योगी को कठघरे में खड़ा करने वाले पर मुकदमे पर मुकदमा


रिहाई मंच ने हेट स्पीच को लेकर सूबे के मुखिया योगी को कटघरे में खड़ा करने वाले गोरखपुर के सामाजिक कार्यकर्ता परवेज परवाज पर मुकदमे पर मुकदमा दर्ज होने को राजनीतिक षडयंत्र करार दिया


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प्रेस विज्ञप्ति

जिसे योगी ने स्वीकारा उसी वीडियो को फर्जी बताकर दर्ज हुआ मुकदमा – रिहाई मंच

मामला सुप्रीम कोर्ट में विचाराधीन लेकिन योगी से जुड़ा होने के कारण दर्ज हुआ परवेज पर मुकदमा

लखनऊ 18 दिसंबर 2018। रिहाई मंच ने हेट स्पीच को लेकर सूबे के मुखिया योगी को कटघरे में खड़ा करने वाले गोरखपुर के सामाजिक कार्यकर्ता परवेज परवाज पर मुकदमे पर मुकदमा दर्ज होने को राजनीतिक षडयंत्र करार दिया। 

रिहाई मचं अध्यक्ष मुहम्मद शुऐब ने कहा कि समाज में सांप्रदायिकता भड़काने वाले योगी आदित्यनाथ के विवादित भाषण के खिलाफ सामाजिक कार्यकर्ता असद हयात और परवेज परवाज लंबे समय से कानूनी लड़ाई लड़ रहे हैं। पिछले दिनों बलात्कार के झूठे आरोप में परवेज परवाज को क्लीन चिट तक मिल चुकी थी। उसी मामले में उनकी गिरफ्तारी और अब सुप्रीम कोर्ट में विचाराधीन मामले में मुकदमा दर्ज कराना साफ करता है कि सांप्रदायिक हिंसा के आरोपी योगी व उनका पूरा कुनबा खुद को बचाने में लिए परवेज के खिलाफ राजनीतिक षडयंत्र के तहत कार्रवाई करा रहा है। 

गोरखपुर सांप्रदायिक हिंसा के मामले में योगी के साथ सहअभियुक्त और पूर्व विधान परिषद सदस्य वाईडी सिंह ने मुकदमे के वादी परवेज परवाज पर दबाव बनाने के लिए गोरखुपर सीजेएम के सामने याचिका दायर कर परवेज के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने की मांग की। वाईडी सिंह ने याचिका में आरोप लगाया कि परवेज ने 2007 दंगे की योगी के भाषण की जो सीडी हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में दाखिल की है वह फर्जी है। अपनी इस याचिका में उन्होंने परवेज पर यह भी आरोप लगाया कि वे एक साम्प्रदायिक व्यक्ति हैं जिन्होंने सद्दाम हुसैन की फांसी का विरोध किया था। यह भी कि परवेज ने दंगा किया और कई दुकानों में लूटपाट की लेकिन एक भी ऐसी दुकान या दुकान मालिक का नाम नहीं बताया। गौरतलब है कि 2015 में वाईडी सिंह की तरफ से परवेज के खिलाफ ऐसी ही एक याचिका गोरखपुर सीजेएम के सामने लगाई गई थी जिसे अदालत ने खारिज कर दिया था। वहीं अगस्त 2014 में इंडिया टीवी पर आपकी अदालत कार्यक्रम में योगी आदित्यनाथ ने भड़काऊ वीडियो की सत्यता पर कोई सवाल करने के बजाए सार्वजनिक तौर पर उसमें खुद के होने की गवाही पेश कर दी।

सुप्रीम कोर्ट ने 20 अगस्त 2018 को पारित आदेश में यूपी सरकार को 4 सप्ताह में जवाब दाखिल करने का आदेश दिया था परंतु अभी तक सरकार ने जवाब दाखिल नहीं किया है। सरकार ऐसा इसलिए कर रही है क्योंकि इस मामले में तत्कालीन भाजपा सांसद योगी आदित्यनाथ, केन्द्रीय वित्त राज्य मंत्री शिव प्रताप शुक्ला, भाजपा विधायक राधा मोहन दास अग्रवाल, तत्कालीन मेयर और राज्य महिला आयोग की उपाध्यक्ष अंजू चैधरी, पूर्व एमएलसी वाईडी सिंह के खिलाफ सांप्रदायिक हिंसा का मुकदमा दर्ज हुआ था। दूसरी तरफ परवेज परवाज का कथन है कि जिस डीवीडी को फोरेंसिक जांच के लिए भेजा गया वो उन्होंने पुलिस को दी ही नहीं थी। विवेचक ने कोई फर्द जब्ती नहीं तैयार की जिससे साबित हो कि विवादित डीवीडी परवेज ने पुलिस को सौंपी। जबकि उनके द्वारा दी गयी सीडी अदालत में शपथ पत्र के साथ दाखिल हुई थी जो आज भी टूटी हुई दशा में निचली अदालत की फाइल में मौजूद है। डीवीडी के प्राप्त होने और उसके बनने की तारीखों में दो महीने का अंतर पुलिस की जांच प्रक्रिया पर सवाल उठाता है। यह पूरा मामला सुप्रीम कोर्ट में विचाराधीन है ऐसे में कैसे एफआईआर हो सकती है। इस मामले में योगी अपने ही मामले के जज बन गए थे और मुकदमा चलाने की सरकार ने अनुमति नहीं दी। 

