पुस्‍तक अंश: भारत माता के बारे में नेहरू क्‍या सोचते थे?


पत्रकार पीयूष बबेले की पुस्‍तक ‘नेहरू: मिथक और यथार्थ’ के चुनिंदा अंश


मीडिया विजिल मीडिया विजिल
दस्तावेज़ Published On :


आज से पांच दिन बाद शुरू हो रहे दिल्‍ली के विश्‍व पुस्‍तक मेले में आ रही हिंदी की किताबों में पत्रकार पीयूष बबेले की नेहरू पर लिखी संवाद प्रकाशन से छपी पुस्‍तक एक ज़रूरी दस्‍तावेज़ है। बीत दो वर्षों में भारत के पहले प्रधानमंत्री की छवि को जिस तरह कुत्‍सा प्रचार से धूमिल किया गया है और उनसे जोड़ कर मिथकों की एक दुनिया खड़ी की गई है, यह पुस्‍तक उसका एक मुकम्‍मल जवाब है। पुस्‍तक का लोकार्पण 5 जनवरी को दिल्‍ली में है। मीडियाविजिल उससे पहले एक श्रृंखला चलाकर रोज़ाना इस पुस्‍तक के कुछ अहम अंश अपने पाठकों के लिए प्रस्‍तुत करेगा। आज पहली कड़ी में प्रस्‍तुत है ‘’भारत माता’’ पर नेहरू के विचार: संपादक

राष्ट्रवाद: भारत माता

 ‘‘जब ‘हम भारतमाता की जय’ बोलते हैं, तो हम भारत के 30 करोड़ लोगों की जय बोलते हैं. उन 30 करोड़ लोगों को आजाद कराने की जय बोलते हैं. इस तरह हम सब भारत माता का एक-एक टुकड़ा हैं और हमसे मिलकर ही भारत माता बनती है. तो जब भी हम भारत माता की जय बोलते हैं तो असल में अपनी ही जय बोल रहे होते हैं. और जिस दिन हमारी गरीबी दूर हो जाएगी, हमारे तन पर कपड़ा होगा, हमारे बच्चों को अच्छी से अच्छी तालीम मिलेगी,हम सब खुशहाल होंगे, उस दिन भारत माता की सच्ची जय होगी.’’

-जवाहरलाल नेहरू

भारत में मई 2014 में नरेंद्र मोदी सरकार के सत्ता में आने के बाद से राष्ट्रवाद शब्द कुछ ज्यादा ही चर्चा में आने लगा है. सामान्य तौर पर राष्ट्रवाद शब्द का उपयोग गुलाम देशों में होता है. आजाद मुल्कों में राष्ट्रवाद की जगह राष्ट्रप्रेम, राष्ट्रनिर्माण या राष्ट्रसेवा शब्द का उपयोग होता है.

राष्ट्रवाद शब्द को उत्सव का रूप देने के लिए इन दिनों तीन चीजों का मुख्यरूप से सहारा लिया जा रहा है. वे तीन चीजें हैं- भारत माता, राष्ट्रध्वज तिरंगा और राष्ट्रगान. चौंकाने वाली चीज यह है कि आजादी के 70 साल बाद सरकार और अदालतें राष्ट्र के इन तीन प्रतीकों को लेकर इतनी ज्यादा चौकन्नी हो गई हैं कि लोगों को वाकई ध्यान रखना पड़ता है कि कहीं किसी प्रतीक पूजा में कमी रह जाने से ठाले बैठे वे देशद्रोही न बन जाएं.

अब भारतमाता शब्द को ही लीजिए. इस दौरान ‘भारत माता की जय’ के नारे पर इस कदर जोर दिया गया कि अगर कोई भूल-चूक इस शब्द को नहीं बोल पाता तो उसके ऊपर राष्ट्रद्रोही होने की तलवार लटकने लगती. ऐसे बहुत से वाकये सामने आए जब किसी मुसलमान व्यक्ति पर इस बात का दबाव डाला गया कि वह भारत माता की जय बोले. ज्यादातर मामलों में लोगों ने भारत माता की जय बोली, लेकिन जहां नहीं बोली, वहां उनके साथ मारपीट की नौबत तक आ गई.

