आज के हिंदी अख़बारों के संपादकीय: 16 फ़रवरी, 2018

मीडिया विजिल मीडिया विजिल
काॅलम Published On :


नवभारत टाइम्स


नेपाल का नया मुकाम

नेपाल में एक नई शुरुआत हो रही है। सीपीएन-यूएमएल के अध्यक्ष केपी शर्मा ओली गुरुवार को दूसरी बार नेपाल के प्रधानमंत्री बने। करीब दो महीने पूर्व गणतांत्रिक संविधान के तहत हुए पहले संसदीय और स्थानीय चुनावों में वाम गठबंधन ने सत्तारूढ़ नेपाली कांग्रेस को भारी शिकस्त दी थी। ओली के नेतृत्व वाली सीपीएन-यूएमएल और प्रचंड के नेतृत्व वाली सीपीएन-माओवादी सेंटर के गठबंधन ने संसद के निचले सदन की 275 सीटों में 174 सीटों पर जीत दर्ज की, जबकि उच्च सदन की 59 में से 39 सीटें उसे प्राप्त हुईं। इस तरह नेपाल में तकरीबन एक दशक तक चले गृहयुद्ध के बाद नवंबर 2006 में चालू हुई राजनीतिक प्रक्रिया अब जाकर एक निश्चित मुकाम पर पहुंच पाई है। यह प्रक्रिया संयुक्त राष्ट्र की देखरेख में प्रचंड के नेतृत्व वाले माओवादियों और नेपाल सरकार के बीच हुए समग्र शांति समझौते के साथ शुरू हुई थी, जिसके तहत नेपाल में राजशाही हमेशा के लिए खत्म हो गई और एक संघीय गणतांत्रिक राष्ट्र के रूप में उसकी नई पहचान बनी। तब से अब तक 11 साल लंबी सियासी प्रक्रिया के दौरान नेपाल ने कई उतार-चढ़ाव देखे। साल 2008 में वहां संविधान सभा चुनी गई, जिसका कार्यकाल दो साल का था। लेकिन राजनीतिक असहमति के कारण बार-बार कार्यकाल बढ़ाने के बावजूद संविधान का कोई सर्वसम्मत खाका वह नहीं पेश कर पाई। अंतत: 2012 में नेपाल के सुप्रीम कोर्ट ने हस्तक्षेप किया और 2013 में दोबारा संविधान सभा का चुनाव हुआ। इस दूसरी संविधान सभा ने दो साल के भीतर 2015 में नया संविधान सौंप दिया, जिसके तहत ही यह आम चुनाव संपन्न हुआ है। नेपाल के संविधान के अनुसार वहां की संसद में दो सदन हैं- प्रतिनिधि सभा और राष्ट्रीय सभा। प्रतिनिधि सभा में 275 सदस्य पांच वर्षों के लिए चुने जाते हैं, जिनमें 165 सदस्य एकल सीट निर्वाचन क्षेत्रों से जबकि 110 अनुपातिक पार्टी सूची से आते हैं। राष्ट्रीय सभा में 59 सदस्य 6 वर्षों के लिए चुने जाते हैं, जिनमें 3 राष्ट्रपति द्वारा मनोनीत किए जाते हैं। बाकी 56 सदस्य नेपाल के सातों राज्यों से 8-8 की संख्या में चुने जाते हैं। 8 सदस्यों में 3 महिला, 1 दलित और 1 विकलांग वर्ग से होना जरूरी है। इस जटिल प्रक्रिया से निकली केपी ओली सरकार के सामने सबसे बड़ी चुनौती ठप पड़ी विकास प्रक्रिया को पटरी पर लाने की होगी। यह तभी संभव है जब राजनीतिक स्थिरता सुनिश्चित की जाए। संयोग से वहां वाम दलों में अच्छी समझ बन गई है और उनकी योजना आपसी विलय के जरिये इसे और ऊंचे स्तर तक ले जाने की है। ओली की पहचान चीन समर्थक और भारत विरोधी रुख वाले नेता की रही है। अच्छा होगा कि ऐसे आग्रहों को एक तरफ रखकर वे सभी पड़ोसियों से अपने रिश्ते सुधारें और अपना सारा ध्यान नेपाल के विकास पर केंद्रित करें।

 


 

