इंडिया टुडे के दफ़्तर में देशी कट्टे से A.K-47 ‘बनाने’ की फ़ैक्ट्री !

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‘’इंडिया टुडे—यानी देश के जाने माने मीडिया समूह ‘टीवी टुडे’ का वह ब्राँड जो ख़बरों की दुनिया का बेताज बादशाह है। हिंदी हो या अंग्रेज़ी, चैनल हो प्रिंट हो या वेबसाइट ..यह हर जगह लल्लनटॉप है…फ़िल्मसिटी, नोएडा में शानदार शीशमहलनुमा दफ़्तर, इसके मालिक अरुण पुरी की हैसियत का बयान है……लेकिन ठहरिये दोस्तो…जो होता है, वह दिखता नहीं और कई बार जो दिखता है, वह होता नहीं….इस जगर-मगर दुनिया का एक काला सच यह भी है कि ख़बर बनाने-दिखाने की आड़ में यहाँ चलता है हथियारों का काला कारोबार…लेकिन आज हम शराफ़त का नक़ाब नोचकर दिखायेंगे वह हक़ीक़त, जो आपके होश उड़ा देगी…कौन यक़ीन करेगा कि पुलिस चौकी से बमुश्किल सौ मीटर की दूरी पर… फ़िल्म सिटी के ठेले-खोमचे वालों से हफ़्ता वसूली में जुटे थुलथुल सिपाहियों की तोंद के नीचे…हथियार बनाने का कारख़ाना चल रहा है। जी हाँ दोस्तो…यहाँ के तहख़ाने में ऐसी-ऐसी मशीनें लगी हैं जो देशी कट्टे और उनके सात कारतूसों को अत्याधुनिक हथियारों के जख़ीरे में तब्दील कर देती हैं…आख़िर कौन है इस धंधे का मास्टरमाइंड और कैसे पत्रकारों के भेष में एनसीआर में घूम रहे हैं आतंकी…बताइयेंगे एक छोटे से ब्रेक के बाद…कहीं मत जाइयेगा..’’
हाँ यह मज़ाक ही है, लेकिन क्या करें इंडिया टुडे और ‘’आज तक’’ देखकर कोई मीडिया छात्र ऐसी ही स्क्रिप्ट  लिखना सीखेगा। फिर इस मज़ाक के पीछे पत्रकारिता के नाम पर हो रहे मज़ाक की एक दारुण कथा है। हुआ यह कि 6 और 7 नवंबर की दरम्यानी रात करीब 1.30 बजे जेएनयू गेट पर एक सिक्योरिटी गार्ड को एक काले रंग का लावारिश बैग मिला। उसे लगा कि किसी छात्र का बैग छूट गया होगा, लेकिन जब कोई उसे लेने नहीं आया तो खोलकर देखा गया। उसमें मिला एक देशी कट्टा (कंट्रीमेड पिस्टल) और सात कारतूस । स्वाभाविक है कि इसकी जानकारी पुलिस को दी गई जिसने एक केस दर्ज कर लिया।

मसला जेएनयू का था तो पत्रकार क्यों न गंभीरता से लेते। इंडिया टुडे की वेबसाइट में किन्ही रुचि दुआ जी ने इसकी रिपोर्ट लिखी। दिन के 11 बजकर 44 मिनट की अपडेटेड खबर में बताया गया कि जेएनयू में ”हथियारों का जख़ीरा” बरामद किया गया। साथ में एक तस्वीर लगाई गई जिसमें सैकड़ों ए.के.47 के कारतूस और दूसरे हथियार दिख रहे थे। ऐसा लगता है कि यह तस्वीर कश्मीर या कहीं और आतंकियों से बरामद हथियारों की थी, लेकिन इंडिया टुडे के कलाकारों ने इसे जेएनयू के साथ चेप दिया।

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ज़ाहिर है, सोशल मीडिया ने इस ग़लती को तुरंत पकड़ लिया और टीवी टुडे की मंशा पर सवाल खड़े किये। कहा गया कि हाल मे जेएनयू को जिस तरह ”देशद्रोहियों” का अड्डा बताने की कोशिश हो रही है, इंडिया टुडे उसी को विस्तार दे रहा है। यह जेएनयू के ग़ायब छात्न नजीब से ध्यान हटाने की कोशिश है।

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यह भी जल्द पता चल गया कि असली तस्वीर डोडा में आतंकियों के ठिकाने से ज़ब्त हथियोंरों की है, जिसे समाचार एजेंसी पीटीआई ने 29 नवंबर 2014 को जारी किया था।

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बहरहाल भद्द पिटी तो इंडिया टुडे ने झेंपते हुए 3 बजकर 18 मिनट पर तस्वीर बदल दी। इस बार गोला-बारूद की जगह कैंपस की तस्वीर लगा दी गई। लेकिन साथ में ख़बर से वह लाइन ग़ायब थी जिसमें एक कट्टा और सात कारतूस बरामद होने की बात थी। शायद इसलिए कि हेडलाइन बदलने का इरादा नहीं था जो ख़बर को दमदार बना रही थी। हेडलाइन में  Arms Haul जैसी बात हथियारों के जख़ीरे की बरामदगी का भ्रम देती है। और भ्रम बना रहे, यही पत्रकारिता का मौजूदा धर्म है।

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