‘रेप’ब्लिक के विरोध में आज रात 12 बजे से 24 घंटे के लिए ग़ायब रहेंगी महिलाएँ

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क्या फ़ेसबुक पर हमारा वजूद सिर्फ़ हमारी तस्वीर की वजह से है?

सुजाता

पिछले साल का एक संदेश इस बार फिर चल पड़ा कि महिलाएँ अपनी डीपी को एक दिन के लिए काला करें मर्दों को एहसास कराएँ कि हमारे बिना दुनिया कितनी सूनी होगी। हम नहीं जानते कि यह संदेश कहाँ , किस स्रोत से चला और और क्यों चला।

लेकिन अचानक रात होते-होते हमारे इन्बॉक्स इस संदेश से भरने लगे। हम यह पिछले साल भी इस तरह कर चुके थे। इसलिए उत्साह नहीं था। पहली बात तो यह कि जहाँ से इस तरह के संदेश शुरुआत में चले होते हैं वे यह स्पष्ट नहीं करते कि क्या संदेश, कैसे, किस तक, क्यों पहुँचाना है। महज़ डीपी काली करके मर्दों को कैसे एहसास दिलाया जाएगा कि दुनिया हमारे बिना कितनी सूनी और बेस्वाद होगी। इसका मतलब औरत की तस्वीरें फेसबुक की दुनिया को रौनक देती हैं? क्योंकि डीपी काली करने के बाद भी उसका लिखा, उसका लाइक, उसका कमेण्ट तो रहने ही वाला है। यह बेहद पितृसतात्मक सोच है।

जिस तरह से स्त्रियों के ख़िलाफ़ अपराध बढ रहे हैं और फेसबुक पर भी गालियाँ-नसीहतें-उपदेश-ट्रॉलिंग मिलती रहती है औरतों को उसके जवाब में होना तो यह चाहिए था कि हम सब स्त्रियाँ घरों को एक दिन के लिए त्याग कर, घरेलू श्रम से एक दिन के लिए अपना हाथ खींच कर,  दफतरों को छोड़कर चली जाएँ। पार्क में बैठें। ताश खेलें। सिनेमा हॉल, सड़कें, रेस्तराँ, लाइब्रेरीज़, बेंचें, ट्रेनें, बसें, जितना भी पब्लिक प्लेस है, सब भर दें !

लेकिन वर्चुअल दुनिया में एक दिन के लिए फेसबुक का घर तो खाली किया ही जा सकता है। यह सामूहिक गायब होना एक संदेश होगा। ‘पल्स पोलियो’ अभियान याद है न। हम औरतें जो धड़कन की तरह हैं, वह चलती हुई नज़्ब  पूरी दुनिया में एकसाथ बंद हो जाए तो ? जिस तरह औरतों के वजूद को मिटाने की साज़िशें हो रही हैं , एक दिन खुद हमीं कह दें कि सम्भालो अपनी दुनिया, रहो हमारे बिना , तो ?

संदेश यह कि हमें अस्वीकार है यह स्त्री-अपराधों-बलात्कारों से अटी पड़ी दुनिया। हम निंदा करते हैं। बच्चियों की हत्याओं-बलात्कारों से हम शोक में हैं। हम गुस्से में हैं। हम सड़कों पर उतर आए, हम चिल्लाए, प्लेकार्ड दिखाए, सिग्नेचर कैम्पेन चलाए, आँसू बहाए, विचलित होकर पोस्ट लिख रहे हैं लगातार। लेकिन विरोध दर्ज करने का हर तरीक़ा नाकाफ़ी लग रहा है। बेवकूफी सही, लेकिन यह हमारी सोची हुई बेवकूफी है। किसी अनजान स्रोत से फैलाई जा रही नहीं।

ऐसे में जो लोग कह रहे हैं एक दिन से क्या होगा उनसे हम सहमत हैं। एक दिन करवा-चौथ रखने से प्यार भी नहीं बढेगा। एक दिन दिवाली मनाने से लक्ष्मी नहीं आएगी। एक दिन पढाने से बच्चे पास नहीं होते। एक दिन आप सड़कों पर रहेंगी नारे लगाते तो , बच्चों को होमवर्क कराता, एक की पॉटी साफ करता मर्द आपसे रिश्ता नहीं तोड़ लेगा। एक दिन खाना न खाने से मर नहीं जाते। एक दिन घर-बार छोड़ कर औरत के हक़ में निकल आने से घर टूट नहीं जाएंगे ! एक दिन अकेले मस्ती के लिए निकल जाएंगी तो पति तलाक़ नहीं दे देगा। एक दिन समाज के लिए दे देने से ससुराल वाले आपको कुलटा नहीं कह देंगे।

एक दिन ज़ुल्म के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाने से बार-बार आवाज़ उठाने की हिम्मत आती है। एक दिन चिल्लाने से सत्ता के कान फट जाते हैं। बस हम आवाज़ में आवाज़ मिलाने से डरते हैं।

आइए आज रात एक साथ 12 बजे डीएक्टीवेट करें कल रात 12 बजे तक ।
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 और दोस्तों से – bear  the  world without  women  🙂



चर्चित कवयित्री और लेखिका सुजाता दिल्ली विश्वविद्यालय में असिस्टेंट प्रोफ़ेसर हैं।



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