श्रम कोड बिल पर भड़का आक्रोश, मज़दूर संगठनों का देश भर में प्रदर्शन

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मोदी सरकार द्वारा श्रम कानूनों में बदलाव के लिए तीन बिल लोकसभा में पास कराने, मजदूर विरोधी नीतियों, सार्वजनिक कंपनियों के विनिवेश व निजीकरण और कई सेक्टर को एफडीआई के 100 फीसदी खोलने के ​खिलाफ आज 10 श्रमिक संगठनों ने देशभर में विरोध प्रदर्शन किया। दिल्ली के जंतर मंतर पर प्रदर्शनकारियों ने विरोध स्वरूप तीनों श्रम कोड विधेयकों की प्रतियाँ फाड़ी और विरोध सभा का आयोजन भी किया।

दिल्ली के जंतर-मंतर पर हुए विरोध प्रदर्शन में ऐक्टू (AICCTU) , एटक(AITUC), सीटू (CITU), इंटक (INTUC), एच.एम.एस (HMS), ए.आई.यू.टी.यू .सी (AIUTUC), यू.टी.यू.सी (UTUC), सेवा (SEWA), एल.पी.एफ (LPF) व अन्य संगठन शामिल थे।

विरोध प्रदर्शऩ के जरिए श्रमिक संगठन ने कामगारों को लॉकडाउन के समय का वेतन देने, किसी भी कर्मचारी की छंटनी न करने, सभी जरूरतमंद लोगों को राशन देने और असंगठित क्षेत्र के सभी कामगारों और स्वरोजगार करने वालों को कम से कम छह महीने तक 7,500 रुपये की नकद सहायता राशि देने की भी मांग की।

इस मौके पर ट्रेड यूनियन नेताओं ने कहा कि नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार ने 44 महत्वपूर्ण श्रम कानूनों को रद्द करके श्रमिकों के अधिकारों को छीनने के अपने प्रयासों को तेज कर दिया है। संसद का मानसून सत्र, जो एक लंबे अंतराल के बाद हो रहा है, उसे इस तरह सूत्रबद्ध किया गया है कि लाखों श्रमिकों और किसानों से जुड़े महत्वपूर्ण मसलों पर चर्चा ही ना हो। जिस तरह से व्यापक विरोध के बावजूद मोदी सरकार तमाम मजदूर व किसान विरोधी क़ानून बना रही है, वह साफ़ तौर पर सरकार के मज़दूर-विरोधी और कॉरपोरेट-समर्थक रुख को दर्शाता है।

नेताओं ने कहा कि संसद के वर्तमान सत्र में किसी भी तरह के बहस-विचार की गुंजाइश खत्म कर तीन अत्यंत ही श्रमिक विरोधी विधेयकों को लोकसभा व राज्यसभा में पास करा दिया गया। जिनमें ‘लेबर कोड ऑन सोशल सिक्यूरिटी’, ‘कोड ऑन इंडस्ट्रियल रिलेशंस’ व ‘लेबर कोड ऑन ओक्युपेश्नल सेफ्टी, हेल्थ एंड वर्किंग कंडीशंस’ शामिल हैं।

ट्रेड यूनियन नेताओं ने कहा कि मोदी सरकार के श्रम मंत्री संतोष गंगवार के बयानों में अब ये बात खुल कर सामने आ रही है कि श्रम कानूनों में होनेवाले बदलाव मालिकों के पक्ष में हो रहे हैं और इन बदलावों से मजदूरों के ट्रेड यूनियन बनाने, स्ट्राइक करने व अन्य अधिकार छीन लिए जाएंगे।

नेताओं ने कहा कि देशभर में आन्दोलन कर रहे किसानों की अनदेखी करने के तुरंत बाद, श्रम कानूनों पर हो रहे हमलों से एक बात साफ़ हो चुकी है कि सरकार के पास आम जनता को देने के लिए ‘काले-कानूनों’ के अलावे कुछ भी नहीं। मोदी सरकार कहीं आन्दोलन कर रहे किसानों पर लाठियां चला रही है तो कहीं प्रदर्शनकारी मजदूरों पर केस लाद रही है।

आज जब मोदी सरकार पूरे देश को बता रही है कि ‘लॉक-डाउन’ में मारे गए मजदूरों का उसके पास कोई आंकड़ा नहीं है, तब मजदूर-हितों के लिए बने श्रम कानूनों को खत्म करना, मजदूरों के ऊपर दोहरी मार के समान है। संघ-भाजपा से जुड़ी ट्रेड यूनियन ऐसे समय में भी लगातार मजदूरों को सरकार के पक्ष में खड़ा करने की कोशिश कर रही है, जो मजदूरों के साथ बहुत बड़ी गद्दारी है। ‘ईज़ ऑफ डूइंग बिज़नस’ को बढ़ावा देने के नाम पर अमीरों को लूट की छूट दी जा रही है और गरीब-मेहनतकश आबादी और गरीब होते जा रही है।

