सड़क पर पिटी तो संसद में मोदी के भाषणों से भी ग़ायब होती गई ‘नोटबंदी !’

मीडिया विजिल मीडिया विजिल
काॅलम Published On :


 

राजेश कुमार

 

‘‘नोटबंदी के समय में कोई विदेशी अखबार को कोट करते हैं, कोई विदेशी अर्थशास्त्रियों को कोट करते हैं। आप 10 महापुरुषों को कोट कर सकते हैं, तो मैं 20 महापुरुषों को कोट कर सकता हूं। यह इसलिये हो रहा है कि विश्व में इसका कोई पैरेलेल ही नहीं है। दुनिया में कहीं इतना बड़ा और इतना व्यापक निर्णय कभी नहीं हुआ। इसलिये दुनिया के अर्थशास्त्रियों के पास भी इसका लेखा-जोखा करने का कोई मापदंड नहीं है।… दुनिया के अर्थशास्त्रियों के लिये एक बहुत बडा केस-स्टडी बन सकता है।’’

डीमाॅनेटाइजेशन की औचक घोषणा के तीन महीने बाद प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी, राज्यसभा में, ऐसे कदम की दुनिया में कोई नजीर नहीं होने और इसीलिये इसके मूल्यांकन का कोई पैमाना, कोई मानदंड नहीं होने की बात कह रहे थे। वह 8 फरवरी, 2017 का दिन था और प्रधानमंत्री बजट सत्र के पहले दिन दोनों सदनों की संयुक्त बैठक में राष्ट्रपति के अभिभाषण पर सदन में धन्यवाद के प्रस्ताव पर हुई चर्चा का जवाब दे रहे थे। प्रधानमंत्री की उस बात की याद का सबब यह खबर है कि चलन से बाहर किये गये कुल 15,41,793 करोड़ में से 15,31,073 करोड़ रुपये, यानि करीब 99.3 प्रतिशत मूल्य के 500 और 1000 रुपये के पुराने नोट वापस बैंक में जमा करा दिये गये हैं।

रिजर्व बैंक ने अभी पिछले महीने के आखिरी हफ्ते में ही अपनी सालाना रिपोर्ट जारी की है। बैंक ने 8 नवम्बर 2016 को रद्दी घोषित कर दिये गये 500 और 1000 रुपये के लगभग सभी नोटों की गिनती 22 महीनों में आखिरकार लगभग पूरी कर ली है। लगभग इसलिये कि पड़ोसी देश नेपाल में अब भी चलन में मौजूद करीब 1000 करोड़ रुपये और केन्द्रीय सहकारी बैंकों की जिला शाखाओं में जमा की गयी राशि के पुराने नोट अभी इस गिनती से बाहर हैं।  इसमें अहमदाबाद के उस सहकारी बैंक में नोटबंदी के बाद शुरूआती पांच दिनों में जमा किये गये 745 करोड़ रुपये भी हैं, जिसके एक निदेशक भाजपा अध्यक्ष अमित शाह हैं। पता नहीं यह बात प्रासंगिक है या नहीं कि अमित शाह के बैंक में करतब के इन पांच दिनों के बाद रिजर्व बैंक ने जिला सहकारी बैंको में पुराने नोट जमा करने और बदलने की सुविधा वापस ले ली थी। बहरहाल इतने सारे नोट गिनना आसान तो नहीं ही रहा होगा। हमारे आपके जैसे, संभव है, अरबों लोगों के लिये किसी भी मूल्य के सौ-पचास नोट गिनना ही पहाड़ हो जाता है। बैंक ने बताया है कि इन बडे़ नोटों में केवल 10.720 करोड़ रुपये बैंकों में नहीं लौटे हैं। और अखबारों, चैनलों, वेब पत्रिकाओं में प्रधानमंत्री की 8 नवम्बर 2016 की औचक घोषणा में निहित लक्ष्यों-उद्देष्यों के संदर्भ में इस रिपोर्ट का पाठ-पुनर्पाठ और नोटबंदी की भारी विफलता के चर्चे जारी हैं।

क्या लगभग सभी पुराने नोटो का लौट आना नोटबंदी की सफलता-असफलता के आकलन की कसौटी हो सकता है?