सबसे चर्चित वाकया मार्च 2016 में सामने आया, जब हैदराबाद से सांसद असदउद्दीन उवैसी ने कहा कि वे जय हिंद तो बोल सकते हैं, लेकिन ‘भारत माता की जय’ नहीं बोलेंगे. उन्होंने दलील दी कि भारत माता एक बुत है और मुसलमान बुत की पूजा नहीं कर सकता. जहां तक मादरेवतन से मोहब्बत का सवाल है तो वे जय हिंद बोल ही रहे हैं. इस बयान पर प्रतिक्रिया देते हुए बीजेपी के राष्ट्रीय महासचिव कैलाश विजयवर्गीय ने कोलकाता में कहा कि जो भारत माता की जय नहीं बोल सकता, उसे किसी और देश चला जाना चाहिए.

यह मामला इतना आगे बढ़ा कि महाराष्ट्र विधानसभा ने उवैसी की पार्टी के एक विधायक को इसलिए सदन से बरखास्त कर दिया क्योंकि उन्होंने भी हिंदुस्तान जिंदाबाद तो बोला, लेकिन भारत माता की जय बोलने से मना कर दिया. खास बात यह रही कि सदन में मौजूद भारतीय जनता पार्टी, शिव सेना, भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के किसी सदस्य ने इस पूरे घटनाक्रम पर कोई ऐतराज नहीं किया. विधानसभा में विधान बनाने वाले के नागरिक अधिकारों का चीरहरण खुद विधायकों ने कर डाला.

नेहरू को इन बातों का अंदाजा अपने वक्त में ही लग गया था. उन्हें अंदेशा था कि देश में आगे भी मुसलमानों पर राष्ट्रभक्ति साबित करने के लिए बेजा दबाव बनाया जाएगा. इसीलिए 1 मार्च 1950 को मुख्यमंत्रियों को संबोधित पत्र में हिंदू महासभा की गतिविधियों से आगाह करते हुए नेहरू लिखते हैं:

‘‘हममें से कुछ लोगों की यह फितरत है कि वे भारत के मुसलमानों से देश के प्रति वफादारी साबित करने और पाकिस्तान समर्थक प्रवृत्तियों की निंदा करने की मांग करते हैं. इस तरह की प्रवृत्तियां निश्चित तौर पर गलत हैं और उनकी निंदा की जानी चाहिए. लेकिन मैं समझता हूं कि हर बार भारतीय मुसलमानों के वफादारी साबित करने पर जरूरत से ज्यादा जोर डालना गलत है. वफादारी किसी आदेश या भय से पैदा नहीं होती. यह वक्त के सहज प्रवाह में अपने आप पैदा होती है और धीरे-धीरे न सिर्फ एक प्रेरक मनोभाव बन जाती है, बल्कि व्यक्ति को लगता है कि इसी में उसका भला है. हमें ऐसे हालात बनाने होंगे, जिसमें लोगों के अंदर इस तरह के मनोभाव पैदा हो सकें. किसी भी हाल में अल्पसंख्यकों की निंदा करने और उन पर दबाव बनाने से कोई फायदा नहीं होगा.’’

नेहरू अपने वर्तमान और देश के भविष्य को समझ पा रहे थे, क्योंकि महात्मा गांधी के बाद वे ही ऐसे नेता थे,जिन्होंने देश के चप्पे-चप्पे की यात्राएं की थीं. इस देश के शहर, कस्बे और दूर-दराज के गांवों की नब्ज का उन्हें जबरदस्त अंदाजा था. आज जिस भारत माता की जय पर हंगामा हो रहा है, उस जमाने में गांव-गांव जाकर लोगों को भारत माता का मतलब समझाना नेहरू का प्रिय शगल था. नेहरू की जीवनी में फ्रेंक मॉरिस एक दिलचस्प वाकये का जिक्र करते हैं. यहां नेहरू गांव वालों को समझा रहे हैं कि भारत माता आखिर कौन है और जब हम भारत माता की जय बोलते हैं, तो असल में किसकी जय बोल रहे होते हैं. मशहूर निर्देशक श्याम बेनेगल ने पंडित नेहरू की किताब‘डिस्कवरी ऑफ इंडिया’ पर ‘भारत एक खोज’ धारावाहिक बनाया तो उसकी पहली कड़ी की शुरुआत भी ‘भारत माता की जय’ के मायने समझाने से ही की है.

