चुनाव चर्चा: ‘सेमीफाइनल’ का आगाज़ ही ग़लत, अंजाम खुदा जाने!

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चंद्र प्रकाश झा 

 

भारत के पाँच राज्यों- राजस्थान, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, तेलंगाना और मिजोरम में चुनाव कराने की अधिसूचना, शुक्रवार 2 नवम्बर को जारी की जाएगी। भारतीय संघ गणराज्य के जन प्रतिनिधित्व अधिनियम के तहत चुनाव की अधिसूचना, सम्बद्ध राज्यों के राज्यपाल इन राज्यों की राजधानी में अलग -अलग जारी करेंगे। अधिसूचना जारी होते ही, उसी दिन से उम्मीदवारों के नामांकन पर्चे भरने का सिलसिला शुरू हो जाएगा। पर्चों की जाँच 12 नवंबर को होगी। पर्चा वापस  लेने की आखिरी तारीख 14 नवंबर है। मतदान इलेकट्रॉनिक वोटिंग मशीन यानी ईवीएम से कराया जाएगा। ईवीएम के साथ लगी ‘ वोटर वेरीफाइड पेपर ऑडिट ट्रेल’ यानी वीवीपीएटी मशीन से मतदाताओं को भौतिक साक्ष्य के रूप में 7 सेकेंड तक  स्क्रीन पर दिखेगा कि उनका उन्होंने वोट किस निशान पर  पड़ा है। उस पर्ची की सॉफ्ट कॉपी वीवीपीएटी मशीन में संरक्षित रहेगी। इन चुनावों के तहत पांचो विधान सभा की सभी सीटों के लिए मतगणनाईवीएम से ही, मंगलवार 11 दिसंबर को होगी। उसी दिन शाम तक सारे परिणामों की आधिकारिक घोषणा हो जाने की उम्मीद है। राजनीति और मीडिया हल्कों में इन चुनावों को लोकसभा के मई 2019 से पहले निर्धारित लोकसभा चुनाव के पहले का सेमी फाइनल मुकाबला माना जा रहा है। अगले बरस कई राज्यों की विधान सभा के भी चुनाव होने हैं। जाहिर है पूरा भारत चुनावी मोड में आ गया है।


मतदान

छत्तीसगढ़ में दो चरण में मतदान कराया जाएगा। पहले चरण में 12 नवम्बर को राज्य के दक्षिणी जिलों के माओवाद प्रभावित 18 निर्वाचन क्षेत्रों में और दूसरे चरण में 20 नवम्बर को शेष 72 सीटों के लिए वोटिंग होगी। अन्य चारों राज्यों में एक ही चरण में वोटिंग होगी। मध्य प्रदेश और मिजोरम में बुधवार, 28 नवंबर को वोटिंग होगी। राजस्थान और तेलंगाना में सात दिसंबर को वोटिंग होगी। छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश में भाजपा पिछले लगातार 15 बरस से सत्ता में है। भाजपा राजस्थान में भी लम्बे अर्से से सत्ता में आती रही है। तेलांगाना में अभी भाजपा का ‘ मित्र दल’,  तेलंगाना राष्ट्र समिति (टीआरएस) सत्ता में है। मिजोरम में कांग्रेस की सरकार है।  विधानसभाओं की सीटें मध्य प्रदेश में 230 , राजस्थान में 200 , छत्तीसगढ़ में 90 , तेलंगाना में 119  और मिजोरम में 40 है।

निर्वाचन आयोग

भारत के निर्वाचन आयोग के मुख्य आयुक्त ओ.पी.रावत ने इन राज्यों के चुनाव कार्यक्रम की घोषणा शनिवार को प्रेस कॉन्फ्रेंस में की। आयोग ने प्रेस कांफ्रेस का समय पहले, दोपहर साढ़े 12 बजे तय किया था। बाद में इसका समय बदल कर साढ़े 3 बजे कर दिया। उसी दिन, दोपहर 1 बजे प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी को राजस्थान के अजमेर में मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे की पिछले अगस्त माह शुरू की गई चुनावी ‘गौरव यात्रा’ की समाप्ति के मौके पर आयोजित जनसभा में भाषण देना था, जो उन्होंने दिया। मोदी जी ने जयपुर में ‘ प्रधान मंत्री लाभार्थी जन संवाद’  के बैनर तले एक जनसभा को भी सम्बोधित किया जिसमें राज्यपाल कल्याण सिंह और मुख्यमंत्री राजे भी उपस्थित रहे। मोदी जी ने इसी जनसभा में अजमेर, बीकानेर, माउंट आबू, गंगानगर आदि स्थानों पर करोड़ों – अरबों रूपये लागत की आवास, मेट्रो, सड़क, जल, रसोई गैस, स्वास्थ्य आदि की अनेक नई योजनाओं की शिलान्यास पट्टिकाओं का अनावरण किया। सभा में राज्य के सभी जिलों से केंद्र सरकार की दर्जनों योजनाओं के लाभार्थियों की भारी भीड़ बुलाई गई थी। उन्होंने उसी शाम नई दिल्ली लौटने से पहले राजस्थान के ही पुष्कर में ब्रम्हा मंदिर जाकर अर्चन -पूजन किया और बीच बीच में कई ट्वीट भी किये। उनका एक ट्वीट था,- ” देश और दुनिया के लिए मैं भले प्रधानमंत्री हूं, लेकिन भारतीय जनता पार्टी के लिए मैं एक कार्यकर्ता हूँ। एक कार्यकर्ता के नाते पार्टी जब भी, जो भी जिम्मेदारी मुझे देती है, उसको भी जी-जान से करने का मैं प्रयास करता हूं।” मोदी जी के चुनाव प्रचार को रोकना मुश्किल ही नहीं, नामुमकिन है, यह हम हालिया कर्नाटक विधान सभा चुनाव में ही नहीं  लोकसभा की कैराना सीट पर उपचुनाव और उनके प्रधान मंत्री बनने के बाद से लगभग सभी चुनाव में देख चुके हैं। उनके ऐसे असंख्य चुनावी भाषणों का लेखा -जोखा अकादमिक शोध का बेहतर विषय हो सकता है।

मोदी जी की सुविधा के लिए और उनकी भारतीय जनता पार्टी  के चुनावी फायदे के वास्ते चुनाव कार्यक्रम की घोषणा का समय बदलने के निर्वाचन आयोग के इस कदम की आमतौर पर कटु आलोचना की गई है। चुनाव कार्यक्रम की घोषणा होते ही सम्बद्ध राज्यों में आदर्श चुनावी आचार संहिता अनिवार्य रूप से लागू हो जाती है। इस संहिता के तहत वोटरों को लुभाने की सरकारी घोषणा करने आदि पर तत्काल प्रभाव से प्रतिबन्ध लग जाता है। निर्वाचन आयोग ने प्रेस कांफ्रेस का समय बदलने का कोई ठोस कारण नहीं बताया। उसका यह रूख पूरी तरह से गैर -कानूनी न भी हो, अनैतिक तो माना ही जा रहा है। आयोग की यह सांविधिक ज़िम्मेदारी है कि वह स्वतंत्र एवं निष्पक्ष रूप से चुनाव करवाए। चुनाव कार्यक्रम की घोषणा में आयोग की सांविधिक स्वतंत्रता एवं निष्पक्षता नहीं नज़र आई। मोदी सरकार द्वारा श्री रावत को मुख्य निर्वाचन आयुक्त नियुक्त करने को लेकर विवाद भी है जिसके बारे में मीडियाविजिल के इस कॉलम के पिछले एक अंक में विस्तार से सम्पुष्ट चर्चा की जा चुकी है। किसी का भी यह कहना स्वाभाविक होगा। चुनाव का आगाज़ ही गलत  हुआ। अंजाम खुदा जाने।

 

पोलस्टर

चुनाव कार्यक्रम की घोषणा होते ही खबरिया टीवी चैनलों ने उनके संभावित परिणामों को लेकर कयासबाजी शुरू कर दी। चुनाव परिणामों को लेकर तीर -तुक्के चलाने में माहिर ‘सी-वोटर’ नामक एक फर्म  आगे रही जो राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के दिवंगत नेता नानाजी देशमुख के अभूतपूर्व पोल्स्टर माने जाने वाले दौहित्र, यशवंत देशमुख संचालित करते हैं। चुनावी कयासबाजी के लिए सी-वोटर कुछ बदनाम सी रही है। उसकी कयासबाजी के पीछे के धंधे को लेकर किये गए एक स्टिंगऑपरेशन से कलई खुल जाने से ‘ टाइम्सनाउ’  जैसे खबरिया टीवी चैनल ने उसकी सेवाएँ कुछ समय के लिए बंद कर दी थी। हम इस स्तम्भ के एक अंक में यशवंत देशमुख  जी के विलक्षण कम्प्युटरी कमाल की चर्चा कर चुके हैं , जिसमें उन्होंने उत्तर प्रदेश विधान सभा चुनाव के अरसा पहले के एक चुनाव में यूनाइटे डन्यूज ऑफ़ इंडिया (यूएनआई) के लिए तैयार अपने चुनावी विश्लेषण में सिंह उपनाम-धारी सभी प्रत्याशियों को एक झटके में ठाकुर ( राजपूत ) घोषित कर दिया था। उन प्रत्याशियों में उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री एवं राजस्थान के मौजूदा राज्यपाल कल्याण सिंह भी शामिल थे जो ठाकुर नहीं बल्कि अन्य पिछड़े वर्ग की लोध जाति के हैं।

बहरहाल,  सी -वोटर की ताज़ी कयासबाजी को एबीपीन्यूज़ और एनडीटीवी ने भी प्रसारित किया। उसका कयास है कि राजस्थान , मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़, तीनों राज्यों में सत्तारूढ़ भाजपा की हार होगी। किस पार्टी की कितनी सीटों पर जीत होगी और किसे कितने प्रतिशत वोट मिलेंगे, इसके बारे में सी-वोटर ने कुछ आंकड़े  भी दिए हैं। उन आंकड़ों के मुताबिक़ राजस्थान विधानसभा की कुल 200 सीटों में से 142 कांग्रेस जीतेगी और वोटिंग में उसकी हिस्सेदारी 50 प्रतिशत रहेगी। भाजपा 34 प्रतिशत वोट शेयर लेकर सिर्फ 56 सीटें जीत सकेगी। अन्य को दो सीटें और 16 प्रतिशत वोट शेयर मिलने का कयास है। छत्तीसगढ़ में कांग्रेस को कुल 90 में से 47 सीटें और 38.09 प्रतिशत वोट मिलने का कयास है। कयास है कि भाजपा की 40 सीटों पर ही जीत होगी और उसे 38.06 प्रतिशत वोट मिलेंगे।  अन्य को तीन सीटें और 22. 05 प्रतिशत वोट मिलने का कयास है। तत्काल स्पष्ट नहीं किया गया कि अन्य में राज्य के पूर्व मुख्य मंत्री अजित जोगी की पार्टी और उत्तर प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री मायावती के नेतृत्व वाली बहुजन समाज पार्टी का चुनावी गठबन्धन है कि नहीं।  मध्य प्रदेश में कुल 230 सीटों में से कांग्रेस के 42.03 प्रतिशत वोट शेयर के साथ 122 सीटें जीतने का कयास है। भाजपा को 41.05 प्रतिशत वोट शेयर के साथ 108 सीटें मिलने का कयास है। अन्य को  दो सीटें मिलने का कयास है। इस तरह चुनाव परिणाम की मोटी पूँजी –प्रायोजित क़यासी आंकड़ेबाजी के गोरखधंधा को शायद ही महान पुण्यकार्य  कहा जा सकता। लेकिन वो कहते हैं ना हिन्दुस्तान में “सब चलता है।”

 

चुनावी अभिमत

वरिष्ठ पत्रकार से उद्यमी बनकर अपने गृहराज्य आंध्र प्रदेश के वैज़ाग में बसे हुए अर्थशास्त्री  रमन्ना गौडा का कहना है कि कांग्रेस अगर राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में अपने बूते पर बहुमत हासिल करने की स्थिति में आती है तो भी उसे फासीवादी ताकतों का विकल्प खड़ा करने में और अधिक सहयोग चाहिए। उन्होंने फेसबुक पर एक पोस्ट में लिखा कि मौजूदा पूर्वानुमान के अनुसार अगर कांग्रेस अपार बहुमत भी हासिल कर लेती है  तो भी उसके लिए  सतत सजग रहना जरुरी है क्योंकि आगे चल कर चुनावी समीकरण  बदल भी सकते हैं। जेएनयू में अर्थशास्त्र पढ़े और द इकोनॉमिकटाइम्स के सह -सम्पादक रह चुके रमन्ना कहते हैं कि इन राज्यों में कांग्रेस का सांगठनिक ढांचा कमजोर पड़ गया है। उनका अंदेशा है कि कांग्रेस को बहुमत मिल भी जाता है तो उसकी सरकार नहीं बना सकने की आशंका से इंकार नहीं किया जा सकता है।  भाजपा इन राज्यों में राज्यपालों के जरिये केंद्रीय सत्ता के दुरूपयोग और अपार धनबल के सहारे कांग्रेस के निर्वाचित होने वाले विधायकों की खरीद -फरोख्त कर सकती है  जो वह कर्नाटक विधान सभा चुनाव में परास्त होकर और बगैर बहुमत के नई सरकार बना लेने के बाद भी नहीं कर सकी क्योंकि वहाँ कांग्रेस चुनाव पश्चात के ऐसे महागठबंधन को कायम करने में तेज, बहुत तेज साबित हुई। ऐसे में भाजपा को सत्ता से बेदखल होकर पतली गली पकड़नी पड़ी।