जनसत्ता


घोटाले के रास्ते

एनपीए की चर्चा के बरक्स देश में अब तक के सबसे बड़े बैकिंग घोटाले की खबर गंभीर चिंता का विषय है। ग्यारह हजार तीन सौ करोड़ रुपए से ज्यादा की धोखाधड़ी पंजाब नेशनल बैंक की मुंबई की एक शाखा से हुई। तात्कालिक प्रतिक्रिया में पीएनबी के शेयर करीब दस फीसद गिर गए। कई दूसरे सरकारी बैंकों के शेयरों की कीमतों में भी गिरावट आई। पर यह फौरन सतह पर दिखने वाला नुकसान है। सबसे बड़ा नुकसान तो बैंकिंग क्षेत्र और खासकर सरकारी बैंकों की साख को पहुंचा है। हर किसी के मन में पहला सवाल यही आएगा कि जब दो-चार लाख का भी कर्ज देने में सरकारी बैंक फूंक-फूंक कर कदम रखते हैं, तो करीब 114 अरब रुपए का घोटाला कैसे हो गया? घोटाले का खुलासा खुद पंजाब नेशनल बैंक ने किया। खुलासे के मुताबिक, हीरा कारोबारी नीरव मोदी, उनकी पत्नी, भाई और एक रिश्तेदार ने पीएनबी की ब्राडी हाउस शाखा से धोखाधड़ी करके एलओयू यानी लेटर ऑफ अंडरटेकिंग लिये और विदेशों में निजी तथा सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों से उन्हें भुनाया। एलओयू एक प्रकार का गारंटी-पत्र है जिसे एक बैंक अन्य बैंकों को जारी करता है।

एलओयू के आधार पर देश से बाहर स्थित शाखाएं पैसा देती हैं। इस दिए हुए पैसे को चुकाने की जवाबदेही या गारंटी एलओयू जारी करने वाले बैंक की होती है। खुलासे के साथ ही पीएनबी ने अपने दस कर्मचारियों को निलंबित कर दिया है और सीबीआइ के पास मामले की शिकायत दर्ज कराई है। प्रवर्तन निदेशालय ने भी शिकायत दर्ज कर ली है और जांच में जुट गया है। इससे पहले पांच फरवरी को भी पीएनबी ने नीरव मोदी सहित चारों आरोपियों के खिलाफ 280 करोड़ रुपए की धोखाधड़ी का मामला दर्ज कराया था। नीरव मोदी की गिनती भारत के पचास सबसे धनी व्यक्तियों में होती है। फोर्ब्स पत्रिका ने 2016 में उन्हें अरबपतियों की सूची में भारत में 46वें और दुनिया में 1067वें स्थान पर बताया था। पर अब यह साफ हो गया है कि उनकी इस उपलब्धि और शोहरत के पीछे धोखाधड़ी और लूट का बहुत बड़ा हाथ रहा होगा। क्या इस तरह का तरीका अपनाने वाले नीरव मोदी अपवाद हैं? यह घोटाला ऐसे वक्त सामने आया है जब एक ही रोज पहले रिजर्व बैंक ने एनपीए की बाबत और सख्ती दिखाते हुए सरकारी बैंकों को निर्देश जारी किया कि वे फंसे हुए कर्ज के मामले एक मार्च से छह माह के भीतर सुलझा लें। बिना अदायगी वाले पांच करोड़ रुपए से ज्यादा के खातों का ब्योरा हर सप्ताह देना होगा।

देर आयद दुरुस्त आयद। लेकिन कड़ाई की तमाम कवायद और पारदर्शिता बरतने के तमाम दावों के बावजूद बैंकिंग सिस्टम में अब भी कई चोर-रास्ते हैं जिनसे होकर घपलेबाज सेंध लगाते और निकल भागते हैं। ताजा मामले में नीरव मोदी से मिलीभगत वाले कर्मचारी फाइनेंशियल मैसेजिंग सर्विस ‘स्विफ्ट’ का इस्तेमाल करते थे और इसके जरिए बिना पहचान सामने आए लेन-देन किया गया। शेयर बाजार में अपनी पहचान छिपा कर पैसा लगाने की छूट खत्म करने की मांग कई बार उठी, पर आज तक मानी नहीं गई। हमें पारदर्शिता चाहिए, या वह करना है जो पैसे के खिलाड़ी चाहते हैं? कइयों का अनुमान है कि घोटाले का आकार जितना सामने आया है उससे और बड़ा हो सकता है। इस सब की कीमत कौन चुकाएगा? एनपीए से दबे बैंकों को सहारा देने के लिए ‘पुनर्पूंजीकरण’ नाम से ‘सुधार’ का एक कदम उठाया गया। यह लोगों की जेब से आया सरकारी खजाने का पैसा था। जबकि एनपीए के मुख्य दोषी वे लोग हैं जो सैकड़ों, हजारों करोड़ की उधारी दबा कर बैठे हैं।


