अंधेरे में तीर मारना बंद करे भारत: COVID-19 पर जॉन हॉपकिन्स की रिपोर्ट

संचिता कदम
ख़बर Published On :


जॉन हॉपकिन्स विश्वविद्यालय ने अपने रोग गतिकी, अर्थशास्त्र और नीति केंद्र के जरिये 24 मार्च को “कोविड19 के लिए भारत के अपडेट” नाम की एक रिपोर्ट जारी की है। यह रिपोर्ट भारत को “अंधेरे में तीर चलाने” के बजाय महामारी के चरणवार निगरानी के लिए सेरोलॉजिकल सर्वे यानी देश में मौजूद प्रतिरोध के परिदृश्य की पहाचान करने पर जोर देती है। 

रिपोर्ट में आकलन लगाया गया है कि दस लाख वेंटिलेटरों की आवश्यकता पड़ सकती है। भारत में मौजूदा समय में अनुमानतः लगभग 30,000 से 50,000 के बीच वेंटिलेटर उपलब्ध हैं। मौजूदा समय में स्वास्थ्यकर्मियों की सुरक्षा पर भी जोर देने की जरूरत है क्योंकि अगर वह संक्रमित होने शुरु हो गए तो स्वास्थ्य व्यवस्था की क्षमता पर दबाव और भी बढ़ जाएगा। यह रिपोर्ट कहती है, “स्वास्थ्यकर्मियों में मृत्यु दर सामान्य आबादी में होने वाली मौतों को और बढ़ा सकती है। स्वास्थ्यकर्मियों को व्यक्तिगत सुरक्षा उपकरणों (जैसे कि मास्क और गाउन) की आवश्यकता है जिससे की वह खुद को सुरक्षित रख सकें”।

इस रिपोर्ट में भारत में कोविड-19 से हो सकने वाले संभावित संक्रमणों की जानकारी दी गई है। इसमें संभावना जताई गई है कि इस साल अप्रैल-मई में यह महामारी अपने शीर्ष पर रहेगी और जुलाई में इसका वक्र समतल हो जाएगा यानी महामारी फैलना बंद हो जाएगी।

रिपोर्ट में महामारी के प्रसार को ग्राफ के माध्यम से दिखाया है जिसमें कुछ रंगों के कर्व यानी वक्रीय रेखाएं हैं। हर रंग के वक्र का अलग महत्व है। नीला वक्र मौजूदा लॉकडाउन में अपर्याप्त अनुपालन को दिखाता है। लाल वक्र जो मई में महामारी की चरम अवस्था को दर्शाता है, इसमें मध्यम से लेकर पूर्ण अनुपालन की स्थिति रहेगी, लेकिन तापमान या आर्द्रता का वायरस के प्रसार पर असर नहीं पड़ेगा। नारंगी वक्र एक आशावादी स्थिति को दर्शाता है जहां तापमान/आर्द्रता के प्रति वायरस संवेदी हो जाएगा।

इस रिपोर्ट में अस्पतालों में भर्ती होने वाले लोगों की संख्या का अनुमान भी लगाया गया है जिसे नीचे दिए गए कर्व से जाना जा सकता हैः

यह कर्व राष्ट्रीय स्तर की स्थिति दर्शाता है, हालांकि रिपोर्ट में ऐसे ही ग्राफ भारत के प्रत्येक राज्य के लिए भी बनाए गए हैं। कुछ अतिप्रभावित राज्य जैसे महाराष्ट्र और केरल के ग्राफ नीचे दिए गए हैंः

यह राज्यवार ग्राफ महामारी की शुरुआत के दिन, बड़े महानगर जहां प्रारंभिक संचरण काफी तेज है, कोविड प्रभावित देशों से हवाई जहाजों का आवागमन के साथ साथ उम्र और जनसंख्या संबंधित आंकड़ों को मिलाकर बनाया गया है।

हमारे लिए सबक

कुछ महत्वपूर्ण सबक ये हैं कि बुजुर्ग आबादी पर फोकस करते हुए, सामाजिक दूरी बनाए रखना अतिआवश्यक है। यह अवधि जितनी लंबी होगी, जुलाई के बाद के समय में संक्रमण उतना थमा रहेगा। यह अस्पतालों से होने वाले संचरण के बारे में भी चेतावनी देता है। रिपोर्ट कहती है, “यह मॉडल कोविड-19 के अस्पतालों में प्रकोप के प्रति संवेदनशील है जहां अस्पतालों में संक्रमित रोगियों की वजह से संक्रमित होने का खतरा है। अगले तीन महीने के लिए बड़े अस्थायी अस्पतालों की आवश्यकता है। दूसरा, अस्पताल आधारित संक्रमण महामारी के फैलने में आग में घी का काम करता है”।

