अख़बारनामा: ख़बरों की ही नहीं, भ्रष्टाचार की परिभाषा भी बदल गई है ! 

संजय कुमार सिंह संजय कुमार सिंह
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इस हफ्ते की खबरों में खास रहा नोएडा के एक मृत्युंजन शर्मा का क्वारंटाइन होने का अनुभव। निश्चित रूप से उन्होंने इसका शानदार विवरण लिखा है और उसमें सरकार तथा व्यवस्था के खिलाफ कम से कम तीस आरोप हैं। कायदे से सरकार को इनका जवाब देना चाहिए, स्थिति स्पष्ट करनी चाहिए या फिर कम से कम यह आश्वासन आना चाहिए था कि मामला संज्ञान में है और कार्रवाई की जा रही है। पर ऐसा कुछ देखने-सुनने में नहीं आया। असल में यह खबर नहीं के बराबर छपी। इसी तरह, चीन से पीपीई किट देर से आए, खराब आए। पर दोष भेजने वाले का। इस तथ्य के बावजूद कि आपने खराब ऑर्डर किया ब्रांडेड नहीं लिया। पहले इसे भ्रष्टाचार कहा जाता था। बीच का पैसा रिश्वत और कमीशन होता था। क्योंकि खरीदने वाले ने सही पैसे दिए खराब माल आया। अब खरीदने वाला दूध का धुला। एक खबर थी झारखंड हाईकोर्ट द्वारा अनूठी शर्तों पर जमानत दिया जाना। मैं जमानत की शर्तों पर टिप्पणी नहीं करूंगा पर मैं जानना चाहता हूं कि मामला जमानत देने लायक था जो जमानत दी जाती या नहीं दी जाती। इन अनूठी शर्तों का क्या मतलब लगाया जाए? इसी तरह अगर इन अनूठी शर्तों पर जमानत दी जा सकती है तो क्या यह दूसरे कैदियों पर लागू नहीं होना चाहिए? निश्चित रूप से जनहित के इस मामले में फैसला सुप्रीम कोर्ट को करना है लेकिन खबर छपेगी ही नहीं तो अदालत को भी कैसे पता चलेगा। यह खबर आज अकेले राजस्थान पत्रिका में पहले पन्ने पर दिखी। 

सोमवार को द टेलीग्राफ ने कोरोना और कोरोनेटेड (राजतिलक वालों) की भूमिका पर दो खबरें एक साथ छापी थी। दोनों खबरें, हिन्दी अखबार तो छोड़िए, अंग्रेजी में भी पहले पन्ने पर नहीं थीं। दोनों खबरों का साझा शीर्षक था, “जब कोरोना का हमला हुआ तो राजतिलक लगाए लोगों ने क्या किया”। पहली अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प की और दूसरी भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की। दोनों खबरों के साथ दोनों नेताओं की फोटो है पहली का शीर्षक है, “भारत से वापस जाते समय विमान में ट्रम्प अपनी टीम पर खूब भड़के”। न्यूयॉर्क टाइम्स के हवाले से द टेलीग्राफ ने लिखा है कि ट्रम्प 24 फरवरी को भारत आए थे और अगले दिन वापस चले गए। दूसरी खबर मध्य प्रदेश से संबंधित है। इस खबर के अनुसार, पत्रकारों को वीडियो पर संबोधित करते हुए पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ ने कहा, “विधानसभा अध्यक्ष ने कोरोना के खतरे का उल्लेख करते हुए जब 26 मार्च तक विधानसभा स्थगित कर दी तो भाजपा नेताओं ने उनका मजाक बनाया। वे कहते रहे क्या कोरोना,  कैसा कोरोना। 23 मार्च की रात भाजपा के मुख्यमंत्री को शपथ दिलाई गई और इसके बाद ही कोरोना भाजपा के लिए गंभीर हुआ।“ कमलनाथ ने कहा कि उन दिनों उड़ीशा और छत्तीसगढ की विधानसभा भी स्थगित की जा चुकी थी। इसके बावजूद प्रधानमंत्री ने खुद संसद को स्थगित किए जाने से मना किया। कमलनाथ ने आरोप लगाया कि उनकी सरकार गिराने के लिए जानबूझकर कार्रवाई देर से की गई। दुनिया के कई दूसरे देश जब इस महामारी से जूझ रहे थे तो भारत में भाजपा के नेता इस पर हंस रहे थे। संसद को 23 मार्च तक चलने दिया गया ताकि मध्य प्रदेश में राजनीतिक अभियान को जायज बनाया जा सके। बेशक इस मामले में लोकसभा और राज्य सभा के अध्यक्ष समेत दूसरे लोग समय रहते निर्णय लेने से चूक गए। 