अमर उजाला


घोटाले का जौहरी

पंजाब नेशनल बैंक (पीएनबी) में सामने आए 11,400 करोड़ रुपये के देश के सबसे बड़े बैंकिंग घोटाले से पूरी बैंकिंग व्यवस्था की चूलें हिल गई हैं, जोकि पहले ही फंसे कर्ज और बदइंतज़ामी से जूझ रही है। पीएनबी का प्रबंधन भले ही सफाई दे कि यह गड़बड़ी 2011 से चल रही थी और उसने अपने कुछ कर्मचारियों पर कार्रवाई भी की थी, लेकिन, इस घोटाले से जुड़े ढेरों सवालों के जवाब मिलना बाकी है। यदि घोटाले के बारे में पहले ही किसी तरह की भनक मिल गई। थी, तो जौहरी नीरव मोदी और उनके साथी किस तरह से फर्जी गारंटी के जरिये दो दर्जन से अधिक बैंकों की विदेशी शाखाओं से लिए कर्ज दबाए बैठे रहे? यह भी गले नहीं उतरता कि पीएनबी के सिर्फ दो अधिकारियों ने स्विफ्ट मैसेजिंग सिस्टम के जरिये संदेश भेजकर नीरव मोदी और उनके साथियों की आभूषण कंपनियों के लिए विदेशों में कर्ज का इंतजाम कर दिया। हैरानी की बात यह है कि बैंक आम ग्राहकों को छोटामोटा कर्ज देने के लिए भी दर्जनों चक्कर लगवाते हैं, कई तरह की औपचारिकताएं और गारंटी वगैरह मांगते हैं, लेकिन एक बड़े। जौहरी को हजारों करोड़ रुपये कर्ज देने के लिए फर्जी गारंटी दे दी जाए और बैंक प्रबंधन, प्रवर्तन निदेशालय, वित्त मंत्रालय और अन्य बैंकिंग तथा वित्तीय संस्थाओं को इसकी भनक तक न हो, यह कैसे संभव हो गया! इससे पहले 2001 में केतन पारेख ने भी इसी तरह से फर्जी तरीके से धन की निकासी कर माधवपुरा। कोऑपरेटिव बैंक के घोटाले को अंजाम दिया था और विजय माल्या का मामला तो अभी पुराना भी नहीं पड़ा है, इसके बावजूद सार्वजनिक क्षेत्र के बैंको ने न तो तो निगरानी तंत्र को और न ही जवाबदेही को मजबूत किया है. हाल ही में रिजर्व बैंक ने सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों को फंसे कर्ज और जोखिम के प्रबंधन की कमजोर व्यवस्था को लेकर आगाह भी किया था। यह मामला सिर्फ बैंकिंग व्यवस्था तक सीमित नहीं है, प्रवर्तन निदेशालय और हमारे खुफिया तंत्र की भी यह खामी है कि एफआईआर दर्ज होने से पहले नीरव मोदी देश से बाहर जा चुके थे। नीरव मोदी और उनके साथियों पर कार्र्वैकारने के साथ  ही पीएनबी के लाखों छोटे खाताधारकों के हित सुरक्षित रहें, यह भी सुनिश्चित किए जाने की जरुरत है, वरना बैंकिंग व्यवस्था से ही उनका विश्वास उठ जाएगा।



