“दम है कितना दमन में तेरे, देखा है और देखेंगे” वाला जज़्बा दिखाने का वक़्त- प्रशांत भूषण

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सुप्रीम कोर्ट की अवमानना का दोषी ठहराने के बाद माफ़ी न माँगकर हर सज़ा स्वीकार करने का ऐलान करने वाले मशहूर वकील प्रशांत भूषण ने मोदी सरकार पर तीखा हमला बोलते हुए हालात को इमरजेंसी से भी बदतर बताया है। उन्होंने युवाओं का आह्वान किया कि यह वक़्त ‘दम है कितना दमन में तेरे, देखा है और देखेंगे’ का जज़्बा दिखाने का है।

प्रशांत भूषण यूथ फॉर स्वराज के “एक नागरिक के रूप में हमारा सर्वोच्च कर्तव्य: भारत आज अपने युवाओं क्या चाहता है?” विषय पर ऑनलाइन इन्टरव्यू दे रहे थे। चर्चा कै दौरान प्रशांत भूषण ने देश और समाज से लेकर ज्यूडीशियल रिफॉर्म तक तमाम मुद्दों पर बेबाकी से अपनी बात रखी।

प्रशांत भूषण ने कहा कि युवा हमारे भविष्य हैं, वे ही देश के सबसे बड़े स्टेक होल्डर हैं। उनमें ही सबसे ज्यादा ऊर्जा होती है। सबसे ज्यादा नए आइडिया युवाओं के पास ही होते हैं। इसलिए देश और लोकतंत्र को बचाने का सबसे बड़ा दायित्व युवाओं के पास ही है। उन्होंने कहा कि युवाओं का दायित्व है कि वो पहले पढ़े और सोचे कि देश में हो क्या रहा है? समाज में हो क्या रहा है? क्या खामियां हैं? क्या सुधार होने चाहिए? और यह सब समझने के बाद उन्हें इन मुद्दों पर कैंपेन चलाना चाहिए और आवाज उठानी चाहिए। इसके लिए चाहे आपको कोई सजा भी भुगतनी करनी पड़े, चाहे आपको जेल में डालने की धमकी दी जाए, चाहे आपके खिलाफ देशद्रोह और अवमानना का केस चलाया जाए। युवाओं को यह सब झेलने के लिए तैयार रहना चाहिए।

प्रशांत भूषण ने कहा- “गांधी जी ने बोला था कि जिस दिन जेल जाने का डर खत्म हो जाएगा उस दिन आप आजाद हो जाएंगे।” जब बहुत सारे लोग खड़े हो जाते हैं तो किस-किस को जेल में डालेंगे। अब जैसे अवमानना के मामले में बहुत सारे लोग खड़े हो गए, बहुत सारे लोग वही चीज कहने लगे, तो कितने लोगों को अवमानना का दोषी ठहराएंगे, कितने लोगों को जेल में डालेंगे। जैसे आजादी के समय में लोग कहते थे- “सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है, देखना है ज़ोर कितना बाज़ू-ए-क़ातिल में है।” उसी तरह यह नारा भी लगाया जाता था कि “दम है कितना दमन में तेरे, देख लिया है देखेंगे.. जगह है कितनी जेल में तेरे, देख लिया है देखेंगे”- युवाओं में ये जज्बा होना चाहिए।

प्रशांत भूषण ने कहा कि युवाओं को कुछ समय देश और समाज के लिए देना चाहिए, क्योंकि हमारा लोकतंत्र बहुत नाजुक मोड पर खड़ा है। अगर उसके क्षरण को अभी नहीं रोका गया तो कुछ नहीं बचेगा बचाने के लिए।