मंगलवार, 14 अप्रैल को नवोदय टाइम्स में पहले पन्ने पर खबर थी, “सुप्रीम कोर्ट ने मध्य प्रदेश के राज्यपाल के निर्देश को सही ठहराया”। इस खबर के अनुसार, “उच्चतम न्यायालय ने मध्य प्रदेश में कमलनाथ के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार को विधान सभा में बहुमत साबित करने का निर्देश देने के राज्यपाल लालजी टण्डन के फैसले को सही ठहराया”। न्यायालय ने कहा कि अगर राज्यपाल को पहली नजर में यह लगता है कि सरकार बहुमत खो चुकी है तो उन्हें सदन में शक्ति परीक्षण का निर्देश देने का अधिकार है। अमर उजाला में इसी खबर का शीर्षक था, “विधानसभा सत्र के बीच राज्यपाल को फ्लोर टेस्ट कराने के अधिकार”। राजस्थान पत्रिका में भी यह खबर पहले पन्ने पर थी। शीर्षक था, “कांग्रेस की याचिका खारिज, राज्यपाल दे सकते हैं फ्लोर टेस्ट का आदेश : शीर्ष कोर्ट”। इसमें लिखा था, 68 पन्नों के फैसले में कोर्ट ने राज्यपाल की संवैधानिक शक्तियों के बारे में बताया। कहने की जरूरत नहीं है कि इस खबर से कमलनाथ के आरोप धुल गए जबकि अदालत का फैसला राज्यपाल के कानूनी अधिकारों से संबंधित है। उनके नैतिक दायित्वों का फैसला अदालत में नहीं हो सकता है। अखबारों ने कमलनाथ का आरोप तो पहले पन्ने पर नहीं छापा लेकिन राज्यपाल ने सही किया इसे पहले पर छाप दिया। इस बात की चर्चा किए बगैर कि मध्य प्रदेश विधानसभा अध्यक्ष ने कोरोना के मद्देनजर बैठक स्थगित कर दी थी और बाद की स्थितियों से स्पष्ट है कि वे सही थे। 

बुधवार, 15 अप्रैल को हिन्दी के ज्यादातर अखबारों में मुंबई के प्रवासी मजदूरों के लॉकडाउन तोड़कर बाहर आ जाने की खबर पहले पन्ने पर थी। मैं हिन्दी के सात अखबार देखता हूं उनमें अमर उजाला और राजस्थान पत्रिका अपवाद रहे। हिन्दुस्तान ने इसे टॉप पर दो कॉलम में मुंबई की फोटो के साथ छापा और शीर्षक से ऊपर लिखा उल्लंघन। शीर्षक था, मुंबई और सूरत छोड़ने को उमड़े प्रवासी। छोटी सी खबर थी, देशव्यापी लॉकडाउन बढ़ने की घोषणा के बाद मंगलवार को मुंबई के बांद्रा स्टेशन पर सैकड़ों प्रवासी मजदूर गांव जाने के लिए जमा हो गए। पुलिस ने लाठी चार्ज कर इन्हें हटाया। सूरत में भी ऐसा नजारा दिखा। नवभारत टाइम्स के शीर्षक में सूरत का जिक्र नहीं है। नवोदय टाइम्स में पांच कॉलम की फोटो और उसके साथ ही तीन कॉलम को दो बनाकर खबर कुल आठ कॉलम में मुंबई की खबर थी। शीर्षक था, मुंबई में दिल्ली जैसी भागमभाग। पुलिस ने तितर-बितर करने के लिए लाठी चार्ज किया। इसके साथ ही सिंगल कॉलम में सूरत की खबर थी और केंद्रीय गृहमंत्री की फोटो के साथ यह खबर कि, गृहमंत्री ने उद्धव से बात की। दैनिक भास्कर में इस खबर का शीर्षक था, मुंबई में जुटे प्रवासी मजदूर, कहा – खाना दो या गांव जाने दो। दैनिक जागरण का शीर्षक था, मुंबई-ठाणे में लोगों की जिद ने लॉकाडाउन को खतरे में डाला। इससे पहले सूरत में जब लोग सड़कों पर उतर आए थे और हंगामा किया था तो खबर दिल्ली के अखबारों में पहले पन्ने पर नहीं थी। सूरत में भी ऐसा होने के बावजूद। इसके साथ केंद्रीय गृहमंत्री अमितशाह का महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री को फोन करना और चिन्ता जताना सब कुछ कह देता है। सूरत के समय गृहमंत्री ने चिन्ता जताई भी हो तो खबर नहीं दिखी थी। 