हिंदुस्तान


खेल और हादसा

अक्सर यह कहा जाता है कि खेल तब तक खेल होता है, तब तक मौज-मस्ती रहता है, जब कोई इससे आहत नहीं हो जाता। बठिंडा की पुनीत कौर जब अपने परिवार के साथ पिंजौर में गो-कार्टिंग के लिए गईं, तो उनका मकसद भी इस खेल का मजा लेना ही था, लेकिन इस खेल ने उनकी जान ले ली। गो-कार्ट उन कारों को कहा जाता है, जो काफी नीची होती हैं, उनके पहिए खुले हुए होते हैं और आमतौर पर ये कारें रेसिंग के लिए इस्तेमाल होती हैं। इन दिनों देश भर के मॉल और एम्यूजमेंट पार्क वगैरह में ऐसी ही कारों का एक छोटा रूप खेल के लिए इस्तेमाल होता है। भले ही ये छोटी होती हैं, लेकिन बहुत ही शक्तिशाली इंजन के साथ चलती हैं, जो इन्हें चलाने वालों को एक तरह का थ्रिल देता है। तेज दौड़ने वाली ये कारें हर तरफ से खुली होती हैं, यहां तक कि पहियों के ऊपर भी कोई कवर जैसा कुछ नहीं होता। ये काफी नीची भी होती हैं और इन पर बैठा व्यक्ति जमीन से कुछ ही ऊपर होता है। जाहिर है कि इस तरह के खेल में कई तरह के खतरे और जोखिम भी होते हैं, इसलिए इस खेल को खेलते समय कई तरह के सुरक्षा उपाय अपनाने की हिदायत भी दी जाती है। आमतौर पर हमारे यहां इस तरह की हिदायतें औपचारिकता भर मानी जाती हैं और जहां यह खेल हो रहा होता है, वहां उन्हें लिखकर टांग दिया जाता है। जो लोग इसमें भाग लेते हैं, उन्हें खतरे और हिदायतें समझाए जाते होंगे, इसकी उम्मीद कम ही है।

खबरों में बताया गया है कि खेल का पहला चक्र पूरा होने वाला ही था कि अचानक ही पुनीत कौर की चोटी हेलमेट से निकलकर गो-कार्ट के पहिए में फंस गई। उसके बाद जो हादसा हुआ, उसने उनकी जान ले ली। अभी तक जो जानकारी सामने आई है, वह वहां अपनाए जाने वाले सुरक्षा उपायों पर सवाल खड़े करती है। यहां यह भी नहीं कहा जा सकता कि इस घटना से सबक लेते हुए अधिकारियों को सुरक्षा उपायों के मामले में सख्ती बरतनी चाहिए। अभी तक का अनुभव यही बताता है कि ऐसी घटनाएं हर कुछ अंतराल पर होती हैं और हम न तो उनसे कोई सबक लेते हैं और न ही कहीं कोई सख्ती जैसी चीज दिखती है। पिंजौर में, जहां यह घटना हुई, उससे कुछ ही दूर कुछ साल पहले एक केबल कार की दुर्घटना हुई थी और इस पर सवार महिलाओं और बच्चों को कई घंटों तक आसमान में टंगे रहना पड़ा था। इसी तरह, कुछ साल पहले सूरजकुंड के शिल्प मेले में एक राइड की दुर्घटना के कारण चार लोगों की जान चली गई थी और कई घायल हो गए थे। नोएडा के एक एम्यूजमेंट पार्क में एक व्यक्ति के जॉइंट व्हील से गिर जाने की घटना कोई बहुत पुरानी नहीं है। इस दुर्घटना में उसकी जान चली गई थी।

ऐसी दुर्घटनाओं की फेहरिस्त बहुत लंबी है, जो हमारी लापरवाही की कहानी भी कहती है और सुरक्षा उपायों को लेकर अपनाई जाने वाली उदासीनता की भी। आधुनिक दौर के इस तरह के खेल तो हम लगातार अपनाते जा रहे हैं, यहां तक कि वे छोटे-छोटे कस्बों तक में पहुंच गए हैं, लेकिन उन्हें लेकर सुरक्षा के प्रति हमारा रवैया उस पुराने दौर का है, जब इतने सख्त उपायों की जरूरत नहीं थी। इन उपायों की पहली जिम्मेदारी तो इस तरह के आयोजन करने, राइड चलाने वाले व्यापारिक संगठनों और कारोबारियों की है, लेकिन सरकारी तंत्र भी इस मामले में गड़बड़ी के आरोप से बच नहीं सकता।

 


 

राजस्थान पत्रिका


फिर भागा घोटालेबाज

देशों में बैंकों को स्वायत्तता के साथ निगरानी भी सख्त करनी होगी. जनता के पैसे धन कुबेरों को बांटना कहां तक सही?

