Human Rights Diary: यातना के शिकार कश्‍मीरियों से क्षमा याचना

डॉ. लेनिन रघुवंशी
काॅलम Published On :


कश्मीर की चर्चा देश और विदेश चारों ओर हो रही है. कहीं 370 को हटाने का विरोध है, तो कहीं समर्थन हो रहा है.  अनुच्‍छेद 370 को हटाने के समर्थक पंडित नेहरू को दोषी मान रहे हैं जबकि देश आज़ाद होने से दो महीने पहले लार्ड माउंटबैटन 18 जून से 23 जून 1947 में कश्मीर गये और वहां महाराज हरि सिंह से मिले थे. उन्‍होंने कहा था कि यदि ”कश्मीर पाकिस्तान से जुड़ता है तो भारत सरकार इसे अमित्रतापूर्ण नहीं मानेगी”. उन्‍होंने आगे कहा था कि ”खुद सरदार पटेल ने इस बात के प्रति उन्‍हें आश्‍वस्‍त किया है”.

यह बात माउंटबैटन के पूर्व राजनीतिक सलाहकार वीपी मेनन ने लिखी है, जिन्‍होंने भारत की स्‍वतंत्रता का बिल ड्राफ्ट करने में अहम भूमिका निभायी थी (इंटिग्रेशन ऑफ इंडियन स्‍टेट्स, मेनन, 1956, पृष्‍ठ 395).

जवाहरलाल नेहरू मार्च 1948 में संविधान सभा में कहते हैं:

”सीमा पार के हमारे विरोधी कह रहे हैं कि यह हिंदू और मुसलमान का झगड़ा है. हम कश्मीर में अल्पसंख्यक हिंदुओं और सिखों की मदद करने के लिए वहां गये हैं, कश्मीर की बहुसंख्यक मुस्लिम आबादी हमारे साथ नहीं है. इससे ज्यादा सफेद झूठ और क्या हो सकता है. हम वहां कश्मीर के महाराजा के न्योते पर भी नहीं जाते, अगर उस न्योते को वहां की जनता के नेताओं की सहमति हासिल नहीं होती. मैं सदन को यह बताना चाहता हूं कि हमारी सेनाओं ने वहां अदम्य बहादुरी का परिचय दिया है, लेकिन इस सब के बावजूद हमारी सेनाओं को कामयाबी नहीं मिली होती, अगर उन्हें कश्मीर के लोगों की मदद और सहयोग न मिलता.’’

दुनिया भर के देशों ने इसे भारत और पाकिस्तान के बीच का मामला बताया, किन्तु भारत सरकार के विदेश मंत्री ने कहा कि पहले पाकिस्तान आतंकवाद ख़त्म करे, तब बात होगी. रक्षा मंत्री ने कहा कि बात अब केवल पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर पर ही होगी. वहीं राहुल गाँधी के ट्वीट को पाकिस्तान की सरकार द्वारा प्रयोग करने पर बहुल हल्ला मचा, किन्तु सच ये भी है कि हरियाणा के मुख्यमंत्री के ट्वीट का भी पाकिस्तान ने इस्तेमाल किया है. इस पर होने वाले विवाद पर राहुल गाँधी ने कहा कि कश्मीर, भारत का अंदरूनी मामला है. असली जड़ भारत और पाकिस्तान के बंटवारे में है.

याद रखने वाली बात है कि हिन्दू महासभा व मुस्लिम लीग ने मिलकर कांग्रेस के खिलाफ 1939 में चुनाव लड़ा था. यह चुनाव ब्रिटिश उपनिवेशी सरकार ने कराया था. हिन्दू महासभा व मुस्लिम लीग ने एक साथ मिलकर सिंध व बंगाल में सरकार बनायी. सिंध की असेम्बली में मुस्लिम लीग ने पाकिस्तान बनाने का प्रस्ताव रखा, जिसका हिन्दू महासभा ने समर्थन किया और प्रस्ताव पारित हुआ. इसी प्रस्ताव का इस्तेमाल करके अंग्रेजी उपनिवेशी सरकार ने पाकिस्तान बनाया जिसका समर्थन सावरकर ने भी किया था.

सावरकर ने नौ बार से ज्यादा ब्रिटिश सरकार से माफी मांगी थी. सावरकर व राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के गुरू गोलवलकर ने कहा कि हमें ब्रिटिश हुकूमत से नहीं लड़ना चाहिए, बल्कि मुसलमानों से लड़ना चाहिए. वहीं आरएसएस ने मनुस्मृति को संविधान से ऊपर और हिटलर व मुसोलिनी को महान माना. मनुस्मृति के  आधार पर कुछ लोगों को जन्मना महान मानने वाली सोच के लोग भारत के संविधान के खिलाफ हैं और इसीलिए ये ताकतें संविधान को असफल दिखने की हर कोशिश करती हैं और देश में कानून के राज को मजबूत करने वाले सभी संस्थानों पर हमला करने से भी नहीं चूकती हैं.

