PM की रैलियों के बावजूद अखबारों में छाया कांग्रेस का मेनिफेस्‍टो! किसने क्‍या देखा और छापा?

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काॅलम Published On :


संजय कुमार सिंह

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी कल बिहार और उड़ीशा के चुनावी दौरे पर थे। गया, जमुई और भवानीपटना में कम से कम तीन रैलियां तो की हीं पर खबर आज सिर्फ अमर उजाला में पहले पन्ने पर है। आज लगभग सभी अखबारों में कांग्रेस के घोषणापत्र की खबर प्रमुखता से है। और घोषणा पत्र की सबसे खास बात है देशद्रोह को खत्म करने की बात। हिन्दी अखबारों में दैनिक भास्कर और नवोदय टाइम्स ने इसे प्रमुखता दी है। भास्कर ने इसके बारे में मूल खबर में ही अलग से लिखा है जबकि नवोदय टाइम्स ने इसे अलग डबल कॉलम की खबर के रूप में छापा है। कई अखबारों ने घोषणा पत्र पर प्रतिक्रिया के रूप में इसी हिस्से की प्रतिक्रिया को प्रमुखता से छापा है। कुल मिलाकर, घोषणापत्र की खास बातों में देशद्रोह कानून खत्म किए जाने का मुद्दा महत्वपूर्ण है।

आगे अखबारों की प्रस्तुति के साथ इसपर मेरी टिप्पणी भी है। यहां मैं यह स्पष्ट कर दूं कि अखबार का काम यही है कि नेता जो कहे उसे उसकी प्रमुखता के लिहाज से छाप दिया जाए और इसमें मूर्खतापूर्ण बातों को प्रमुखता से छापना भी गलत नहीं है। पहले के समय में हम मानकर चलते थे कि पाठक समझदार है, हमारा काम उसे खबरें, सूचनाएं, विचार देना है – राय वह खुद बनाएगा। अब अखबारों ने आपकी राय बनाने और बदलने का ठेका लिया हुआ है और सरकार की सेवा में बिछे हुए हैं। इसलिए खबरों पर टीका-टिप्पणी जरूरी है। आप देखेंगे कि नेता दूसरों को तो कह रहे हैं कि बिना सिर-पैर की बातें कर रहे हैं और खुद वही कर रहे हैं या कर चुके हैं। ऐसे में अखबारों से अपेक्षाएं बदली हैं।

जहां तक कांग्रेस के चुनाव घोषणा पत्र की बात है, यह सभी अखबारों में लीड है – कम नहीं है। कुछेक अखबारों ने इसे अच्छे से या कहिए कि अलग तरीके से पेश किया है। पहले उनकी चर्चा फिर दूसरे अखबारों की। अंग्रेजी दैनिक द टेलीग्राफ की प्रस्तुति और डेस्क काम काम सबसे अच्छा है। अखबार ने इस खबर का शीर्षक लगाया है, “इरादा : भारत को पहले जैसा बनाना”। उपशीर्षक है, चुनाव घोषणा पत्रों को संदर्भों के साथ देखा जाना चाहिए। पर कांग्रेस का यह दस्तावेज अप्रत्यक्ष रूप से उन घटनाओं की याद दिलाता है जिसने हाल के वर्षों में हमें डराए हैं। अखबार ने घोषणा पत्र की खास बातों के साथ उसका संदर्भ बताया है और लिखा है संदर्भ उसकी ओर से जोड़े गए हैं। फ्लैशबैक के तहत कुछ पुराने चेहरों और घटनाओं की तस्वीरें हैं। अखबार के अनुसार घोषणा पत्र अप्रत्यक्ष रूप से इनकी याद दिलाता है। इनमें मोहम्मज अखलाक, ऊना की पिटाई, पद्मावत में दीपिका पाडुकोण, नीरव मोदी और रफाल विमान शामिल है।

दैनिक भास्कर ने इसे, “राहुल का राजपत्र” मुख्य शीर्षक दिया है और प्रमुखता से बताया है कि इसमें 10 बड़े वादे ऐसे हैं जो चार चुनावों से दोहराए जा रहे हैं। राजद्रोह कानून के बारे में अखबार ने लिखा है कि इसके दुरुपयोग के आरोप कांग्रेस – भाजपा दोनों पर लगते रहे हैं। अखबार ने यह भी बताया है कि 2014 से 2016 तक देश में 179 लोगों को देशद्रोह के आरोप में गिरफ्तार किया गया लेकिन सिर्फ दो लोगों पर दोष साबित हो पाया। अखबार के अनुसार कांग्रेस के चुनावी वायदे आबादी के चार बड़े वर्गों के लिए हैं और उनकी वजह क्या है। दोनों अखबारों ने चूंकि बजट का विश्लेषण खुद ही कर दिया है इसलिए विपक्ष की प्रतिक्रिया इनमें पहले पन्ने पर नहीं है।

