कोयला खदानों की कॉरपोरेट नीलामी के ख़िलाफ़ मज़दूरों की तीन दिवसीय हड़ताल शुरू

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देश के 41 कोल ब्लॉकों को निर्यात के उद्देश्य से व्यावसायिक खनन के लिए कॉरपोरेटों को नीलाम करने तथा कोल इंडिया के निजीकरण की केंद्र सरकार की मुहिम के खिलाफ कोयला मजदूरों की आज से शुरू तीन दिनों की देशव्यापी हड़ताल शुरू हो गई है। मजदूर संगठन बृहस्पतिवार को सुबह छह बजे शुरू होने वाली पहली पाली से हड़ताल पर चले गए। व्यावसाइक खनन को मंजूरी समेत केंद्र सरकार की तमाम मजदूर विरोधी नीतियों के खिलाफ केंद्रीय श्रमिक संगठन एटक, सीटू, एक्टू, इंटक, बीएमएस और एचएमएस के आह्वान पर ये तीन दिवसीय हो रही है।

तीन दिवसीय हड़ताल के जरिए श्रमिक संगठन मांग कर रहे हैं कि कोयला उद्योग में व्यावसायिक खनन का फैसला वापस लिया जाये, कोयला उद्योग के निजीकरण की नीति वापस हो, सीएमपीडीआइ को कोल इंडिया से अलग नहीं किया जाये, ठेका मजदूरों को हाइ पावर कमेटी की अनुशंसा के अनुसार मजदूरी मिले और राष्ट्रीय कोयला वेतन समझौता को पूर्णतः लागू किया जाये। बता दें कि कोल इंडिया हर दिन औसतन 13 लाख टन कोयले का उत्पादन करता है, इस तरह तीन दिनों तक चलने वाली इस हड़ताल से कोयला उत्पादन में 40 लाख टन का नुकसान होने का अनुमान लगाया जा रहा है।

कोयला मजदूरों की हड़ताल को भूमि अधिकार आंदोलन और इससे जुड़े किसानों और आदिवासियों के संगठनों ने समर्थन देते हुए कल देशव्यापी विरोध प्रदर्शन का ऐलान किया है। छत्तीसगढ़ राज्य में भी छत्तीसगढ़ किसान सभा, आदिवासी एकता महासभा, हसदेव अरण्य बचाओ संघर्ष समिति, राजनांदगांव जिला किसान संघ, छग प्रगतिशील किसान संगठन, दलित-किसान आदिवासी मंच, क्रांतिकारी किसान सभा, जनजाति अधिकार मंच, छग किसान महासभा और छग मजदूर-किसान महासंघ सहित प्रदेश के 25 संगठनों ने कोल खनन से प्रभावित होने वाले आदिवासियों के विस्थापन, पर्यावरण, जैव विविधता व वन्य प्राणी संरक्षण जैसे मुद्दों पर एकजुट हो गए हैं।

ये सभी संगठन कोयला मजदूरों की मांगों के साथ एकजुटता दिखाते हुए और आदिवासी जन-जीवन की रक्षा के लिए संघर्ष के मैदान में उतरेंगे और प्रभावित कोल ब्लॉकों सहित अनेकों गांवों में केंद्र सरकार की मजदूर-किसान-आदिवासी विरोधी नीतियों के खिलाफ प्रदर्शनों का आयोजन करेंगे। ये सभी संगठन राज्य सरकार से भी मांग कर रहे हैं कि झारखंड की तरह छत्तीसगढ़ सरकार भी केंद्र के इस कदम को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दें, क्योंकि केंद्र सरकार का यह फैसला राज्यों के अधिकारों और संविधान की संघीय भावना का भी अतिक्रमण करता है।