यह सच है कि 8 नवम्बर 2016 की रात राष्ट्र के नाम अपने संबोधन में प्रधानमंत्री ने ‘भ्रश्टाचार, कालाधन, जाली नोट और आतंकवाद के नासूरों के खिलाफ एक शक्तिशाली और निर्णायक कदम की आवश्यकता’ बतायी थी। यह सच है कि प्रधानमंत्री ने उस संबोधन में 17 बार ‘कालाधन’, 16 बार ‘भ्रष्टचार’, पांच बार ‘आतंकवाद’, दो बार ‘जाली नोट’ का जिक्र किया था। यह भी सच है कि उन्होंने ‘भ्रष्टाचार, कालेधन और काले कारोबार में लिप्त देशद्रोहियों और समाज-विरोधी तत्वों के पास मौजूद पांच सौ और हजार रुपये के पुराने नोट मध्यरात्रि के बाद केवल कागज के एक टुकडे के समान रह जाने’ का दावा भी किया था। लेकिन कागज के बेकार टुकड़ों में बदल जाने वाले ‘तीन-चार लाख करोड़ रुपये मूल्य के अनअकाउंटेड नोटों के बैंकिंग व्यवस्था में वापस नहीं लौटने’ और सरकार के इस भारी लाभ का इस्तेमाल ‘कल्याणकारी कार्यक्रमों-योजनाओं की फंडिंग में कर सकने’ का अनुमान अटाॅर्नी जनरल ने सुप्रीम कोर्ट में जताया था, प्रधानमंत्री ने नहीं।

प्रधानमंत्री ने तो बस करीब 40 मिनट लंबा संबोधन खत्म करते-करते देशवासियों से ‘असुविधा का ध्यान किये बिना शुचिता की इस दीवाली, ईमानदारी के इस उत्सव और प्रामाणिकता के इस पर्व में भाग लेने’ की अपील की थी ताकि ‘देश का धन गरीबों के काम आ सके।’ इससे पहले वह काले धन की जांच के लिये सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज की अध्यक्षता में एस.आई.टी. के गठन, विदेशों से कालाधन वापस लाने के लिये 2015 में एक मजबूत कानून बनाने, विभिन्न देषों के साथ टैक्स समझौतों में परिवर्तन करने, अमरीका सहित कई देशों के साथ सूचना विनिमय के प्रावधान करने, बेनामी संपत्ति पर नकेल के लिये अगस्त 2016 में एक और कानून बनाने और अघोषित आय को पेनाल्टी के साथ घोषित करने जैसे कदमों का जिक्र करते हुये कह चुके थे कि इन सारे प्रयासों से ‘पिछले ढाई साल में भ्रष्टाचारियों से करीब-करीब सवा लाख करोड़ रुपये का कालाधन बाहर लाया गया है।’।संकेत साफ था कि जब इन कदमों से ही इतना कालाधन बाहर आ गया तो यह तो नोटबंदी है। इसमें अगर बडी मात्रा में पुराने नोट जलाये जाने और नदी-नालों में बहाये जाने के बारे में जनसभाओं और चुनावी रैलियों में किये गये प्रधानसेवक के वाचाल दावों को जोड़ लें तो हद से हद इसे अटार्नी जनरल के अनुमान का चालाक भाष्य भर कहा जा सकता है। ऐसा नहीं कि ऐसा कुछ हुआ ही नहीं था। अयोध्या के नयाघाट इलाके में नाविकों ने 1000 रुपये के फटे हुये, पुराने नोट गंगा नदी में उतराते देखे थे और 12 नवम्बर 2016 को अयोध्या के तत्कालीन पुलिस सुपरिन्टेंडेंट कलानिधि नैथानी ने इस खबर की पुश्टि भी की थी, लेकिन उन्होंने नोटों की संख्या केवल 19 बतायी थी।

