प्रपंचतंत्र : बाढ़, बटवृक्ष और वाटरप्रूफ मतदाता

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अनिल यादव 

(मैंने एक वार्ता सुनी थी

जब बहुत बाढ़ आती है तो सारे पेड़-पौधे पानी में बह जाते हैं

एक वटवृक्ष अकेले बच जाता है।

तो सांप भी उस वृक्ष पर चढ़ जाता है

नेवला भी चढ़ जाता है

बिल्ली भी चढ़ जाती है

कुत्ता भी चढ़ जाता है

चीता भी चढ़ जाता है

 शेर भी चढ़ जाता है

क्योंकी नीचे पानी का डर है

इसलिए सब एक ही वृक्ष पर इकट्ठा होते हैं।

यह मोदी जी की बाढ़ आई हुई है

इसके डर से सांपनेवलाकुत्तीकुत्ताबिल्ली सब इकट्ठा होकर चुनाव लड़ने का काम कर रहे हैं)

 

वियोगी होना पड़ेगा, वैंलेटाइन-डे पर प्रणयरत प्रेमी जोड़ों की कुटाई से उपजे दुख को पालना पड़ेगा, आह से गान उपजाने का रियाज करना पड़ेगा, तब कोई डाकू वाल्मीकि कवि बनेगा. ये पुरातन बुल शिट है. यह उन्नत तकनीक से भावनाओं की बागवानी और अंतरात्मा के फोटोशापीकरण का युग है. अब किसी भी बात को आंख बंद कर तोड़ देने पर कविता बन जाती है. मैं सत्ताधारी पार्टी के चमत्कारी अध्यक्ष अमित शाह को कवि मानता हूं. आतंक रस का बड़ा कवि.

बर्तोल्त ब्रेख्त, पाब्लो नेरूदा, नाजिम हिकमत और महमूद दरवेश जैसों का निर्वासन बहुप्रचारित है. आतंकवादियों के खिलाफ सशस्त्र संघर्ष में अमित शाह को भी गुजरात से निर्वासित होना पड़ा था. उनकी संवेदना खतरनाक गहन अनुभवों की देन है.

वह बिम्बों में सोचते हैं. याद कीजिए संसद में पहुंचने के पहले दिन ही उन्होंने अपनी कविता में क्या कहा था- हमें विरासत में सत्तर साल गहरा गड्ढा मिला है.

सत्तर साल नीची और अंधेरी भारत के आकार की गहराई! वह काल, इतिहास और राजनीति की विमाओं को मरोड़ने वाले कवि व्यक्तित्व हैं. पहले इस गड्ढे को भरा जाना है. समतलीकरण के बाद ही खुशहाल न्यू इंडिया बसाया जा सकेगा. इस बीच जनता गड्ढे से निकलने की प्रतियोगिता करते हुए समय बिता सकती है. लेकिन कोई सचमुच बाहर निकल आया तो खुद को किसी पड़ोसी देशी की सीमा में पाएगा और गिरफ्तार हो जाएगा. इस परियोजना में समय लगना स्वाभाविक है. इसीलिए वह 2019 में दोबारा नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री बनाने के लिए जी जान से लगे हुए हैं.

अमित शाह जब प्रधानमंत्री के साथ होते हैं तो उनकी आंखों में आदर मिश्रित आतंक दिखाई देता है. जो अंदर होता है वही कविता में आता है. प्रस्तुत कविता भी आतंक रस की कविता है. सौंदर्य यहां है कि उन्होंने कुशलता से विनाश के दो बिम्ब रचे हैं और तत्परता से एक व्यक्ति यानी मोदी जी में स्थापित कर दिया है.

पहला बिंब प्रलय का है. जब सृष्टि का अंत होने वाला होगा तब समुद्र हिमालय तक चढ़ आएगा. सब नष्ट हो जाएगा लेकिन एक विशाल वटवृक्ष बचा रहेगा. पौराणिक कथाओं के अनुसार तब जलप्लावन के बीच एक पत्ते पर शिशु रूप में विष्णु भगवान आनंद से अंगूठा चूसते हुए इस विनाश को देखेंगे और सृष्टि का पुनर्निर्माण प्रारंभ करेंगे.

कवि की ईमानदारी पर ध्यान दीजिए जो कहता है उसने प्रलय देखा नहीं है वार्ता सुनी है. यह सत्संग का परिणाम है.

दूसरा बिंब रोमांचक और नयनाभिराम है. विपक्ष के नेताओं की सत्तालोलुप मूर्खता पर मार्मिक व्यंग्य है. मोदी जी की सब कुछ डुबा चुकी बाढ़ और पेड़ पर शरण लिए सांप, नेवला, कुत्ती-कुत्ता, बिल्ली, शेर, चीता के बीच चुनाव चल रहा है. जहां जान बचाने के लाले पड़े हों, वहां ये चुनाव लड़ रहे हैं. वरुण देव और भयभीत पशुओं-सरीसृपों के बीच का चुनाव. क्या उन्हें नहीं पता कि अगर वे असाध्य सत्तालोलुपता से बाज नहीं आते तो अभी पानी और बढ़ेगा. प्रलय होगी, तब न ये विपक्षी जीव बचेंगे, न संसद बचेगी न लोकतंत्र. जहां तक दृष्टि जाएगी जल का अखंड साम्राज्य होगा.

कवि ने विपक्ष की तुलना जानवरों से की है. इसका बुरा नहीं मानना चाहिए. पंचतंत्र और जातक कथाओं में भी पशुु पक्षियों के माध्यम से मनुष्यों को शिक्षा दी गई है. आश्चर्य तो यह है कि जब बाढ़ में सबकुछ खत्म हो जाएगा तब इस चुनाव में मतदान कौन करेगा? सत्ता के शीर्षपुरुष का संकेत समझा जाना चाहिए. अगले लोकसभा चुनाव से पहले मतदाता को वाटरप्रूफ बनाया जाने वाला है.