भारत में आर्थिक घोटाले नए नहीं हैं। हर्षद मेहता शेयर घोटाला हो, डी।राजा का 2-जी घोटाला हो या फिर किंगफिशर के विजय माल्या का बैंकों से धोखाधड़ी का मामला हो। इन सबको लेकर ख़ूब हो-हल्ला मचा। चुनावों में भी पार्टियों ने हथियार भी बनाया। ताजा घोटाला मुंबई में पजांब नैशनल बैंक की एक शाखा में 11,300 करोड़ रुपए का है। इस घोटाले में आभूषण व्यवसाय से जुडी हस्तियां शामिल हैं। हीरा व्यवसायी नीरव मोदी घोटाले के केंद्र में हैं गड़बड़ी की शुरुआत केंद्र में यूपीए की सरकार के दौर में 2011 में हो गई थी। 2014 में नरेंद्र मोदी सत्ता में आए। दोनों सरकारों के समय नीरव मोदी और अन्य बड़े आराम से बैंक स अरबों रुपए उठाते रहे। अब प्रवर्तन निदेशालय, सीबीआई और आयकर विभाग ने इस घोटाले को उजागर कर आरोपी व्यवसायियों और बैंक और बैंक अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई शुरू की है। चुनाव नजदीक हैं तो घोटाले पर राजनीति भी तेज हो गई है। कांग्रेस आक्रामक है, भाजपा संभलकर कदम उठा रही है। कांग्रेस का कहना है कि उसने 2016 में ही मोदी सरकार को नीरव मोदी के खिलाफ शिकायत लिखित में दी थी, कांग्रेस ने एक फोटो भी जारी की है जिसमें नरेंद्र के साथ दावोस में गत माह विश्व आर्थिक फोरम नीरव मोदी दिखाई दे रहे हैं। इसके छह दिन बाद बैंक ने सीबीआई में घोटाले की शिकायत दी थी। केंद्र ने म]इसे मात्र संयोग बताया और कहा कि दोषी चाहे कितना भी बड़ा क्यों न हो, बख्शा नहीं जाएगा। नीरव मोदी साझेदार मेहुल चौकसी के साथ जनवरी के शुरु में ही विदेश चले गए। सवाल यह है कि इतने बड़े घोटाले के बाद भी आरोपी विदेश कैसे चले जाते हैं?पहले भी ललित मोदी, विजय माल्या जांच एजेंसियों की आँखों में धुल झोंककर विदेश भाग गए। केंद्रीय कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद को बताना चाहिए कि इस घोटाले के अरबों रुपए कैसे वापस आयेंगे?अपराधियों को कब सीखचों के पीछे लाया जाएगा? बैंकों को स्वायत्तता के साथ निगरानी भी सख्त करनी होगी। जनता के पैसे धन कुबेरों को बांटना कहां तक सही है? ऐसे तो बैंकिंग सिस्टम से आमजन का विश्वास ही उठ जाएगा।



दैनिक जागरण


घोटालेबाजी का तंत्र

देश के दूसरे सबसे बड़े बैंक पंजाब नेशनल बैंक में 11 हजार करोड़ रुपये की धोखाधड़ी पर सरकार ने सख्त कार्रवाई करने और पूरी रकम वसूलने का जो आश्वासन दिया उसे पर्याप्त नहीं कहा जा सकता। उसे अपने इस आश्वासन पर हर हाल में खरा उतरना होगा। इस धोखाधड़ी को अंजाम देने वाले नीरव मोदी के खिलाफ न केवल कठोर कार्रवाई होनी चाहिए, बल्कि वह होती हुई दिखनी भी चाहिए। इस क्रम में इसकी जांच भी होनी चाहिए कि घोटाला उजागर होने के चंद दिन पहले ही वह देश से बाहर जाने में कैसे सफल रहा? कहीं किसी ने उसे आगाह तो नहीं किया? जो भी हो, यह बेहद खराब बात हैं कि पहले तमाम बैंकों को चूना लगाने वाले विजय माल्या देश से बाहर निकल गए और सरकार कुछ नहीं कर सकी और अब पंजाब नेशनल बैंक को लूटने वाला नीरव मोदी। नीरव मोदी की कारगुजारी सामने आने के बाद मोदी सरकार पर विपक्षी दलों के हमले स्वाभाविक हैं। निःसंदेह विपक्ष को तिल का ताड़ बनाने से बचना चाहिए, लेकिन सरकार को यह समझना होगा कि उसके सामने केवल विपक्ष को ही जवाब देने की चुनौती नहीं है। इसके साथ ही उसके समक्ष जनता को भी यह भरोसा दिलाने की चुनौती है कि फंसे कर्जों के कारण पहले से ही समस्याग्रस्त बैंकों के कामकाज को सचमुच दुरुस्त किया जाएगा। इस मामले में बैंकों को केवल कुछ और निर्देश जारी करने से काम चलने वाला नहीं है, क्योंकि अब इसमें कोई संशय नहीं कि बैंकिंग व्यवस्था को दुरुस्त करने संबंधी रिजर्व बैंक के नियमों और निर्देशों की अनदेखी हो रही है।

