अख़बारनामा: CVC की मध्यस्थता पर ‘राजनीति’ कर दी अख़बारों ने!


अभी जो नियुक्त होगा वही, 2019 में भाजपा सरकार अगर वापस सत्ता में नहीं आई तो उसकी जांच करेगा


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राकेश अस्थाना के मध्यस्थ बन गए थे सीवीसी !!
सीबीआई मामले में नया खुलासा, ज्यादातर अखबारों में नहीं है

संजय कुमार सिंह

आज एक नई सूचना के आलोक में सीबीआई प्रमुख आलोक वर्मा को हटाए जाने की खबर फिर से। सूचना कल ही आ गई थी और मैंने सोशल मीडिया पर शेयर भी किया था, “देखिए, कल गोदी मीडिया में किसी को ये खबर छापने-बताने लायक लगती है कि नहीं।” आपके अखबार में यह खबर है कि नहीं आप देख लीजिएगा। मोटे तौर पर मैं उस खबर और उसके संभावित मकसद और परिणाम की चर्चा करूंगा। इंडियन एक्सप्रेस में यह खबर पहले पन्ने पर है। शीर्षक है, “सीवीसी छह अक्तूबर को मुझसे अस्थाना की ओर से मिले आलोक वर्मा ने न्यायमूर्ति पटनायक से कहा”। यह खबर शनिवार, (12 जनवरी 2019) को समाचार पोर्टल, ‘दि वायर’ पर थी। रोहिणी सिंह की इस खबर का शीर्षक है, “अस्थाना के प्रतिकूल टिप्पणी हटाने का आग्रह करने के लिए सीवीसी आलोक वर्मा से मिले।” अब तो यह खबर 23 घंटे से पुरानी हो चुकी है। आज ‘द टेलीग्राफ’ने इसका हवाला दिया है।

सीमा चिश्ती की बाइलाइन वाली इस खबर के मुताबिक, “सीबीआई के हटाए जा चुके निदेशक आलोक वर्मा ने अपने खिलाफ सीवीसी (केंद्रीय सतर्कता आयुक्त) जांच की निगरानी करने वाले सुप्रीम कोर्ट के रिटायर जज न्यायमूर्ति एके पटनायक को औपचारिक तौर पर बताया था कि केंद्रीय सतर्कता आयुक्त केवी चौधरी छह अक्तूबर को सीबीआई के उस समय के विशेष निदेशक, राकेश अस्थाना के ‘मध्यस्थ’ के रूप में उनके घर आए थे। खबर में कहा गया है कि चौधरी अस्थाना की एनुअल परफॉर्मेंस अप्रेजल रिपोर्ट के बारे में चिन्तित थे जिसपर वर्मा के दस्तखत हैं। आगे लिखा है, “संडे एक्सप्रेस द्वारा हासिल किए गए दस्तावेजों से पता चलता है कि वर्मा ने न्यायमूर्ति पटनायक से कहा था कि श्री चौधरी शनिवार, 6 अक्तूबर को उनसे मिलने आए थे और अस्थाना की अप्रेजल रिपोर्ट में वर्मा की टिप्पणी को लेकर चिन्तित थे जिसपर उन्होंने जुलाई 2018 में दस्तखत किए थे।

संभवतः यह उन्हीं खास कारणों से है जिसके लिए मुख्य सतर्कता आयुक्त ने निरीक्षण की बजाय मध्यस्थता का निर्णय किया और एक सहकर्मी के साथ 6 अक्तबूर 2018 को 11-11:30 बजे मेरे आधिकारिक निवास स्थान पर आए और एक घंटे रहे तथा कहा, ‘मैं यहां अपनी पहल पर आया हूं ताकि यह मामला हल हो सके’। इसपर आपको मेरा जवाब वही था जो सरकार के अन्य वरिष्ठ अधिकारियों को रहा है औऱ इनमें मेरे बैचमेट, सतर्कता आयुक्त शरद कुमार शामिल हैं।” …. इस खबर के मुताबिक वर्मा ने जो सबसे गंभीर आरोप लगाया है वह यह कि सीवीसी सुप्रीम कोर्ट के समक्ष तथ्यों को गलत ढंग से रख रहे थे और इसमें मीटिंग के मिनट्स से छेड़छाड़ का आरोप शामिल है यह सीबीआई में अस्थाना के बने रहने से संबंधित है।