मनुस्मृति आधारित पुरोहितवादी फासीवाद का सबसे बड़ा हथियार है अफवाहों को फैलाना और भय पैदा करना, जिससे अपनी सत्ता को कायम करने के लिए चुप्पी की संस्कृति के साथ अपने किये अपराधों के लिए दंडहीनता को वे स्थापित करना चाहते हैं. पुरोहितवादी फासीवाद ने आज़ादी से पहले ब्रिटिश औपौनिवेशिक सरकार के साथ गठजोड़ किया और अब नवउदारवादी आर्थिक  व्यवस्था के साथ मिलकर कॉर्पोरेट फासीवाद की और बढ़ रहा है. इसके लिए मंदी के दौर में लूट के लिए कश्मीर सहित देश के प्राकृतिक संसाधनों को लुटाना है और लोगों को बाँट कर इसलिए रखना है कि लोग संगठित प्रतिरोध खड़ा न कर सकें.

इस खेल में पश्चिमी दुनिया की नवउदारवादी आर्थिक ताकतें भारत को बाज़ार के रूप में देख रही हैं. वे हमें हिन्दू और मुस्लिम में बांट कर भ्रम में रखती हैं और हम अपने सांप्रदायिक सोच के तुष्‍टीकरण के लिए दूसरे धर्म के लोगों के ऊपर होने वाले अन्याय से आनंद लेते हैं.

कश्मीर के मुसलमान दक्षिणी एशिया के मुसलमानों से इस मामले में अलग हैं क्योंकि दक्षिणी एशिया के मुसलमानों का सम्बन्ध हज़रत अजमेर शरीफ़ से है, जबकि कश्मीरी मुसलमानों के सूफी और आध्यात्मिक जुडाव सेंट्रल एशिया से हैं और वहां जाने वाली सड़क लाहौर से होकर जाती है.अपने आध्यात्मिक लोगों से कटने और लगातार यातना के साथ संगठित हिंसा झेलने के कारण उनकी मानसिकता कैदियों की तरह हो गयी है. सरकार ने कर्फ्यू लगाकर हालत को नाजुक मोड़ की तरफ धकेल दिया है.

Neo Dalit process and #Kashmir (in English)Few links:https://thewire.in/rights/jammu-kashmir-solidarity-statementhttps://www.saddahaq.com/culture-of-silence-and-kashmirhttps://www.youthkiawaaz.com/2017/12/can-the-neo-dalit-movement-eradicate-emerging-fascism-in-india/I am thinking about peace with justice in Kashmir and remembering writer, Holocaust survivor and Nobel Peace Prize winner Elie Wiesel and his words,"I know that as long as one dissident is in prison, our freedom cannot be true. As long as one child is hungry, our lives will be filled with anguish and shame, for I have seen children hungry. What all these victims need, above all, is to know that they are not alone, that we are not forgetting them."#U4HumanRights #India #NeoDalit

Posted by Lenin Raghuvanshi on Sunday, September 1, 2019

कश्मीर में लगे कर्फ्यू पर संयुक्त राष्ट्र संघ की मानवाधिकार परिषद् से जुड़े प्रतिनिधियों ने भारत सरकार को विरोध दर्ज कराया है. मेरा मानना है कि कर्फ्यू को तुरंत हटा कर गैर-सरकारी लोगों द्वारा की जाने वाली संगठित हिंसा और यातना को रोकने के उपाय करना चाहिए. कश्मीरी पंडितों सहित सभी कश्मीरियों को यातना और हिंसा के संदर्भ में मनोवैज्ञानिक सहायता के लिए समानुभूति और सक्रिय प्रतिक्रिया पर आधारित प्लेटफार्म देश भर में प्रदान करना चाहिए.

भारत और पाकिस्तान का पुरोहितवादी फासीवाद कश्मीर के लोगों को अपने-अपने नज़रिये से देखता है. उन्हें अपनी-अपनी राजनीति के लिए इस्तेमाल करता है. भारत से हिंदुत्ववादी फासीवाद और पाकिस्तान से इस्लामिक फासीवाद व आतंकवाद को ख़त्म किये बिना कश्मीर के समस्या को हल नहीं किया जा सकता है. इसीलिए पाकिस्तान से इस्लामिक फासीवाद व आतंकवाद के साथ भारत से पुरोहितवादी फासीवाद को खत्‍म करने का एक कार्यक्रम शुरू किया जाना चाहिए.

सबसे महत्‍वपूर्ण यह है कि बंटवारे के समय यातना और हिंसा झेलने वाले लोगों से क्षमा याचना (reconciliation) का एक अभियान प्रारम्भ करना चाहिए.


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