लोकतंत्र पर इमरजेंसी से भी बड़ा खतरा

एक सवाल के जवाब में प्रशांत भूषण ने कहा कि इमरजेंसी के समय लोकतंत्र जितना खतरे में था आज उससे ज्यादा खतरे में है। ये मैं क्यों कहता हूं? इमरजेंसी में मौलिक अधिकार खत्म कर दिए गए थे, बहुत से लोगों को जेल में डाल दिया गया था, अभिव्यक्ति की आजादी पर रोक लगा दी गई थी, मीडिया सेंसरशिप कर दी गई। लेकिन आज तो कानून का राज ही खत्म होता जा रहा है, जो इमरजेंसी के दौरान भी नहीं हुआ था। सड़कों पर लिंच मॉब के द्वारा हमले हो रहे हैं, खासकर मुस्लिम समाज के ऊपर या जो लोग सरकार के खिलाफ बोलते हैं। जो व्यक्ति सरकार के खिलाफ कुछ बोलता है उनके खिलाफ देशद्रोह के केस चला दिए जाते हैं। जो लोग लोकतांत्रिक तरीके से सीएए के खिलाफ खड़े हुए उन्हें पुलिस टारगेट कर रही है। पुलिस कह रही है कि इन्होंने दंगे कराने की साजिश की।

प्रशांत भूषण ने कहा कि लिंच मॉब को खुली छूट दे दी गई है। लिंच मॉब लड़कों पर भी हैं, सोशल मीडिया में भी हैं। जो व्यक्ति सरकार के खिलाफ कुछ बोलता है या जो मुसलमान हैं, उनको ट्रोल किया जाता है। उनको खूब गालियां दी जातीं हैं। स्वाति चतुर्वेदी की किताब पढ़ें तो पता चलता है कि यह सब बीजेपी आईटी सेल के द्वारा नियोजित तरीके से किया जाता है और उसके मुखिया प्रधानमंत्री खुद हैं। वो खुद इन ट्रोल को फॉलो करते हैं। उन लोगों के साथ फोटो खिचवाते हैं। प्रधानमंत्री उनको अपने घर चाय पर बुलाते हैं। ट्रोल आर्मी का पूरा संचालन प्रधानमंत्री खुद करते हैं।

प्रशांत भूषण ने कहा कानून का राज देश से खत्म होता जा रहा है। इमरजेंसी के दौरान भी ऐसा नहीं हुआ। चाहे चुनाव आयोग हो, सीएजी हो, जांच एजेंसियां हों, न्यायपालिका हो, इन सब पर जिस तरह का हमला हुआ, वो पहले कभी नहीं हुआ। उन्होंने कहा कि कब ऐसा हुआ है कि सीएजी ने सरकार के कहने पर राफेल के सौदे के आडिट से प्राइसिंग डीटेल उड़ा दिए हों? कब ऐसा हुआ है कि राफेल के कॉन्ट्रैक्ट सीएजी के ऑडिट से ही हटा दिये गये हों, जबकि काफी ऑडिट हो चुका था, जब बहुत सारे घपले निकले तो सरकार के कहने पर उसे हटा दिया गया।

ऐसा कब हुआ है कि सरकार के द्वारा चुनी गई तारीख पर ही चुनाव आयोग चुनाव घोषित करता हो? कब ऐसा हुआ है कि आदर्श चुनाव आचार संहिता का खुलेआम उल्लंघन प्रधानमंत्री और गृहमंत्री कर रहे हों, लेकिन उनको नहीं रोका जा रहा हो? कब ऐसा हुआ है कि मीडिया का ये हाल कर दिया हो कि एक महीने से दिन रात सुशांत सिंह राजपूत के मौत को लेकर स्टोरी चलाई जा रही हैं ताकि असली मुद्दों से लोगों का ध्यान भटकाया जा सके।

ऐसा कब हुआ है कि सेकुलर देश का प्रधानमंत्री मंदिर के शिलान्यास में चला गया। ऐसा कब हुआ है कि विश्वविद्यालयों में वाइस चांसलर्स ऐसे नियुक्त कर दिए हों जो सिर्फ आरएसएस के लोग हों और जिनको शिक्षा के बारे में कुछ आता जाता नहीं हो। उन्होंने कहा कि हिन्दू राष्ट्र बनाने का अभियान चलाया जा रहा है। लोगों को मुसलमानों के खिलाफ भड़काया जा रहा है, ऩफरत फैलाई जा रही और यह सब सरकार, उसके सारे तंत्र और मीडिया के द्वारा किया जा रहा है।

प्रशांत भूषण ने कहा कि हर तरह से लोकतंत्र का हनन हुआ है। अभिव्यक्ति की आजादी पर जोरदार हमला हुआ है। इमरजेंसी के दौरान ऐसा हमला नहीं हुआ था। उन्होंने कहा कि यह सब हो रहा है और सुप्रीम कोर्ट, जिसका काम है लोकतंत्र के हनन को रोकना, लोकतांत्रिक संस्थाओं की रक्षा करना, कई साल से हम देख रहे हैं ये काम नहीं हो रहा है।