कुल मिलाकर मामला यह है कि सीवीसी निगरानी और निरीक्षण का अपना काम छोड़कर एक अधिकारी पर लगे आरोप निपटाना चाहते थे और नहीं निपटा तो उन्हीं की रिपोर्ट के आधार पर आलोक वर्मा को निपटा दिया गया जिसके बारे में वर्मा ने कहा है कि उन्होंने मिनिट्स में छेडछाड़ और सुप्रीमकोर्ट में तथ्यों को गलत ढंग से रखा। और हटाने वाली कमेटी ने इन सभी तथ्यों के बावजूद वर्मा का पक्ष जानने की जरूरत नहीं समझी। इस तरह सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बावजूद सुप्रीम कोर्ट की नाक के नीचे वर्मा को सफलता पूर्वक हटा दिया गया। समझा यह जा रहा है कि अब मनमाफिक अधिकारी को अगला निदेशक बनाने की कोशिश होगी जबकि मुझे लगता है कि यह सब उसी क्रम में हुआ है। अभी आगे देखना है।

इसके बावजूद आज ज्यादातर अखबारों में राजनीतिक गठबंधन की खबरलीड है जो उत्तर प्रदेश की प्रमुख पार्टियों – बहुजन समाज पार्टी और समाजवादी पार्टी में हुई। ठीक है, राजनीतिक नजरिए से यह बड़ी घटना है और इसकी खबर होनी ही चाहिए। पर क्या आप जानते हैं कि आलोक वर्मा को सीबीआई प्रमुख की कुर्सी से हटाए जाने के बाद सीबीआई का नया निदेशक नियुक्त होना है। सरकार ने पहले ही राकेश अस्थाना को दूसरे नंबर पर बैठा रखा था और उनपर (भी) भ्रष्टाचार के आरोपों की जांच चल रही है। मुझे नहीं पता सीबीआई के दूसरे नंबर के अधिकारी के निदेशक बनने की संभावना कितनी होती है पर पिछले दिनों छपा कि सीबीआई निदेशक का कार्यकाल दो साल होता है और उन्हें तीन लोगों की कमेटी नियुक्त करती है और इनमें प्रधानमंत्री के साथ विपक्ष के नेता भी होते हैं।

नियुक्ति बाद की बात है। पर अभी जो नियुक्त होगा वही, 2019 में भाजपा सरकार अगर वापस सत्ता में नहीं आई तो उसकी जांच करेगा। दो साल तक उसे हटाना आसान नहीं होगा। वैसे तो भाजपा को अगला चुनाव जीतने में कोई शक नहीं है और अमित शाह कह चुके हैं कि भाजपा अभी 50 साल राज करेगी। ऐसे में सीबीआई का अगला प्रमुख कौन हो – इसकी चिन्ता भाजपा को नहीं होगी। वैसे भी भाजपा भ्रष्टाचार-घोटाले तो करती नहीं है इसलिए उसे सीबीआई से क्या डर। वह तो सिर्फ कायदे कानून की बात करती है और यह सुनिश्चित करती है कि कोई निर्दोष परेशान न हो। दूसरी ओर, सहारा दस्तावेज में पैसे लेने के आरोप से लेकर जज लोया की संदिग्ध मौत और रफाल सौदे में एचएएल को बाहर कर दिए जाने समेत तमाम मामले हैं जिनकी जांच होनी चाहिए। बगैर जांच के सब कुछ ठीक नहीं माना जा सकता। खासकर तब जब 2जी घोटाले में अदालत से बरी होने के बावजूद हम अभियुक्तों को निर्दोष नहीं मानते हैं।