सच तो यह है कि अगर पंजाब नेशनल बैंक तय नियमों के हिसाब से काम कर रहा होता और उसका निगरानी तंत्र तनिक भी सजग होता तो नीरव मोदी बैंक को खोखला करने का काम कर ही नहीं सकता था। क्या यह अजीब नहीं कि नीरव मोदी के गोरखधंधे की शुरुआत 2011 में हुई, लेकिन उसे करीब सात साल बाद पकड़ा जा सका? आखिर बैंक ने समय रहते इसकी परवाह क्यों नहीं की कि नीरव मोदी सैकड़ों करोड़ों की रकम उधार लिए जा रहा है और उसे चुकाने का नाम नहीं ले रहा है? क्या यह एक किस्म की अंधेरगर्दी नहीं कि पंजाब नेशनल बैंक के चुनिंदा अधिकारी निर्धारित प्रक्रिया का उल्लंघन करके नीरव मोदी के मन की मुराद पूरी करते रहे और बैंकिंग तंत्र को इसकी भनक तक नहीं लगी? चूंकि फिलहाल इस सवाल का जवाब देने वाला कोई नहीं इसलिए यही लगता कि बैंकिंग व्यवस्था ऐसे मनमाने तरीके से चल रही है जो घोटालेबाजों को ज्यादा रास आ रही है। हैरत नहीं कि सभी बैंकों की गहन छानबीन की जाए तो कई और नीरव मोदी निकल आएं। इसकी आशंका इसलिए भी है, क्योंकि यह स्पष्ट हो रहा है कि बैंकों के ऑडिट के नाम पर खानापूरी ही होती है। क्या रिजर्व बैंक अथवा वित्त मंत्रालय में कोई यह देखने वाला नहीं कि बैंक धोखाधड़ी रोकने के लिए समय-समय पर जारी निर्देशों और प्रक्रियाओं का पालन कर रहे हैं या नहीं? घोटाले पकड़ने से ज्यादा जरूरी यह है कि उन्हें होने ही न दिया जाए।


 