प्रदर्शनकारियों को संबोधित करते हुए ऐक्टू महासचिव राजीव डिमरी ने कहा, “देश के श्रम मंत्री और प्रधानमंत्री ये बताने में असमर्थ हैं कि कितने कामगारों की मौत हुई या कितने स्वास्थ्य कर्मचारी मारे गए, पर इस बात का उन्हें पूरा भरोसा है कि सभी श्रम कानूनों को खत्म कर देने से ही श्रमिकों का कल्याण होगा।

उन्होंने कहा कि ये सरकार मजदूरों के खून की कीमत पर पूंजीपतियों के मुनाफे का रास्ता खोलना चाहती है। पहले से ही महंगाई-बेरोज़गारी-छंटनी की मार झेल रहे कर्मचारियों के लिए ये बिल आज़ाद देश में गुलाम हो जाने के आदेश के समान हैं।

उन्होंने आगे कहा, “हम मोदी द्वारा थोपी जा रही गुलामी से लड़ने के लिए तैयार हैं। संसद के अन्दर बहस को रोका जा रहा है और बाहर धरना-प्रदर्शन पर प्रतिबन्ध है। अगर संघ-भाजपा संसद पर पूर्ण बहुमत से कब्ज़ा कर ही चुके हैं तो सभी लोकतांत्रिक ताकतों को सड़कों की ओर ही रुख करना ही पड़ेगा।”

सभी मौजूद ट्रेड यूनियन संगठनों के नेताओं ने सरकार की मजदूर-किसान विरोधी नीतियों की आलोचना की और 25 सितम्बर को किसान संगठनों द्वारा आहूत विरोध व चक्का जाम के साथ एकजुटता जाहिर की।

वर्कर्स फ्रंट ने यूपी में किया विरोध प्रदर्शन

वर्कर्स फ्रंट ने उत्तर प्रदेश के कई जनपदों में कार्यक्रम कर अपना विरोध दर्ज कराया। सोनभद्र, आगरा, लखनऊ, मऊ, बस्ती, गोंडा, इलाहाबाद, सीतापुर, चित्रकूट, लखीमपुर खीरी, बाराबंकी आदि जनपदों में हुए इन प्रतिवाद कार्यक्रमों में सरकार से निजीकरण को बंद करने, नई श्रम संहिताएँ वापस लेने, विद्युत संशोधन विधेयक 2020 को रद्द करने, नई पेंशन स्कीम को खत्म करने, ठेका मजदूरों, आंगनबाड़ी, आशा, पंचायत मित्र, शिक्षामित्र आदि स्कीम वर्कर्स को स्थाई करने व सम्मानजनक वेतन देने, मनरेगा में सालभर काम की गारंटी, शहरी क्षेत्रों के लिए रोजगार गारंटी कानून और बुनकरों को विशेष पैकेज देने की मांगे उठाई गई।

वर्कर्स फ्रंट के अध्यक्ष दिनकर कपूर ने कहा कि मोदी सरकार ने संसद को बंधक बनाकर मजदूरों के विरुद्ध तीन विधेयक और किसानों के खिलाफ तीन विधेयक पास कराए हैं। मजदूरों की श्रम सहिताएं आजादी के पहले और आजादी के बाद लंबे संघर्षों से मिले मजदूरों की सुरक्षा, रोजगार, न्यूनतम मजदूरी और लोकतांत्रिक अधिकारों को खत्म करती है।

दिनकर कपूर ने कहा कि कहां तो मोदी सरकार पांच ट्रिलियन की इकनॉमी बनने की घोषणाएं कर रही थी और कहां उसने देश को इस हालत में पहुंचा दिया कि हमारी जीडीपी तक 24 प्रतिशत घट गई। पूरे देश में बेरोजगारी भयावह रूप ले चुकी है और सरकार छंटनी, डाउनसाईजिंग, भर्ती पर रोक और कोरी लफ्फाजी करने में व्यस्त है। इसके विरुद्ध मजदूर, किसान, युवा तबकों में आक्रोश बढ़ रहा है और इस आक्रोश को मजदूर आंदोलन को एक राजनीतिक ताकत में बदल देना वक्त की जरूरत है।