Human Rights Diary: पुलिस यातना का सामाजिक और राजनीतिक गठजोड़

डॉ. लेनिन रघुवंशी
काॅलम Published On :


पुलिस ने दबंगों से कहा- घबराओ मत, हम इसे तब तक मारेंगे जब तक डंडा न टूट जाए।

-राजकुमार गोंड, 34 वर्ष, ग्राम-चौका भुसौला, थाना चोलापुर, जिला वाराणसी

यह घटना 22 फरवरी 2018 की है। राजकुमार अपने घर पर थे जब पुआरी खुर्द के कुछ दबंग (संतोष मौर्या पुत्र स्व. दयाराम मौर्या, सुनील मौर्या पुत्र स्व. त्रिभुवन मौर्या, रामवचन पाल पुत्र स्व. भंगी पाल, विजय लाल यादव पुत्र कन्हैया लाल यादव और गौतम कुमार पुत्र स्व. बसन्तु) आकर उनके घर पर कब्जा करने लगे। जब उन्‍होंने इसका विरोध किया तो वे राजकुमार को मारने लगे।

राजकुमार ने उसी समय 100 नंबर पर फोन कर के मदद मांगी। दो पुलिस वाले इनोवा से आये। तब तक सभी दबंग जा चुके थे। 100 नंबर की पुलिस ने स्थानीय चौकी पर फोन किया। चौकी के सब-इंस्पेक्टर लालजी यादव ने उन्‍हें चौकी पर बुलाया। जब राजकुमार वहां पहुंचे तो देखा कि सभी दबंग वहां बैठे हुए थे।

राजकुमार बताते हैं, ”चौकी के सब-इंस्पेक्टर साहब हमें गंदी-गंदी गालियां (जातिसूचक) देकर तेज से कई झापड़ मारते हुए बोले- साला गुंडा बनता है? तुझे इतना मार मारूंगा कि कही मुंह दिखाने लायक नहीं रहेगा। यह कहते हुए मुझे कई झापड़ मारा। मेरे आगे के दोनों दात टूट गये। उस समय मैं दर्द से चिल्ला रहा था साहब हमे क्यों मार रहे हैं।” पुलिस ने दबंगों से कहा- घबराओ मत, हम इसे तब तक मारेंगे जब तक डंडा न टूट जाये।

”पुलिस मुझे तब तक मारती रही जब तक डंडा नही टूटा। पुलिस की मार से मेरे पैन्ट का पीछे का हिस्सा फट गया। मेरे घर वाले हाथ जोड़कर खड़े हो गये और विनती किये- साहब, आप जो कहेंगे हम वही करेंगे”, राजकुमार ने बताया। पुलिस ने उसी हालत में उन्‍हें पांच बजे तक बैठाया रखा। फिर धमकी दी कि अगर तुम लोग कहीं भी शिकायत करते हो तो तुम्हें फर्जी मुकदमे में डालकर जेल भेज देंगे|

इसके बाद पुलिस ने दबंगों के सामने एक कागज पर लिखवाया कि उनकी जमीन का बंटवारा हो गया है। पुलिस ने राजकुमार के घर वालों से जबरदस्ती साइन करवाया जबकि पुलिस ने खुद साइन नहीं किया। उस दिन राजकुमार के घर में चूल्हा नहीं जला।

ऐसी यातना का इस्तेमाल जबरिया अपराध कबूल कराने के लिए किया जाता है। दूसरी तरफ, लोगों को डराकर संसाधनों पर कब्‍ज़ा करने का भी यह तरीका है। इंटरनेशनल रिहैबिलिटेशन कौंसिल फॉर टार्चर विक्टिम (IRCT) के साथ मिलकर मानवाधिकार जन निगरानी समिति ने यातना सम्‍बंधी डेटा के विश्लेषण का एक प्रोजेक्ट शुरू किया है। अब तक 162 ऐसे लोगों का डेटा जुटाया गया है जिन्‍होंने पुलिस की यातना झेली है।