प्रभात खबर


एक और धोखाधड़ी

बैंकों पर बढ़ते बैड लोन के बढ़ते बोझ और घाटे की खबरों के बीच हीरा कारोबारी नीरव मोदी की धोखाधड़ी का गंभीर मामला सामने आया है. इस रसूखदार व्यवसायी पर पंजाब नेशनल बैंक से 11 हजार करोड़ रुपये से अधिक की धोखाधड़ी का आरोप है। इस मामले ने करीब दो दशक पहले के केतन पारेख घोटाले की याद ताजा करा दी है. वर्ष 2001 में पारेख द्वारा बैंकों के पे-ऑर्डर का इस्तेमाल कर शेयर बाजार में कारोबार करने का मामला सामने आया था. आरोप है कि इसी तर्ज पर नीरव मोदी ने बैंक के लेटर ऑफ अंडरटेकिंग के जरिये बिना किसी गारंटी या जमा पूंजी के पैसे निकाले हैं. इस मसले में सबसे बड़ा सवाल यह है कि जब पिछले कुछ सालों से बैंकों के डूबे हुए कर्ज को लेकर इतनी चर्चा हो रही है तथा सरकार और रिजर्व बैंक वसूली को लेकर चिंतित हैं, एक कारोबारी हजारों करोड़ रुपये निकालने में कामयाब कैसे हो गया। वर्ष 2016 की आखिरी तिमाही में पंजाब नेशनल बैंक ने बैंकिंग इतिहास का सबसे अधिक घाटा दिखाया था और पिछली तिमाही में उसे जो मामूली फायदा हुआ है, वह परिसंपत्तियों को बेचने का नतीजा है. सरकार बैंकों को राहत देने के लिए पूंजी निवेश कर रही है और इस बैंक को मौजूदा वित्त वर्ष में सरकार से 5,473 करोड़ मिलनेवाले हैं. यह भी याद किया जाना चाहिए कि पिछले साल पंजाब नेशनल बैंक की शिकायत पर केंद्रीय जांच ब्यूरो नीरव मोदी द्वारा 280 करोड़ रुपये की धोखाधड़ी के आरोप पर पहले से ही जांच कर रही है. नये मामले में मोदी के साथ नामजद बड़े हीरा कारोबारी मेहुल चौकसे की एक कंपनी के साथ नेशनल स्टॉक एक्सचेंज के भुगतान को लेकर पहले ही विवाद हो चुका है. इस पृष्ठभूमि में बिना वसूली और अदायगी की थाह लगाये बैंक द्वारा मोदी को भुगतान की सुविधा देना यह संकेत भी करता है कि हमारे बैंकिंग प्रबंधन पर कारोबारियों के एक ताकतवर लॉबी का प्रभाव है. वित्तीय जानकारों का आकलन है कि चालू वित्त वर्ष में बैंकों के मुनाफे में 30 हजार करोड़ से अधिक की चपत लग सकती है और सार्वजनिक क्षेत्र के अधिकतर बैंकों के घाटे का सिलसिला जारी रहेगा. ऐसे में इस मुद्दे पर गंभीरता से विचार करने की जरूरत है कि फंसे हुए कर्जे बढ़ते रहने और हजारों करोड़ रुपये के फर्जीवाड़े की हालत में सरकार द्वारा बैंकों को पूंजी मुहैया कराने का फायदा किस हद तक देश की अर्थव्यवस्था को मिल सकेगा. बहुत संभव है कि कई अन्य मामलों की तरह इस फर्ज़ीवाड़े में भी कुछ निचले स्तर के अधिकारियों को बलि का बकरा बनाकर तथा आरोपित कारोबारी से कुछ वसूली कर बैंक और जांच एजेंसियां अपने कर्तव्य की इति-श्री कर लें, पर ऐसे रवैये से धोखाधड़ी के सिलसिले रोक लगा पाना मुमकिन नहीं है. उम्मीद है कि न सिर्फ इस मसले की त्वरित जांच की जाएगी और दोषियों को सजा दी जाएगी, बल्कि ऐसे फर्जीवाड़े को रोकने के लिए ठोस नियम बनाये जायेंगे.


 

देशबन्धु


महाघोटाले के सवाल

देश के सबसे बड़े रईसों में से एक नीरव मोदी पर एक महाघोटाले का आरोप लगा है। 2016 में फोर्ब्स ने अमीरों की जो सूची जारी की थी, उसमें हीरा कारोबारी नीरव मोदी का नाम 46वें स्थान पर था और उन्हें 11,237 करोड़ रुपयों की संपत्ति का मालिक बताया गया था। संयोग और हैरत की बात यह है कि नीरव मोदी पर पंजाब नेशनल बैंक से 11,300 करोड़ रुपयों को फर्जी तरीके से लेने का ही आरोप लगा है। यानी उनकी संपत्ति जितनी है, उससे कहीं ज्यादा की ठगी की रकम है। भारत में सार्वजनिक क्षेत्र के दूसरे सबसे बड़े बैंक पीएनबी में लगभग 1 अरब रुपयों के इस घोटाले का खुलासा बुधवार को हुआ। इसके बाद से पीएनबी के शेयर एकदम टूट गए, जिससे उसके शेयरधारकों को खासा नुकसान हुआ। नीरव मोदी और उनसे जुड़ी आभूषण बनाने वाली कंपनियों ने पीएनबी से धोखे से एल ओ यू यानी लेटर आफ अंडरटेकिंग जारी करवा के विदेशों में स्थित बैंकों से एडवांस रकम हासिल की। पीएनबी का कहना है कि उसके दो कर्मियों ने धोखाधड़ी कर एलओयू स्विफ्ट के जरिए विदेश में स्थित बैंको को दिए। स्विफ्ट यानी सोसायटी फार वर्ल्डवाइड इंटरबैंक फाइनेंनशियल टेलिकम्युनिकेशन के जरिए एलओयू एक बैंक से दूसरे बैंक भेजे जाते हैं। इस प्रक्रिया की जांच तीन स्तरों पर की जाती है। स्विफ्ट इंस्ट्रक्शन का मतलब होता है कि बैंक की सहमति से यह किया जा रहा है। यानी बैंक इसे बनाता है, फिर इसकी जांच होती है और उसके बाद एक और बार सारी जानकारियां पुख्ता करके ही अगले बैंक तक इसे भेजा जाता है। तीन स्तरों पर की गई इस जांच प्रक्रिया के कारण इसे सुरक्षित माना जाता है और अब तक दुनिया में इसके कारण कोई धोखे की खबर नहीं आई है। लेकिन पीएनबी के कुछ कर्मचारियों की मिलीभगत से आरोपी नीरव मोदी और उनके सहयोगियों ने यह धोखा भी कर दिखाया। एलओयू अक्सर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर लेनदेन के लिए इस्तेमाल होते हैं। यह एक तरह से गारंटी पत्र के समान होता है, जिसे एक बैंक अपने ग्राहक की ओर से दूसरे बैंक को जारी करता है। मतलब दूसरा बैंक ग्राहक को एडवांस रकम या कर्ज दे सकता है और उसका अपना बैंक इसकी गारंटी लेता है कि यह रकम तय समय पर चुकता की जाएगी। चूंकि एलओयू एक तरह का उधार पत्र है, इसलिए इसके साथ गारंटी भी होती है। लेकिन पीएनबी मामले में अभी यह स्पष्ट नहीं हुआ है कि उसने कौन सी गारंटी के बदले एलओयू जारी किए। ऐसा भी नहीं है कि पीएनबी ने अपने बड़े और रईस ग्राहक के फेर में धोखे से एलओयू जारी किया हो। अभी कुछ दिन पहले ही इन्हीं नीरव मोदी पर 2017 में पीएनबी के साथ 280.70 करोड़ रुपये की धोखाधड़ी का मामला दर्ज किया था। इसकी जांच सीबीआई और ईडी कर रहे हैं। जब नीरव मोदी और उनके सहयोगियों पर पहले से ही एक फर्जीवाड़े का मामला सामने आ चुका थाफिर कैसे उन्हें चंद दिनों के भीतर दूसरा बड़ा घोटाला करने का मौका मिल गया? बेशक यह सब बैंक के बड़े अधिकारियों की शह के बिना नहीं हुआ होगा। फिलहाल पीएनबी ने अपने कुछ अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई शुरु कर दी है। सीबीआई भी जांच कर रही है।