वाकया 1920 के दशक का है. तब तक संयुक्त प्रांत, अब उत्तर प्रदेश, के किसानों की लड़ाई लड़ते-लड़ते नेहरू देश के किसान नेता बन चुके थे. वह पंजाब के ग्रामीण इलाके के दौरे पर गए. एक गांव के किसानों ने भारत माता की जय के नारों के साथ उनका स्वागत किया. जवाब में नेहरूजी ने भी भारत माता की जय के नारे से ही अपना संवाद शुरू किया. उन्होंने लोगों से पूछा कि आप जिसका जयकारा लगा रहे हैं, वह भारत माता कौन है? कुछ लोगों ने कहा कि यह धरती ही उनकी माता है. फिर कुछ लोगों ने कहा कि ये नदी, पहाड़, खेत, खलिहान यही सब मिलकर भारतमाता बनती है. इसे अंग्रेजों के जुल्म से आजाद कराना है.

 तब नेहरूजी ने कहा, ‘‘ये सब बातें जो आपने भारतमाता के बारे में बताईं, वे हैं तो सही, लेकिन ये तो हमेशा से हैं. आखिर धरती को या नदी-पहाड़ों को तो आजादी चाहिए नहीं. आजादी तो इस धरती पर रहने वाले हम इंसानों को चाहिए. अंग्रेजी राज में जुल्म, गरीबी और भुखमरी का सामना तो आखिरकार हम भारत के लोग ही कर रहे हैं. अगर हम न हों तो इस धरती को भारतमाता कौन कहेगा? आखिर को हम जो भी कर रहे हैं, वह अपनी आजादी के लिए ही तो कर रहे हैं. इसलिए जब ‘हम भारतमाता की जय’ बोलते हैं तो हम भारत के 30 करोड़ लोगों की जय बोलते हैं. उन 30 करोड़ लोगों को आजाद कराने की जय बोलते हैं. इस तरह हम सब भारत माता का एक-एक टुकड़ा हैं और हमसे मिलकर ही भारत माता बनती है. तो जब भी हम भारत माता की जय बोलते हैं तो असल में अपनी ही जय बोल रहे होते हैं. और जिस दिन हमारी गरीबी दूर हो जाएगी, हमारे तन पर कपड़ा होगा, हमारे बच्चों को अच्छी से अच्छी तालीम मिलेगी, हम सब खुशहाल होंगे, उस दिन भारत माता की सच्ची जय होगी.’’ 

जो बात नेहरू 1920 के दशक में कह रहे थे, वही बात वह 1960 के दशक में भी दुहराते रहे. भारत की बड़ी नदी घाटी बांध परियोजनाओं के उद्घाटन का काम नेहरू अक्सर वहां मौजूद किसी मजदूर से कराते थे. वे मिट्टी में सने कामगारों के साथ बैठ जाते थे और उन्हें बताते थे कि तुम मिट्टी नहीं ढो रहे हो, अपना मुल्क बना रहे हो. वह उनसे कहते थे कि तुम मजदूर तो हो लेकिन असल में तुम्हीं भारत माता हो.

नेहरू के लिए भारत माता की जय एक बहुत सीधा सा फलसफा था. देश की जनता ही उनकी भारत माता थी. उन्हें राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ आरएसएस की उस काली मां की आवश्यक्ता नहीं पड़ती थी, जिसके हाथ में भगवा ध्वज होता था. आरएसएस इसी सिंहवाहिनी के हाथ में भगवा ध्वज पकड़ाकर उसे अपनी भारत माता कहा करता था और अब भी उनकी भारतमाता की तस्वीर बदली नहीं है. वह भारत माता जितनी हिंदुत्ववादियों के जेहन में जमी हुई है, उसकी उतनी ही परछाई मुसलमानों के अवचेतन में भी है. इसीलिए जैसे ही उनसे भारत माता की जय कहने को कहा जाता है, उनके लिए एक सांप्रदायिक सवाल खड़ा हो जाता है. जबकि गांधी और नेहरू की भारत माता तो हर आदमी खुद ही है, अब ऐसे में वह चाहे तो अपनी जय बोले और चाहे न बोले. दोनों सूरत में वह देशभक्त रहेगा, क्योंकि अपनी जय न बोलने का मतलब यह तो नहीं है कि हम अपने आप से प्यार नहीं करते.

