1 जून को बिजली कर्मियों का देशव्यापी विरोध, योगी सरकार ने लगाया प्रतिबंध

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पावर सेक्टर के निजीकरण के लिए लाये गये ‘विद्युत संशोधन कानून-2020’ के खिलाफ बिजली कर्मियों के 1 जून 2020 को देशव्यापी विरोध व काला दिवस मनाने का एलान किया है। लेकिन प्रस्तावित देशव्यापी विरोध व काला दिवस मनाने के कार्यक्रम को उत्तर प्रदेश सरकार ने राज्य में प्रतिबंधित कर दिया है। दरअसल हाल ही में केंद्र सरकार ने देश के विद्युत क्षेत्र में सुधार करने के लिए ‘विद्युत अधिनियम (संशोधन) विधेयक, 2020’ के मसौदे को मंजूरी दी है। जिसका देशभर में बिजलीकर्मी विरोध कर रहे हैं। उत्तर प्रदेश में विद्युत कर्मचारी संयुक्त संघर्ष समित के बैनर तले 18 संगठन एक जून को देशव्यापी विरोध व काला दिवस मनाने की तैयारी कर रहे हैं।

योगी सरकार ने सभी श्रम और सेवा संगठनों के अध्यक्ष और महामंत्री को लिखे पत्र में कहा है कि “आपके संगठन द्वारा दिनांक 1-6-2020 को काला दिवस मनाने एक अपरान्ह 3 बजे से 5 बजे तक विरोध प्रदर्शन करने का आह्वान किया गया है। उक्त के संबंध को में आपको अवगत कराना है कि उत्तर प्रदेश शासन ने उ.प्र. आवश्यक सेवाओं का अनुरक्षण अधिनियम-1966 के अंतर्गत ऊर्जा क्षेत्र के अधीन समस्त सेवाओं के लिए हड़ताल निषिद्ध किया है। और इसका उल्लंघन करने पर अर्थदंड तथा एक वर्ष तक के कारावास दिये जाने का प्रवाधान है। इसलिए काला दिवस व विरोध प्रदर्शन करना न केवल अनुचित अपितु अवैधानिक भी है”।

पत्र में कहा गया है कि “कोविड-19 महामारी के चलते विरोध प्रदर्शन आदि किया जाना सरकार की नीति के प्रतिकूल है। अत: प्रस्तावित सांकेतिक काला दिवस एवं विरोध प्रदर्शन न करें, अन्यथा की स्थिति में जो भी विधिक कार्यवाही की जाएगी उसके लिए संगठन स्वयं जिम्मेदार होंगे”।

दरअसल केंद्र सरकार द्वारा प्रस्तावित ‘विद्युत संशोधन कानून-2020’ के अनुसार, नियामक विद्युत उत्पादन और उसके वितरण की लागत के आधार पर विद्युत दरों का निर्धारण करेंगे, नियामकों द्वारा निर्धारित दरों में सब्सिडी को शामिल नहीं किया जाएगा। वहीं किसानों को प्रत्यक्ष लाभ हस्तांतरण के माध्यम से सीधे उनके खाते में सब्सिडी प्रदान की जाएगी। इस मसौदे में विद्युत अधिनियम के प्रावधानों और आयोग के आदेशों का अनुपालन सुनिश्चित करने के उद्देश्य से दंडात्मक कार्रवाई के रूप में अधिक जुर्माना लगाए जाने हेतु विद्युत अधिनियम की धारा 142 और 146 में संशोधन का प्रस्ताव किया गया है।

केंद्र सरकार के मसौदे में भारत तथा अन्य देशों के बीच बिजली व्यापार को बढ़ावा देने तथा इसे और अधिक आसान बनाने के लिये आवश्यक प्रावधानों को प्रस्तावित किया गया है। साथ ही राज्यों में विद्युत वितरण कंपनियों को किसी क्षेत्र विशेष में विद्युत् वितरण के लिये फ्रेंचाइजी और उप-वितरण कंपनियों को जोड़ने का अधिकार देने का प्रस्ताव किया है।

योगी सरकार द्वारा प्रस्तावित काला दिवस कार्यक्रम पर प्रतिबंध लगाने का यूपी वर्कर्स फ्रंट ने विरोध किया है। वर्कर्स फ्रंट के प्रदेश अध्यक्ष दिनकर कपूर ने कहा है कि देशव्यापी कार्यक्रम को प्रतिबंधित करना गैरकानूनी व संविधान विरुद्ध है, साथ ही यह अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन के बाध्यकारी नियमों के भी खिलाफ है। उन्होंने कहा कि बिजली कामगारों का आंदोलन किसान, आम नागरिक के हित में है और पावर सेक्टर को कारपोरेट्स को सौंपने की मोदी सरकार की कार्यवाही राष्ट्रीय हितों के विरुद्ध है।

