योगी सरकार बदलेगी भूमि अधिग्रहण कानून, लोक मोर्चा ने कहा- किसानों पर धावा !

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उत्तर प्रदेश सरकार ने भूमि अधिग्रहण के नियमों को आसान करने का फैसला लिया है। सरकार का कहना है कि इससे उद्योग लगाने के लिए जमीन आसानी से मिल सकेगी. सरकार राजस्व संहिता में संशोधन करेगी, जिससे उद्योगों को आसानी से जमीन उपलब्ध कराई जा सके। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने उद्योगों के लिए लैंडबैंक जुटाने के भी निर्देश दिए हैं।

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के दिशा-निर्देश में औद्योगिक विकास मंत्री सतीश महाना ने इस संदर्भ में मुख्य सचिव राजेन्द्र कुमार तिवारी के साथ अवस्थापना एवं औद्योगिक विकास आयुक्त समेत 18 विभागों के प्रमुख अधिकारियों के साथ बैठक की जिसमें यह फैसले लिए गए हैं। बैठक में तय हुआ है कि भूमि अधिग्रहण अधिनियम-2013 में बदलाव कर एक्सप्रेस वे के दोनों ओर एक-एक किलोमीटर जमीन अधिग्रहण की जाए।

खबरों के अनुसार राज्य के वित्त विभाग ने सुझाव दिया है कि बंद पड़ी सार्वजनिक क्षेत्र की इकाइयों की भूमि को नीलाम की जाएं। साथ ही भूमि आवंटन के बाद 5 साल की समय सीमा में अगर कोई इंडस्ट्रियल यूनिट नहीं लगाई गई तो आवंटन को रद्द करने का प्रस्ताव लाने को कहा गया है। औद्योगिक विकास प्राधिकरणों में राजस्व ग्रामों के  शामिल होने पर इन गांवों की सार्वजनिक भूमि को प्राधिकरण में निहित करने का प्रस्ताव तैयार करने को कहा गया है।

औद्योगिक विकास मंत्री सतीश महाना

योगी सरकार के इस फैसले का राज्य में विरोध भी शुरू हो गया है। लोक मोर्चा ने योगी सरकार के इस फैसले को किसानों पर हमला बताता हुए विरोध किया है। लोक मोर्चा का कहना है कि उद्योगों को श्रम कानूनों से तीन साल छूट देकर कामगारों के अधिकारों पर हमला बोलने के बाद अब योगी सरकार ने किसानों पर धावा बोल दिया है।

लोक मोर्चा के संयोजक अजीत सिंह यादव ने कहा कि किसानों की जमीनें हड़पकर योगी सरकार पूँजी घरानों को देने की साजिश कर रही है। जिसे किसी भी कीमत पर सफल नहीं होने दिया जाएगा। उन्होंने कहा कि किसानों की जमीनें छीनने के लिए राजस्व सहिंता और भूमि अधिग्रहण कानून 2013 में बदलाव के लिए योगी सरकार यदि कोई अधिसूचना जारी करती है, तो उसे इलाहाबाद हाईकोर्ट में चुनौती देने के लिए लोक मोर्चा याचिका दाखिल करेगा।

अजित यादव ने कि एक्सप्रेस वे के दोनों ओर एक किलोमीटर की दूरी की जमीन अधिग्रहण के लिए योगी सरकार ने भूमि अधिग्रहण कानून 2013 में बदलाव का फैसला किया है। इसके साथ ही औद्योगिक इकाइयों-औद्योगिक पार्कों के लिए कृषि भूमि को लीज पर देने की अनुमति के लिए राजस्व सहिंता में संशोधन करने का फैसला लिया है।

लोक मोर्चा संयोजक ने बताया कि किसानों की व्यक्तिगत कृषि भूमि ही नहीं ग्राम सभाओं की सार्वजनिक भूमि को हड़पने के लिए उनको औद्योगिक विकास प्राधिकरणों में समाहित करने का प्रस्ताव भी योगी सरकार तैयार कर रही है।

अजित यादव ने कहा कि सरकार की एक्सप्रेस वे के किनारे औद्योगिक हब बसाने और विकास आदि की बातें महज लफ्फाजी हैं। हमने देखा है कि पहले से ही निर्मित यमुना एक्सप्रेस वे और आगरा लखनऊ एक्सप्रेस वे के किनारे भी औद्योगिक हब बनाने व विकास की बड़ी बड़ी बातें सरकारों ने की थीं, लेकिन आज तक कोई पूंजी निवेश नहीं आया और कोई औद्योगिक हब नहीं बन सका। न ही कोई विकास हुआ।

मेरठ से प्रयागराज तक बनाये जाने वाले 596 किलोमीटर लंबे गंगा एक्सप्रेस वे पर सरकारी अनुमान के मुताबिक 36 हजार करोड़ रुपया का खर्च आएगा और 65 हजार हेक्टेयर जमीन का अधिग्रहण होगा। पूर्वांचल एक्सप्रेस वे आदि सड़क परियोजनाओं में एक लाख करोड़ रुपया से भी अधिक लागत का अनुमान है। उन्होंने कहा कि योगी सरकार द्वारा प्रस्तावित गंगा एक्सप्रेस वे, पूर्वांचल एक्सप्रेस वे आदि सड़क परियोजनाएं जनता के धन की बर्बादी है। कृषि भूमि के अधिग्रहण से कृषि क्षेत्र कम होगा जिससे देश प्रदेश की खाद्यान्न सुरक्षा और आत्मनिर्भरता संकट में पड़ जाएगी एवं कृषि से जीविका चला रहे किसानों को बेदखल कर दिया जाएगा, उन्हें कोई वैकल्पिक रोजगार भी नहीं मिल सकेगा।

उन्होंने कहा कि कोरोना महामारी के महासंकट के समय सरकार को चाहिए कि गंगा एक्सप्रेस वे, पूर्वांचल एक्सप्रेस वे समेत सड़क परियोजनाओं में जनता के धन की बर्बादी करने की जगह मेरठ से प्रयागराज जाने के लिए व पूर्वांचल में पहले से ही मौजूद सड़कों को बेहतर बनाये। उन्होंने कहा कि कोरोना महामारी से उपजे महासंकट में बेरोजगारी , भुखमरी और किसान संकट से जूझ रही प्रदेश की 22 करोड़ जनता की बेहतरी के लिए जनता के खजाने का उपयोग किया जाना चाहिए।

उन्होनें कहा कि सूबे में पहले से ही किसानों की लाखों हेक्टेयर कृषि भूमि को उद्योगों को लगाने के नाम पर अधिग्रहित किया जा चुका है और उन पर आज तक कोई उद्योग नहीं लगे हैं। उन्होनें सवाल किया कि अगर सरकार उद्योग ही लगाना चाहती है तो पहले से अधिग्रहीत जमीनों पर क्यों नहीं लगाती? जाहिर है सरकार की मंशा उद्योग लगाने की नहीं, बल्कि किसानों की जमीनें हड़पकर पूँजीघरानों को देने की है।

उन्होनें मांग की है कि सरकार सूबे में अब तक किसानों की अधिग्रहीत जमीनों को लेकर स्वेत पत्र लेकर आये और सूबे में भूमि उपयोग नीति बनाये साथ ही कृषि भूमि को गैर कृषि कार्यों को देने पर रोक लगाए।