ज्यूडीशियल रिफॉर्म जरूरी

ज्यूडीशियल रिफॉर्म पर पूछे गए सवाल के जवाब में प्रशांत भूषण ने कहा अगर हम ये सवाल पूछें कि हमारी न्यायपालिका से कितने लोगों को असल में न्याय मिल पा रहा है तो उसका इमानदार जवाब होगा शायद एक प्रतिशत। इसके कई कारण हैं। पहला ये कि आम आदमी इस न्यायिक व्यवस्था में बगैर वकील के घुस ही नहीं सकता। आम आदमी के पास वकील करने के पैसे नहीं होते। जब किसी गरीब आदमी को पुलिस झूठे आरोप में पकड़ लेती है तो वो बेचारा हाथ जोड़कर खड़ा हो जाता है, क्योंकि वो अपने बचाव में कुछ कह ही नहीं सकता, कुछ कर ही नहीं सकता। इसीलिए देश के जेलों में आधे से ज्यादा लोग तो अंडर ट्रायल हैं। जो अपनी बेल भी नहीं ले पा रहे हैं। उनका ट्रायल भी नहीं होता। वो जेलों में सड़ते रहते हैं।

पहला रिफॉर्म ये होना चाहिए कि न्यायिक व्यवस्था को सुधारा जाए। ग्राम न्यायालय का कानून लागू किया जाए। जिससे आम आदमी के जो छोटे-छोटे केस हैं उनके लिए इनफॉर्मल कोर्ट सिस्टम बन सके। जिसमें उन्हें वकील करने की जरूरत न हो और जहां जल्दी से फैसले हो सकें।

दूसरा जो रेगुलर कोर्ट सिस्टम है उसको भी सुधारने की जरूरत है। वहां पर जजों की संख्या बढ़ाने की जरूरत है। वहां पर अच्छे जज नियुक्त करने की जरूरत है। जजों की नियुक्ति में पारदर्शिता लाने की जरूरत है। एक ठोस आयोग बने जो जजों का चयन पारदर्शिता के साथ करे। फिर जजों की जवाबदेही लाने का सवाल है, उसके लिए जुडीशियल कैम्प्लेन कमीशन बनाने की जरूरत है। जो सरकार और न्यायपालिका दोनों से स्वतंत्र हो। जहां लोग जजों के खिलाफ शिकायत कर सकें। और वो उसकी जांच करके, उस जज की बात सुनकर तय कर सके कि क्या एक्शन लेने की जरूरत है।

अब ये कैसे होगा? क्योंकि न तो सरकार कोई रिफॉर्म चाहती है और न ही न्यायपालिका कोई रिफॉर्म चाहती है। जबतक आम लोगों के बीच एक बड़ा कैंपेन नहीं चलेगा तब तक ये रिफॉर्म नहीं आने वाले हैं। पब्लिक डिस्कसन होना चाहिए कि न्यायपालिका में क्या गड़बड़ी है? क्या  सुधार होने की जरूरत है?  इसमें सिर्फ ये सावधानी बरतने की जरूरत है कि लोग कोई ऊल  जुलूल आरोप बगैर किसी तथ्य के किसी जज के खिलाफ न लगाएं। तरीके से, सोच समझ कर, तथ्यों के साथ लोग आलोचना कर सकते हैं। कुछ भी डिस्कसन कर सकते हैं। किसी भी संस्था के बारे में। न्यायपालिका के बारे में भी। और उसको कंटेम्प्ट ऑफ कोर्ट नहीं मना जाना चाहिए। उस पर कोई रोक नहीं होनी चाहिए।

यूथ फॉर स्वराज के साथ प्रशांत भूषण की पूरी बातचीत यहां देखें…

"Our highest duty as citizens: What does India demand of its youth today?"

"Our highest duty as citizens: What does India demand of its youth today?"Prashant Bhushan: Senior Advocate, Supreme CourtIn Conversation WithManish Kumar- National President, Youth for Swaraj&Aditi- National Council Member, Youth for Swaraj, Law StudentWatch Live :

Posted by Youth for Swaraj on Saturday, August 22, 2020