खैर, राज्यसभा का 8 फरवरी 2017 का भाषण शायद आखिरी मौका था, जब प्रधानमंत्री ने नोटबंदी का बचाव करते हुये न केवल कालेधन का उल्लेख किया था, बल्कि नवम्बर-दिसम्बर में पिछले 40 दिनों में करीब 700 माओवादियों के आत्म-समर्पण का दावा करते हुये इस नैरेटिव को भी पुष्ट करने की कोशिश की थी कि यह कदम आतंकवाद की कमर तोड़ देगा। यद्यपि इसी भाषण में वह उस ‘कैश-लेस के महात्म्य’ की ओर भी बढ गये थे, जिसे कुछ ही समय में ‘लेस कैश’ हो जाना था। उन्होंने कहा था ‘‘किसी भी व्यवस्था में कैश कितना है, चैक कितना है, यह कारोबार विकसित हो चुका है और एक प्रकार से जीवन का हिस्सा बन गया है। जब तक आप उसको गहरी चोट नहीं लगाओगे, तब तक स्थिति से बाहर नहीं आओगे।’’

पूरे साल भर बाद प्रधानमंत्री अभी इसी वर्ष 7 फरवरी को फिर, राश्ट्रपति के अभिभाषण पर धन्यवाद के प्रस्ताव पर ही चर्चा का उत्तर देने के लिये लोकसभा में खडे़ हुये तो यह जरूर कहा कि ‘महोदया, भ्रष्टाचार और काले धन की बात करना चाहूंगा’, लेकिन इस बात में नोटबंदी का जिक्र कहीं नहीं था, जिक्र था तो ‘चार-चार पूर्व मुख्यमंत्रियों को न्यायपालिका द्वारा दोषी करार दिये जाने का’, ‘देश में एक ईमानदारी का माहौल बनने का’ और ‘इनकम टैक्स देने के लिये अधिक लोगों के आगे आने का।’

नोटबंदी के घोषित उद्देश्यों का हश्र भांप लेने के बाद वित्त मंत्री अरूण जेटली और कई अन्य मंत्री बहुत जल्दी इसे ‘टैक्स कानूनों का अनुपालन सुनिश्चित करना और अर्थव्यवस्था को औपचारिक बनाना’ कहने लगे थे। नोटबंदी पर नियम 56 में कार्यस्थगन प्रस्ताव के जरिये या नियम 193 में शार्ट ड्यूरेशन डिस्कशन कराने के द्वन्द्व के बीच रसायन और उर्वरक मंत्री तथा संसदीय कार्यमंत्री अनंत कुमार ने 23 नवम्बर 2016 को इसे ‘भ्रष्टाचार के खिलाफ धर्मयुद्ध, कालेधन के खिलाफ धर्मयुद्ध और सब चीजों के विरूद्ध धर्मयुद्ध’ बताया था। कार्यस्थगन प्रस्ताव कांग्रेस के मल्लिकार्जुन खड़गे ने दिया था, नियम 193 में चर्चा का नोटिस बीजू जनता दल ने और चर्चा में देरी पर विरोध जताने के लिये कांग्रेस के सदस्य सदन में प्लेकार्ड दिखा रहे थे, काला धन जब्त करने की मांग के प्रतीक के तौर पर तृणमूल कांग्रेस के सदस्य काली शॉल लपेटे सदन में आ रहे थे। उसी दिन स्पीकर के चैम्बर में बैठक और उनके आग्रह पर कांग्रेस ने प्लेकार्ड छोड़ दिया, तृणमूल के सदस्यों ने शॉल उतार दिये और बीजद के भतृहरि महताब ने कहा कि ‘चर्चा 184 के तहत भी हो सकती है’, जिसमें चर्चा के बाद मत-विभाजन का प्रावधान है। लेकिन द्वन्द्व जारी रहा, चर्चा शुरू नहीं हुई, बस अनंत कुमार 23 नवम्बर को जिसे ‘क्रूसेड अगेंस्ट करप्शन, क्रूसेड अगेंस्ट ब्लैक मनी ऐंड क्रूसेड अगेंस्ट एवरीथिंग’ बता रहे थे, बजट सत्र समाप्त होते-होते वह बस ‘काले धन के खिलाफ संघर्ष’ रह गया।

