चीखते ऐंकरों के दौर में RSTV की प्यार भरी ‘गुफ़्तगू’ के 300 एपीसोड पूरे, आज बतियाएँगे नसीर

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जिस दौर में टी.वी.चैनलों का मतलब ही शोर और हुल्लड़बाज़ी हो गया हो, ‘गुफ़्तगू’ के 300 एपीसोड पूरा होना एक घटना है। राज्यसभा चैनल का यह  इंटरव्यू शो  सिर्फ़ भारत नहीं, ग्लोब के दूसरे हिस्सों में भी दर्शकों की वाहवाही लूट रहा है। वे शिद्दत से इसका इंतज़ार करते हैं। आज यानी 14 अक्टूबर को रात साढ़े दस बजे अभिनय ही नहीं, बेबाक़ी के लिए भी मशहूर नसीरुद्दीन शाह के साथ गुफ़्तगू के ज़रिए कार्यक्रम का तिहरा शतक पूरा होगा।

2011 में शुरू हुआ यह कार्यक्रम अपनी संकल्पना घोषित करते हुए कहता है- “यह प्रोग्राम कला, साहित्य, संस्कृति और सिनेमा सहित जीवन के कोमल पक्षों से जुड़े उन महत्वपूर्ण लोगों के साथ इंटरव्यू की श्रृंखला है जिनके जीवन और कृतित्व से हमारा समय प्रभावित हुआ है।”  इस शो में बिना किसी सनसनी और आक्रामकता के आमंत्रित गेस्ट की जीवन यात्रा कुछ इस तरह पेश की जाती है कि सुदूर गावों, क़स्बों, जनपदों में बैठे दर्शकों भी बँधे रह जाते हैं।

गुफ़्तगू की एक बड़ी वजह साक्षात्कार लेने वाले सैयद मोहम्मद इरफ़ान की अपनी शख्सियत और अदाज़ भी है। इरफ़ान न कोई चीख़-पुकार मचाते हैं और न सामने वाले को बेइज़्ज़त करते हैं ( जो इस दौर के टी.वी.साक्षात्कारों की ख़ास पहचान है), उल्टा वे बड़े प्यार से बात करते हुए इंटरव्यू देने बैठी शख्सियत के दिल में उतर जाते हैं। फिर वो कभी हँसता है तो कभी रुआँसा होता है। लगता है जैसे उसे बातचीत करने की बरसों पुरानी चाह पूरी करने का रास्ता मिल गया है। कोई अपना मिल गया हो। वह दिल खोलकर रख देता है।

guftgoo-gulzarमशहूर फ़िल्मकार और लेखक गुलज़ार ने गुफ़्तगू के तीन सौ एपीसोड पूरा होने पर बधाई देते हुए कहा है कि उनके चुनिंदा बेहतर इंटरव्यू में एक वह है जो इरफ़ान ने गुफ़्तगू के लिए लिया था। उसमें कोई लिखे सवाल नहीं थे, बस दिल से दिल की बात थी। उन्होंने गुफ़्तगू की क़ामयाबी के पीछे इरफ़ान की लगन और मेहनत को ख़ासतौर पर सराहा जिसने इस शो को ख़ास बना दिया।

गुलज़ार का इसे चिन्हित करना स्वाभाविक ही है। हाल के वर्षों में टीवी एंकरों ने अपने पूर्व निर्धारित एजेंडे के साथ लगातार टोका-टाकी करने वाली शैली अख़्तियार करके टीवी इंटरव्यू फॉरमैट को अरुचिकर और प्रायः घृणास्पद बना डाला है। ऐसे में, टीवी दर्शकों की एक पूरी पीढ़ी, जिसने सकारात्मक और सुस्वादु इंटरव्यूज़ नहीं देखे हैं, वह गुफ़्तगू के साथ जुड़ गयी । यहाँ उसे भाषाई शिक्षण और प्रस्तुति की शालीनता के अलावा अतीत की झाँकी और वर्तमान की चिंताओं का एक स्वस्थ ख़ाका मिलता है। पुराने दर्शक इसे ‘क्लासिक दूरदर्शन फ्लेवर’ कहकर खुश होते है तो नए दर्शक भी इसे ‘आतताई एंकरों’ द्वारा खाली की जा चुकी ज़मीन पर विकसित हुआ प्रोग्राम मानते हैं।

