गांधी से नफ़रत और गोडसे से प्रेम आरएसएस की विचारधारात्‍मक मजबूरी क्‍यों है

आलोक बाजपेयी
काॅलम Published On :


प्रज्ञा ठाकुर ने महात्मा गांधी को गोली मारने वाले नाथूराम गोडसे को देशभक्त बताया है। प्रज्ञा जिस आरएसएस विचारधारा के स्कूल से आती हैं वहां पर यह बात आम है। आरएसएस हमेशा से नाथूराम गोडसे का महिमामंडन करती रही है। आरएसएस के किसी भी आफिस में चले जाइये तो इस तरह की तमाम पुस्तिकाएं मिल जाएंगी जिनमे गांधी की हत्या का औचित्य सिद्ध किया गया है और गोडसे की स्तुति की गई है। दरअसल, आरएसएस हमेशा से यह बात कहता रहा है। इधर कुछ वर्षों में आरएसएस और उसकी संतानों में यह आत्मविश्वास आ गया है कि जो बातें वो पहले गुपचुप तरीके से निजी तौर पर ही बोली जाती थीं उन्हें अब खुलकर कहने लगा है। गोडसे के मंदिर आदि इसी का परिणाम हैं।

आरएसएस महात्मा गांधी से नफरत करता है, इस बात में किसी सन्देह की आवश्यकता स्वयं आरएसएस ने नहीं छोड़ी है। इस नफरत की चार मुख्य वजह हैं।

  1. आरएसएस के लिए राष्ट्रवाद का अर्थ हिन्दू सम्प्रदायवाद और बहुसंख्यकवाद है। उसके हिसाब से भारत केवल हिंदुओं का देश है जिसमे अन्य सभी धर्म वालों को मजबूरी में दोयम दर्जे के नागरिक के तौर पर ही बर्दाश्त किया जा सकता है। यानि मुस्लिमो को खासकर व अन्य धर्मावलंबियों को सामान्यतः उनकी औकात में रखना ही आरएसएस के लिए राष्ट्रवाद है। गांधी राष्ट्रवाद की इस साम्प्रदायिक अवधारणा की राह में सबसे बड़ा रोड़ा हैं। गांधी के लिए राष्ट्रवाद और राष्ट्रप्रेम की कसौटी राष्ट्र के सभी लोगों की खुशहाली से है भले उनका धर्म कुछ भी हो। गांधी धर्म के आधार पर राष्ट्र की अवधारणा के खिलाफ थे। वो कहते थे कि भारत का हर नागरिक यहां सम्मान से रहे-जिये चाहे वो हिन्दू हो या मुस्लिम या कुछ और। गांधी आपसी भाईचारे, प्रेम, दोस्ती की बात करते थे। आरएसएस हिन्दू मुस्लिम आदि के बीच खाई बढ़ाने वाली बातें करता था और इस तरह से मुस्लिम लीग की ही लाइन पर चलता था। फर्क बस इतना कि आरएसएस जहां केवल हिंदुओं का हिमायती बनता था, वहीं मुस्लिम लीग सिर्फ मुसलमानों की हमदर्द बनती थी। गांधी की सोच व विचारधारा इन दोनों के विपरीत थी। चूंकि आरएसएस लंबे समय तक अपनी विचारधारा व सोच के अनुसार कामयाब न हो सका है, इसके लिए गांधी को मूल रूप से जिम्मेदार मानता है। नफरत की एक वजह यह है।
  2. आरएसएस की गांधी से नफरत की दूसरी वजह गांधी का अहिंसा का दर्शन है। आरएसएस ने हमेशा हिंसा को एक वीरोचित दर्शन के रूप में स्वीकार किया। इतिहास से उसने वे पन्ने ही लिए जिनमे हिंसा थी, उन पन्नों को भी झूठ और अनैतिहासिक रूप से व्याख्यायित किया। चाहे वो शिवाजी हों या महाराणा प्रताप। आरएसएस के लिए इतिहास मूलतः हिन्दू-मुस्लिम संघर्ष की गाथा है जिसमे मध्यकाल में मुस्लिम शासकों व मुसलमानों ने हिंदुओ पर बहुत अत्याचार किये और प्राचीन हिन्दू संस्कृति को बर्बाद कर दिया। इस प्रकार से हिंसक चिंतन और हिंसा आरएसएस की सोच पद्धति व कार्य पद्धति का मुख्य औजार रही है। आरएसएस मानती है कि गांधी ने अपनी अहिंसा की नीति द्वारा हिंदुओं को कायर और बुजदिल बना दिया। इसी कारण से हिन्दू मुसलमानों से उस तरह मुकाबला नही कर पाते जैसे करना चाहिए। चूंकि आरएसएस को अपनी हिंसा की विचारधारा को भारत मे फैला सकने में लंबे समय तक खास सफलता न मिल सकी, इसके लिए भी वो गांधी को दोषी मानती है।
  3. आरएसएस की गांधी से नफरत की तीसरी वजह गांधी द्वारा हिंदुओं की मुख्य कुरीति जाति व्यवस्था पर प्रभावी प्रहार करना रहा। गांधी मनुष्य-मनुष्य में समानता और बराबरी के स्टेटस की बात ही नही करते थे बल्कि उन्होंने प्रभावी कार्यक्रम बनाकर अस्पृश्यता उन्मूलन व जातिगत बन्धनों को कमजोर करने का ऐतिहासिक कार्य भी किया। गांधी ने स्वयं कहा था कि उन पर निजी और घिनौने हमले व दुष्प्रचार तब से होने लगे जब से उन्होंने जाति व्यवस्था की अमानवीयता को उठाना शुरू किया।