बजट सत्र, नोटबंदी के 8 दिन बाद, 16 नवम्बर को शुरू हुआ था, और 21 बैठकों में कुल 19 घंटे 26 मिनट के कामकाज के बावजूद नोटबंदी पर चर्चा के बिना ही समाप्त हो गया। लेकिन 8 दिसम्बर 2016 को पहले पूरक मांगों और फिर विनियोग विधेयक- 4 पर 35 मिनट की चर्चा के बाद काॅरपोरेट कार्य और वित मंत्री अरूण जेटली ने अपने उत्तर में जरूर नोटबंदी का जिक्र किया। अभी केवल एक महीने बीते थे और जेटली बोले, ‘‘लोगों को जो तकलीफ है उसे दूर करने का प्रयास करेंगे… हर रोज रिजर्व बैंक आॅफ इंडिया एक बडी मात्रा में करेंसी बाजार में डालता है, बैंकिंग व्यवस्था के माध्यम से डालता है और एक प्रयास है कि अधिक से अधिक अर्थव्यवस्था लेस कैश हो और उसके साथ-साथ डिजिटलाइज हो, इसका प्रयास भी बडे पैमाने पर चल रहा है।’’ संसद के बाहर ‘काले धन के खिलाफ क्रूसेड’ का तर्क पहले ‘कैशलेस’ और फिर ‘लेस कैश’ में बदल चुका था, चीनी मल्टीनेशनल ‘अली बाबा’ के भारतीय साझीदार पे-टीएम’ का जिक्र किये बिना, संसद में यह सब हो रहा था। अनुपूरक मांग पर बहस शुरू करते हुये भाजपा के किरीट सेमैया दर्शन पेश कर चुके थे कि ‘एक ओर हम काले धन से मुक्ति चाहते हैं और दूसरी ओर, नया काला धन जेनरेट न हो।’
इसके बाद तो सरकार और उसके नेता कैशलेस-लेस कैश पर कायम रहे। वित्त और काॅरपोरेट कार्यमंत्री अरूण जेटली ने लोकसभा में बजट पर दो दिन की चर्चा का जवाब देते हुये 9 फरवरी 2017 फिर कहा, ‘‘हम अधिकतर रूप से कैश इकाॅनामी थे। पूरी दुनिया की अर्थव्यवस्था में कैश करंसी का जी.डी.पी. में एक छोटा हिस्सा होता है, जबकि हमारा लगभग 12.2 परसेंट है। 86 फीसदी हाई डिनोमिनेशनल करंसी है। हम इन विषयों को छोड दें, लेकिन हाई कैश इकाॅनामी में एक स्वाभाविक असर है कि कैश इकाॅनामी से पैरलल इकाॅनामी जीवित होती है और चलती है।’’लेकिन जब तृणमूल कांग्रेस के सैगत राय ने पूछा, ‘‘दूसरे देशों में कितना कैश है, जर्मनी में कितना है, अमरीका में कितना है’’ तो स्पीकर ने कहा, ‘‘अब हर एक का जवाब नहीं दिया जायेगा’’। जेटली ने इसका जवाब दिया भी नहीं।

और खुद प्रधानमंत्री? वह दो बार और लोकसभा में बोले – 9 अगस्त 2017 को भारत छोडो आंदोलन की 75 वीं वर्षगाँठ के मौके पर विशेष चर्चा में और 15 दिसम्बर 2017 को मंत्रिपरिषद के नये सदस्यों का परिचय कराते हुये, लेकिन तब जाहिर है नोटबंदी का प्रसंग भी नहीं था। 20 जुलाई 2018 को प्रधान सेवक रात साढे आठ बजे सदन में सरकार के खिलाफ अपनी ही पूर्व सहयोगी टी.डी.पी. के अविश्वास प्रस्ताव पर चर्चा का उत्तर देने उठे और करीब डेढ घंटे बोले, लेकिन कालेधन का और उससे निबटने के जादुई कदम नोटबंदी का संकेत भी नहीं, जैसे लोगों की तरह प्रधानमंत्री भी एक बुरे सपने की तरह उसे भूल जाना चाहते हों।

कहीं नोटबंदी के हेतुओं को लेकर बदलती व्याख्या इस जल्दबाज़ और अर्थव्यवस्था से लेकर लोगों तक की चिंता से गाफिल कदम का ‘लेखा-जोखा करने के मानदंडों को कन्फ्यूज करने’ की ही कवायद तो नहीं थी?

 

 ंमुख्य तस्वीर में कार्टून कैच न्यूज़ से साभार।



 

हर पखवाड़े मीडियाविजिल पर प्रकाशित होने वाले ‘संसद चर्चा’ स्‍तंभ के लेखक राजेश कुमार वरिष्‍ठ पत्रकार हैं और संसद की रिपोर्टिंग का इन्‍हें लंबा अनुभव है