइए, देखें खबर क्या है। फिर आप सोचिए कि आपके अखबार को बताना चाहिए कि नहीं और बताया कि नहीं है। कारवां की यह खबर द वायर पर हिन्दी में भी है। शीर्षक है, “राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोभाल के बेटे की कंपनी टैक्स हेवन में”। खबर शुरू होती है, “डी-कंपनी नाम से अब तक दाऊद का गैंग ही होता था। भारत में एक और डी कंपनी आ गई है। राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोभाल और उनके बेटे विवेक और शौर्य के कारनामों को उजागर करने वाली। कारवां पत्रिका की रिपोर्ट में यही शीर्षक दिया गया है।

साल-दो साल पहले हिन्दी वाले दाऊद को भारत लाने से संबंधित कई तरह के प्रचार करते थे। उसमें डोभाल को नायक की तरह पेश किया जाता था। किसने सोचा होगा कि 2019 की जनवरी में जज लोया की मौत पर 27 रिपोर्ट छापने वाली कारवां पत्रिका डोवाल को डी-कंपनी का तमगा दे देगी। कैमैन आईलैंड में डोवाल के बेटे विवेक ने नोटबंदी के 13 दिन बाद 21 नवंबर 2016 को अपनी कंपनी का पंजीकरण कराया। कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने कल एक प्रेस कांफ्रेंस कर इस खबर की सूचना दी और बताया कि नोटबंदी के बाद विदेशी निवेश के तौर पर सबसे अधिक पैसा भारत में केमैन आइलैंड से आया था। उन्होंने कहा कि 2000 से 2017 के बीच जितना पैसा आया था उतना अकेले 2018 में आया है।

जयराम रमेश ने 2011 का एक पत्र दिखाया जो उन्होंने कहा कि भाजपा की बनाई एक कमेटी की रिपोर्ट थी जिसमें मांग की गई थी कि टैक्स हैवेन से आने वाले निवेश का विवरण सार्वजनिक किया जाए। रमेश ने कहा कि इस कमेटी में एस गुरुमूर्ति भी थे। भाजपा सरकार ने चार्टर्ड अकाउंटैंट एस गुरुमूर्ति को भारतीय रिजर्व बैंक का अंशकालिक निदेशक बनाया है औऱ यह खुलासा आरबीआई को ही करना है। एस गुरुमूर्ति बोफर्स के जमाने में अरुण शौरी के सहयोगी हुआ करते थे। राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोभाल के बेटे विवेक डोवाल इंग्लैंड के नागरिक हैं। सिंगापुर में रहते हैं। जीएनवाई एशिया फंड के निदेशक हैं.

कौशल श्रॉफ ने लिखा है कि विवेक डोवाल टैक्स चोरों के गिरोह का अड्डा माने जाने वाले केमैन आइलैंड में ‘हेज फंड’ का कारोबार करते हैं। रवीश कुमार ने लिखा है कि रिपोर्ट में कुछ जटिल बातें भी हैं जिन्हें समझने के लिए बिजनेस अकाउंट को देखने की तकनीकि समझ होनी चाहिए। कारवां की रिपोर्ट में यह सब विस्तार से पढ़ा जा सकता है। विवेक डोभाल की इस कंपनी के निदेशक हैं डॉन डब्ल्यू ईबैंक्स और मोहम्मद अलताफ मुस्लियाम। ईबैंक्स का नाम पैराडाइज़ पेपर्स में आ चुका है। ऐसी कई फर्ज़ी कंपनियों के लाखों दस्तावेज़ जब लीक हुए थे तो इंडियन एक्सप्रेस ने भारत में पैराडाइज़ पेपर्स के नाम से छापा था।

उसके पहले इसी तरह फर्ज़ी कंपनियां बनाकर निवेश के नाम पर पैसे को इधर से उधर करने का गोरखधंधा पनामा पेपर्स के नाम से छपा था। पैराडाइज़ पेपर्स और पनामा पेपर्स दोनों में वॉल्कर्स कॉरपोरेट लिमिटेड का नाम है, जो विवेक डोवाल की कंपनी की संरक्षक कंपनी है। दोनों भाइयों की कंपनी का नाता सऊदी अरब के शाही ख़ानदान की कंपनी से भी है। भारत की जनता को हिंदू-मुस्लिम में फंसा कर सऊदी मुसलमानों की मदद से धंधा चल रहा है। और जनता है कि वाह मोदी, वाह मोदी में लगी है। अखबार उन्हें खबरें ही ऐसी देते हैं।

आज यह खबर ना हिन्दी अखबारों में मिली ना अंग्रेजी अखबारों में। जयराम रमेश की प्रेस कांफ्रेंस अंदर के पन्नों पर तो होनी ही चाहिए। मैंने देखा नहीं। मेरे लिए महत्वपूर्ण नहीं है और मेरी राय किसी एक खबर से बदलने वाली भी नहीं है। गूगल कर लिया, हिन्दी में तो नहीं है। कारवां का खुलासा से कुछ लिंक मिले पर वे अखबारों के नहीं हैं जबकि जयराम रमेश की प्रेस कांफ्रेंस से कोई हिन्दी का लिंक नहीं मिला। आज काम जल्दी खत्म हो गया तो कुछ और किया जाए।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं। जनसत्ता में रहते हुए लंबे समय तक सबकी ख़बर लेते रहे और सबको ख़बर देते रहे। )