वित्त मंत्रालय घोटाले को लेकर जताई जा रही आशंकाओं को खारिज करते हुए कहता है कि यह मामला ‘नियंत्रण के बाहर’ नहीं है और इस बारे में उचित कार्रवाई की जा रही है। आश्चर्य है कि मामले का खुलासा होते ही वित्त मंत्रालय को पता चल गया कि मामला नियंत्रण के बाहर नहीं है। क्या सरकार को इतना यकीन है कि वह आरोपियों को पकड़ लेगी, उन्हें दोषी साबित करवा लेगी और उनसे सारी रकम वसूल भी लेगी? अभी तो विजय माल्या और ललित मोदी को ही पकड़ कर देश में वापस नहीं लाया जा सका है। ऐसे में किस आधार पर वह आशंकाओं को खारिज कर रही है। पीएनबी में इस देश की जनता का ही धन जमा है, जिसमें से हजारों करोड़ कुछ लोग चपत कर गए हैं। इससे पहले भी 2015 में बैंक आफ बड़ौदा में भी दिल्ली के दो कारोबारियों की ओर से 6,000 करोड़ रुपये की धोखाधड़ी का मामला सामने आया था। दो दिन पहले ही देश के सबसे बड़े सरकारी बैंक एसबीआई ने 2416 करोड़ रुपयों का घाटा होने की सूचना दी है। बैंकों में एनपीए बढ़ता जा रहा है। मतलब साफ है कि कार्पोरेट घराने कर्ज ले रहे हैं और उसे वापस नहीं कर रहे हैं। सरकार एनपीए के मसले को पिछली सरकार की देन बताती है। लेकिन इन सबके बीच जनता का धन तो खुलेआम लूटा जा रहा हैउस पर सरकार फिक्र क्यों नहीं करती? बीते कुछ समय में बैंकों की हालत सुधारने के लिए कई कदम उठाए गए और इसे आर्थिक वृद्धि, विकास से जोड़ दिया गया। लेकिन पीएनबी जैसे प्रकरण बता रहे हैं कि जनता दोनों ओर से लुट रही है। सरकार नियम बनाकर उससे धन ले रही है और धोखेबाज कारोबारी उसका धन बैंकों से लूट रहे हैं। क्या इसी तरह हमारी बैंकिंग व्यवस्था मजबूत होगी?