ये आंकड़े बताते हैं कि बेरोजगार और आर्थिक रूप से कमजोर लोग यातना का सबसे ज्यादा शिकार होते हैं। अल्पसंख्यक, दलित और आदिवासी लोग यातना के ज्‍यादा शिकार हैं। डेटा के विश्लेषण से निम्‍न नतीजा प्राप्त हुआ है।

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वाराणसी में CK 50/43, हकाक टोला, थाना चौक, तहसील सदर की रहने वाली रिफ़त की कहानी ऐसी ही है, जहां पुलिस ने उसके भाई को बड़ा अपराधी घोषित कर के उसकी जिन्दगी बर्बाद कर दी।

रिफ़त जहां (उम्र 30 वर्ष) बताती हैं:

“मैंने बीए तक की शिक्षा ली है। हम चार भाई और चार बहनें हैं। मेरी बड़ी बहन विवाहित है। मैं दूसरे नम्बर पर हूं। मेरी तीसरी बहन राहत 25 साल की है, चौथी बहन जैनब 24 साल की, भाई समीर 22 साल, सलमान 21 साल, अमन 19 साल और अब्दुल्लाह उर्फ़ लड्डू 14 साल का है। हम रोज़ कमाने खाने वाले लोग हैं। जायदाद के नाम पर हमारे पास रहने के लिए एक घर है जिस पर भूमाफिया की निगाहें टिकी हुई हैं। इसका खामियाजा हम आज तक भुगत रहे हैं।”

बीते 10 सितम्बर 2018 को पुलिस ने रिफ़त के दरवाजे पर दस्तक दी। इस बार पुलिस का निशाना सबसे छोटा भाई 14 साल का लड्डू था। लडडू अभी सो कर उठा था और लोग घर के कामों में लगे हुए थे, तभी बाहर का दरवाजा किसी ने खटखटाया। रिफ़त ने दरवाजा खोला तो देखा कि चौकी इंचार्ज भदौरिया, सिपाही चन्द्रिका सिंह, सुरेन्द्र यादव धड़धड़ाकर घर में घुस गए और उसके छोटे भाई की ओर लपके। वह दौड़कर पुलिस के डर से मां की गोद मे जाकर चिपक गया। मां की पसली की हड्डी टूटी हुई थी, उनको बेल्ट लगा हुआ था लेकिन भदौरिया ने उनके मुंह में बंदूक की नाल डालकर भद्दी-भद्दी गालियां दीं। रिफ़त की मां दिल की मरीज़ भी हैं।

पुलिस बार–बार धमकी दे रही थीं कि अपराधियों को संरक्षण देने के जुर्म में धारा 216 लगाकर परिवार को बंद कर के जिन्दगी बर्बाद कर देंगे। आधा घंटा तांडव मचाने के बाद महिला पुलिस को बुलाकर पुलिस रिफ़त की बहन और भाई को पिस्टल लगाकर चौकी ले गयी। उस वक्‍त सारा मोहल्ला तमाशबीन की तरह खड़ा रहा था।

पुलिसिया ज्‍यादती और यातना की एक तस्‍वीर, वाराणसी 2008

पुलिसिया यातना की शुरुआत 2016 में हुई थी जिसकी वजह से रिफ़त के दो भाई कई महीनों तक जेल में रहे। यह परिवार दो साल से थाने-अदालत का चक्कर काट रहा है। पहली बार पुलिस रिफ़त के यहां 3 फरवरी 2016 को रात ढाई बजे पूछताछ के लिए आयी थी। रिफ़त उस मनहूस दिदन को याद करते हुए बताती हैं:

”उन्‍होंने मेरे पूरे घर में तोड़फोड़ की। पुलिस के डर से हम लोगों ने अपने भाई बहनों को रिश्तेदारों के यहां भेज दिया था। तीसरे दिन अख़बार में यह खबर आयी कि मेरे भाई अमन और सलमान शूटर हैं। इस खबर ने मेरे परिवार की इज्जत को तार–तार कर दिया। उन पर आइपीसी की धारा 307 और गैंग्स्टर एक्‍ट लगा दिया गया। हमने हाई कोर्ट से ज़मानत ली लेकिन उस पर दोबारा फर्जी तरीके से गैंग्स्टर लगाया गया। रोज़-रोज़ पुलिस की इस किचकिच से तंग  आकर हम लोग नदेसर पर मिन्ट हॉउस में किराये के मकान पर रहने लगे। सोचा कुछ दिन सुकून से रहेंगे लेकिन पुलिस ने हमें वहां भी नही छोड़ा।”

वे बताती हैं, ”19 अगस्त 2017 को रात करीब नौ बजे क्राइम ब्रांच के प्रभारी ओमनारायण सिंह, चौकी इंचार्ज रमेश चन्द्र मिश्र सिविल ड्रेस में आये और अमन को पूछने लगे। उस समय  मेरा भाई अमन घर पर ही था। आते ही वे लोग उसे मारने-पीटने लगे और पूछताछ के नाम पर उसे ले जाने लगे। उस समय उन लोगो ने अपना परिचय नहीं दिया था। उस समय मेरा बड़ा भाई समीर दुकान से आया हुआ था। भाई को ले जाता देख उसने पूछा तो उसके पास जो पचास हजार रुपया था वह और हम सभी का मोबाइल सब छीन कर अमन को वे अपने साथ लेकर चले गये। बहुत देर बाद खबर मिली कि उस पर गैंगस्टर लगा हुआ था। पुलिस लाइन में अमन को करेंट लगाकर पूछताछ की गयी। 22 अगस्त, 2017 को शिवपुर में एक मुठभेड़ दिखाकर बुलेरो के साथ दो लडकों का नाम मुकदमे में डाला और उसके ऊपर चार फर्जी मुकदमे और 307, पुलिस पर फायरिंग, चोरी का मोबाइल, घर के मोबाइल को दिखा दिया। चोरी की बुलेरो व आर्म्स एक्ट के तहत बिना किसी मेडिकल व ट्रीटमेंट के उसे जेल में डाल दिया गया।”

अमन बीटेक करना चाहता था लेकिन पुलिस ने उसे बड़ा अपराधी बना दिया। रिफ़त ने उसकी ज़मानत दिसम्बर में और सलमान की नवम्बर में करायी। रिफ़त कहती हैं, ”पुलिस ने मेरे दोनों भाइयों को फंसाने के लिए बुरी तरह से जाल बुना है। वे मेरे भाइयों को ले जाते घर से थे और गिरफ्तारी कहीं और से दिखाते थे। अब यह लोग तीसरे को निशाना बना रहे हैं। हमें पता ही नहीं कि हमने इनका क्‍या बिगाड़ा है।”

Muslim and Police: a perspective from Shirin Shabana Khan on Vimeo.

राजकुमार गोंड और रिफ़त की आपबीती साफ तौर से यातना के सामाजिक और राजनैतिक गठजोड़ को उजागर करती है। कश्मीरियों को, दलितों को, आदिवासियों को और आन्दोलन करने वालों को सबक सिखाना है, इसलिए भारत सरकार ने संयुक्त राष्ट्र संघ के यातना विरोधी  कन्वेंशन का अब तक अनुमोदन नहीं किया है जबकि नेपाल और बांग्लादेश जैसे देशों ने कर दिया है। राज्यसभा में यातना विरोधी कानून वर्षों से लंबित पड़ा है।

जब तक संविधान के अनुसार समाज की सोच नहीं बदलेगी, तब तक भारत में यातना को रोकने की जगह यातना का इस्तेमाल कर के डर और भय के सहारे सत्ता को कायम रखने के लिए किया जाता रहेगा।