नेपाल की संसद ने पास किया नया नक्शा, 395 कि.मी.भारतीय भूभाग को किया शामिल

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भारत के तमाम दबावों को दरकिनार करते हुए नेपाली संसद के निचले संदन, हाउस ऑफ रिप्रज़ेन्टेटिव ने नेपाल के नये मानचित्र के पेश किये गये संशोधन प्रस्ताव को सर्वसम्मति से स्वीकार कर लिया। बुधवार को सभी पार्टियों ने एक सुर में इस प्रस्ताव का समर्थन किया जिसमें लिपुलेख, कालापानी और लिंपियाधुरा को भी नेपाल का हिस्सा बताया गया है जो भारत के मुताबिक उसका क्षेत्र है। नये नक्शे में 395 किलोमीटर भारतीय इलाका शामिल किया गया है।

कूटनीतिक हल्के में नेपाल आमतौर पर भारत के साथ ही रहता आया है। लेकिन बीते कुछ समय से उसका चीन की ओर झुकाव देखा जा रहा है। प्रधानमंत्री बनने के बाद नरेंद्र मोदी ने चर्चित काठमांडू यात्रा की थी और पशुपति नाथ मंदिर में उनकी पूजा के चित्र काफी प्रसारित हुए थे। लेकिन बाद में रिश्तों में गाँठ पड़ गयी। खासतौर पर नाकेबंदी जैसी घटना ने नेपाल को भारत से दूर कर दिया। राजनयिक क्षेत्र में इसे मोदी सरकार की कूटनीतिक विफलता मानी जा रही है।

आरएसएस से जुड़े संगठन उसे एकमात्र हिंदू राष्ट्र के रूप में काफी अहमियत देते रहे हैं। विश्व हिंदू परिषद तो नेपाल के राजा को समस्त हिंदुओं का सम्राट बताता था। लेकिन वहां राजशाही की समाप्ति के बाद कम्युनिस्टों का वर्चस्व बढ़ गया। वहाँ भारत की कथित दादागीरी राजनीतिक मुद्दा बनता गया जिसका विरोध अब राष्ट्रवादी होने की पहचान है।

नेपाली संसद द्वारा पारित होने के बाद इस संशोधन पर राष्ट्रपति के हस्ताक्षर होते ही नया नेपाली मानचित्र संवैधानिक मान्यता पा जाएगा यानी भारत के साथ सीमा विवाद एक नये दौर में प्रवेश कर जायेगा।

नेपाली मीडिया के मुताबिक नेपाली कांग्रेस ने भी पार्टी सांसदों को प्रस्ताव के पक्ष में मतदान का निर्देश दिया था। प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली ने इस मुद्दे पर राष्ट्रीय आम सहमति बनाने पर जोर देते रहे हैं।

पिछले महीने रक्षामंत्री राजनाथ सिंह ने धारचूला-लिपुलेख मार्ग का लोकार्पण किया था जिस पर नेपाल ने कड़ी आपत्ति जतायी थी। 80 कि.मी का यह मार्ग मानसरोवर जाने वाले तीर्थयात्रियों के लिए काफी सुविधाजनक होगा जिससे तीन हफ्ते की यात्रा एक हफ्ते में पूरी हो जायेगी।

नेपाल का यह भी आरोप है कि भारत सीमा विवाद पर चीन से तो बात कर रहा है, लेकिन बार-बार कहने के बावजूद उसके साथ वार्ता नहीं की गयी। भारत के रवैये को दबंगई बताते हुए कम्युनिस्ट समेत दूसरे दलों ने नेपाल में भारत विरोधी भावनाओं को काफी हवा दी है। नये मानचित्र से जुड़ा प्रस्ताव पारित होने के बाद रिश्तों में और खटास आना तय है।