भगत सिंह के प्रिय दार्शनिक, चिंतक और साहित्यकार कौन थे?

डॉ. रामू सिद्धार्थ
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साढे़ तेईस वर्ष की उम्र में 23 मार्च, 1931 को फांसी पर चढ़ा दिये गये भगत सिंह ने कम से कम 100 से ज्यादा दार्शनिकों, विचारकों और साहित्यकारों को पढ़ा था। इसकी पुष्टि उनकी जेल नोटबुक से होती है। यह जेल नोटबुक फांसी से पहले जेल में रहते हुए भगत सिंह ने 1929 से 1931 के बीच लिखी।

इस जेल नोटबुक में 107 से अधिक लेखकों और 43 पुस्तकों के शीर्षक दर्ज हैं। उनके प्रिय लेखकों में मार्क्स, एंगेल्स, लेनिन, त्रात्स्की, टॉमस पेन, बर्ट्रेंण्ड रसेल, हर्बट स्पेंसर, टॉमस हाब्स, रूसो, सुकरात, प्लेटो, अरस्तू, देकार्त, जॉन लाक, मैकियावेली और दिदरों जैसे दार्शनिक-चिंतक हैं, तो गोर्की, उमर खय्याम, प्टन सिंक्लेयर, इब्सन, ह्विटमैन, वर्डसवर्थ, टेनिसन, टैगोर, जैक लंडन, विक्टर ह्यूगो जैसे साहित्यकार शामिल हैं।

भगत सिंह द्वारा पढ़े गए लेखकों का वर्गीकरण करते हुए प्रो. चमनलाल लिखते हैं- “ज़ाहिर है, भगत सिंह का अध्ययन तीन स्तरों का है- दार्शनिक सैद्धांतिक, सृजनात्मक साहित्यिक और भारतीय राजनीति। तीनों ही स्तरों पर उन्होंने अब तक के विश्व ज्ञान का श्रेष्ठतम इन दो वर्षों (1929-1931) में पढ़ा और इस पर मनन किया।” (भगत सिंह के संपूर्ण दस्तावेज)।

जेल डायरी में सबसे पहले वे एंगेल्स का उद्धरण दर्ज करते हैं और संपत्ति की व्यवस्था की ज़रूरत व विवाह व्यवस्था पर टिप्पणी करते हैं। वे डायरी में एंगेल्स के हवाले से लिखते हैं, ‘विवाह अपने आप में, पहले की भांति ही, वेश्यावृत्ति का कानूनी तौर पर स्वीकृत रूप, औपचारिक आवरण बना रहा..।” (जेल नोटबुक) फिर वे एंगेल्स की कृति ‘परिवार, निजी संपत्ति और राज्य की उत्पत्ति’ से विस्तृत नोट लेते हुए मानव सभ्यता के विकासक्रम के बारे में टिप्पणी दर्ज करते हैं। धर्म और ईश्वर भगत सिंह के चिंतन के महत्वपूर्ण विषय रहे हैं।

ऐसे दार्शनिकों को उन्होंने बार-बार उद्धृत किया है जो धर्म और ईश्वर के अस्तित्व को खारिज करते हैं। इस संदर्भ में बर्ट्रेण्ड रसेल उनके एक प्रिय दार्शनिक हैं, जो धर्म के बारे में लिखते हैं कि “मैं इसे भय से पैदा हुई एक बीमारी के रूप में, और मानव जाति के लिए एक अकथनीय दुख के रूप में मानता हूं।” धर्म के संदर्भ में वे “धर्म अफीम है” (मार्क्स का चर्चित उद्धरण) को भी दर्ज करते हैं और विस्तार से धर्म संबंधी उनकी अवधारणा को प्रस्तुत करते हैं।

यूनानी दार्शनिक सुकरात, प्लेटो और अरस्तू का भी भगत सिंह ने गहन अध्ययन किया था। उन्होंने तीनों की विशिष्टताओं को भी रेखांकित किया है। चिंतक के रूप में टॉमस पेन दुनिया भर के अध्येताओं के प्रिय लेखक रहे हैं और उनकी किताब ‘राइट्स ऑफ मैन’ प्रिय किताब रही है। भगत सिंह ने इससे भी नोट्स लिए हैं। वे टॉमस पेन के प्राकृतिक अधिकार संबंधी कथन को उद्धृत करते हुए लिखते हैं प्राकृतिक अधिकार वे हैं जो मनुष्य के जीने के अधिकार से संबंधित (बौद्धिक-मानसिक आदि) हैं। रूसी चिंतकों में लेनिन, बुखारिन और त्रात्स्की को भगत सिंह बार-बार उद्धृत करते हैं। साम्राज्यवाद और बुर्जुवा जनतंत्र के संदर्भ में वे लेनिन के उद्धरणों का नोट्स लेते हैं।