सीबीआई के मामले में स्थिति थोड़ी अलग है। सीबीआई निदेशक को 20 दिन पद पर नहीं रहने दिया गया क्योंकि उनपर आरोप थे। आलोक वर्मा को जिस दिन हटाया गया उसी दिन दिल्ली हाईकोर्ट ने पुष्टि की कि सीबीआई के ही दूसरे नंबर के अधिकारी ‘विशेष निदेशक’ राकेश अस्थाना पर जो आरोप हैं उनकी जांच होनी चाहिए, हो सकती है। अदालत ने एफआईआर खारिज करने से मना कर दिया। अब यह जांच किस गति से होगी और क्या कार्रवाई होगी यह तो बाद की बात है पर आप जानते हैं कि दोनों अधिकारियों के इसी झगड़े के कारण दोनों को अक्तूबर में आधी रात की कार्रवाई के बाद छुट्टी पर भेज दिया गया था। सीबीआई डायरेक्टर इसके खिलाफ सुप्रीम कोर्ट गए। सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें बहाल किया और फिर नियुक्त करने वाली समिति ने हटा दिया 2-1 के फैसले हटा दिया क्योंकि मुख्य न्यायाधीश के प्रतिनिधि हटाने के पक्ष में थे।

इस कमेटी के तीन लोगों में से एक प्रधानमंत्री थे। उनका फैसला वही होना था जो पहले था। विपक्ष के नेता के रूप में कांग्रेस नेता मल्लिकार्जुन खडगे हटाए जाने के खिलाफ थे पर मुख्य न्यायधीश के प्रतिनिधि ने हटाने का समर्थन किया। बाद में उन्होंने इसका कारण भी बताया। र अभी वह मुद्दा नहीं है। पर आलोक वर्मा को हटा दिया जाना और राकेश अस्थाना का सीबीआई में बने रहना क्या महत्वपूर्ण नहीं है? इसके बावजूद यह खबर हिन्दुस्तान टाइम्स, टाइम्स ऑफ इंडिया में पहले पन्ने पर नहीं है। टेलीग्राफ में पहले पन्ने पर जरूर है। और मुख्य शीर्षक तो बिल्कुल मस्त है – व्हाई वी कांट लेट स्लीपिंग डॉग्स लाई। इसका सीधा अनुवाद तो यही होगा कि, “हम सोए हुए कुत्तों को झूठ क्यों नहीं बोलने दे रहे हैं”। पर यह एक मुहावरा है और इसका मतलब है, “चीजों को जैसा है वैसे ही छोड़ देना”। आलोक वर्मा को हटा दिया गया, अब उसकी चर्चा की क्या जरूरत। कई अखबार नहीं कर रहे हैं जो कर रहा है उसने बताया है कि वह ऐसा क्यों नहीं कर रहा है और यह सही भी है।

हिन्दी अखबारों में नवभारत टाइम्स में पहले पन्ने पर इससे संबंधित खबर है, “वर्मा के करप्शन का सबूत नहीं … बयान को लेकर सरकार को घेरा”। इसके साथ छोटी सी एक सिंगल कॉलम की खबर है, “सीबीआई की आजादी जरूरी : जस्टिस लोढ़ा”। दैनिक हिन्दुस्तान में पहले पेज पर सीबीआई मामले में नया खुलासा तो नहीं ही है, अखबार ने उत्तर प्रदेश में गठबंधन को लीड बनाया है और सेकेंड लीड है, “प्रहार : मोदी बोले, विपक्षी दल अपनी काली करतूतों से डरें”। राजस्थान पत्रिका में यह खबर पहले पन्ने पर, “वर्मा पर था शिकायत वापस लेने का दबाव” – शीर्षक से है। दैनिक जागरण की दुनिया अलग है। यहां, “चोरी कर परिवार में बांटने वाला चाहिए या भ्रष्टाचार मिटाने वाला सेवक” शीर्षक खबर लीड है। उपशीर्षक है, “प्रधानमंत्री मोदी का गठबंधन पर हमला, कहा – मजबूर सरकार चाहते हैं ये दल”। जागरण ने सपा-बसपा गठबंधन को सेकेंड लीड बनाया है। अमर उजाला में गठजोड़ की खबर लीड है और सेकेंड लीड का शीर्षक है, “भ्रष्टाचार करने के लिए मजबूर सरकार चाहने वाले हो रहे हैं एकजुट :मोदी”। सीवीसी की खबर यहां भी पहले पन्ने पर नहीं है। नवोदय टाइम्स में भी गठबंधन की खबर लीड है। सेकेंड लीड आर्थिक आरक्षण को राष्ट्रपति की मंजूरी मिलने की खबर है। सीवीसी वाली खबर पहले पन्ने पर नहीं है।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं। जनसत्ता में रहते हुए लंबे समय तक सबकी ख़बर लेते रहे और सबको ख़बर देते रहे। )