vineetयुवा मीडिया समीक्षक विनीत कुमार ने इस कार्यक्रम के 200 एपीसोड पूरा होने के मौके पर जो कहा था वह आज भी सही उतरता है। विनीत ने कहा था कि इस कार्यक्रम को सिर्फ़ सेलीब्रिटी के लिए नहीं देखा जाता बल्कि प्रस्तोता इरफ़ान की हिंदी सुनने के लिए भी देखा जाता है। वे जिस तरह सहज ढंग से भाषा को बरतते हैं, वह क़माल है। एक ख़ासियत यह भी है कि जहाँ निजी चैनलों में इंटरव्यू करने वाला पत्रकार अभिभूत दिखता है, उसे  लगता है कि इंटरव्यू देने वाला कोई अहसान कर रहा है, वहीं इरफ़ान पर किसी के स्टारडम का असर नहीं दिखता। वे बड़ी सहजता से क्रिटिकल सवाल भी पूछते हैं लेकिन इंटरव्यू देने वाले को कभी नहीं लगता कि वह कहीं कठघरे में खड़ा है।

निजी चैनेलों से तो उम्मीद ही क्यों करें, अफ़सोस यह कि  ‘पब्लिक सर्विस ब्रॉडकास्टर्स’ भी अपनी धरोहर के प्रति लगातार पीठ करके खड़े रहे हैं जबकि वे इतिहास को संरक्षित कर सकते हैं। नतीजे के तौर पर अलग-अलग विधाओं में डंका बजाने वालों के साथ ढंग की बातचीत का कोई ‘कॉम्प्रिहेंसिव आर्काइव’ आज ढूंढे नहीं मिलता। इसके लिए जो दृढ़ता और अपनी थाती के लिए सम्मान का भाव होना चाहिए, वह शायद दूरदर्शन जैसे संस्थान में था ही नहीं। ऐसे में ‘गुफ़्तगू’ एक सुखद आश्चर्य की तरह है जिसने एक ओर पेंटिंग, फ़ोटोग्राफ़ी, संगीत, साहित्य, मूर्तिकला, कार्टूनकला, रंगमंच, रेडियो, अकेडेमिया, एडमिनिस्ट्रेशन, कानून और जैसे विविध विषयों से जुडी नामचीन हस्तियों से दर्शकों को परिचित कराया है तो दूसरी ओर सिनेमा के विविध पक्षों से जुडी सेलिब्रिटीज़ से मिलवाने का क्रम जारी रखे हुए है।

तीन सौ एपिसोड पूरे करने के साथ ही ‘गुफ़्तगू’ देश का सबसे लंबा चलने वाला ऐसा इंटरव्यू शो बन गया है जो पिछले सात वर्षों से नेशनल टीवी पर हर सप्ताह दिखाया जा रहा है। टीवी पर प्रसारण के साथ ही इसे इसके दर्शक यूट्यूब की लाइव स्ट्रीमिंग के ज़रिये विदेश में भी बड़ी संख्या में देखते हैं।अमेरिका, इंग्लैंड और कनाडा में बसे गुफ़्तगू प्रशंसकों की सोशल मीडिया पर आने वाली टिप्पणियाँ इसकी गवाह हैं। फ्रांस में हिन्दी पढ़ रहे छात्रों के बीच भी यह काफ़ी लोकप्रिय है।

 

300वें एपीसोड की एक झलकी देखनी हो तो नीचे क्लिक करिए–

 



 


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