घाट घाट का पानी : रहो, पर क़ायदे से!


उज्‍ज्‍वल भट्टाचार्य के साप्‍ताहिक स्‍तंभ का चौबीसवां अध्‍याय


मीडिया विजिल मीडिया विजिल
काॅलम Published On :


वही मेरा पुराना पब – वही स्टूल – मूंछों वाला वही हमारा साकी हेलमुट – वैसी ही एक शाम, जब कोई परिचित चेहरा न हो. बगल के स्टूल पर एक लंबा-चौड़ा जर्मन, देखने से पता नहीं चलता कि प्लंबर है या कसाई. एक नया चेहरा. संयोग से दोनों का गिलास ख़त्म हुआ, जैसा कि रिवाज है, हेलमुट ने चुपचाप दो नया गिलास रखकर पुराने गिलास हटा लिए.

अपना गिलास उठाकर उसकी ओर देखते हुए मैंने कहा- प्रोस्त, यानी चीयर्स का जर्मन संस्करण.

उसने मेरी ओर देखा. बिना कुछ कहे एक लंबी चुस्की ली. मूंछे पोंछने के बाद उसने कहा- “हुम्…दरअसल विदेशियों से मुझे कोई एतराज़ नहीं है…”

ये अलफ़ाज़ मेरे लिए अपरिचित नहीं थे. यह नब्‍बे का दशक था. शरणार्थियों के मारे जर्मनी की हालत जितनी ख़राब थी, उससे भी ज़्यादा उस ख़राबी को भुनाने के लिए दक्षिणपंथी नेताओं की कोशिशें जारी थीं. मैंने छूटते ही उससे पूछा: “हां, लेकिन?”

“हां”, उसने अपनी बात जारी रखी, “मुझे यह कतई पसंद नहीं कि सारी दुनिया के लोग यहां आते रहे, और हमारे क़ायदा कानून की धज्जियां उड़ाते रहे.”

“बिल्कुल सही कहते हैं आप”, मैंने कहा, “ऐसा नहीं होना चाहिए.”

“अब देखो ना”, अचानक “तुम” पर उतरते हुए उसने कहा, “आंकड़े कहते हैं कि विदेशियों के बीच अपराधियों की संख्या जर्मनों से तीन गुनी है. ऐसा नहीं चल सकता. हमारे मुल्क में आओगे, सारी सहूलियत लोगे और अपने सारे कुकर्म जारी रखोगे… ऐसा नहीं चल सकता.”

मैं सोचने लगा. अभी दो दिन पहले देश के दक्षिणपंथी गृहमंत्री मानफ़्रेड कांथर ने बहुत क़ायदे से तैयार किये गये आंकड़ों के सहारे कहा था कि विदेशियों की वजह से देश में अपराध बढ़ रहे हैं. तीन गुने का आंकड़ा भी उन्हीं का दिया हुआ था. कितनी जल्दी मंत्री की बातें आम जनता के तर्क बनकर सारे मुल्क में फैलने लगती हैं.

“आप” पर ज़ोर देते हुए मैंने कहा, “आप ठीक कहते हैं, मंत्रीजी ने भी यही बात कही है. काफ़ी ख़बर रखते हैं आप. वैसे… आप करते क्या हैं?”

“मैं ट्रक चलाता हूं”- संक्षेप में उसने जवाब दिया.

“अच्छा पेशा है”, मैंने कहा, “देखिये, मैं तो पत्रकार हूं. और आंकड़े कहते हैं कि ट्रक चालकों के बीच अपराधियों की संख्या पत्रकारों की तुलना में ढाई गुनी है.” मैंने तुक्का मारा. फिर मुस्कराते हुए मैंने कहा, “वैसे इससे क्या फ़र्क पड़ता है? आप भले आदमी हैं, मैं भी एक भला आदमी हूं. दिन भर हमने मेहनत की है. अब शाम को साथ बियर पी रहे हैं. यही तो सबसे बड़ी बात है. है ना?”

एक सांस में सारा बियर नीचे उतारकर बार के ऊपर उसने पांच का नोट रखा. बिना कुछ कहे बाहर निकल गया. हेलमुट दूर खड़ा था. बियर का नया गिलास लेकर आया. मेरे सामने रखते हुए उसने कहा, “ये हाउस की ओर से है”. फिर उसने जो कुछ कहा, उसका हिंदी अनुवाद कुछ इस प्रकार होगा- क्या दिया गुरु!

‘घाट-घाट का पानी’ के सभी अंक पढने के लिए कृपया यहां क्लिक करें