हिन्दुस्तान टाइम्स ने पहले के घोषणा पत्रों की ही तरह इसे भी पेश किया है और पहले की ही तरह भाजपा की प्रतिक्रिया भी साथ ही लगा दी है। बजट के खास अंश सामान्य ढंग से पेश किए हैं और शीर्षक है, “रोजगार, कल्याण, सद्भाव कांग्रेस के प्रमुख चुनावी वादे हैं”। उपशीर्षक है, “पार्टी ने कहा कि घोषणाएं पूरी करने योग्य हैं और घोषणापत्र को लोगों की सलाह से तैयार किया गया है”। इसके साथ ही छपी विपक्ष की प्रतिक्रिया का शीर्षक है, “आंतरिक सुरक्षा की योजना खतरनाक है, योजनाएं लागू करने योग्य नहीं है”। असल में कांग्रेस ने कहा है कि राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार को संसद के प्रति जवाबदेह बनाया जाएगा। भाजपा का कहना है कि यह खतरनाक है और बाकी योजनाएं लागू करने लायक नहीं हैं।

टाइम्स ऑफ इंडिया भी वैसा ही है। पहले जैसी प्रस्तुति और पहले जैसी प्रतिक्रिया। शीर्षक है, “छद्म राष्ट्रवाद से मुकाबले के लिए कांग्रेस ने संपदा को कल्याण के साथ रखा”। भाजपा की प्रतिक्रिया वही है जो हिन्दुस्तान टाइम्स में। यहां एक कॉलम में सिमट गई है। इसमें अमित शाह की प्रतिक्रिया भी है, “कांग्रेस सशस्त्र सेना का अपमान कर रही है”।

इंडियन एक्सप्रेस में भी खबर पहले की ही तरह है। शीर्षक है, “वोट के लिए कांग्रेस की : तैयारी, सुरक्षा के उपाय ज्यादा, सरकार की सख्ती कम”। इसके साथ ही भाजपा की प्रतिक्रिया है और इसमें अरुण जेटली की प्रतिक्रिया का जो अंश शीर्षक बनाया गया है वह इस प्रकार है, “टुकड़े गैंग ने राष्ट्रीय सुरक्षा से संबंधित मुद्दे तैयार किए”। घोषणा पत्र पर भाजपा की प्रतिक्रिया बताती है कि इस बार मामला कुछ अलग है। आप जानते हैं कि टुकड़े-टुकड़े गैंग तीन साल पुराना हो चुका। आरोप फर्जी और वीडियो डॉक्टर्ड होने के आरोप हैं। इसीलिए, चार्जशीट वर्षों बाद दाखिल हुई। इसे इस तथ्य से जोड़कर देखिए मुख्य आरोपी कन्हैया गिरिराज सिंह के खिलाफ चुनाव लड़ रहा है और अदालत में मामला आगे नहीं बढ़ रहा है क्योंकि राजद्रोह का मुकदमा चलाने के लिए आवश्यक सरकारी अनुमति लिए बगैर पुलिस ने चार्जशीट दायर की है। इसलिए मामला अदालत में है। इस मामले में पिछली तारीख पर अदालत ने दिल्ली पुलिस के डीसीपी को समन किया था। उस दिन क्या हुआ यह खबर मुझे अखबारों में नहीं दिखी।

नवोदय टाइम्स में घोषणापत्र और उसपर प्रतिक्रिया तो सामान्य ढंग से है ही। देशद्रोह की धारा खत्म पर घिरी कांग्रेस शीर्षक से एक डबल कॉलम खबर है। हालांकि यह खबर घोषणा पत्र की बात ही बताती है कैसे घिरी या विपक्ष ने घेरा इसलिए घिर गई जैसा कुछ नहीं बताया है और ना मुझे समझ में आया। जैसा कि दैनिक भास्कर ने लिखा है, दो साल में 179 लोगों को देशद्रोह के आरोप में गिरफ्तार किया गया लेकिन सिर्फ दो लोगों पर दोष साबित हो पाया। और अभी अपील की संभावना बाकी है तो मुमकिन है ये दो भी अंततः बरी हो जाएं। ऐसे में और इसके दुरुरपयोग के मामले जानते हुए इसे खत्म करने की बात करके कांग्रेस कैसे घिर सकती है? और घिर ही जाए तो इसकी परवाह किसे होगी?