बुर्जुवा जनतंत्र के संदर्भ में लेनिन को उद्धृत करते हुए वे लिखते हैं- “ बुर्जुवा जनतंत्र, सामंतवाद की तुलना में एक महान ऐतिहासिक प्रगति होने के बावजूद, एक बहुत ही सीमित, बहुत ही पाखंडपूर्ण संस्था है, धनिकों के लिए एक स्वर्ग और शोषितों एवं गरीबों के लिए एक जाल और छलावे के अलावा न तो कुछ है और न ही हो सकता है।” (जेल नोटबुक)। क्रांति के लिए पार्टी की जरूरत के संदर्भ में वे त्रात्स्की को उद्धृत करते हुए लिखते हैं कि सर्वहारा क्रांति के लिए पार्टी एक अपरिहार्य उपकरण है।

दार्शनिक-चिंतकों के साथ दुनिया भर के कवि एवं कथाकार भगत सिंह के प्रिय लेखकों में शामिल रहे हैं। वाल्ट व्हिटमैन, वर्ड्सवर्थ, टेनीसन, फिग्नर, मोरोजोव, मैके और गिलमैंन जैसे महान कवियों की कविताएं वे बार-बार उद्धृत करते हैं। मैके की एक प्रसिद्ध कविता ‘कोई दुश्मन नहीं?’ को  वे उद्धृत करते हुए यह संदेश दे रहे हैं कि ऐसा हो ही नहीं सकता कि कोई न्याय के पक्ष में खड़ा हो और उसके दुश्मन न होंः

तुम कहते हो, तुम्हारा कोई दुश्मन नहीं?
अफ़सोस! मेरे दोस्त, इस शेख़ी में दम नहीं,
जो शामिल होता है फर्ज़ की लड़ाई में,
जिसे बहादुर लड़ते ही हैं
उसके दुश्मन होते ही हैं
अगर नहीं हैं तुम्हारे
तो वह काम ही तुच्छ है, जो तुमने किया है

वाल्ट ह्विटमैन दुनिया भर के लोगों के चहेते कवि रहे हैं। उनकी ‘स्वतंत्रता’ शीर्षक कविता भगत सिंह के मनोभावों के काफी करीब लगती है। हंसते-हंसते आज़ादी के लिए फांसी का फंदा चूम लेने वाले कई क्रांतिकारियों की छोटी-छोटी जीवनी स्वयं भगत सिंह ने भी लिखी। यह कविता ऐसे ही युवकों के बारे में हैः

वे मृत शरीर नवयुकों के,
वे शहीद जो झूल गए फांसी के फंदे से….
….दफन न होते आजादी पर मरने वाले
पैदा करते हैं, मुक्ति-बीज, फिर और बीज पैदा करने को

रूसी क्रांतिकारी कवि मोरोजोव की कविताओं के कई अंश भगत सिंह ने अपनी जेल नोटबकु में दर्ज किया है। जीवन के ठहराव को अभिव्यक्त करती उनकी एक चर्चित कविता की कुछ पंक्तियांः

हर चीज यहां कितनी खामोश, बेजान, फीकी
वर्षों गुजर जाते हैं यों ही, कुछ पता नहीं चलता…
…लंबी कैद से हमारे खयाल हो जाते हैं मनहूस
भारीपन महसूस होता है हमारी हड्डियों में

उन्होंने बहुत सारी ऐसी कविताएं अपनी जेल नोटबुक में दर्ज की हैं जो उनके आदर्शों एवं विचारों को अभिव्यक्ति देती हैं। ऐसी एक कविता अंग्रेजी कवि आर्थर क्लॉग की ‘लक्ष्य की महिमा’ शीर्षक से हैंः

अरे! बेकार की नफरत के लिए नहीं,
न सम्मान के लिए, न ही अपनी पीठ पर शाबासी के लिए
बल्कि लक्ष्य की महिमा के लिए,
किया जो तुमने, भुलाया नहीं जायेगा

भगत सिंह ने पेरिस कम्यून के दौरान लिखे गये गीत, जिसे ‘इंटरनेशनल’ नाम से जाना जाता है, उसे भी जेल नोटबुक में दर्ज किया है।

कथाकारों में जैक लंडन, अप्टन सिंक्लेयर और गोर्की उन्हें अत्यन्त प्रिय लगते हैं। उन्होंने जैक लंडन के ‘आयरन हील’ के कई अंशों को अपनी जेल नोटबुक में जगह दी है। रवीन्द्रनाथ टैगौर का अध्ययन भी उन्होंने जेल में रहने के दौरान किया।

जिन दार्शनिकों-चिंतकों और साहित्यकारों की रचनाओं के अंशों को भगत सिंह ने उद्धृत किया है, उसे देखकर कोई भी अंदाज लगा सकता है कि उनकी संवेदना और वैचारिकी का दायरा कितना विस्तृत था। विश्व के करीब हर कोने के और विश्व इतिहास के करीब हर दौर के लेखकों की पुस्तकों को उन्होंने अपने अध्ययन के लिए चुना था।


डॉ. रामू सिद्धार्थ फॉरवर्ड प्रेस के साथ लम्बे समय तक जुड़े रहे हैं। वामपंथी आंदोलन और दलित वैचारिकी के अध्येता हैं। भगत सिंह के सम्पू्र्ण दस्तावेजों का इन्होंने अध्ययन किया है।