65 वर्षीय परवेज परवाज और दूसरे सह अभियुक्त पर जून 2018 में सामूहिक बलात्कार का मुकदमा दर्ज हुआ। पुलिस ने मामले की तफ्तीश की और उसे फर्जी पाया। आखिरकार मामले में फाइनल रिपोर्ट लगा दी। जिस दिन हाईकोर्ट में सुनवाई होनी थी उसी रात परवेज को गिरफ्तार किया गया। वहीं इस मामले में हाई कोर्ट ने दूसरे अभियुक्त की गिरफ्तारी पर रोक लगा दी है। 
रिहाई मंच ने कहा कि जहां एक तरफ योगी आदित्यनाथ को लेकर चल रहे मामले में 30 जुलाई को इलाहाबाद हाईकोर्ट और 13 अगस्त को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई थी, वहीं दूसरी तरफ 18 अगस्त 2018 को एसएसपी गोरखपुर ने जून 2018 के सामूहिक बलात्कार मामले की अग्रिम विवेचना का 12 अगस्त 2018 की आख्या पर आदेश कर दिया। सवाल है कि मामले में फाइनल रिपोर्ट लगने के बाद 12 अगस्त 2018 की आख्या क्या है जिसके आधार पर एसएसपी ने 18 सितंबर को पुनः अग्रिम विवेचना महिला थाने की आईओ इस्पेक्टर को दे दिया। बिना विवेचक बनाए गए आखिर कैसे 12 अगस्त को इन्वेस्टिगेशन टेक ओवर करके रिपोर्ट समिट कर दी गई। 16 सितंबर को गवाहों को भी नोटिस जारी कर दिया गया कि वह आकर अपना बयान दर्ज कराएं। इस मामले में इलाहाबाद हाईकोर्ट में पैरवी कर रहे एडवोकेट फरमान अहमद नकवी ने सवाल उठाया है कि जब तक फाइनल रिपोर्ट रिजेक्ट करके दूसरे आईओ को नहीं दी जाती, तब तक कैसे कोई अन्य विवेचना की जा सकती है।

रिहाई मंच ने आरोप लगाया कि यह सब कानून के परे जाकर योगी आदित्यनाथ के आदेश पर खुल्लमखुल्ला हो रहा है। वरना एसएसपी को बताना चाहिए कि कैसे उनके आदेष से पहले नया विवेचक आ जाता है और रिपोर्ट भी दे देता है। आतंकित परवेज परवाज की पत्नी रेहाना बेगम झूठे मामले में फंसाने और सुरक्षा के लिए मानवाधिकार आयोग, प्रमुख सचिव गृह, पुलिस महानिदेशक गोरखपुर, आईजी गोरखपुर, डीआईजी गोरखपुर, एसएसपी गोरखपुर से गोहार लगा चुकी हैं। उन्होंने कहा कि गोरखपुर पुलिस उन्हें और उनके पुत्रों को परेशान कर रही है। पुलिस धमका रही है और फर्जी मुकदमे में फंसाने का षड़यंत्र रच रही है। यह सब इसलिए कि परवेज मुकदमे से पीछे हट जाएं। इसी कड़ी में परवेज के खिलाफ थाना राजघाट, जिला गोरखपुर में मुकदमा दर्ज करवाया गया। इसपर अंतिम रिपोर्ट लग जाने के बाद योगी आदित्यनाथ के इशारे पर पुनर्विवेचना का आदेश हुआ। परवेज के जेल जाने के बाद उनका परिवार इतना आतंकित है कि घर में रहने का साहस नहीं जुटा पा रहा। परवेज का एक बेटा विकलांग है, सुनने व बोलने से लाचार है।

द्वारा जारी- राजीव यादव, रिहाई मंच 


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