किसान संगठनों से जुड़े नेताओं संजय पराते, आलोक शुक्ला, सुदेश टीकम, आई के वर्मा, राजिम केतवास, पारसनाथ साहू, तेजेन्द्र विद्रोही, नरोत्तम शर्मा, बाल सिंह ने प्रेस को जारी बयान में कहा कि विकास के नाम पर विभिन्न परियोजनाओं की आड़ में अभी तक दो करोड़ से ज्यादा आदिवासियों और गरीब किसानों को उनकी भूमि से विस्थापित किया गया है। वैश्वीकरण की नीति, जो प्राकृतिक संपदा को हड़पने की भी नीति है, ने विस्थापन की इस प्रक्रिया को और तेज कर दिया है।

नेताओं ने कहा कि आज देश के 10 करोड़ आदिवासी व किसान वनोपज संग्रहण से अपनी कुल आय का 40% हिस्सा अर्जित करते हैं। ऐसे में उनकी आजीविका की चिंता किये बिना केवल कॉर्पोरेट मुनाफे के लिए कोयला खोदना समूची आदिवासी नस्ल को विनाश में ढकेलना है, क्योंकि निजी कंपनियां पुनर्वास और मुआवजे की शर्तों का पालन नहीं करती। विस्थापन से आदिवासी समुदायों की सामाजिक-आर्थिक, सांस्कृतिक-आध्यात्मिक और परंपरागत अधिकारों का भी हनन होता है।

किसान नेताओं ने बताया कि कोरबा में ही 2004-14 के दौरान कोल खनन के लिए 23254 लोगों की भूमि अधिग्रहित की गई है, लेकिन केवल 2479 लोगों को ही नौकरी और मुआवजा दिया गया है।

मोदी सरकार पर देश के सार्वजनिक क्षेत्र को तहस-नहस करने का आरोप लगाते हुए उन्होंने कहा कि इसी घृणित उद्देश्य से देश के चार लाख मजदूरों को जीवन-सुरक्षा देने वाली कोल इंडिया को भी बदनाम किया जा रहा है और उसकी उपलब्धियों को दफनाने की कोशिश की जा रही है। उन्होंने बताया कि वर्ष 2018-19 में कोल इंडिया ने न केवल 53236 करोड़ रुपये केंद्र सरकार को राजस्व, रॉयल्टी, सेस और करों के रूप में दिए हैं, बल्कि 17462 करोड़ रुपयों का मुनाफा भी कमाया है।

नेताओं ने कहा कि छत्तीसगढ़ सरकार को भी यहां की कोयला खदानों से 4320 करोड़ रुपयों की प्राप्ति हुई है। इसके बावजूद कोल इंडिया को कमजोर करने और अपने को आत्मनिर्भर बनाने के लिए केंद्र सरकार ने उसके रिज़र्व फंड से 64000 करोड़ रुपये निकाल लिए हैं, जो उसके द्वारा पिछले चार सालों में अर्जित मुनाफे के बराबर हैं। आर्थिक रूप से पंगु करने के बाद अब यही सरकार कोल इंडिया की सक्षमता पर सवाल खड़े कर रही है।

इन किसान नेताओं ने कहा है कि हसदेव अरण्य स्थित चार कोल ब्लॉकों को नीलामी से हटाने का केंद्र सरकार का फैसला इस आंदोलन की शुरूआती जीत है। इससे साबित हो गया है कि आदिवासी जन जीवन और पर्यावरण-संबद्ध मुद्दों की चिंता किये बिना ही कॉर्पोरेट मुनाफे के लिए बहुमूल्य प्राकृतिक संसाधनों को, जिनका पुन: सृजन नहीं हो सकता, को बेचने का फैसला लिया गया है।

नेताओं ने कहा कि यह फैसला देश को बेचने के समान है। किसान नेताओं ने सभी कोल ब्लॉकों को नीलामी की प्रक्रिया से हटाने, निर्यात के लिए कोयला खोदने और निजीकरण की नीति पर रोक लगाने की मांग की है। इन्हीं मांगों को लेकर कल पूरे छत्तीसगढ़ में विरोध प्रदर्शन आयोजित किये जायेंगे।


किसान संगठनों और नेताओं की ओर से संजय पराते द्वारा जारी विज्ञप्ति पर आधारित


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