कोरोना के परीक्षण पर यह रिपोर्ट कहती है, “खास उन लोगों का, जो सांस संबंधित लक्षणों से के साथ आ रहे हैं, परीक्षण अत्यंत आवश्यक है ताकि उन्हें अस्पताल में औरों से अलग किया जा सके”।

मुख्य नीति संबंधित सलाह

  1. परीक्षणों में होने वाली देरी जनसंख्या की खुद को सुरक्षित रख सकने की क्षमता को गंभीर रूप से कम कर रही है। यह महामारी को रोक सकने का सबसे महत्वपूर्ण तरीका है। अधिकारिक रूप से पाए गए केसों में इजाफा कम समय में जनसंख्या को सामाजिक दूरी बनाए रखने के लिए प्रोत्साहित कर बाद में बढ़े स्तर पर पैदा हो सकने वाले तनाव को पहले ही कम कर देगी।
  2. इस चरण में सीमाओं पर लगी रोक बहुत थोड़ा या बिलकुल भी असर नहीं डाल रही है बल्कि आगे आर्थिक अव्यवस्था और तनाव को बढ़ाएगी। जहां पहले चरण में अंतरराष्ट्रीय संचरण महत्वपूर्ण था, वहीं अब घरेलू संचरण कहीं ज्यादा प्रासंगिक है।
  3. राष्ट्रीय लॉकडाउन उत्पादक नहीं है बल्कि इसकी वजह से गंभीर आर्थिक नुकसान हो सकता है, भुखमरी बढ़ सकती है और जनता की संक्रमण की उच्चतम अवस्था में जनता की उससे उभरने की क्षमता को कम कर सकता है। कुछ राज्यों में संचरण में इजाफा 2 हफ्तों के बाद ही देखने को मिलेगा। लॉकडाउन का सबसे ज्यादा फायदा तभी मिल सकेगा जब यह महामारी पर ज्यादा से ज्यादा असर डाले और आर्थिक नुकसान न्यूनतम रहे। सबसे ज्यादा प्रभावित राज्यों में राज्यस्तरीय लॉकडाउन महामारी के प्रक्षेप वक्र को बदल देगा और यह तुरंत शुरू किया जाना चाहिए। इसमें होने वाली कोई भी देरी और ज्यादा द्वितीय स्तर के केसों को पैदा होने की संभावना बनाएगी। लॉकडाउन के साथ साथ परीक्षण और सेरोलॉजिकल सर्वे का काम चलना चाहिए और इसका नियोजन तेजी से होना चाहिए।
  4. बढ़ते हुए केसों के लिए तैयारी इस समय प्राथमिकता में सबसे पहली होनी चाहिए।
  5. तापमान तथा आर्द्रता में वृद्धि बढ़ते हुए केसों को कम करने में हमारी मदद करेगी, हालांकि इसके साक्ष्य कम हैं, फिर भी यह सुखद है।
  6. पांच साल से कम उम्र के बच्चों और बुजुर्गों दोनों पर ध्यान देने की जरूरत है। इस जनसंख्या में शुरुआती परीक्षण तथा स्वास्थ्य उपचार इस महामारी के मृत्यु दर को भारी मात्रा में कम कर सकता है।
  7. हमें इस मॉडल में एक से ज्यादा चरम अवस्था के लिए तैयार रहना होगा (हमने सिर्फ जुलाई में क्या हो सकता है यह दिखाया है) और हमें साल के आगे के महीनों में ज्यादा केसों और मौतों के लिए तैयार रहना होगा।

मौजूदा परिदृश्य

चीन का अनुभव दिखाता है कि जब तक केसों की पहचान हुई, हफ्तों से संचरण जारी था। यह संभव है कि भारत अपनी युवा जनसंख्या के जनसांख्यकीय तथा मौसमी (आर्द्रता की) लाभों की वजह से जो कि संक्रमण को लंबित कर सकता है, हालांकि बाद के महीनों में बाकी देशों से बेहतर स्थिति में रह सकता है जबकि दूसरी तरफ, युवा आबादी में पोषण और दूरगामी तौर पर सामाजिक दूरी बनाए रखने की चुनौतियों की वजह से स्थिति और भी खराब हो सकती है।

रोग के मापदंड

दक्षिण कोरिया और इटली के बीच तुलना की जा रही है। जहां इटली रोग पर काबू नहीं पा सका, दक्षिण कोरिया सिर्फ परीक्षण कर रहा है, जो कि विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा भी सलाह दी जा रही है। अतः दक्षिण कोरिया प्रतिदिन 12,000 से 15,000 परीक्षण करते हुए 0.7 प्रतिशत की मृत्यु दर पर है। अब जरूरत इसी बात की है कि भारत दक्षिण कोरिया से सीख लेते हुए जितने ज्यादा संभव हो परीक्षण करे, खासकर सबसे ज्यादा प्रभावित राज्यों में।

पूरी रिपोर्ट यहां पढ़ी जा सकती है


प्रस्तुतिः ऋचा पांडे

 


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