अख़बारनामा: जेएनयू पर कार्रवाई का यह डरावना पक्ष सिर्फ़ टेलीग्राफ़ में


टेलीग्राफ की आज की लीड का शीर्षक है- “डरावनी संक्रांति”.. उपशीर्षक, “हमारी मातृभूमि के ‘राष्ट्रद्रोही’ विलेन और देशभक्त ‘हीरो’” है


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संजय कुमार सिंह

वैसे तो आज ज्यादातर अखबारों में जेएनयू मामले में तीन साल बाद और आम चुनाव से पहले दायर राष्ट्रद्रोह के मामले की चर्चा है और सबकी प्रस्तुति उनके अपने अंदाज में है। इस बारे में मैं लिखता रहा हूं। अंग्रेजी दैनिक द टेलीग्राफ में इस खबर को सबसे गंभीरता से पेश किया है और बताया है कि कैसे सरकार का काम करने का तरीका डरावना है। टेलीग्राफ की आज की लीड का शीर्षक है- “डरावनी संक्रांति”.. उपशीर्षक, “हमारी मातृभूमि के ‘राष्ट्रद्रोही’ विलेन और देशभक्त ‘हीरो’” है । अखबार ने जेएनयू और बुलंदशहर मामले में एक साथ हुई कार्रवाई को मिलाकर खबर बनाई है और उपरोक्त शीर्षक लगाया है। जेएनयू मामले में चार्जशीट की खबर फिरोज एल विनसेन्ट की है। इस मुख्य खबर का शीर्षक है, “जेएनयू ‘डायवर्सन’, टाइम्ड टू पॉल्स” इसे हिन्दी में मोटे तौर पर “जेएनयू का विषयांतर, चुनाव के समय पर” के रूप में समझ सकते हैं।

अखबार ने इसके साथ बुलंदशहर में लगे पोस्टर की तस्वीर छापी है और पूरे मामले का जिक्र किया है (खबर का अनुवाद आगे है) और बताया है कि गाय मारने के आरोपी के खिलाफ तो एनएसए लगाया गया है पर पुलिस वाले की हत्या के लिए भीड़ को उकसाने के आरोपियों पर नहीं। वैसे तो यह खबर हिन्दी अखबारों और खासकर उत्तर प्रदेश के अखबारों में पहले पन्ने पर होनी चाहिए लेकिन इसे जेएनयू मामले में राष्ट्रद्रोह की चार्जशीट तीन साल बाद दायर किए जाने की खबर से जोड़कर अखबार ने वाकई डरावनी तस्वीर पेश की है। वैसे तो यह खबर इंडियन एक्सप्रेस में भी पहले पन्ने पर है लेकिन सिंगल कॉलम में और वहां जेएनयू वाली खबर पहले पन्ने पर नहीं है। इंडियन एक्सप्रेस ने इसे शहर की खबरों के पन्ने पर छापा है। इसलिए आज चर्चा टेलीग्राफ की खबर की जो उसने जेएनयू और गाय मारने के आरोपियों पर एनएसए लगाने की खबर के साथ लीड के रूप में छापा है।

हिन्दुस्तान टाइम्स में जेएनयू वाली खबर पहले पन्ने से पहले चार कॉलम के अधपन्ने पर तीन कॉलम में लीड है और बुलंदशहर में गाय मारने वालों पर एनएसए लगाए जाने की खबर पहले पन्ने पर तीन कॉलम में है और इसमें पोस्टर की भी चर्चा है। टाइम्स ऑफ इंडिया में दोनों खबरें पहले पन्ने पर हैं। दो कॉलम में प्रकाशित एक खबर का शीर्षक है, “चार्जशीट के अनुसार, जेएनयू में 2016 का विरोध साजिश का भाग था”। दूसरी खबर इसके साथ ही, एक कॉलम में है और शीर्षक है, “उत्तर प्रदेश में गो हत्या के लिए 3 युवाओं पर सख्त एनएसए लगाया गया”।

टेलीग्राफ की लीड के बारे में आज Ravish Kumar ने लिखा है, “सजग पाठकों और पत्रकारिता पढ़ रहे छात्रों के लिए है। टेलिग्राफ़ के कवर की तस्वीरों का संग्रह करते रहिए। फिर इसका आलोचनात्मक और तुलनात्मक विश्लेषण भी करते रहिए। आप जो भी अख़बार पढ़ते हैं, हिन्दी या अंग्रेज़ी का, उसके सामने टेलिग्राफ़ की पहली ख़बर को रख कर देखें। काफ़ी कुछ सीखने को मिलेगा। macabre का मतलब होता है डरावना या भयंकर। जिसका संबंध मृत्यु से हो। वैसा डरावना।” रवीश की सलाह से मैं शत प्रतिशत सहमत हूं और मैं टेलीग्राफ का पुराना पाठक हूं। हिन्दी के पाठकों का काम आसान करने के लिए टेलीग्राफ की खबर के संबंधित हिस्से का अनुवाद पेश है।

पोस्टर पर साफ लिखा है और एनएसए का पक्षपात उतना ही साफ है

लखनऊ डेटलाइन से पीयूष श्रीवास्तव की खबर इस प्रकार है – गाय मारने के आरोपी तीन लोगों के खिलाफ राष्ट्रीय सुरक्षा कानून के तहत मामला दर्ज किया गया है ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि उन्हें जमानत न मिले। दूसरी ओर, एक पुलिस अधिकारी की हत्या करने वाले गौरक्षकों की भीड़ को उकसाने का एक आरोपी पोस्टर पर छाया हुआ है और मकरसंक्राति तथा गणतंत्र दिवस की बधाई दे रहा है। उत्तर प्रदेश की प्रयोगशाला में जहां आग लगाने और प्रतिशोध के लिए गायों को आगे कर दिया गया है वहां बुलंदशहर में ये दो बड़ी घटनाएं हैं जो एक-दूसरे से जुड़ी हुई हैं।