दिनकर कपूर ने कहा कि इस बिल में प्रस्तावित देश के बाहर बिजली बेचने का प्रावधान मोदी जी के एक कार्पोरेट मित्र के लिए लाया गया है जो कच्छ गुजरात में बन रही अपनी बिजली को पाकिस्तान को बेचने के लिए बेताब है। इसीलिए प्रधानमंत्री आये दिन इस बिल को लाने के लिए प्रयास कर रहे है। इसके विरोध से बौखलाई आरएसएस-भाजपा की सरकार ने प्रतिबन्ध लगाया है।

उन्होंने बिजली कामगारों से अपील की कि लेकिन इससे निराश होने या घबराने की जगह जनता को सचेत करने और सरकार की जन विरोधी नीतियों के खिलाफ बड़े जन जागरण की जरुरत है जिसे पूरा करना होगा। देश के लोकतान्त्रिक मूल्यों में विश्वास करने वाले दलों, संगठन व व्यक्तियों और किसान आन्दोलन, व्यापार मंडलों के प्रतिनिधियों के साथ मिलकर इस विरोध को राजनातिक प्रतिवाद में बदलना होगा। यह बेहद डरी हुई सरकार है इससे राजनीतिक तरीके से ही मुकाबला किया जा सकता है।

उन्होंने कहा कि इस बिल के मुख्य प्रावधान सब्सिडी व क्रास सब्सिडी खत्म करना, डिस्कॉम (वितरण) को कारपोरेट कंपनियों के हवाले करना और टैरिफ की नयी व्यवस्था से न सिर्फ कोरोना महामारी में जमीनी स्तर पर जूझ रहे बिजली कामगारों के भविष्य को खतरे में डाला जा रहा है, बल्कि इससे आम उपभोक्ताओं खासकर किसानों पर भारी बोझ डाला जायेगा, जिसकी शुरुआत बिजली दरों में बढ़ोतरी कर पहले ही हो चुकी है।

जानकारों का कहना है की इस बिल के बाद किसानों और आम उपभोक्ता को करीब दस रुपया बिजली प्रति यूनिट खरीदने के लिए बाध्य होना पड़ेगा। दरअसल लोकल पर फोकल करने वाली मोदी सरकार कोरोना महामारी से पैदा हुए आर्थिक संकट के बहाने देश की सार्वजनिक संपत्ति को बेचने और बर्बाद करने में लगी है। कोयले के निजीकरण के लिए अध्यादेश लाया जा चुका है, रक्षा जैसे राष्ट्रीय हित के महत्वपूर्ण सेक्टर में विदेशी पूंजी निवेश की अनुमति दे दी गयी। बैंक और बीमा को बर्बाद कर दिया गया। वास्तव में बिजली सेक्टर पर ये हमला भी इसी देश बेचो योजना का हिस्सा है।

उन्होंने कहा कि बिजली के घाटे का तर्क भी बेईमानी है क्योकि घाटा कॉरपोरेट परस्त नीतियों की देन है। उत्तर प्रदेश का ही उदाहरण देखलें, यूपीपीसीएल द्वारा न सिर्फ केंद्रीय पूल से राष्ट्रीय औसत से काफी सस्ते दर से बिजली खरीदी जाती है बल्कि अनपरा, ओबरा और जल विद्युत गृहों से काफी निम्न दर से बिजली का उत्पादन किया जाता है। लेकिन इन सस्ते बिजली पैदा करने वाले उत्पादन केन्द्रों में थर्मल बैकिंग करा कर उत्पादन रोका जाता है, वहीं कार्पोरेट घरानों से अत्यधिक मंहगी दरों से बिजली खरीदी जाती है। यह भी सर्वविदित है कि देश में निजी घरानों को सस्ते दामों पर जमीन से लेकर लोन तक मुहैया कराया गया और हर तरह से पब्लिक सेक्टर की तुलना में तरजीह दी गई। तब इनके यहां उत्पादित बिजली की लागत ज्यादा आना लूट के सिवाय और कुछ नहीं है। यही नहीं इन कॉरपोरेट घरानों ने बैंक से लिए कर्जो का भुगतान तक नहीं किया जो आज बैंकों के एनपीए में एक बड़ा हिस्सा है।


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