आरएसएस हिंदुओं को मुसलमानों के खिलाफ एकजुट करने का आह्वान तो अपने जन्म से ही करती रही है लेकिन हकीकत में यह सवर्णवादी जाति व्यवस्था की ही पोषक है। ब्राह्मणवाद का जो सबसे नकारात्मक और वर्चस्ववादी चेहरा है, आरएसएस उसी का प्रतिनिधित्व करती है। दलित व अन्य निचली जातियां आरएसएस के लिए हिन्दू-मुस्लिम संघर्ष में एक औजार तो जरूर हैं लेकिन ये अपनी प्रतिगामी सोच के चलते सवर्ण वर्चस्व के सपने को ही अपने दिल में जिलाये हुए है। आधुनिकवादी जीवन मूल्य जिसमें मनुष्य की समानता, स्वतंत्रता आदि मुख्य हैं, आरएसएस का कभी भी लक्ष्य नहीं रहा है और न हो सकता है।

4. महिला प्रश्न वह चौथा बिंदु है जो आरएसएस को गांधी से नफरत करने को मजबूर करता है। आरएसएस की निगाह में महिला का स्थान घर ही है और उसे घर की शोभा जैसे विशेषण से ही पहचान मिलती है। इस तरह से आरएसएस पुरुषवादी वर्चस्व का प्रतीक भी है जिसमें जीवन में महिलाओं की भूमिका पत्नी, मां, बहन, देवी जैसे कुनबामूलक प्रतीकों की ही है। स्वतंत्र नारी आरएसएस में एक खौफ की तरह मानी जाती है। गांधी भारत में शायद सबसे प्रमुख राजनेता थे जिन्होंने महिलाओं को घरों की सीमाओं से बाहर निकाला और राष्‍ट्रीय आंदोलन में बढ़-चढ़ कर शामिल होने को प्रेरित किया। गांधी के रचनात्मक कार्यक्रम की रूपरेखा ही इस तरह की रखी गयी थी कि उसमें महिलाओं की भूमिका प्रमुख रहे। चरखा, नशा उन्मूलन, कुटीर धंधे, शिक्षा आदि कार्यक्रम महिलाओं की भूमिका के बिना चल ही न सकते थे। गांधी स्त्री पुरुष के बीच एक समानतावादी मैत्रीपूर्ण सम्बन्ध की वकालत करते थे और इसे उन्होंने क्रियात्मक रूप से तमाम क्षेत्रों में लागू भी किया। यह सब आरएसएस की पुरुषवादी सामंती सोच से विपरीत था।

तात्पर्य यह है कि आरएसएस के गांधी से नफरत के आधारभूत कारण उसकी विचारधारा में छुपे हैं। आरएसएस यह मानती आयी है कि गांधी के कारण या कि गांधी के नेतृत्व में चली आजादी की लड़ाई के कारण ही आरएसएस आज तक अपने हिन्दू भारत के सपने को साकार नहीं कर सकी है। यही उसकी गांधी से चिढ़ या नफरत का कारण है। प्रज्ञा ठाकुर ने इसी नफरत को ध्वनि देते हुए गांधी को गोली मारने वाले को देशभक्त बताया है। प्रधानमंत्री, जो स्वयं आरएसएस द्वारा शिक्षित प्रशिक्षित हैं, उन्होंने भी इन्‍हीं सब कारणों से प्रज्ञा ठाकुर को राजनीतिक क्षेत्र में स्थापित करने के लिए उन्हें लोकसभा उम्मीदवार बनाया है और उनकी प्रशंसा भी करते रहे हैं।


लेखक नेहरू मेमोरियल म्‍यूजि़यम लाइब्रेरी में फेलो रह चुके हैं और इतिहास के अध्‍येता हैं