गुरुवार, 16 अप्रैल के अखबारों में दूसरे चरण के लॉक डाउन में दी जाने वाली छूट की खबर मुख्य थी। अंग्रेजी अखबारों में इस खबर के शीर्षक से पता चला कि छूट मुश्किल है। उसपर शर्तें हैं। द टेलीग्राफ का शीर्षक था, आगे बढ़ो और काम करो, सवाल बाद में करना। इसका भाव यही था जैसे सरकार ने कहा हो कि आदेश मानो और देश के लिए कमाना शुरू करो। हिन्दुस्तान टाइम्स ने सकारात्मक शीर्षक को ही बैनर बनाया था। शीर्षक था, सरकार ने उन पाबंदियों की सूची बताई जिन पर 20 से छूट मिलेगी। इंडियन एक्सप्रेस की मुख्य खबर का शीर्षक है, शहरी के मुकाबले ग्रामीण भारत ज्यादा खुला पर शर्तों के साथ। बेशक यह छूट की खास बात थी पर छूट को बहुत बड़ी राहत की तरह पेश किया है और इसे आशावाद की हद कह सकते हैं। दिलचस्प यह है कि शनिवार तक यह माहौल बना दिया गया कि कोरोना नियंत्रण में है और प्रभावितों की संख्या बढ़ना रुक गया है जबकि मामला यह है कि कुछ लोगों में भी यह वायरस रहेगा तो आगे समस्या खड़ी कर सकता है। 

शुक्रवार, 17 अप्रैल को दो बड़ी खबरें थीं। पहली तो राहुल गांधी की प्रेस कांफ्रेंस और दूसरी प्रवासी मजदूरों के फिर से पलायन की। दिल्ली के इंडियन एक्सप्रेस में पहले पन्ने पर तस्वीर के साथ राहुल गांधी की प्रेस कांफ्रेंस की खबर तो है ही पलायन करते मजदूरों की तस्वीर लीड के साथ लगी है। इसके मुताबिक यह मुंबई-आगरा हाईवे पर पडघा की है जो महाराष्ट्र में ठाणे के पास है। मुंबई एडिशन में पहले पन्ने पर दो कॉलम में इसकी खबर भी है। अंग्रेजी अखबारों में राहुल गांधी की खबर द टेलीग्राफ (कोलकाता) में तो है पर द हिन्दू, टाइम्स ऑफ इंडिया और हिन्दुस्तान टाइम्स में नहीं दिखी। हिन्दू में एक खबर है कि दिल्ली में एक व्यक्ति सड़क पर पानी मांगता पड़ा रहा और पूरी कोशिश के बावजूद उसके पास सहायता पहुंचने में कई घंटे लगे। टाइम्स में ऐसी कोई खबर नहीं है। ट्वीटर ने कंगना की बहन का अकाउंट सस्पेंड किया, विदेश में 3336 भारतीय संक्रमित 25 मर गए, ईकॉम वाले गैर आवश्यक सामग्री डिलीवर कर रहे हैं जैसी खबर है। लीड का शीर्षक था सरकार कॉरपोरेट के लिए प्रोत्साहन और गरीब के लिए राहत तैयार कर रही है। हिन्दी अखबारों में सिर्फ नवोदय टाइम्स ने राहुल गांधी की प्रेस कांफ्रेंस की खबर पहले पन्ने पर ठीक से छापी है। नवभारत टाइम्स में उल्लेख भर है। दो कॉलम में राहुल के स्केच के साथ छोटी सी। शीर्षक है, राहुल बोले, कोरोना की टेस्टिंग बढ़ाई जाए, आंकड़े देकर सरकार ने कहा, भरपूर है। अमर उजाला में प्रेस कांफ्रेंस की खबर सिंगल कॉलम में थी, आपस में लड़ेंगे तो कोरोना से हार जाएंगे। दैनिक जागरण ने सरकारी दावे, तर्कों और दलीलों के आधार पर लीड खबर छापी है, कोरोना से लड़ाई में भारत अब तक अव्वल। राहुल गांधी की प्रेस कांफ्रेंस की खबर पहले पन्ने पर नहीं थी।   


लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं।