पावर सेक्टर होगा कॉरपोरेट के हवाले, आप पर गिरेगी (महँगी) बिजली !

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गिरीश मालवीय

 

रेलवे के बाद निजीकरण के मामले में सरकार की नजर आपके घर की बिजली पर है। सरकार चाहती है कि बिजली क्षेत्र पूरी तरह से प्राइवेट हाथों में चला जाए, और निजी बिजली कंपनियों को आपको लूटने का खुला लाइसेंस मिल जाए। अब शायद आपकी समझ में आ जाए कि प्रीपेड वाले स्मार्ट मीटर आपके घरों में क्यों लगवाए जा रहे हैं?

हम हमेशा से कहते आए हैं कि यह अडानी-अंबानी की सरकार है। यह सारे काम प्राइवेट सेक्टर के हितों के लिए करती है। जनता के हित जाए भाड़ में। मोदी सरकार ने विद्युत अधिनियम संशोधन बिल 2020 का मसौदा तैयार कर लिया है। केंद्र ने यह ड्रॉफ्ट देश के विभिन्न राज्यों की सरकारों को भेजा है और 5 जून तक इस ड्राफ्ट पर सुझाव मांगे हैं।

अगले संसद सत्र में इसे कानून बना दिया जाएगा। संशोधन के अनुसार हर उपभोक्ता को बिजली लागत का पूरा मूल्य देना होगा। अब ठीक से समझिए कि क्या होने जा रहा है, और यह बातें मैं नही कह रहा हूँ, यह बातें देश भर के वो विद्युतकर्मी कह रहे हैं, जो इस बिल के विरोध में हड़ताल कर रहे हैं। वे कहते हैं कि इस कानून के लागू होने पर सब्सिडी और क्रास सब्सिडी आने वाले तीन सालो में समाप्त हो जाएगी। अभी किसानों, गरीबी रेखा के नीचे और 500 यूनिट प्रति माह बिजली खर्च करने वाले उपभोक्ताओं को सब्सिडी मिलती है, जिसके चलते इन उपभोक्ताओं को लागत से कम मूल्य पर बिजली मिल रही है। अब नई नीति और निजीकरण के बाद सब्सिडी समाप्त होने से स्वाभाविक तौर पर इन उपभोक्ताओं के लिए बिजली महंगी होगी।

विद्युतकर्मी यह गणित समझा रहे हैं कि बिजली की लागत का राष्ट्रीय औसत रु 06.78 प्रति यूनिट है और निजी कंपनी द्वारा एक्ट के अनुसार कम से कम 16 प्रतिशत मुनाफा लेने के बाद रु 08 प्रति यूनिट से कम दर पर बिजली किसी को नहीं मिलेगी। इस प्रकार एक किसान को लगभग 6000 रु प्रति माह और घरेलू उपभोक्ताओं को 6000 से 8000 रु प्रति माह तक बिजली बिल देना होगा।

 

साफ है कि इलेक्ट्रिसिटी (अमेंडमेंट) बिल 2020 के पास होने के बाद आम उपभोक्ता किसान आदि के लिए बिजली की दरों में बेतहाशा वृद्धि होगी। जबकि उद्योगों व व्यावसायिक संस्थानों की बिजली दरों में कमी आ जाएगी।

इसके अलावा संशोधन बिल में पावर सप्लाई के लाइसेंस अलग-अलग करने तथा एक ही क्षेत्र में कई पावर सप्लाई कम्पनियां बनाने का प्राविधान है| यानी कि जैसे कि आपको चॉइस मिलती है कि आपको इण्डेन का घरेलू गैस सिलिंडर लेना है या HP का। वैसे ही चॉइस मिलेगी कि आपको रिलायंस का मीटर लेना है कि, अडानी पॉवर का, या किसी सरकारी कम्पनी का, लेकिन अंतर यह है कि बिजली क्षेत्र में सरकारी कंपनी को सबको बिजली देने (यूनिवर्सल पावर सप्लाई ऑब्लिगेशन) की अनिवार्यता होगी, जबकि प्राइवेट कंपनियों पर ऐसा कोई बंधन नहीं होगा।

स्वाभाविक है कि निजी आपूर्ति कंम्पनियां मुनाफे वाले बड़े वाणिज्यिक और औद्योगिक घरानों को बिजली आपूर्ति करेंगी, जबकि सरकारी क्षेत्र की बिजली आपूर्ति कंपनियां निजी नलकूप, गरीबी रेखा से नीचे के उपभोक्ताओं और लागत से कम मूल्य पर बिजली टैरिफ के घरेलू उपभोक्ताओं को बिजली आपूर्ति करने को विवश होगीं और घाटा उठाएंगी।

बिजली उत्पादन के क्षेत्र में निजी घरानों के घोटाले से बैंकों का ढाई लाख करोड़ रुपए पहले ही फंसा हुआ है। कोरोना के लिए 20 लाख करोड़ के राहत पैकेज में इन निजी पावर कंपनियों को उबारने के लिए 90 हजार करोड़ की मदद दी गयी है, लेकिन अब तो केंद्र में बैठी मोदी सरकार नए बिल के जरिये बिजली आपूर्ति निजी घरानों को सौंप कर और बड़े घोटाले की तैयारी कर रही है।

इस कानून के पास होने के कुछ ही समय बाद सरकारी कंम्पनिया बाहर हो जाएगी और निजी कंपनियों का पॉवर सेक्टर पर कब्जा हो जाएगा। प्राइवेट कंपनियों को कोई घाटा न हो इसीलिये सब्सिडी समाप्त कर आपके घरों मे धड़ाधड़ स्मार्ट प्रीपेड मीटर लगाए जा रहे है।

इस अमेंडमेंट बिल को लेकर बिजली कर्मचारियों में खासा आक्रोश है। इसके विरोध में देशभर के लगभग 15 लाख बिजली कर्मचारी हड़ताल कर रहे हैं, लेकिन यह सब बातें आपके न्यूज़ चैनलों के एंकर्स नहीं बताएंगे। उन्हें आपको सिर्फ हिन्दू-मुस्लिम में उलझा कर रखने की सुपारी दी गयी है।


गिरीश मालवीय, स्वतंत्र विश्लेषक हैं. यह लेख उनके फेसबुक पेज से लिया गया है.