एक तरफ नेहरू अगर आवाम को यह समझा रहे थे कि भारत माता कौन है, तो दूसरी तरफ वे भारत माता के नारे के तौर पर दुरुपयोग होने के अंदेशे से भी खूब वाकिफ थे. इसका भी एक वाकया फ्रेंक मॉरिस ने नेहरू की जीवनी में दर्ज किया है. हुआ यह कि देश नया-नया आजाद हुआ था. तब तक महात्मा गांधी की हत्या नहीं हुई थी, लेकिन विभाजन के बाद देश सांप्रदायिक दंगों और लूटपाट के दौर से गुजर रहा था. ऐसे में देश के प्रधानमंत्री जवाहरलाल इलाहाबाद के पास के ग्रामीण इलाके से गुजर रहे थे. यह वही ग्रामीण भारत था, जहां विदेश में पढ़कर आए जवाहरलाल ने एक किसान नेता के तौर पर अपना राजनैतिक कैरियर शुरू किया था. इन्हीं गांवों की दुर्दशा और किसानों के दर्द ने नेहरू को बैरिस्टर की जगह किसानों का मसीहा बनाया था. लेकिन प्रधानमंत्री बनने के बाद इन्हीं रास्तों पर वे क्या देखते हैं कि गांव वालों का एक जत्था, मुसलमानों से लूटा गया माल लादे चला आ रहा है. जब इन लोगों ने नेहरू को देखा तो वे महात्मा गांधी जिंदाबाद, पंडित नेहरू जिंदाबाद और भारत माता की जय के नारे लगाने लगे. नेहरू ने उस जत्थे को जलती हुई निगाहों से देखा और ललकाराः ‘‘हाथ में अपने ही भाइयों से लूटा हुआ माल लेकर महात्मा गांधी और भारत माता की जय का नारा लगाते हुए तुम्हें शर्म नहीं आती. इन गंदे हाथों से बापू के नाम की मुठ्ठियां भांजते तुम्हारे हाथ नहीं कांपते.’’

वो जमाना और था. लोगों ने गुस्से में आकर लूटपाट तो की थी, लेकिन दिल से वे लुटेरे नहीं थे. और देश का प्रधानमंत्री तब हर दिल अजीज नेता था. उसके पास नैतिक बल था. लोगों ने लूट का माल रख दिया. अपने किये पर माफी मांगी. नेहरू ने भी उन्हें समझाया कि इस गाढ़े वक्त में भारत माता के लिए क्या करना है और क्या नहीं. समय आगे बढ़ गया.

लेकिन प्रवृत्तियां नहीं बदलीं. मार्च 2016 में ही दिल्ली में एक लड़के को पांच लड़कों ने इसलिए बुरी तरह पीटा,क्योंकि वह उनके कहने पर भारत माता की जय नहीं बोल रहा था. सन 1947 और 2016 में फर्क यह था कि तब भारत माता की आजादी के लिए 10 साल से ज्यादा का वक्त जेल में बिताने वाला प्रधानमंत्री भारत माता के नाम पर गुंडागर्दी को अपने हाथ से रोक सकता था, जबकि 2016 का कथित राष्ट्रवादी नेतृत्व इस तरह की गुंडागर्दी के बिना राष्ट्रवाद की कल्पना नहीं कर पा रहा.

लेकिन देर-सवेर इस प्रवृत्ति के लोगों को भी असली राष्ट्रवाद या असल में कहें तो राष्ट्रसेवा को समझना होगा. क्योंकि जब जिम्मेदारियों आएंगी तो उनसे कोई नहीं भाग पाएगा. जिम्मेदारी के उन क्षणो में राष्ट्र को समझने के लिए उन लोगों नेहरू की दिल छूने वाली ये बातें रास्ता दिखाएंगी.