रमन्ना का कहना है कांग्रेस को इन पाँचों राज्यों में चुनावी महागठबंधन कर भाजपा की करारी हार सुनिश्चित करा चाहिए ताकि भाजपा, विधायकों की खरीद फरोख्त करने की हिम्मत ना जुटा सके। उनके अनुसार अगर कांग्रेस इन पांच में से तीन राजस्थान , छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश में चुनावी महागठबंधन कर दो-तिहाई बहुमत हासिल कर लेती है तो भाजपा के उक्त तीनों राज्यों की सत्ता बरकरार रखने के मंसूबों पर पानी फिर जाएगा। यही नहीं, तब केंद्र में सत्तारूढ़ नेशनल डेमोक्रेटिक अलायंस (एनडीए) के घटक दलों के बाहर निकलने की भगदड़ शुरू हो सकती है। लेकिन रमन्ना खुद ही यह भी कहते हैं कि कांग्रेस नेतृत्व से अन्य दलों के प्रति इतनी सदाशयता बरतने  की उम्मीद कम है। उन्होंने दो टूक कहा कि कांग्रेस में ‘ विजन ‘ का दोष है। वह इस स्तम्भकार की बात से सहमत हैं कि भाजपा, किसी भी राज्य में अपना कोई विधायक निर्वाचित नहीं होने की स्थिति में भी विधायकों की खरीद -फरोख्त कर अपनी सरकार बना सकती है। पूर्वोत्तर राज्यों, खासकर नागालैंड और मेघालय के हालिया चुनाव में इसकी झलकी कुछ हद तक नज़र आ चुकी है। वह इस बात से भी सहमत हैं कि कांग्रेस का अधिनायकवादी चरित्र काफी हद तक बरकरार है तभी उसने लोकसभा की गोरखपुर और फुलपुर सीटों पर उपचुनाव में बसपा के साथ उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्य मंत्री अखिलेश सिंह यादव की समाजवादी पार्टी का अप्रत्याशित चुनावी तालमेल हो जाने के बावजूद अपने उम्मीदवार खड़े कर दिए थे। यह दीगर बात है कि तब भी वहाँ भाजपा की करारी हार हुई। उन दोनों उपचुनावों से सबक लेकर कांग्रेस ने लोकसभा की कैराना सीट पर उपचुनाव में विपक्षी महागठबंधन की तरफ से पूर्व केंद्रीय मंत्री अजित सिंह के इंडियन नेशनल लोक दल की मुस्लिम महिला प्रत्याशी तबस्सुम को समर्थन देकर भाजपा को परास्त करने में योगदान दिया। वरिष्ठ पत्रकार उर्मिलेश का कहना है कि देश के तमाम राज्यों में ‘ संघ-भाजपा’ कामयाबी के झंडे गाड़ते आ रहे हैं। वे इस बार भी चुनाव नतीजों से पहले ही मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान में ‘ विपक्षी-विभाजन’उत्साहित नजर आ रहे हैं।

* मीडियाविजिल का यह चुनाव चर्चा कॉलम हर मंगलवार जारी रहेगा। हम जल्द ही हर रोज  शाम अलग से “चुनाव बुलेटिन” भी देने की कोशिश करेंगे  जो टेक्स्ट के अलावा ऑडियो -वीडियो  के रूप में भी उभर सकता है।

 



( मीडियाविजिल के लिए यह विशेष श्रृंखला वरिष्ठ पत्रकार चंद्र प्रकाश झा लिख रहे हैं, जिन्हें मीडिया हल्कों में सिर्फ ‘सी.पी’ कहते हैं। सीपी को 12 राज्यों से चुनावी खबरें, रिपोर्ट, विश्लेषण, फोटो आदि देने का 40 बरस का लम्बा अनुभव है।)