इंस्पेक्टर सुबोध कुमार सिंह और एक युवक को गए महीने मार डालने वाली भीड़ को उकसाने के आरोपी योगेश राज की तस्वीर वाले पोस्टर पर संघ परिवार की इकाइयों – विश्व हिन्दू परिषद और बजरंग दल का नाम प्रमुखता से लिखा है। पोस्टर में योगेश का परिचय ‘जिला संयोजक’ के रूप में दिया गया है। इस पोस्टर में चार और लोगों की छोटी तस्वीरें हैं – जो सतीश लोधी, आशीष चौहान, सत्येन्द्र राजपूत और विशाल त्यागी की हैं। ये सभी खेतों में मरी हुई गाय और उसके अवशेष मिलने के बाद विरोध करने वाली भीड़ को उकसाने के आरोप में न्यायिक हिरासत में हैं।

इस होर्डिंग के ऑर्डर प्रवीण भाटी ने दिए थे जो बजरंग दल के सह संयोजक हैं और इसमें इनकी तस्वीर भी प्रमुखता से लगी है। इस बारे में भाटी ने कानून के जाने-माने सिद्धांत का उल्लेख करते हुए कहा, ‘वे आरोपी है, दोषी नहीं’ पर इसी सिद्धांत का लाभ आरोपियों पर पिल पड़ने वाले गो रक्षकों ने शायद ही कभी किसी को दिया हो। भाटी ने आगे कहा, ‘जब तक अदालत उन्हें अपराधी न घोषित कर दे, उन्हें अपने लोकप्रिय नेता के रूप में प्रस्तुत करना अपराध नहीं है। हम जानते हैं कि वे निर्दोष हैं और हम उनका समर्थन करते हैं।’

अपने नेता को लोकप्रिय बनाने की इस कार्रवाई के साथ यह खबर भी है कि बरामद मरी हुई गाय मारने के आरोप में पकड़े गए तीन लोगों पर एनएसए की धाराएं लगाई गई हैं ताकि उन्हें 12 महीने तक जमानत नहीं मिले। बुलंदशहर के जिलाधिकारी अनुज कुमार झा ने द टेलीग्राफ से कहा, ‘अजहर खान, नदीम खान और महबूब अली पर एनएसए के तहत आरोप लगाए गए हैं। अनुज झा ने आगे कहा, यह निर्णय आज लिया गया ताकि उन्हें जनहित में जेल में रखा जा सके।’ योगेश या हत्या के अन्य अभियुक्तों पर एनएसए नहीं लगाया गया है।

मैं जो अखबार देखता हूं उनमें दैनिक भास्कर ने इस खबर को “राजद्रोहनीति” शीर्षक दिया है और कई सारी खबरें इसके साथ छापी है। हालांकि बुलंदशहर वाली खबर इसमें नहीं है। और ना पहले पन्ने पर है। अखबार ने जेएनयू वाली खबर के साथ एक खबर में कहा है कि आरटीआई में जेएनयू ने कहा था कि देश विरोधी नारों का कोई रिकॉर्ड नहीं हैं। नवोदय टाइम्स ने जेएनयू वाली खबर को, ‘टुकड़े-टुकड़े गैंग’ के खिलाफ आरोप पत्र शीर्षक से लीड बनाकर छापा है लेकिन बुलंदशहर वाली खबर यहां पहले पन्ने पर नहीं है। अमर उजाला में “जेएनयू देश विरोधी नारेबाजी में तीन साल बाद कन्हैया-उमर समेत 10 पर चार्जशीट” शीर्षक के साथ यह खबर लीड है। बुलंदशहर वाली खबर भी पहले पन्ने पर, “स्याना हिंसा : जेल भेजे गए गोकशी के तीन आरोपियों पर लगाया रासुका” शीर्षक से लीड है और उपशीर्षक है, “आरोपियों के जेल से छूटने के बाद सुबूतों से छेड़छाड़ करने की आशंका है।”

नवभारत टाइम्स में चार्जशीट दायर की जाने वाली खबर तीन कॉलम में लीड है और गोकशी पर तीन के खिलाफ एनएसए आठ लाइन की खबर है। राजस्थान पत्रिका में चार्जशीट वाली खबर चार कॉलम में है और एनएसए लागू किए जाने की खबर एक कॉलम में है, टॉप पर। दैनिक जागरण में यह रूटीन खबर की तरह है। शीर्षक है, “जेएनयू के कन्हैया, अनिर्बान, उमर के खिलाफ चार्जशीट” – देशद्रोह प्रकरण। इससे नहीं लगता कि मामला तीन साल पुराना है और चार्ज शीट दायर करने में असामान्य देरी की गई है। शीर्षक के साथ देशद्रोह प्रकरण ऐसे लिखा है जैसे कल का ही मामला हो और सबको मालूम हो और याद भी। बुलंदशहर वाली खबर यहां पहले पन्ने पर तो नहीं है।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं। जनसत्ता में रहते हुए लंबे समय तक सबकी ख़बर लेते रहे और सबको ख़बर देते रहे। )