जरा 15 अगस्त 1948 का लालकिले से दिया भाषण का एक हिस्सा देखिए:

‘‘क्या चीज है हिंदुस्तान! हिंदुस्तान एक बहुत जबरदस्त चीज है जो कि हजारों बरस पुरानी है. लेकिन आखिर में हिंदुस्तान आज क्या है, सिवाय इसके कि जो आप हैं और मैं हूं और जो लाखों और करोड़ आदमी हैं, जो इस मुल्क में बसते हैं. अगर हम भले हैं, हम मजबूत हैं, तो हिंदुस्तान मजबूत है और अगर हम कमजोर हैं तो हिंदुस्तान कमजोर है. अगर हमारे दिल में ताकत है और हिम्मत है और कूवत है तो वह हिंदुस्तान की ताकत हो जाती है. अगर हममें फूट है, लड़ाई-कमजोरी है, तो हिंदुस्तान कमजोर हो जाता है. हिंदुस्तान हमसे कोई अलग चीज नहीं है. हम हिंदुस्तान के एक छोटे टुकड़े हैं. हम इसकी औलाद हैं और इसी के साथ याद रखिए कि हम जो आज सोचते हैं और जो कार्रवाई करते हैं, उससे कल का हिंदुस्तान बनता है. बड़ी जिम्मेदारी आप पर, हम पर और हिंदुस्तान के रहने वालों पर है. जय हिंद, हम पुकारते हैं और भारत माता की जय बोलते हैं, लेकिन जय हिंद तो तब हो जब हम सही रास्ते पर चलें, सही खिदमत करें और हिंदुस्तान में ऐसी बात न करें, जिनसे इसकी शान कम हो या वह कमजोर हो.’’

आजाद भारत के प्रधानमंत्री की हैसियत से 15 अगस्त 1948 को नेहरू पहली बार लालकिले की प्राचीर पर खड़े थे,क्योंकि 15 अगस्त 1947 वाला भाषण तो रेडियो प्रसारण था. भारत की भव्य विरासत को जमुना तट पर अपने भीतर समाए लाल किले से नेहरू अपने लोगों को आगाह करते हैं. इस गौर से पढ़िये, क्योंकि यह वार्निंग आज भी लागू है. नेहरू कहते हैं:

 ‘‘हम हिंदुस्तान को भूल गए, अपने-अपने फिरके की, अपने अपने सूबे की बातें सोचने लगे. हम खुदगर्जी में पड़ गए और अगर हम खुदगर्जी में और नफरत में और आपसी लड़ाई-झगड़े में पड़े तो मुल्क गिरता है.    

…मालूम है आपको इस हिंदुस्तान की हजारों बरस की तारीख में और इतिहास में क्या चीज उभरती है! वह बुनियादी चीज भारत की सभ्यता है. और वह है बर्दाश्त करना, मजहबी लड़ाइयां न लड़ना. वह यह है कि जो कोई आए, उससे प्रेम का बर्ताव करना, उसको अपनाना. तो ऐसे मौके पर जब कि हम आजाद हुए हैं, क्या हम अपने देश का हजारों बरस का सबक भूल जाएं! और अगर भूले तो फिर हिंदुस्तान बड़ा मुल्क नहीं रहेगा, छोटा रहेगा.’’

