सूटकेस पर बच्चे को खींचती मां के वीडियो पर मानवाधिकार आयोग का नोटिस!

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कोरोना वायरस की वजह से हुए लॉकडाउन में रोज़ाना मजदूरों के दर्द की नई कहानियां सामने आ रही हैं। कोरोना के बजाय भूख के डर से लाखों मजदूर परिवार समेत पैदल ही सैकड़ों-हजारों किलोमीटर अपने घर की तरफ़ चले जा रहे हैं। बेबसी की ऐसी ही एक तस्वीर आगरा से आई थी। जिसमें एक महिला सूटकेस में रस्सी बांध कर उसे खींच रही थी और सूटकेस पर उसका बच्चा लेटा या यूं कहें कि लटका हुआ था। उस वीडियो को देखकर राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने इस मामले में स्वतः संज्ञान लेते हुए उत्तर प्रदेश और पंजाब सरकार के मुख्य सचिवों के साथ ही आगरा के डीएम को एक नोटिस जारी किया है।

दरअसल वीडियो में दिख रही महिला और बाकी लोग पंजाब से अपने-अपने घरों को पैदल ही जा रहे थे। इन लोगों को उत्तर प्रदेश में झांसी और उसके नज़दीक के जिलों में जाना था। जब ये महिला आगरा हाईवे पहुंची तो किसी ने ये वीडियो बना कर सोशल मीडिया पर डाल दिया। साथ ही महिला से पूछे जाने पर पता चला कि चलते-चलते बच्चा थक गया था और सूटकेस पर ही सो गया। इसके बाद भी उस महिला ने अपना सफ़र जारी रखा और सूटकेस पर लटके अपने बच्चे को कई किलोमीटर तक खींच कर चलती रही। जब उस महिला से कहा गया कि बसों की व्यवस्था तो की गयी है फिर बस से क्यों नहीं जाते ? उस महिला ने कहा, “कहां है बस?” साथ ही चल रहे महिला के पति ने बताया कि हम बस अड्डे के नज़दीक से ही आये हैं लेकिन पुलिस ने कहा कि कोई बस नहीं है| 

 इस घटना पर मानवाधिकार आयोग का कहना है कि लॉकडाउन के दौरान केंद्र सरकार और राज्य सरकार की तरफ़ से लोगों की मदद की जा रही है लेकिन ये अजीब बात है कि इस बच्चे और उसके परिवार के दर्द और तकलीफ़ को स्थानीय अधिकारियों के अलावा हर किसी ने महसूस किया। अगर स्थानीय अधिकारी सजग होते तो बच्चे और उसके परिवार के साथ ही मुसीबत का सामना कर रहे अन्य लोगों तक तुरंत ही मदद पहुंचाई जा सकती थी। यह घटना मानवाधिकारों के उल्लंघन के बराबर ही है और इसमें राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के हस्तक्षेप की ज़रूरत है। एनएचआरसी ने इसी सिलसिले में पंजाब और उत्तर प्रदेश के मुख्य सचिवों और आगरा के डीएम को नोटिस भेजकर चार हफ़्ते में विस्तार से रिपोर्ट मांगी है। रिपोर्ट में संबंधित मामले में ज़िम्मेदार अधिकारियों के ख़िलाफ़ क्या कदम उठाये गए और उन परिवारों को क्या मदद की गयी है ? ये भी बताने को कहा गया है।

साथ ही आयोग ने स्थानीय अधिकारियों की लापरवाही के एक और मामले में स्वतः संज्ञान लेते हुए कहा है कि महाराष्ट्र से मध्य प्रदेश जा रही एक प्रवासी महिला मजदूर ने रास्ते में बच्चे को जन्म दिया और अगले दो घंटे में ही फ़िर से चलने को मजबूर हुई। इस तरह की घटनाएं स्थानीय अधिकारियों की लापरवाही और उनके अनुचित दृष्टिकोण की तरफ़ इशारा करती हैं। जो ज़मीनी हकीकत से दूर रहना चाहते हैं।

राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग की वेबसाइट से साभार

आपको बता दें कि रस्सी से सूटकेस खींचती महिला की बात जब आगरा के डीएम तक पहुंची तो उन्होंने एक टीवी चैनल को इन स्थितियों में अपनी असंवेदनशीलता का परिचय देते हुए कहा, “जब हम छोटे थे तो तो हम भी अपने पिता जी की अटैची पर बैठ जाया करते थे, कुछ लोग जल्दबाजी में भी बस होते हुए पैदल ही निकल जाते थे।” अब इन्हीं डीएम साहब से एनएचआरसी ने नोटिस जारी करके जवाब मांगा है।

सबसे बड़ी हैरानी की बात ये है कि अपने राष्ट्र के नाम संदेश में पीएम ने इन मज़दूरों का ज़िक्र भी नहीं किया, जबकि सैकड़ों-हजारों किलोमीटर पैदल चलकर अपने घर पहुंचने वाले ये मजदूर प्रधानमंत्री के आत्मनिर्भर अभियान के BRAND AMBASSADOR बनाए जाने चाहिए।


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