हिन्दुस्तान में मुख्य खबर तो सामान्य है पर विपक्ष की प्रतिक्रिया अरुण जेटली की है जिसका शीर्षक है, बिना सोचे-समझे वादे किए जा रहे हैं। इसमें अन्य बातों के साथ हाइलाइट किया हुआ हिस्सा है, कांग्रेस घोषणा पत्र में कह रही है कि आईपीसी से धारा 124-ए हटा दिया जाएगा, देशद्रोह करना अब अपराध नहीं है। जो पार्टी ऐसी घोषणा करती है वो एक भी वोट की हकदार नहीं है। जेटली साब बड़े वकील हैं, कानून की समझ उन्हें मुझसे बहुत ज्यादा होगी पर जहां तक मैं समझता हूं इस कानून को हटाने की बात इसलिए हो रही है कि इसका दुरुपयोग किया जाता है। जो मामले इसके तहत दर्ज कराए जाते हैं वो देशद्रोह के नहीं, सरकार विरोध के होते हैं और सरकार का विरोध लोकतंत्र में जायज है। सरकारें अपने विरोध को देशद्रोह बना देती हैं और अक्सर अंततः साबित नहीं कर पाती हैं। ।

नवभारत टाइम्स में इस खबर का शीर्षक है, “वादों का अंबार, राष्ट्रद्रोह पर सवाल”। उपशीर्षक है, “कांग्रेस ने घोषणापत्र में कानून के दुरुपयोग का हवाला दिया तो बीजेपी बोली, इरादे खतरनाक हैं”। मुझे लगता है कि इरादे भाजपा के लिए खतरनाक हो सकते हैं। भाजपा के इरादे भी खतरनाक दिख रहे हैं पर आम नागरिक के लिए इसमें क्या खतरनाक है। हमें राष्ट्रद्रोह जैसा कुछ करना नहीं है और जो करना है वह राष्ट्रद्रोह नहीं माना जाए तो हमारे लिए क्या खतरनाक। आम आदमी के लिए तो यह अच्छा ही है। विरोधियों को जबरन परेशान करने की नीयत हो तो वाकई इरादा खतरनाक है। मुझे लगता है भाजपा जबरन विरोध कर रही है और अखबारों ने जस का तस छाप दिया है। वैसे ही जैसे पिछले चुनाव के समय “हर किसी को 15 लाख मिलेगा” जैसी घोषणाएं छाप दी थीं।

अमर उजाला में खबर और अरुण जेटली की प्रतिक्रिया बहुत सामान्य है। यहां प्रधानमंत्री की रैली की खबर पहले पन्ने पर है। पटना डेटलाइन से अमर उजाला ब्यूरो की इस खबर का शीर्षक है, “भारत को आंख दिखाने वालों से सख्ती से निपटेंगे : मोदी”। कहा, “विपक्षी नेता पाकिस्तान के प्रवक्ता की तरह काम कर रहे हैं”। इसके साथ कुछ और बातें उन्होंने कल बिहार और उड़ीशा की रैली में कही। इनमें से काफी कुछ अखबार में पहले पन्ने पर है जो अन्य अखबारों के पहले पन्ने पर नहीं दिखी।

दैनिक जागरण में भी यह खबर पहले पन्ने पर जेटली की प्रतिक्रिया के साथ सामान्य ढंग से है। विज्ञापन के कारण पहले पन्ने पर इन दो खबरों के साथ एक तीसरी खबर ही है। इसका शीर्षक है, निजी क्षेत्र के कर्मियों को भी मिलेगी अच्छी पेंशन। यह खबर कांग्रेस के घोषणा पत्र से नहीं है ना भाजपा ने ऐसा कोई एलान किया है। यह खबर सुप्रीम कोर्ट के फैसले की है। इसके मुताबिक, अब कर्मचारियों को आखिरी वेतन के 30 से 50 फीसद के बाराबर पेंशन मिलने का रास्ता साफ हो गया है।

राजस्थान पत्रिका में घोषणा पत्र की खबर तो ठीक है पर विपक्ष की प्रतिक्रिया ढूंढ़े नहीं मिल रही थी। शीर्षक है, “युवाओं-किसानों को रिझाया, भाजपा के राष्ट्रवाद को चुनौती देने की कोशिश”। तमाम सिंगल न्यूज की खबरें पढ़ गया नहीं मिल रही थी पर छठी इंद्री कह रही थी कि इस डिसप्ले और शीर्षक के साथ विपक्ष की प्रतिक्रिया के बिना खबर पूरी होगी नहीं। आखिर में मिल गई। मैंने आज यही दिखाने के लिए पत्रिका का पहला पन्ना चुना है। खबर के साथ विपक्ष की प्रतिक्रिया को लाल रंग से घेर दिया है ताकि आपको ढूंढ़ने में परेशानी न हो। भाजपा की प्रतिक्रिया का शीर्षक है, देश तोड़ने के वाद। खबर है, क्या कांग्रेस के लिए राजद्रोह जुर्म नहीं है।