चाल साल बाद जब देश में पहला आम चुनाव हो चुका और नेहरू निर्वाचित प्रधानमंत्री बन गए, तब 15 अगस्त 1952 को वह फिर से इस मुल्क को उसके मायने समझाते हैं. भाषण के इस हिस्से को गौर से पढ़ियेगा और फिर अटल बिहारी वाजपेयी की भारत पर लिखी कविता ‘भारत एक राष्ट्रपुरुष है’ पढ़ियेगा. आपको पता चलेगा कि महात्मा गांधी के परिवार और संघ परिवार की राष्ट्र की कल्पना में बुनियादी फर्क क्या है. पहले इस हिस्से को पढ़ लीजिए फिर बताएंगे कि बुनियादी फर्क क्या है-

‘‘आखिर में यह मुल्क क्या है? यह हिमालय पहाड़ नहीं है, न कन्याकुमारी है. यह मुल्क इसके रहने वाले छत्तीस करोड़ आदमी हैं, मर्द, औरत और बच्चे, और आखिर में इस मुल्क की भलाई-बुराई उन छत्तीस करोड़ लोगों की भलाई बुराई है. और आखिर में मुल्क है, हमारे छोटी उम्र के लड़के-लड़कियां और बच्चे. क्योंकि हमारा, आपका और हमारी उम्र के लोगों का जमाना तो गुजरता है.’’

शायद आपने गौर किया हो कि यहां नेहरू जोर देकर कह रहे हैं कि हिमालय और कन्याकुमारी भारत माता नहीं हैं,यहां की अवाम भारत माता है और बच्चों का भविष्य ही भारत का भविष्य है. दूसरी तरफ अटल बिहारी वाजपेयी की कविता ‘भारत एक राष्ट्रपुरुष है’ लंबे समय तक भाजपा के 11 अशोक रोड मुख्यालय में प्रमुखता से टंगी रही. (अब पार्टी का मुख्यालय दीनदयाल उपाध्याय मार्ग पर बन गया है.) इस कविता में हिमालय से कन्याकुमारी तक और भारत के तमाम भूभाग को ही राष्ट्रपुरुष कहा गया है. इस कविता में भारत की जनता का जिक्र कहीं नहीं है. यानी नेहरू के लिए राष्ट्र का मतलब जीते जागते इंसान हैं, जबकि वाजपेयी के लिए राष्ट्र का मतलब एक भूभाग है. इसीलिए नेहरू को एक भी हिंदुस्तानी को पहुंचने वाली तकलीफ भारत माता के आंसुओं की शक्ल में दिखती है,जबकि संघ परिवार के राष्ट्रवाद में भारत की आबादी के एक बड़े हिस्से की तो गिनती ही नहीं की जाती.

भारतमाता की सेवा को लेकर नेहरू एक और भावुक अपील करते हैं. आजादी की लंबी लड़ाई और गांधी जी के विदा होने के बाद नेहरू जान रहे हैं कि एक पीढ़ी का वक्त बीत गया है. नेहरू देख रहे हैं कि तमाम ओछे मुद्दे निपटाने में वे और उनके साथी लगे हुए हैं. उन्हें धर्म, भाषा, क्षेत्र, जाति, रियासत और न जाने कितने तरह के मेरा-तेरा के सवाल देखने पड़ रहे थे. नेहरू जान रहे थे कि इन वाहियात सवालों में वह वक्त बीता जा रहा है, जो नए जन्मे राष्ट्र के निर्माण में खर्च होना चाहिए. 15 अगस्त 1949 को लाल किले से नेहरू समझाइश देते हैं:

‘‘हमारे और आपके मसले तो हल हो ही जाएंगे, और किसी तरह नहीं, तो इस तरह से कि हमारा वक्त पूरा होगा,लेकिन असली चीज जिसको हमें याद रखना है, वह है भारत. भारत एक चीज है जो अमर है, जो कभी खत्म नहीं होती. तो इस जमाने में जो हम और आप पैदा हुए हैं, इसके हम क्या कारनामे दिखाएंगे, भारत की खिदमत के और भारत को बढ़ाने के? जाइए, यह सवाल अपने से पूछिए और उसी के मुताबिक काम कीजिए. – जय हिंद’’

नेहरू जीवन भर मुल्क को यही समझाते रहे कि राष्ट्र के असली मायने क्या हैं. वे लालकिले की प्राचीर पर खड़े होकर न तो छाती ठोकते थे और न छाती पीटते थे. उन्होंने शायद ही लाल किले की प्रचीर से कभी कोई बड़ी घोषणा की हो, जैसा कि उनके और लाल बहादुर शास्त्री के बाद तकरीबन हर प्रधानमंत्री करता रहा. नेहरू जी तो वहां खड़े होकर परिवार के मुखिया की हैसियत से अपने मुल्क से संवाद करते थे, समझाइश देते थे और कई बार तो बाकायदा डांट डपट कर देते थे. 15 साल प्रधानमंत्री पद पर रहने के बाद 15 अगस्त 1962 को लालकिले से नेहरू ने कहा कि भारत माता को राखी बांधिये:

‘‘आज रक्षाबंधन है और हम एक-दूसरे को राखी बांधते हैं. राखी किस चीज की निशानी है. राखी एक वफादारी की,एक-दूसरे की हिफाजत करने की निशानी है. भाई बहन की रक्षा करे. आज आप राखी अपने दिल में भारत माता को बांधिए. इसके साथ फिर अपनी प्रतिज्ञा दोहराइए कि आप भारत की सेवा करेंगे. भारत की रक्षा करेंगे, चाहे कुछ भी हो.

…प्रतिज्ञा करें, इकरार करें, कि हम चाहे जो कुछ हो, ऐसी कोई बात नहीं करेंगे, जिससे भारत के माथे पर धब्बा लगे. हम भारत की सेवा करेंगे.

भारत की सेवा करने के माने क्या हैं? भारत कोई एक तस्वीर नहीं है. हमारे दिल में तस्वीर तो है, भारत की सेवा करना, भारत के रहने वालों की सेवा करना, जनता की सेवा करना, जनता को उभारना. बहुत दिन से दबी हुई जनता उभर रही है. उसकी मदद करना है. हमें उसे इस तरह से बढ़ाना है. तो हम इसका इकरार करें और इकरार करके इसको याद रखें और इस काम को सच्चे दिल से करने की कोशिश करें, हमारा पेशा या काम चाहे जो कुछ हो, सभी के लिए थोड़ा सा एक अलग काम भी है. वह भारत की सेवा का है और भारत की सेवा के माने हैं, अपने पड़ोसियों की सेवा, अपने मुल्क वालों की सेवा. सभी को एक समझना है, चाहे वह किसी भी मजहब का हो. अगर हिंदुस्तानी हैं तो वे हमारे भाई हैं. यों तो हमारे बाहर के भाई भी हो सकते हैं, लेकिन खास बात यह है कि वे हमारी बिरादरी के हैं. तो मैं चाहता हूं कि आप ऐसा करें और छोटे झगड़ों में, छोटी बहसों में न पड़ें. रायें अलग-अलग होती हैं. यह ठीक है,राय अलग-अलग होनी चाहिए. जिंदा कौम हैं. हम सभी के दिमाग बांध नहीं देते कि वे एक ही तरह से सोचें. एक ही तरह से काम करें. लेकिन बाज बातों में अलग राय की गुंजाइश नहीं है. हिंदुस्तान की खिदमत में अलग राय की गुंजाइश नहीं है. हिंदुस्तान की रक्षा में, हिफाजत में अलग राय की गुंजाइश नहीं है. वह हर एक का फर्ज है, चाहे जो कुछ हो. तो इसका आज हम पक्का इरादा कर लें. रोज कुछ याद रखें तो हमारे थोड़े से काम से, थोड़ी-थोड़ी सेवा से एक पहाड़ खड़ा हो जाएगा, जो भारत को बढ़ाएगा और इसकी हिफाजत करेगा. – जय हिंद!’’

तो इस तरह नेहरू पूरी जिंदगी भारत माता की जय के मायने समझाते रहे. लेकिन यह तो राष्ट्रवाद का पहला सबक था. राष्ट्रवाद के इन दिनों दो और पॉपुलर रूप हैं- राष्ट्रगान और राष्ट्रध्वज. क्या इन दोनों को भी हम सही पहचान रहे हैं, या फिर चाचा नेहरू की नसीहत की जरूरत है. क्योंकि यह दोनों प्रतीक भारत की संविधान सभा में उन्होंने ही हमें दिए थे.

पुस्तक: नेहरू- मिथक और सत्य

लेखक: पीयूष बबेले

प्रकाशक: संवाद प्रकाशन मेरठ

मूल्य: 300 रुपये